दिव्य शक्तियाँ और सिद्धियाँ होती हैं, और उनका प्रभाव भी होता है। हम तभी उन्हें देख पाएँगे जब हमारी सामर्थ्य हो जाए। हमारे पास जितनी आध्यात्मिक शक्ति होगी, हम उतनी ही दिव्यता को देख पाएँगे। सिद्धियों के काबिल बनने के लिए पहले हम सिद्धांत से चलें, फिर उनके मंत्रों का जाप करें तो हमारे अंदर वो शक्ति जागृत हो जाएगी। हमारी आध्यात्मिक शक्ति विषयों के भोग में नष्ट हो चुकी है। हमारे अंदर सामर्थ्य नहीं रह गई। जो विषय चाहता है हमें रौंद देता है, तो दिव्यता कैसे अनुभव होगी? उसके लिए तो हमें भागवतिक शक्ति से संपन्न होना पड़ेगा। तभी तो हम उस दिव्यता को जान पायेंगे।
सिद्धियों से जुड़ी हुई सच्ची घटनाएँ!
मैंने अपनी आँखों से देखा था कि एक जानवर की टांग में किसी किसान का कोई औजार लग गया था। उसका खून बह रहा था। एक बूढ़े बाबा आए। वो गाँव में खून बांधने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने ज़मीन से मिट्टी उठाई और दो मिनट तक एक मंत्र बोल कर उसके घाव पर डाला। यह करते ही बस केवल घाव रह गया और एक भी बूंद खून उसके बाद बाहर नहीं निकला। तो उन्होंने उस सिद्धि का मंत्र सिद्ध किया था जिससे उनमें वह सिद्धि आ गई।
एक और घटना है जिसमें अयोध्या से संत आए हुए थे और उनका बड़ा प्रभाव था। वो हनुमान जी की उपासना करते थे। वो नज़दीक आए और उन्होंने मुझसे पूछा कि आप क्या साधना करते हैं? मैंने कहा कि मेरे गुरुजी ने नाम जप और कुछ योग साधना बताई है, मैं वही करता हूँ। उन्होंने पूछा कोई चमत्कार जानते हो? मैंने कहा मुझे इसका तो कोई परिचय नहीं है। उन्होंने चुटकी बजाई और पूरे वातावरण में केवड़े की सुगंध छा गई। उन्होंने लोगों से पूछा कि और कौन सी सुगंध चाहिए? किसी ने कहा चमेली! उन्होंने फिर चुटकी बजाई और पूरे वातावरण में चमेली की सुगंध छा गई। इसके बाद उन्होंने पानी लिया और पूछा, आप कौन सा शरबत पीना चाहते हैं? उन्होंने जो शरबत चाहा, उस पानी से वही शरबत बन गया।
आखिरकार प्रकृति परमात्मा से ही तो है। तो प्रकृति का परिवर्तन परमात्मा मंत्र से क्यों नहीं हो सकता? प्रह्लाद जी ने खम्बे से भगवान को प्रकट किया, नामदेव जी ने कुत्ते से भगवान को प्रकट किया तो पानी से शरबत बना देना कौन सी बड़ी बात है! भगवान सर्व रूप में हैं। उन्होंने मंत्र के द्वारा आकांक्षा की और वो पानी शरबत बन गया। जैसे भगवान पानी बने हुए थे, वैसे वो शरबत बन गए।
इस सब से मेरा मन प्रभावित नहीं हुआ। मन तो प्रभावित तब होता है जब किसी के पास बैठने से मुझे रोना आने लगे। प्रभु के प्रति प्यार आने लगे। मेरा हृदय जलने लगे कि मैं कितना नीच हूँ। मैंने कैसे-कैसे कर्म किए हैं, क्या प्रभु मुझे भी स्वीकार करेंगे? ये है संत के संग का चमत्कार। संतों के संग से मन प्रभु के लिए लालायित हो जाता है। प्रभु इतने प्यारे लगने लगते हैं और सारे विषय खारे लगने लगते हैं।
सिद्धियाँ किस-किस प्रकार की होती हैं?
1. अनुर्मि सिद्धि
यह सिद्धि जिसके हृदय में प्रकट होती है, उसे भूख, प्यास, शोक, जरा और मृत्यु में से कुछ भी परास्त नहीं कर सकता। वह इन सब पर विजय प्राप्त कर लेता है। चाहे जितने दिन तक भोजन न मिले, वह कभी भूख से व्याकुल नहीं हो सकता। प्यास की व्याकुलता उसे स्पर्श नहीं कर सकती। उसे शोक, मोह, बुढ़ापा, और यहाँ तक कि मृत्यु भी दुःख नहीं पहुँचा सकते।
2. दूरश्रवण सिद्धि
इस सिद्धि को सिद्ध किया हुआ व्यक्ति लाखों कोस दूर की बात सुन लेगा।अगर वो सुनना चाहे तो वह व्यक्ति भारत में बैठकर अमेरिका में हो रही बात को सुन सकता है।
3. दूरदर्शन सिद्धि
इस सिद्धि से कोई कहीं भी क्या हो रहा है यह देख सकता है। बह यहाँ बैठे-बैठे देख सकता है कि ब्रह्मलोक में क्या हो रहा है (इस दुनिया की बात तो फिर क्या ही करनी)। उसकी दृष्टि इतनी सूक्ष्म हो जाती है कि वो जहाँ चाहे वहाँ की बात देख सकता है।
4. मनोजव सिद्धि
इस सिद्धि को प्राप्त हुआ उपासक जिस शरीर में चाहे उसमे प्रवेश पा सकता है। इस सिद्धि को सिद्ध किया हुआ व्यक्ति मनोवेग से जहाँ जाना चाहे वहाँ पहुँच सकता है। वो किसी के हृदय में जा सकता है। वह चाहे तो संकल्प करके तत्काल किसी दूसरे देश में पहुँच सकता है। वह चाहे तो दूसरे लोकों में भी जा सकता है।
5. कामरूपी सिद्धि
इस सिद्धि को प्राप्त हुआ उपासक जो रूप चाहे धारण कर सकता है।
6. परकाया प्रवेश सिद्धि
इस सिद्धि से दूसरों के शरीर में प्रवेश कर पाना मुमकिन होता है। अगर चाहे तो इसे सिद्ध किया हुआ व्यक्ति किसी मुर्दे के शरीर में भी प्रवेश कर सकता है।
7. इच्छा मृत्यु सिद्धि
अगर यह सिद्धि आपके पास है तो आप जब चाहें तब शरीर छोड़ें, ना चाहें तो ना छोड़ें।
चांगदेव महाराज नाम के एक महात्मा थे। उनकी उम्र चौदह सौ वर्ष थी। वो शेर पर बैठकर और हाथ में साँप की चाबुक लेकर महाराष्ट्र में श्री ज्ञानदेव जी के दर्शन करने आए। इसका तात्पर्य यह है कि वे इच्छा मृत्यु सिद्धि को प्राप्त थे। लेकिन ना तो उनके अंदर विशुद्ध बोध था ना ही भगवत् प्रेम था। श्री ज्ञानदेव जी के आगे उनकी सिद्धियों का सारा अहंकार धूल धूसरित हो गया। ज्ञानदेव जी चबूतरे पर बैठे थे। जब उन्हें पता चला कि कोई योगी उनसे मिलने आ रहा है तो उन्होंने चबूतरे से कहा, चलो यहाँ से चलते हैं, तो चबूतरा उनके साथ चल दिया। यह देखकर चांगदेव जी के होश उड़ गए। उन्होंने सोचा कि मैं तो चैतन्य शेर को अपने बस में कर के लाया हूँ, लेकिन इन्होंने तो जड़ चबूतरे को चला दिया! यह होता है भजन का प्रभाव। भगवत् प्राप्ति एक बड़ा लक्ष्य है। उसके सामने सिद्धियाँ काफ़ी छोटी बात हैं।
8. देवक्रीड़ानुदर्शन सिद्धि
इस सिद्धि से कोई किसी भी लोक में जो हो रहा है वह सब देख सकता है।
9. यथासंकल्प्सं सिद्धि
यह सिद्धि प्राप्त होने पर आप जैसा संकल्प करें, ठीक वैसे ही कोई भी कार्य होगा। चाहे वह जड़ वस्तु हो या चैतन्य वस्तु, उसे उस सिद्ध पुरुष के संकल्प के अनुसार ही चलना पड़ेगा।
10. अप्रतिहतगति सिद्धि
जिसके अंदर यह सिद्धि हो, उसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। जो आज्ञा करेगा वो सबको करना पड़ेगा!
11. त्रिकालज्ञता
इस सिद्धि के प्राप्त होने पर भूत, वर्तमान और भविष्य में क्या हुआ या होगा, उसे सब पता चल जाता है।
12. अद्वंद्वता सिद्धि
इस सिद्धि से शीत-उष्ण, सुख-दुःख, मृदु-कठिन, मान-अपमान सब वश में हो जाते हैं। कोई द्वंद्व उसे परास्त नहीं कर सकता।
13. परचित्ताद्भिज्ञता
इस सिद्धि से दूसरे के मन में क्या चल रहा है यह जान पाना संभव हो जाता है। यहाँ तक कि किसी और ने सपने में क्या देखा यह भी जाना जा सकता है।
14. प्रतिष्टम्भ सिद्धि
इस सिद्धि से एक व्यक्ति अग्नि की ज्वाला से निकल सकता है। यह करते वक़्त उसका एक भी रोम नहीं झुलसेगा। वो वायु के साथ उड़ सकता है। वो जल में थल की तरह चल सकता है। भारी से भारी प्रहार होने पर भी उसकी त्वचा में खरोच भी नहीं आएगी। भयंकर से भयंकर विष पीने पर भी उसपर उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। चाहे जितना भी सूर्य का ताप हो, उसके शरीर में गर्मी नहीं पैदा कर सकता।
15. अपराजय सिद्धि
कोई भी उसको (मंत्र से, तंत्र से, बल से, या किसी भी तरीक़े से) पराजित नहीं कर सकता। वह सब पर विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य रखता है।
सिद्धियाँ कैसे प्राप्त करें?
बहुत सी सिद्धियाँ होती हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि आप अष्टांग योग करें तभी आपको सिद्धियाँ मिलेंगी। यदि आपके अंदर इन सिद्धियों को प्राप्त करने की चाह हो तो भक्ति मार्ग में चलने से भी बहुत जल्दी सिद्धियाँ मिल सकती हैं। शर्त यह है कि आपसे कोई अपराध न बने और शास्त्र विपरीत आचरण न हो। रजोगुण और तमोगुण का नाश करके जब ह्रदय में सतोगुण बढ़ता है, तो सिद्धियाँ अपने आप प्रकाशित होने लगती हैं। सिद्धि प्राप्त करना बहुत ही साधारण बात है। लोगों को लगता है छोटे-मोटे चमत्कार बहुत कठिन है, लेकिन एक भक्त की बहुत प्रारंभिक दशा में ही सिद्धियाँ आने लगती हैं। लेकिन जिसका लक्ष्य ब्रह्म बोध या भगवत् प्रेम हो, उसके हृदय में सिद्धियाँ भटक भी नहीं पातीं। गुरु कृपा के कवच में सुरक्षित, वो आगे बढ़ता चला जाता है। पर यदि आपको संसार का सम्मान और संसार का लोभ आदि भी चाहिए तो भी केवल प्रभु का भजन ही करें, यह सब आपके चरणों में लोटने लगेंगे। शास्त्रों में भी वर्णन आया है कि जो पूर्ण एकाग्रता से, सात्विक आहार और विहार करते हुए नाम जप करता है, उसके अंदर सिद्धियाँ प्रकाशित होने लगती हैं।
क्या भक्ति करने से सिद्धियाँ मिलती हैं?
अगर आप भक्ति मार्ग में चलेंगे तो आपको ऐसी कुछ अनुभूतियाँ होंगी। लेकिन अगर आपका लक्ष्य भगवत्प्राप्ति है तो आपको छोटे-मोटे चमत्कारों में नहीं पड़ना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास जी कुछ चौपाइयों में कहते हैं कि जिस समय कोई साधक परमार्थ पथ में अग्रसर होता है, उस समय उसके इंद्री द्वारों पर देवता आकर बैठ जाते हैं। अलग-अलग देवता इंद्रियों में विराजमान होकर उसके पास माया का आकर्षण पहुँचाते हैं ताकि वो भ्रष्ट हो जाए। उस समय उपासक को सावधान रहना चाहिए।
“इंद्री द्वार झरोखा नाना, जहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।
रामचरितमानस
आवत देखहिं बिषय बयारी, ते हठि देहिं कपाट उघारी।।”
क्योंकि साधक बहुत ही बड़ी विजय की तरफ चला है, तो केवल एक गुरुकृपा पात्र ही इस बात को समझ पाता है। इसके बाद सिद्धियों का खेल आता है।
“रिद्धि-सिद्धि प्रेरइ बहु भाई। बुद्धिहि लोभ दिखावहिं आई॥
रामचरितमानस
कल बल छल करि जाहिं समीपा। अंचल बात बुझावहिं दीपा॥
होइ बुद्धि जौं परम सयानी। तिन्ह तन चितव न अनहित जानी॥
रामचरितमानस
जौं तेहि बिघ्न बुद्धि नहिं बाधी। तौ बहोरि सुर करहिं उपाधी॥
परम सयानी बुद्धि को सिद्धियों के तरफ़ देखना भी नहीं चाहिए। अगर उधर देख लिया तो उपासक का अनहित हो जाएगा अर्थात उसके भगवतप्राप्ति के मार्ग में बाधा खड़ी हो जाएगी। ऐसा नहीं है कि साधक को अनुभूतियाँ नहीं होती। कभी कोई सिद्धि आ जाएगी, कभी कोई और सामर्थ्य आ जाएगा! पर हमें इन सबको हटाते हुए आगे बढ़ना है, फिर हम पार हो जाएँगे। फिर एक स्थिति ऐसी आती है जहाँ से कोई आपको विचलित नहीं कर पाएगा। इसलिए बड़े-बड़े भगवत् प्रेमी महात्माओं में आपको कोई बाहरी सिद्धि नहीं दिखेगी। वो बिल्कुल जनसाधारण की तरह जीवन जीते हैं, पर वह निरंतर असाधारण तत्व में स्थित रहते हैं।
अपना जीवन सफल कैसे बनाएँ?
चमत्कार सत्य हैं, पर यह टिकाऊ चीज नहीं है। टिकाऊ चीज़ है – “स वै मन: कृष्णपदारविन्दयो”। वैसे तो भगवत्प्राप्ति के सामने ये सिद्धियाँ कुछ भी नहीं हैं। लेकिन अगर आपको कुछ ऐसा चमत्कार भी प्राप्त करना है तो प्रभु को ही भजें। वो बड़े लीलामयी हैं, सामर्थ्यशाली और कृपामय हैं। जितना भी आप देख रहे हैं सब माया रचित है, सत्य कुछ नहीं है । सत्य सिर्फ़ भगवान का नाम है। महापुरुषों ने कहा है कि –
आब्रह्मस्तंबपर्यन्तं सर्व मायामयं जगत! सत्यं सत्यं पुनः सत्यं हरेर्नमैव केवलम्
शराब ना पियें। पराई बहन-बेटियों की तरफ गंदी दृष्टि से ना देखें। माँस-अंडा ना खाएँ। राम, कृष्ण, हरि, या भगवान का जो नाम आपको प्रिय लगे उसका जप करें। यह करने से आप जो चाहेंगे सो प्राप्त कर लेंगे और दूसरों को सुख देने वाले बन जाएँगे।
यह सब भगवान की लीला है। भगवान जिस रूप में जो लीला कर रहे हैं, हमारे लिए वंदनीय है। हमारे प्रभु नटवर नागर हैं और वही विविध रूपों में खेल रहे हैं। पर हमें इन खेलों में फँसना नहीं है। एक और दिव्य खेल भी है, भगवान का खेल, हमें उसमें जाना है। यह जन्म-मरण चक्र, ये कामना की पूर्ति, ये सब बातें बहुत हो गई। कोई एक ऐसी बात हो जिससे सब कुछ ठीक हो जाए, वह तो केवल भगवान की शरणागति और उनका नाम है।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज