वृंदावन वास की महिमा – क्यों करें वृंदावन वास?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
मेरो वृंदावन

श्रीवृंदावन धाम, श्री लाडली जू के चरणारविंदों से चिन्हित है और समस्त सुखों की खान है। यहाँ परम उदार और अद्भुत प्रेम प्रदान करने वाली लताएँ हैं और महान सामर्थ्य देने वाली वृंदावन की रज रानी भी है। अनंत कृपा से युक्त श्री यमुना रस रानी और महा मोद प्रदान करने वाले यहाँ के खग, मृग, पशु, पंछी और यहाँ के वासियों को प्रभु ने इसलिए प्रकट किया है कि हम साधन हीन जनों को भी जो बड़ी-बड़ी साधनाओं से प्राप्त नहीं होता वह प्राप्त हो जाए। यहाँ के पूज्य श्री युगल सरकार जैसे कि बाँके बिहारी जू, राधावल्लभ लाल जू, राधा रमण जू, हम जैसे मलिन नेत्र वालों को भी अनुभव में केवल उनकी कृपा और करुणा की वजह से आ रहे हैं।

वृंदावन वास मात्र से लाभ!

केवल वृंदावन धाम का जिसने वास स्वीकार कर लिया है और जो वृंदावन धाम के आश्रित होकर रह रहा है, वह पवित्र हो जाता है। यदि कोई केवल अपने शरीर का आश्रय लेकर शरीर से भोगे हुए विषयों में सुख बुद्धि करता है तो वह इतना अपवित्र हो जाएगा कि अगर उसे राक्षस भी कहा जाए तो यह ग़लत नहीं होगा। लेकिन अगर वही व्यक्ति, अखंड वृंदावन वास करे, धाम का आश्रय स्वीकार करे और वृंदावन धाम में महत्त्वबुद्धि कर ले, तो वह इतना पवित्र हो जाएगा कि स्वयं लक्ष्मी जी, भगवान नारायण, बड़े-बड़े देवता और योगी उसे स्पर्श करने की आकांक्षा करेंगे।

यद्यपि शायद वह व्यक्ति भिक्षुक है, वह लौकिक वस्तुओं का भोगता है, अभी परमहंस स्थिति को प्राप्त नहीं है, पर उसके हृदय में यह बात आ गई है कि मेरा आश्रयदाता केवल वृंदावन है, मेरे प्राण प्यारे श्यामा श्याम हैं, सिर्फ इतनी बात से वह इतना पवित्र हो गया। जब आप अंदर से आश्रित हो जाएँगे तो आपसे पापाचरण होंगे ही नहीं क्योंकि धर्म विरुद्ध आचरण केवल शरीर आश्रय से ही होते हैं। अपने शरीर और शरीर संबंधियों से हम अपनापन कर लेते हैं और उन्मे सुख बुद्धि मान लेते हैं, इसी से पापाचरण होते हैं। प्रभु और प्रभु के नाम एवं रूप में अपनापन, यही परम पवित्रता का स्वरुप है। 

वृंदावन वासी होता है दूसरों का मंगल करने वाला!

जो श्रीधाम वृंदावन में वास करता है उसमें दूसरों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने की सामर्थ्य आ जाती है । त्यागी, तपस्वी, भजनानंदी नहीं, यहाँ बात एक ऐसे व्यक्ति की हो रही है जो नाना प्रकार की भोग सामग्रियों को भोगने की आकांक्षा करता है। अभी वह कोई प्रेम की दशा में नहीं है लेकिन उसने बस वृंदावन का अखंड वास स्वीकार किया है और उसे हृदय से श्यामा-श्याम से अपनापन है। पूर्व संस्कार वश उसमें भोगों को भोगने की इच्छा है, लेकिन वह इतना सामर्थ्यशाली हो जाता है कि यदि कोई दूर देश में उस वृंदावन वासी का चिंतन करे तो वह चिंतन करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान कर सकता है। वह चिंतामणि स्वरूप हो जाता है। 

वृंदावन के पशु-पक्षी भी हैं पूर्व के सिद्ध पुरुष

वृंदावन के पशु पक्षी

श्रीपाद प्रबोधानंद जी कह रहे हैं, हे वृंदावन धाम, आपकी ऐसी अपार महिमा है, तो मुझे अपने यहाँ एक पशु बना लो। एक पक्षी बना लो। अगर मैं इसके भी लायक़ नहीं हूँ तो कोई तिनका बना कर अपने पास रख लो, बस मुझे कभी ख़ुद से अलग मत करना। मुझे वृंदावन की रज का एक कण बना दो जिसमें रसिकों के चरण पढ़ते रहें। बस मैं वृंदावन धाम की सीमा के बाहर न जाऊं।

श्री धाम वृंदावन वास करने वाले को जो वस्तु प्राप्त होगी वह बड़ी-बड़ी दिव्य साधना करने वालों को भी नहीं मिलेगी क्योंकि यह प्रिया-लाल (राधा-कृष्ण) का निज महल है। यहाँ का वास अपने-आप में बहुत बड़ी तपस्या है, बहुत बड़ा भजन है, बहुत बड़ा योग है और बहुत बड़ा ज्ञान है। वृंदावन धाम के जो खग, मृग, पशु, पंछी, लता और रज हैं, उन सबको श्री राधा जी का साक्षात्कार होता है। 

प्रेम रस बनाता है वृंदावन को खास!

बड़े-बड़े भजन करने वालों का कल्याण हो सकता है, उन्हें सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं, मोक्ष मिल सकता है, लेकिन यह देखने को नहीं मिलेगा कि अनंत सहचरियों के बीच प्रिया-प्रियतम मंत्रमुग्ध होकर नृत्य कर रहे हैं। यह योगियों के भी ध्यान में आने वाला रस नहीं है। यहाँ के पशु-पक्षी भी नित्य-विहार रस को प्राप्त होंगे। यदि हमें वृंदावन में कुत्ता बनाकर रखा जाए, बंदर बनाकर रखा जाए, या नाली का कीड़ा बनाकर रखा जाए, तो हमसे क्या साधना होगी? केवल यहाँ रहने का फल होगा कि हमें उस स्थिति में भी श्रीजी (श्री राधा) मिल जायेंगी। इस धाम का कोई कीड़ा-मकोड़ा भी लाड़ली जू की सहचरी है। जब रज रानी की कृपा से हमारे दिव्य नेत्र प्रकाशित होंगे, तो हम भी यह देख पाएँगे। 

वृंदावन में कृष्ण और राधा

यह कोई साधारण पशु-पक्षी नहीं है, यह वह महात्मा हैं जिन्होंने मोक्ष को भी ठुकरा दिया है। उन्होंने यहाँ आकर वृंदावन में खटमल, पशु, पक्षी का रूप धारण किया है। क्योंकि यहाँ जो भी खग, मृग, पशु, पक्षी हैं, वह श्यामा श्याम के प्रेम रस में निश्चित डूब जाएँगे। हर वृंदावन वासी को यहाँ का प्रभाव प्रेम रस में डुबो देगा।

 यह जो भूमि है, इसमें युगल सरकार, प्रिया-प्रियतम, विचरण करते हैं। यहाँ की रज रानी में इनके चरण चिन्ह हैं। इस वृंदावन धाम की तुलना में बैकुंठ को भी नहीं रख सकते तो इस प्राकृतिक ब्रह्मा की रचना की तो क्या ही बात करें। किसी को यदि किंचित मात्र भी वृंदावन से अपनापन हो जाए तो उसका परिणाम यह होगा कि उसे परम पुरुषार्थ प्रेम प्राप्त हो जाएगा।

वृंदावन वासी महापुरुषों की धाम निष्ठा 

एक बार दतिया के राजा श्री गौरिया बाबा (सखा भाव संपन्न) के पास आए और उनसे कहा आप एक बार दतिया चलिए। बाबा ने तो पहले टालने की कोशिश की लेकिन पूर्व-परिचय के कारण राजा ने बहुत हठ किया। बाबा ने कहा कल चलेंगे। सुबह राजा बहुत प्रसन्न होकर उन्हें ले जाने के लिए तैयार थे। राजा ने देखा कि बाबा एक गधे के ऊपर उल्टे बैठे थे। उन्होंने अपना मुँह काला किया हुआ था और ब्रजवासियों के जूतों की माला बनाकर पहन ली थी। राजा ने पूछा बाबा यह सब क्या है। बाबा ने कहा वृंदावन से पीठ करके जाने की शोभा तो यही है। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और कहा महाराज आप यहीं रहिए।

मधुकर शाह जी (ओरछा के राजा) ने अपने गुरु हरिराम व्यास जी के लिए हरिवंश महाप्रभु जी से आदेश करवा लिया कि वो वृंदावन छोड़कर ओरछा जाएँ। हरिराम व्यास जी ने जब यह बात सुनी कि उनके गुरुदेव ने आदेश दे दिया है कि वो वृंदावन से बाहर चले जायें, तो वह वृंदावन की एक-एक लता से लिपट कर रोने लगे कि मैं आपके बिना कैसे जीवित रह पाऊँगा? मधुकर शाह ने जब यह बात देखी तो रो पड़े और अपने गुरु से कहा आप यहीं रहिए।

प्राण तजौं वन ना तजौं!

यदि यह भावना आपमें आ गई कि हम प्राण छोड़ सकते हैं लेकिन वृंदावन नहीं, तो इससे आपको यह सिद्धि प्राप्त होगी कि आप प्रिया-प्रियतम के मन की बात जानकर आठों पहर उनको दुलार करने लगेंगे। इससे बड़ी और कौन सी सिद्धि हो सकती है? 

इस भूमि का कोई ऐसा कण नहीं जो महापुरुषों के आँसुओं से न भीगा हो। प्रेमी जन प्रिया-प्रियतम के विरह में ऐसे तड़प-तड़प के यहाँ रोए हैं कि प्रिया-प्रियतम विकल होकर उनके सामने प्रकट हो गए। ऐसे महापुरुष जो इस सृष्टि में दुर्लभ हैं, उन प्रेमियों की चरण रज में आप बैठ सकते हैं।

संसार के लिए रोने वाले बहुत मिलेंगे। लेकिन भगवद् चरणारविंद की आसक्ति में रोने वाले आज भी वृंदावन में हज़ारों हैं। जैसे जल मछली का जीवन है, वह अलग होने पर छटपटा कर अपने प्राण त्याग देती है। वैसे ही अगर हमारे अंदर भी वृंदावन छूटने की बात सुनकर ऐसी छटपटाहट हो तो समझ लीजिए कि आपको बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त हो गई। 

वृंदावन के बाहर अगर हरि स्वयं मिलें तो उनसे मत मिलना!

वृंदावन में ध्यान करते भक्त

रे मन वृन्दाविपिन निहार ।
यद्पि मिले कोटि चिंतामणि तदपि न हाथ पसार ।।
विपिन राज सीमा के बाहर हरिहूँ को न निहार ।
जय श्री भट्ट धूरि धूसर तन, यह आसा उर धार ।।

– श्री भट्ट देवाचार्य जी

सारा भजन-साधन तो हरि के लिए ही होता है। वह वृंदावन के बाहर खड़े हैं। और आचार्य रोक रहे हैं कि हरि के लिए भी वृंदावन की सीमा के बाहर मत जाना। करोड़ों हीरे, रत्न या चिंतामणि मिलने पर भी वृंदावन को न त्यागें। ऐसा इसलिए कि यहाँ जो ठाकुर मिलेगा वो प्रेममय होगा। यहाँ ऐश्वर्यपूर्ण, शक्तिशाली और अंतर्ध्यान होने वाला ठाकुर नहीं मिलेगा। यहाँ का ठाकुर प्रतिपल प्रिया जी के समीप है। बाहर का ठाकुर केवल हरि है, वहाँ प्रिया नहीं है। इसलिए आचार्य कह रहे हैं कि बाहर मत निहार। क्योंकि हम वृंदावन वासी हैं, हमारी दृष्टि जाएगी तो पहले प्रिया चरणों में जाएगी। अगर राधा रानी नहीं है तो हम ठाकुर जी को भी नहीं देखेंगे।

यह वृंदावन की भूमि का चमत्कार है कि यह भूमि प्रिया-प्रियतम को आसक्त किए हुए है। बड़े भाग्यशाली और कृपापात्र लोग हैं जिनकी आसक्ति श्री धाम वृंदावन की रज रानी में है। ऐसे श्रीधाम वृंदावन का आश्रय लें और श्रीधाम वृंदावन का वास स्वीकार करें।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन की महिमा की व्याख्या करते हुए

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