अगर आप दूर देश में रह रहे हैं या अगर आप में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि आप अपने परिवार के सुखों, संबंधों या सांसारिक ऐश्वर्य का त्याग कर सकें, तो आप वहीं से पुकारें, “हे वृंदावन धाम, मुझे श्यामा-श्याम का दास्य रस और श्री धाम वृंदावन का अखंड वास चाहिए। मुझ पर ऐसी कृपा करो कि अब वृंदावन जाने पर मुझे वहाँ से वापस ना आना पड़े।” जो बार-बार ऐसा पुकारता रहता है उस पर श्री धाम वृंदावन की असीम कृपा होती है और वृंदावन धाम उस जीव को खींच लेता है। यह ज़रूर है कि वृंदावन के खींचने का तरीक़ा आपकी सोच से अलग हो सकता है। हो सकता है आपका वृंदावन वास आपकी सोच के बिल्कुल विपरीत हो। इसे अच्छे से समझने के लिए एक भक्त के जीवन की एक सत्य घटना को नीचे बताया गया है।
एक सत्य घटना: वृंदावन धाम की अद्भुत कृपा
दिल्ली (भारत) के एक धनी-मानी पुरुष थे। उन्होंने सत्संग में सुना कि जो वृंदावन के संतों को सुख पहुँचाता है और उनकी सेवा करता है, उससे ठाकुर जी बहुत जल्दी रीझ जाते हैं। और जब ठाकुर जी रीझ जाते हैं, तो उसे अपने समीप खींच लेते हैं, अर्थात् अखंड श्री धाम वृंदावन का वास दे देते हैं। उनके पास बहुत धन था और भोग सामग्रियों में उनका मन लगा हुआ था, लेकिन सत्संग की बस एक बात उनके मन में बैठ गई कि वृंदावन के संतों की सेवा करनी चाहिए। अब वो जब भी वृंदावन आते तो संतों की पंगत (भंडारा) करवाते।
वृंदावन के संतों की महिमा
ऐसा ना समझें कि वृंदावन में जो भंडारे खाते घूमते हैं वह ऐसे-वैसे संत हैं। वो कहाँ बैठे हैं? श्री धाम वृंदावन में! वो कहाँ जा रहे हैं? प्रिया-प्रियतम का प्रसाद पाने! वृंदावन में जहाँ भी प्रसाद बट रहा होगा, उसका भोग पहले श्यामा-श्याम को लगा होगा। और वो वृंदावन की परम प्रेममय रज में बैठकर प्रसाद पाएँगे। ये सब श्यामा-श्याम के आश्रित हैं, उनके महल में रह रहे हैं और उनका उच्छिष्टामृत पा रहे हैं। ये साधारण लोग नहीं हैं। वृंदावन में साधारण जीव नहीं आ पाता, जब प्यारी जू (श्री राधारानी) की असीम कृपा किसी पर होती है तब वह वृंदावन आता है। ऐसा कभी मत मान लेना कि ये सब भिखारी हैं जो इधर-उधर भटकते रहते हैं, भजन तो करते नहीं बस इधर-उधर भागते-घूमते रहते हैं। इनका भजन पूरा हो गया है, तब इनको श्री धाम वृंदावन मिला है। भजन की परिपक्व अवस्था का नाम धाम की प्राप्ति है।
“ह्याँ फिरै स्वारथ आपनैं, भजन गहैं फिरै बाँहिं – वृंदावन शत लीला “ – यहाँ भजन आपको पकड़े घूमता है, यहाँ बिना भजन के कोई रह ही नहीं सकता। यहाँ आपको चलते-फिरते संत, लताएँ, यमुना जी, राधावल्लभ जी, राधा रमन जी और बाँके बिहारी जी दिखेंगे, इससे बड़ा कोई भजन है? यहाँ साक्षात प्रभु विराजमान हैं। यहाँ चारों तरफ राधा-नाम की गूंज हो रही है। यहाँ का एक-एक पत्ता प्रिया जू के यश से परिपूर्ण है। यहाँ की वायु आपको बिना चाहे भी स्पर्श करेगी, जिससे आपके समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। ” वृन्दावन में जो कबहुँ, भजन कछू नहिं होय । रज तौ उड़ि लागै तनहिं, पीवै यमुना तोय – वृंदावन शत लीला ।” किसी की वाणी की सामर्थ्य नहीं कि यहाँ की महिमा का वर्णन कर सके। यहाँ जो केवल वास भी कर रहे हैं उनको आप ऐसे-वैसे मत समझ लेना। जो यहाँ लाइन में बैठकर, राधे-राधे बोलकर एक रुपया माँग रहे हैं, इनको आप साधारण मत समझ लेना। ये प्यारी जू के महल के भिखारी हैं, जहाँ के बारे में हम सोच भी नहीं सकते। इसलिए यहाँ किसी भी वासी पर दोष-दृष्टि ना करें। ये सबसे बड़े धनी हैं।
दिल्ली के धनी पुरुष की सेवा भावना
दिल्ली के जो धनी-मानी पुरुष थे, अब वो जब भी वृंदावन आते तो संतों का भंडारा कराते। अब उनकी संपत्ति बढ़ाना शुरू हुई। उनका उत्साह बढ़ गया कि यह जो बढ़ रहा है, यह संत कृपा से बढ़ रहा है। अब उन्होंने हर हफ़्ते वृंदावन आना शुरू किया। महीने में चार भंडारे होने लगे। अब तो उनका आनंद बढ़ने लगा और उनका हृदय आनंदित रहने लगा। उनका जो एक पुत्र था, वो भी बड़ा सुशील, सज्जन और पढ़ने में बड़ा प्रवीण था। और वो उनके व्यापार में भी हाथ बँटाने लगा।
वृंदावन के संतों का दिल्ली आना
उनके मन में आया कि वृंदावन के संतों को एक बार अपने घर (दिल्ली) बुलाया जाए। वृंदावन के संत बड़े उदार हैं, बड़े कृपालु हैं और वह वर्षों से सेवा कर रहे थे इसलिए सब संत राज़ी हो गए। अगले दिन वो एक बस लाए और सब संतों को दिल्ली ले जाने के लिए उसमें बिठाने लगे। उस बस में एक संत ऐसे आकर बैठे जो कभी किसी भंडारे में नहीं जाते थे। वो कभी वृंदावन की सीमा के भी बाहर नहीं जाते थे। सबको आश्चर्य हुआ कि यह संत जो वृंदावन की सीमा के बाहर नहीं जाते वो दिल्ली की बस में कैसे बैठे हैं। सब लोगों ने उनसे कारण पूछा पर उन संत ने कोई उत्तर नहीं दिया। बाक़ी सब संतों ने उन धनी पुरुष से कहा कि आपके सेवा सफल हुई जो ऐसी वृंदावन निष्ठा वाले संत आपके साथ जाने के लिए राज़ी हो गए। दिल्ली पहुँचकर उन्होंने सब संतों का बहुत अच्छा स्वागत-सत्कार किया और सबको बड़ा अच्छा प्रसाद खिलाया। जब सब संत वापस जाने लगे तो उन संत ने उनसे कहा, “तुम्हें वृंदावन ने बुलाया है। मैं तुम्हें बुलाने ही यहाँ आया हूँ।” किसी को कुछ समझ नहीं आया क्योंकि वो तो हर हफ़्ते वृंदावन जाते थे। संतों की भाषा समझना बड़ी विचित्र बात है। वो संत गाड़ी में बैठे, उन्होंने कोई भेंट-दक्षिणा नहीं ली और वापस वृंदावन चले आए।
वृंदावन धाम का दिव्य बुलावा
अगले ही दिन उन सेठ के लड़के का एक्सीडेंट हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। ये है वृंदावन का बुलावा, वो अपने ढंग से बुलाएगा। अब उन सेठ और उनकी पत्नी ने विचार किया कि ये सब संपत्ति अब किसके लिए? जो था वह तो चला गया। उन्होंने तय किया कि वह सब संपत्ति बेचकर वृंदावन के ठाकुरों को आभूषण पहनाएँगे, उन्हें भोग लगाएँगे और अखंड वृंदावन वास करेंगे। अब कुछ लोगों को लग सकता है कि इतनी सेवा करने के बाद उनके पुत्र की मृत्यु क्यों हो गई? सबसे पहले उस पुत्र को श्री धाम वृंदावन ने दिव्य देह प्रदान करके श्री राधारानी की सेवा में लगाया। इसके बाद श्री वृंदावन धाम ने उन दंपत्ति की सब विषयों में से आसक्ति ख़त्म करके उन्हें एकांतिक वृंदावन वास दिया ताकि उन्हें दोबारा दिल्ली का ध्यान भी ना आए।
वृंदावन धाम की कृपा पाने के लिए प्रार्थना
जो सदैव वाणी से ऐसा पुकारता रहता है कि, “मैं राधा-माधव का रहस्यमय दास्य रस प्राप्त करना चाहता हूँ, हे वृंदावन धाम, मैं सर्व त्याग करके आप में वास करना चाहता हूँ”, तो श्री वृंदावन धाम अद्भुत कृपा करके उसका सर्व त्याग करा देता है। वृंदावन दो तरीक़े से सर्व त्याग करवाता है: या तो वृंदावन आपके हृदय में विवेक के द्वारा वैराग्य पैदा कर देगा या फिर ऐसी स्थिति प्रकट कर देगा कि आपके पास कोई विषय सामग्री ही नहीं बचेगी।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज