यह मानव जीवन हमें भगवतप्राप्ति करने के लिए मिला है। जिसने अपनी इन्द्रियों पर कभी अधिकार नहीं किया, सदा इन्द्रियों के अधीन होकर जो पापाचरण करता रहा, उसने इस जीवन को व्यर्थ ही गवाँ दिया। वह फिर से मृत्यु के समीप पहुंच गया। जिस महान दुर्गति (जीवन-मृत्यु चक्र) से बचने के लिए हरि ने अवसर दिया था, वह जीव उसे पहचान ना सका और फिर वहाँ पहुँच गया। चूक हो गयी! मृत्यु के समय, जीवन में किए गए सारे पाप और भोगे हुए भोग, सब एक साथ उसको आकर्षित करते हैं । वह जीव एक शब्द का भी उच्चारण नहीं कर पाता। उसका हृदय थर-थर काँपने लगता है। उसकी बहुत दुर्गति होती है। उसकी साँसों में कफ रुक जाता है। वह ना तो नींद ले सकता है, और ना ही कुछ बोल सकता है। बड़े-बड़े भयानक कष्ट उसके ऊपर आते हैं।
जब मृत्यु निकट होगी, तब आपका परिवार आपके साथ कैसा व्यवहार करेगा?
स्त्री-पुत्र, नौकर-चाकर सब उसकी अवहेलना करने लगते हैं। वह बोलना चाहता है, खाने पीने की चीजें माँगता है, लेकिन सब उसके आस-पास से निकलते रहते हैं, कोई उसकी बात पर ध्यान नहीं देता। जिस बहु-बेटे को उसने बहुत प्यार से पाला, जिनके लिए अधर्म करके उसने धन एकत्रित किया, वही उसे डाँटते रहते हैं। वह पड़े-पड़े खाँसता रहता है।
और आज कल बच्चे अपने बूढ़े माँ-बाप को घर में ही नहीं रखते। वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं। जो भगवत् स्वरुप वयोवृद्ध हैं, जिनकी सेवा करना हमारा परम धर्म है, उनको वह वृद्धाश्रम में क्यों भेज देते हैं? क्योंकि उनसे उनके घर की शोभा ख़राब होती है! क्योंकि वह दरवाज़े पर बैठ कर खाँसता और थूकता रहता है। जो अपने माता-पिता और बुजुर्गों का अपमान कर रहे हैं, वह अपने बुढ़ापे के लिए भी कुछ वैसा ही इंतज़ाम कर रहे हैं। पापी पुरुष को मृत्यु के समय आहार-विहार की भारी इच्छा होती है, लेकिन वो कुछ कर नहीं पता। परिवार के लोग उसको डाँटते हैं। उसने तो अपने बच्चों को पालते समय आशा की थी कि वो उसे प्यार से रखेंगे, पर वो तो उसके पास बैठकर उससे बात भी नहीं करते। वो भयंकर क्लेश में जलता है।
एक पापी का आखिरी चिंतन क्या होता है?
जो कर्म आपने जीवन भर किए हैं वो मृत्यु के समय आपके ऊपर हावी होते हैं। वह लम्बी-लम्बी साँसें लेता है और असमर्थ हो जाता है। उसे कोई उपाय दिखाई नहीं देता। मृत्यु काल का समय निकट आ जाता है, उसका दम घुटने लगता है, शरीर काँपने लगता है और वह बार-बार मूर्छित होने लगता है। ऐसी अवस्था में उसका चिंतन दुनिया में फँसता है – मेरे धन का क्या होगा? ये सब मेरे धन को भोगेंगे। वह सोचता है, जिनके लिए मैंने सब कमाया, वो ही मुझे गाली दे रहे हैं! यह मेरा धन है लेकिन भोगेंगे वो लोग, वो बस पड़े-पड़े चिंतन करता रहता है। मेरे बाद मेरी पत्नी कैसे रहेगी? उसने जीवन भर मुझे प्यार किया, अब वो भी वृद्ध है, बच्चे पता नहीं उसकी देख-रेख करेंगे की नहीं? बस यही सब सोचता रहता है। यह नौकर लोग पता नहीं मेरे परिवार का ख्याल रखेंगे या नहीं!
एक इंसान ने ऐसा ही चिंतन किया, और मरने के बाद वह कुत्ता बना। वह आकर अपने ही घर के दरवाज़े पर एक छोटा पिल्ला बना। जब उसने अपनी पत्नी को देखा, तो कु-कु कर के बुलाने लगा, और उसकी पत्नी उसको हर बार लात मारती। वो बार-बार उसकी तरफ जाता, तो वह अपने लड़कों को बुलाती कि इस दुष्ट को डंडे से मारो। उसको रोटी भी नहीं मिलती। वो घर की तरफ बार-बार भागता क्योंकि उसे लगता कि यह मेरा ही तो घर है। अगर आप पाप करते हैं, तो आपकी दुर्दशा ज़रूर होगी। छिपकली बन के दीवार पर रहेंगे और आपके ख़ुद के घरवाले निकाल कर आपको मार डालेंगे। या फिर साँप! यह सब इसलिए होता है क्योंकि जीव ने जीवन में भजन नहीं किया।
यमदूत पापी जीव को कैसे ले जाते हैं?
ममता जनित चिंताओं से वो मरणासन्न मनुष्य व्याकुल हो जाता है। यमराज के पार्षद दिखने में भयंकर होते हैं। उनको देखने से ही मनुष्य को घबराहट हो जाती है। उस आदमी ने कभी भजन नहीं किया, तो अंत समय में उसे श्री हरि का स्मरण नहीं होता। नहीं तो हरि ज़रूर उसे बचा लेते। अंत समय में उसकी ऑंखें उलट जाती हैं और तालु, कंठ और होंठ सुख जाते हैं। वह बार-बार हाथ पैर पटकता है। उसकी श्वास की गति रुक जाती है। गले में कफ अटक जाता है।
इसके बाद यमराज के दूत उसकी पिटाई शुरू कर देते हैं। वह कहते हैं, निकल बाहर इस घर से! तुझे शरीर मिला था भजन करने के लिए, पर तूने केवल अपराध किया, चल अब हमारे साथ! तुझे हम दिखाते हैं इसका परिणाम क्या होता है। मृत्यु के समय अपार कष्ट सहता हुआ वो जीव प्राण त्यागता है। जिस मनुष्य ने धर्म विरुद्ध आचरण किये, उसे यमदूत पीटते हुए, भयंकर यातना देते हुए, घसीटते हुए यमपुरी ले जाते हैं। जिस रास्ते से उसे ले जाया जाता है, वहाँ गरम रेत,अग्नि और नुकीले यंत्र लगे हुए होते हैं, जो उसके पैरों को कष्ट देते हैं। उस जलती हुई भयंकर यात्रा को जीव घसीटते हुए पूर्ण करता है। ना तो उसे पानी नसीब होता है, ना भोजन, और ऊपर से उसे मार-मार कर ले जाया जाता है। इसके बाद वो भयंकर नर्कों की यंत्रणाओं को भोगता है।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज