भगवान ने पूरे ब्रह्मांड की रचना की, वह सभी के हृदय में हैं लेकिन वह खुद को भक्तों के दिलों में ही क्यों प्रकट करते हैं? वह स्वयं को सबके हृदयों में प्रकट क्यों नहीं करते?
सकल जीव जग दीन दुखारी॥
श्री रामचरितमानस
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी।
ऊपर दी गई चौपाई में कहा गया है कि भगवान सबके हृदय में हैं, लेकिन वे केवल भक्तों के हृदय में ही प्रकट होते हैं, ऐसा क्यों? क्योंकि उन्होंने भक्ति के द्वारा अपने हृदयों को शुद्ध किया, अज्ञानता को दूर किया और ईश्वर को प्रकट किया। इसी प्रकार, ब्रह्म ऋषि हर जगह नहीं रहते हैं। भारत की भूमि ब्रह्म ऋषियों, महान विद्वानों, तपस्वियों और पवित्र लोगों की भूमि है, व्यभिचारियों की भूमि नहीं। इसीलिए भगवान यहाँ प्रकट होते हैं।
जैसे एक भक्त का हृदय, सभी अपूर्णताओं से रहित होकर, ईश्वरमय हो जाता है, और उसमें भगवान स्वयं को प्रकट करते हैं, उसी प्रकार, भारत की इस भूमि में ब्रह्म ऋषियों, महान विद्वानों और यहाँ तक कि स्वयं भगवान को अपने पुत्र के रूप में प्रकट करने की क्षमता है।
भारत का असली गौरव
भारत की भूमि वह है जहां गंगा, यमुना, सती और यति (पवित्रता) का जश्न मनाया जाता है। यह व्यभिचारियों की भूमि नहीं है। जो चाहो खाओ और मन चाहे आचरण करो तो भगवान नहीं बल्कि अज्ञान प्रकट होगा। जो बाहर के देशों में हो रहा है, उसी का अनुकरण करने की वजह से हम दुर्भाग्य में डूबते जा रहे हैं, नास्तिक बनते जा रहे हैं, व्यभिचारी बनते जा रहे हैं। हमारे भारत देश के ये सिद्धांत और संस्कार नहीं है।
पश्चिम देशों की धरणाओं का पालन हमारे देश के लोगों को भ्रष्ट कर रहा है। हमारा देश महान है क्योंकि यह सती और यति, पवित्र नदियों गंगा और यमुना की भूमि है। ऐसी नदियाँ और किस जगह हैं? किसका जल इतना पवित्र है कि एक डुबकी मात्र से ही सारे पाप नष्ट हो जाए? किस स्थान की मिट्टी (रज) ऐसी है कि बड़े-बड़े आध्यात्मिक संत भी उसके स्पर्श की प्रार्थना करते हैं? वृन्दावन धाम, अवध धाम, काशी धाम और द्वारका जैसे महान पवित्र स्थान और कहाँ मौजूद हैं? इसीलिए भगवान यहाँ प्रकट होते हैं।
हम किस दिशा में जा रहे हैं?
आज जो कुछ हो रहा है, ये हमारी भारत भूमि की पहचान नहीं है। ये व्यभिचार जो कम उम्र में ही शुरू हो जाता है, बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड और लिव इन रिलेशन, ये सब गंदगी हमारे देश की नहीं है। हम दूसरे देशों की नकल कर रहे हैं जबकि दूसरे देशों के लोग हमारे जैसा बनना चाहते हैं। जब वे यहां आते हैं तो शिखा रखते हैं, कंठी पहनते हैं, हाथ में जप माला लेते हैं और हम यहाँ रहते हुए भी क्या कर रहे हैं? यह भारत भूमि है; यह सिद्धांतों का देश है। क्या आप इस भूमि की क्षमता को नहीं समझ पा रहे हैं? वह स्थान जहाँ की मिट्टी, उसका पानी, उसकी हवा सबसे शुद्ध हो, ऐसा दूसरा देश कहाँ है?
अपने पति के प्रति सतीत्व के व्रत से सती ने यमराज तक की बुद्धि को भ्रमित कर दिया। ऐसी सती स्त्रियाँ जिन्होंने अपने सतीत्व के बल पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी छह महीने के बालकों में बदल दिया, और कहा मिलेंगी?
प्रेम भारत को खास बनाता है!
बाहर (पश्चिमी धर्मग्रंथों में) स्वर्ग और नर्क से अधिक कहीं और कुछ भी उल्लेखित नहीं है। जीवन के बंधन से मुक्त करने वाला प्रेम ( जो भगवान को भी बांधता है), वह केवल भारत में ही पाया जाता है, इसीलिए भगवान यहां प्रकट होते हैं। ऐसा एक भी कण नहीं है जहां भगवान मौजूद नहीं हैं, चाहे वह कोई भी देश हो।लेकिन भक्ति और पूजा के माध्यम से ही उन्हें प्रकट किया जाता है। भारत एक कर्मक्षेत्र, धर्मक्षेत्र, प्रेमक्षेत्र, और ज्ञानक्षेत्र है। आपको ऐसी जगह तीनों लोकों में कहीं और नहीं मिलेगा, ब्रह्म लोक में भी नहीं।
वासनात वासुदेवस्य वासितं भूवनत्रयम |
श्री विष्णु सहस्रनाम
सर्वभूत निवासोsसि वासुदेव नमोsस्तुते ||
भारत: पूरी दुनिया का मार्गदर्शक
हमारे यहां नास्तिक नहीं होते। जो भी यहाँ आएगा वह नास्तिक नहीं हो सकता। यहाँ आने वाले ईश्वर कृपा पात्र है। भगवान व्यास देव जी ने महाभारत में उल्लेख किया है कि भारत भूमि में जन्म लेना महान सौभाग्य का संकेत है। परम आनंद और प्रेम की प्राप्ति; वह उद्देश्य केवल यहीं है, बाहर (अन्य देशों में) नहीं। दूसरे जानवरों को खाना, व्यभिचार, भोग-विलास और असंयम से भरा जीवन हमारी संस्कृति नहीं है। यहां गृहस्थ (विवाहित) से लेकर विरक्त (त्यागी) तक, हर कोई योग के मार्ग पर चलता था, कुछ अभी भी चल रहे हैं और हमेशा चलते रहेंगे।
कुछ लोग जो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आ गये हैं, उनका पहनावा बदल गया है, आचरण बदल गया है। ऐसा कौन सा देश है जहां ब्रह्मचर्य का पालन करने पर ज़ोर दिया जाता है? क्या पति के प्रति पवित्रता का व्रत पता है बाक़ी जगहों पर? यदि आप कभी किसी दूसरे देश में किसी ऋषि से मिलेंगे, तो वे यहां के किसी ऋषि के शिष्य होंगे, भारत के किसी ऋषि से उनका संबंध ज़रूर होगा। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम अपने राष्ट्र की महानता को न जानकर दूसरों का अनुकरण कर रहें हैं।
भारत: ऋषियों का देश
भारत ईश्वर के निरंतर स्पर्श से ऐश्वर्यशाली है। भारत में ऐसा कोई कोना नहीं, जहां ईश्वर प्रेमी संत न रहते हों। भले ही आज कुछ ढोंगी लोग खुद को साधु बताते हैं, लेकिन सच्चाई अभी भी कायम है। यदि वास्तविक मुद्रा (नोट) अस्तित्व में नहीं होती तो नकली मुद्रा (नोट) कभी नहीं बनाई जाती। अगर नकली बना है तो कहीं न कहीं असली भी होगा, ढूंढो तो असली मिल जाएगा। जहां भी एक संत बैठ जाते हैं, वहां की कई मील तक की भूमि पवित्र और पूजनीय हो जाती है। यदि आपके पास दिव्य आंखें हैं तो यहां हर गली में संत हैं। यदि हमारी आंखों पर दंभ और पाखंड का चश्मा चढ़ा हुआ है तो हमें हर जगह दंभ और पाखंड ही नजर आएगा और यदि चश्मा सच्चाई का है तो हमें हर जगह सत्य का ही अनुभव होगा।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज