विवाहित जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन, सुखी और संतुलित जीवन के लिए फायदेमंद माना गया है। शास्त्रों में बताया गया है कि पति-पत्नी के बीच संबंध सीमित और संयमित होने चाहिए। जैसे कि मासिक धर्म के समय और पवित्र तिथियों (जैसे एकादशी, पूर्णिमा, जन्माष्टमी आदि) पर संभोग से बचना चाहिए। महीने में एक बार संभोग करना उचित है और यह एक स्वस्थ और पवित्र संबंध को बनाए रखता है, जिससे संतान भी शुभ होती है और परिवार में शांति बनी रहती है।
यदि आपकी संतान हो चुकी है और फिर भी वासना पर काबू पाने में कठिनाई हो रही है, तो मन और इंद्रियों पर संयम रखने की कोशिश करें। दूसरों की ओर आकर्षित होने से बचें और अपने जीवनसाथी के प्रति समर्पण के साथ धर्म के मार्ग पर चलें। इस तरह से धीरे-धीरे वासना की इच्छा कम हो जाएगी और आपको एक गहरी संतुष्टि का अनुभव होगा।
मन और इन्द्रियों की तृष्णा
हमारा मन हमेशा ऐसे सुख की तलाश में रहता है जो कभी खत्म न हो। मगर सच यह है कि भोग-विलास से कभी भी मन पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाता। हर बार भोग भोगने के बाद एक नई तृष्णा जागती है। यही कारण है कि भगवान ने इस संसार को “दुखालयम अशाश्वतम्” (दुख और अस्थायित्व का स्थान) कहा है। जितना हम भोगों में लिप्त होते हैं, उतनी ही हमारी इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं। यह एक आग की तरह है – जैसे आग में घी डालने से वह और तेज़ हो जाती है, वैसे ही भोगों से मन की तृष्णा भी बढ़ती है। इसलिए, गृहस्थ जीवन में धर्म के साथ संयम रखना जरूरी है। इससे जीवन में संतुलन आता है, और इच्छाएँ धीरे-धीरे शांत होती हैं।
विवाह पूर्व आचरण और उसके प्रभाव
आजकल युवाओं में विवाह से पहले प्रेम संबंध या शारीरिक संबंध का चलन बढ़ रहा है। इसका सीधा प्रभाव उनके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। पहले से ही भोग-विलास में लिप्त व्यक्ति के लिए शादी के बाद एक जीवनसाथी के प्रति समर्पित रहना कठिन हो जाता है। यह वैसा ही है जैसे किसी को होटलों में खाना खाने की आदत हो जाए, तो घर का साधारण खाना अच्छा नहीं लगता। इस आदत के कारण वैवाहिक जीवन में संतोष पाने में परेशानी होती है, जिससे असंतोष बढ़ता है।
असली सुख कहाँ है?
असली सुख प्रेम में है, जो वासना और शारीरिक आकर्षण से बिल्कुल अलग होता है। जब सच्चे प्रेम का अनुभव होता है, तो अपने प्रिय को खुश देखने से ही एक अलग आनंद मिलता है। इस प्रेम में स्वार्थ और वासना के लिए जगह नहीं होती। भोगों में जो अधूरी संतुष्टि मिलती है, वही प्रेम में पूरी होती है। संयम, धर्म और सच्चे प्रेम के मार्ग पर चलते हुए ही वह सच्चा सुख और शांति मिलती है, जो हमें भोगों में नहीं मिल सकती। गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन इसी अनुभव की ओर ले जाता है।
मैं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहती हूँ, पर मेरे पति में बहुत कामवासना है। मुझे क्या करना चाहिए?
आपको अपने पति के अनुकूल चलने की कोशिश करनी चाहिए। जब दो लोग विवाह करते हैं, तो उन्हें एक-दूसरे का सहयोग करते हुए मित्र भाव से आगे बढ़ना चाहिए। हमें अपनी रुचि दूसरे पर थोपने के बजाय, एक-दूसरे की रुचियों का सम्मान करना चाहिए। हम दोनों एक ही मार्ग के साथी हैं, इसलिए अपनी रुचि को भी उसके अनुकूल बनाना चाहिए। यदि आपकी रुचि में अंतर है, तो पति को धीरे-धीरे मनाने का प्रयास करें और उन्हें अपनी रुचि के अनुकूल लाने की कोशिश करें। अगर वह अनुकूल नहीं हो पाते हैं, तो ध्यान रखें कि वे आपकी वृति के कारण कहीं गलत राह पर न चले जाएं। उनका साथ दें, क्योंकि आप उनकी साथी हैं।
आप दोनों मित्र हैं और संसार के इस मार्ग पर आपको साथ-साथ चलना है। यदि आप दोनों की रुचि एक हो और दोनों ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहें, तो यह आपके लिए सही कदम होगा। लेकिन यदि किसी एक की रुचि अलग हो, तो दूसरे का सहयोग करना चाहिए ताकि वह किसी गलत दिशा में न जाए और उसका मार्ग भ्रष्ट न हो। जीवन यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक-दूसरे की रुचियों का आदर करना महत्वपूर्ण है। अगर आपका जीवनसाथी आपको धोखा दे रहा हो और व्यभिचारी हो, तो आप परिस्थितियों के अनुसार उनसे अलग होने का निर्णय ले सकते हैं। लेकिन यदि वह वफ़ादार हैं और रिश्ते के प्रति ईमानदार हैं, तो उनके साथ सहयोग बनाए रखना ही उचित होगा।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज