पिछले जन्मों में किए गए पुण्य और पाप में से कुछ भाग (प्रारब्ध) को लेकर हमें यह जीवन मिलता है। प्रारब्ध पर पूरी तरह से आश्रित हो जाना पशुता है। केवल पशु ही प्रारब्ध के अधीन होते हैं, वह प्रकृति के अनुसार ही कार्य करते हैं। यह लक्षण पशुओं के हैं, मनुष्यों के नहीं। हमें पुरुषार्थ करना है, ना कि प्रारब्ध का सहारा लेकर कायरता। भगवान भगवद् गीता में कहते हैं –
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
श्रीमद भगवद गीता
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
जीव का स्वभाव है कि वो बिना फल की इच्छा किए कोई काम नहीं करना चाहता। इसलिए वो बँधा हुआ है। इच्छा करना कोई पाप नहीं है क्योंकि संसार में धन और पद की आवश्यकता होती है जिससे परिवार का पोषण और समाज की व्यवस्था चलती रहे। तो इसमें कोई दोष नहीं है। पर हम अपनी साधना यहीं से शुरू कर सकते हैं। जैसे कि हम कोई कर्म करें, और हमें फल की इच्छा हो कि उस कर्म के बदले हमें कुछ धन मिले। यदि धन नहीं मिलता, तो हमें विचार करना चाहिए कि मेरा ही शायद कोई प्रारब्ध है, या फिर भगवान का कोई ऐसा विधान है, जो मुझे क्रिया करने पर भी उसका फल नहीं मिल रहा है, जैसी प्रभु की इच्छा। निराश या हताश न होकर हमें पुनः प्रयास करना चाहिए। प्रयास करने वाला ही विजयी होता है। लेकिन विजय किसे कहते हैं? कई बार प्रयास करने के बाद भी जब कोई असफल होता है तो उसे वैराग्य हो जाएगा। इससे उसे भगवान से सच्चा अनुराग हो जाएगा। फिर वो सच्चा धनी बन जाएगा। प्रयास करने वाले को प्रारब्ध कभी नष्ट नहीं कर सकता है।
किस प्रकार के लोग कभी परास्त नहीं होते?
शास्त्रों में वर्णन आता है –
उत्साह सम्पन्नं अधीर्घ सूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वासक्तं
शूरं कृतज्ञं दृढ़सौह्रदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः
जो हर समय उत्साह से संपन्न रहता है, वह कभी परास्त नहीं होता। वह कभी कोई कार्य नहीं टालता। वह अधिक से अधिक मेहनत करता है। फल पर उसकी दृष्टि नहीं होती, वह केवल अपना कर्म करता है। वह मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करता और क्रिया का विधान जानता है। क्रिया की विधि क्या है? किस व्यापार से कौन सा लाभ होता है? वह व्यापार का पूर्ण मर्मज्ञ होता है। उसे जो पद मिले, जो कार्य मिले, उसे वह अच्छे से निभाने की चेष्टा करता है। दिये हुए कार्य में वह कायरता या प्रमाद नहीं लाता। वो ये सोचता है कि कोई देखे या ना देखे मेरे प्रभु हमेशा देख रहे हैं।
ऐसा व्यक्ति अपने व्यापार या नौकरी में पूरा मन लगाकर कार्य करता है। वह बलवान होता है। दूसरा कोई यदि उसकी सहायता करता है तो वह आभार व्यक्त करता है। वह सबसे प्यार का बर्ताव करता है। स्वयं लक्ष्मी ऐसे व्यक्ति के घर में चल कर आने लगती हैं। इसलिए हमें परास्त होने की जरूरत नहीं है। कई बार निष्फल होने पर भी हमें निराश नहीं होना। हम उत्साह संपन्न होकर अपने कर्तव्य का पालन करने में लगे रहें।
निराशा को खुद पर हावी ना होने दें
जैसे कोई विद्यार्थी अगर फेल हो जाता है, तो कुछ माता-पिता ऐसे अल्पज्ञ होते हैं कि बच्चों को मानसिक पीड़ा देने लगते हैं कि हमने तुम्हारी पढ़ाई के लिए इतना पैसा लगाया और तुम फेल हो गए। किसी भी माता-पिता को ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। अगर आपका बच्चा फेल हो रहा है तो उसे प्रोत्साहन देना चाहिए, कोई बात नहीं, इस बार फेल हो गए, मेहनत करोगे तो अगली बार ज़रूर पास हो जाओगे। उन्हें उसकी दोस्ती और आदतें सुधारने की चेष्टा करनी चाहिए जिसकी वजह से उसे पढ़ाई में अरुचि हो रही है। आप उसे पढ़ाने का प्रयास करें। अगर फिर भी वह फेल हो जाता है तो फिर भी उससे प्यार भरा बर्ताव करें। ऐसा करने से उनका उत्साह बढ़ता है। अगर विरोध भाव आ जाता है तो आजकल जैसे सुनने को मिलता है कि बच्चे यह सोचते हैं कि मम्मी-पापा ने इतनी मेहनत करके पैसे कमाए और मेरी पढ़ाई में खर्च किए, और मैं पास नहीं हुआ। अब तो मुझे आत्महत्या कर लेनी चाहिए। यह बहुत बड़ी हानि का विषय है। आप जीवन में कभी इतना निराश ना हो जाए कि जीवन को ख़त्म करने का सोच लें। ऐसे विचार कभी नहीं आने चाहिए। हमारी आशा कभी ना टूटे। निराशा कभी हमें परास्त ना कर पाए।
हर स्थिति में प्रभु की कृपा को ही देखें
सांसारिक और पारमार्थिक दोनों मार्ग में भगवान हमें सहयोग देंगे। हम पूर्णतः प्रयासरत रहें और हमारी निष्फलता भी सफलता ही होगी। प्रयासवान पुरुष कभी भी परास्त नहीं होता। कोई अगर बहुत बार सच्चे मार्ग पर चलकर हार गया तो उसे वैराग्य हो जाएगा और उसे भगवान का पूर्ण आश्रय हो जाएगा। जिस समय वह प्रभु के आश्रित हो गया उसी समय कोई न कोई ऐसा मार्ग निकल आएगा जिसमें वह पूर्ण सफल हो जाएगा। प्रयासरत पुरुषार्थ करने वाला पूर्ण निष्फल कभी हो ही नहीं सकता। कई प्रकार के प्रारब्ध उसको परास्त करेंगे। लेकिन वो विजय को प्राप्त होगा क्योंकि वह पुरुषार्थी है, उत्साह से संपन्न है, क्रिया की विधि को जानने वाला है, और दृढ़ता पूर्वक क्रिया करने वाला है। उसका परिणाम अंत में मंगलमय ही होगा।
निष्कर्ष
हमारा मनुष्य शरीर है इसलिए हम फल की इच्छा रखते हैं। लेकिन अगर आपकी इच्छा के अनुसार परिणाम न आए तो हठ ना करें। माता-पिता और गुरुजनों की सेवा के लिए नाम जप करते हुए व्यापार या धन प्राप्ति आदि के लिए खूब प्रयास करें। सत्य धर्म से चलते हुए अगर आपको धन नहीं मिलता है तो उसमें अश्रद्धा या नास्तिकता न करें। उस समय विचार करें कि प्रभु का विधान ऐसा ही था और जो हो उसी में संतोष धारण करें। अगर हम प्रारब्ध के भरोसे बैठ गये और कोई प्रयास नहीं किया तो यह केवल कायरता ही कही जाएगी। यह कायरता रूपी दोष आप में कभी नहीं आना चाहिए।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज