एक अढ़ैया नाम के बहुत ही भोले नव युवक थे। अढ़ाई कहते हैं ढाई किलो को। उनका आहार कम से कम ढाई किलो का होता था। माता-पिता की मृत्यु के बाद उन्हें ढाई किलो आटे की रोटी खिलाने वाला कोई नहीं था। वे एक आश्रम में गए और उन्होंने कहा कि हमें नौकरी में रख लीजिए। उन्होंने आश्रम वालों को बताया कि वो ढाई किलो भोजन पाते हैं। आश्रम वालों ने बोला कि वहाँ तो भंडारा चलता है, तो ढाई किलो भोजन की व्यस्वस्था हो जाएगी। उन्होंने अढ़ैया जी से पूछा कि आप क्या सेवा कर सकते हैं? अढ़ैया जी ने कहा जो आप सेवा बताएंगे और सिखाएंगे, वो मैं कर लूँगा। उन्हें गाय चराने की सेवा दी गई। उन्हें बताया गया कि वैष्णव सिद्धांत का पालन करते हुए आप जब गाय चराने जा रहे हों, तब यहाँ से आटा और सब्ज़ी ले जायें, जंगल में भोजन पकाएँ, ठाकुर जी को भोग लगा कर फिर आप प्रसाद पाएँ।
अढ़ैया जी को मिली ठाकुर जी को भोग लगाने की सेवा
अढ़ैया जी ने कहा हमें तो भोग लगाना आता ही नहीं। आश्रम से उन्हें आज्ञा मिली कि जैसे ही भोग तैयार हो जाए तो भगवान को बुला लीजिएगा, वो भोग लगा लेंगे, उसके बाद आप प्रसाद पा सकते हैं। पहले दिन उन्होंने गोबर के उपले बीन लिए और ढाई किलो आटे की बाटी बना ली और आलू का भरता बना लिया और कहा, “गुरुदेव के ठाकुर आइये, भोग लगाइए”। जो श्री राम बड़े-बड़े ऋषि मुनियों की साधना से भी नहीं आते वो उस भोले भक्त के पुकारने पर स्वयं आ गए।
उन्होंने आँख खोल के देखा तो धनुष धारण किए हुए श्री राम सामने खड़े थे। अढ़ैया जी ने कहा आप कौन हो? भगवान ने कहा कि लोग हमें श्री राम कहते हैं, आपने कहा कि गुरुदेव के ठाकुर आ जाइए, और तुम्हारे गुरुदेव के ठाकुर हम ही हैं, तो हम आ गए। श्री राम ने कहा आलू के भरते की बड़ी अच्छी ख़ुशबू आ रही है, हम भी तुम्हारे साथ खाएँगे। अढ़ैया जी ने कहा कि हमे तो लगा आपको बस भोग लगाना होता है आप सच में खाते हैं क्या? श्री राम ने कहा हम सबका नहीं खाते लेकिन आप जैसे भक्त जब पुकारते हैं तो उनका हम ज़रूर पाते हैं।
अढ़ैया जी से मिलने रोज़ आने लगे प्रभु श्री राम!
अढ़ैया जी बिलकुल भोले थे, कुछ नहीं जानते थे। भगवान जो बड़े-बड़े मुनियों के ध्यान में भी नहीं आते, वह उस भोले भक्त के सिर्फ़ एक बार बुलाने पर आ गये। राम जी ने कहा कि आप आँख बंद करिए तो हम आपका भोग पाएँ। अढ़ैया जी ने सोचा कि प्रभु एक दो बाटी खाएँगे लेकिन श्री राम ने सब कुछ खा लिया। अढ़ैया जी ने आँख खोली और कहा प्रभु आज आप हमें भूखा रखेंगे? श्री राम ने कहा कि जानते हो आपके गुरुदेव ने भोग लगाने के लिए क्यों कहा? आज एकादशी है, इसलिए उन्होंने आपको आटा दे दिया और कहा था कि आप ख़ुद पका के भोग लगा लेना। अब वो आपको रोज़ आटा और सब्ज़ी दे देंगे और आप पकाने के बाद हमें बुला लेना।
अढ़ैया जी ने पूछा आप रोज़ आएँगे? श्री राम जी ने बोला की आप रोज़ बुलाएँगे तो हम रोज़ आएँगे। अढ़ैया जी आश्रम जाकर अपने गुरुजी से बोले कि आपके ठाकुर जी आए थे और हमारी सारी बाटी खा गये। कल से हम पाँच किलो आटा ले जाएँगे, ढाई किलो आपके ठाकुर जी के लिए और ढाई किलो हमारे ख़ुद के लिए। गुरुजी को हँसी आई, उन्होंने भंडारी से कहा, पूछने की ज़रूरत नहीं है, यह जो माँगे इन्हें दे दीजिए।
इस बार अकेले नहीं आए श्री राम!
अगले दिन अढ़ैया जी गाय लेकर जंगल पहुँचे, गायों को चराने कि लिये छोड़ने के बाद उन्होंने बाटी और भरता बनाया। पत्तल में भोजन परोस के उन्होंने आँख बंद की और बोले कि “गुरुदेव के ठाकुर पधारिए”। आँख खोल के देखा तो राम जी के साथ सीता जी भी आयीं थीं। अढ़ैया जी ने पूछा यह कौन हैं? श्री राम ने बोला यह हमारी अर्धांगिनी हैं। कल क्यों नहीं बताया था आपने कि आपकी अर्धांगिनी भी हैं, यह भी भोजन करेंगी हमारे साथ?, अढ़ैया जी ने पूछा। श्री राम जी ने बोला की यह भी हमारे जितना ही पाती हैं। उन्होंने बोला भोग लगाइए गुरुदेव के ठाकुर, सीता जी और राम जी सारी बाटी खा गये।
अढ़ैया जी आश्रम गये और गुरुदेव से कहा कि कल से साढ़े सात किलो आटा लगेगा, आज आपके ठाकुर अपनी पत्नी को भी लाए थे। किसी को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्हें लगा कि अढ़ैया जी शायद गायों को बाटी खिला देते होंगे, आज्ञा हुई कि उन्हें साढ़े सात किलो आटा दे दिया जाए। अगले दिन उन्हें बाटी बनाते-बनाते दोपहर के तीन बज गये, पत्तल में परोसकर उन्होंने बोला, “गुरुदेव के ठाकुर पधारो”। इस बार श्री राम अपने साथ लखन और सीता जी दोनों को लेकर आए। अढ़ैया जी ने पूछा ये कौन हैं? श्री राम ने बोला ये हमारे छोटे भाई हैं। पहले बता देते तो हम व्यवस्था करके आते, अढ़ैया जी ने कहा। श्री राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा बहुत सरल भक्त है, नाराज़ मत होना। जब वे तीनों चले गये तो अढ़ैया जी ने पत्तलों में जो जूठन बची थी वो खाई, उनको एक अद्भुत आनंद महसूस हुआ।
श्री राम परिवार सहित आए भोले भक्त के पास!
अगले दिन उन्होंने आश्रम से दस किलो आटा माँगा। उन्होंने बताया कि आपके ठाकुर जी के गोरे गोरे एक भाई भी आए थे। गुरुजी सोच रहे थे इस भोले भगत को राम, सीता और लखन जी का अनुभव कैसे हो सकता है? अढ़ैया जी ने दस किलो आटा लिया, जंगल गये, बाटी बनाई और बोले “गुरुदेव के ठाकुर पधारो”। उन्होंने देखा कि आज साथ में विशाल गदा लिए हनुमान जी भी आये थे। उन्होंने राम जी से पूछा ये कौन हैं? श्री राम जी ने कहा यह हमारे प्रिय सेवक हैं, हनुमान जी। अगर एक बार बता देंगे कि कुल कितने लोग हैं तो हम गुरुजी से जाके कह देंगे, अढ़ैया जी ने कहा। श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा ग़ुस्सा मत होना, बहुत ही निराला भक्त है। उन्होंने सबसे कहा प्रसाद पाइए प्रभु, सबने प्रसाद पाया और बचा हुआ सब हनुमान जी ने ख़त्म कर दिया।
वापस जाके गुरुदेव से कहा, कल से पाँच किलो और आटा दे दीजिए। आज आपके प्रभु के एक विशाल सेवक भी आये थे। गुरुदेव को बहुत ही रोमांच हुआ। उन्होंने सोचा कि क्या प्रभु सच में करुणा करके इस भगत को दर्शन दे रहे हैं? उन्होंने सोचा कि अगर ये अगली बार वापस आये तो मैं इनकी परीक्षा लूँगा। इस बार वो पंद्रह किलो आटा ले गये, बाटी बनाई और बोले, “गुरुदेव के ठाकुर पधारो”। राम जी पधारे और साथ में दो और लोग भी थे। उन्होंने श्री राम से पूछा अब ये कौन हैं? राम जी ने बोला ये हमारे दो और भाई हैं, भरत और शत्रुघ्न। सबने प्रसाद पाया।
भगवान के साथ भक्त ने किया विनोद!
वो आश्रम वापस आए और गुरुदेव से कहा, कल से बीस किलो वाली आटे की बोरी दे दीजिए, आपके इतने ठाकुर हैं, हम दिन भर उनके लिए भोग बनाएँगे। अगले दिन वो गए, सारा सामान रख दिया, कुछ पकाया नहीं, और बोले “गुरुदेव के ठाकुर पधारिए”। प्रभु आए और कहा आज तो कुछ ख़ुशबू नहीं आ रही, कुछ बनाया क्यों नहीं? अढ़ैया जी बोले प्रभु आपके साथ आपकी पत्नी हैं, सेवक भी हैं, इतने दिन से आप हमारे हाथ का प्रसाद पा रहे हैं, आज हम आपके हाथ का पाना चाहते हैं।
प्रभु ने सिया जी की तरफ देखा कि यह बहुत अलबेला भक्त है। सिया जी अनंत सामर्थ्यशाली हैं और सभी शक्तियों की स्वामिनी हैं। अढ़ैया जी ने कहा प्रभु हमने ना लकड़ी और ना ही ऊपला इकट्ठा किया है। आपके ये जो सेवक हैं, इनसे कहिए। श्री राम नें हनुमान जी से उपला और लकड़ी इकट्ठा करने को कहा, लक्ष्मण जी को चूल्हा जलाने को कहा और सीता जी भोजन बना रहीं थीं।
भक्त के वश में हैं भगवान!
उन्होंने प्रभु से कहा आप भोजन बनाइए, हम गाय एकत्रित करके आते हैं। वो भाग कर आश्रम में गए और गुरुदेव से बोले कि आज हमने आपके ठाकुर के पूरे परिवार को फँसा लिया है। सब ठाकुर मिलके रोटी और बाँटी बना रहें हैं। गुरुदेव आप चलिए, आपको शंका होती थी ना, आज आप उनके हाथ से बना भोजन ग्रहण कीजिए। उन्होंने सोचा ये पागल आदमी है, राम जी जो बड़े-बड़े योगियों के ध्यान में भी नहीं आते, वो कैसे एक गवाँर आदमी जिसको कोई नाम जपना नहीं आता, कोई ग्रंथ पढ़ना नहीं आता, उसके सामने आ सकते हैं? लेकिन उन्होंने सोचा कि भगवान की दयालुता पर संशय नहीं करना चाहिए, चलकर देख लेतें हैं।
गुरुदेव निरंतर भजन परायण थे, तो प्रभु के दर्शन के अधिकारी तो थे ही। वहां गए तो पूरा राम दरबार उपस्थित था। उन्होंने प्रभु के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और कहा प्रभु यह आपकी लीला समझ में नहीं आई। भगवान ने कहा देखो जो ज्ञानी भक्त हैं, मैं अत्यंत तर्क के द्वारा भी उनकी पकड़ में नहीं आता, जो विद्वान है उनकी विद्वता मुझे छू नहीं सकती, लेकिन जो दीन है और और भोले हैं उनके सामने में अपनी दिव्यता और महानता को भूल जाता हूँ। देखो तुम्हारे इस भक्त की आज्ञा पर हमारा पूरा परिवार इनकी सेवा में लगा हुआ है।
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए। अढ़ैया जी में कोई नाम जप या कोई पूजा पाठ की दिनचर्या नहीं थी, पर उन्होंने जो गुरुदेव ने कहा उसका पालन किया तो उन्हें इतनी आसानी से प्रभु मिल गए।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज