एक गोवर्धन डाकू नाम का चोर था। एक दिन राज कर्मचारी उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रहे थे। वह उनसे बचने के लिए एक भागवत कथा के पंडाल में घुस गया। राज कर्मचारी वहाँ तक पहुँचे, लेकिन उन्होंने सोचा कि एक चोर सत्संग में नहीं आएगा, और यह सोचकर वे वहाँ से चले गए।
पंडाल में, वह चोर कुछ घंटों तक कथा सुनता रहा। कथा में श्री कृष्ण के बाल रूप का वर्णन हो रहा था। कथा वाचक ने कहा, “ठाकुर जी अभी सात-आठ वर्ष के बालक हैं। बालक श्याम सुंदर रोज़ सोने की छड़ी और सोने का मुकुट धारण करके गाय चराने जाते हैं।” चोर तो था ही, और सोने की बात सुनकर उसके कान खड़े हो गए। उसने सोचा कि एक बालक जो अकेले वन में गाय चरा रहा हो, उसे लूटना तो बहुत आसान होगा।
चोर ने श्री कृष्ण को लूटने का निश्चय किया
कथा समाप्त होने के बाद, वह डाकू कथा प्रवक्ता के पास गया और पूछा, “जिस बालक की आपने कथा सुनाई, वह कहाँ मिलेगा?” कथा प्रवक्ता समझ गए कि इस व्यक्ति पर ठाकुर जी की कृपा होने वाली है। उन्होंने उससे कहा, “बेटा, वह तो बहुत दूर, वृंदावन मथुरा में रहता है। उसके पिता का नाम नंदबाबा है।”
चोर ने कहा, “ऐसे नहीं। पूरा पता बताओ! मैंने अच्छों-अच्छों को लूटा है, ये तो फिर भी एक बालक है।” इस पर प्रवक्ता ने जवाब दिया, “अरे, वह चोरों का भी सरदार है। तुम उसे इतनी आसानी से नहीं लूट पाओगे।” डाकू बेहद अभिमानी था और उसने प्रवक्ता की बात सुनकर कहा, “मैं कसम खाता हूँ, जब तक उस बालक को लूट नहीं लेता, मैं पानी नहीं पियूँगा।”
प्रवक्ता ने मन ही मन सोचा कि अब इस डाकू का उद्धार निश्चित है, क्योंकि हमारे प्रभु इतने दयालु और उदार हैं कि यदि कोई उन्हें लूटने के इरादे से भी उनके पास जाए, तो वे स्वयं को लुटवाने के लिए तैयार हो जाते हैं। चोर ने श्री कृष्ण का पता पूछा और उन्हें ढूँढने के लिए निकल पड़ा।
प्रवक्ता ने उसे वापस बुलाया और कहा, “सुनो, वह बहुत निडर है। यदि वह तुम्हारे बल से न डरे, तो तुम अपने साथ थोड़ा माखन और मिश्री ले जाओ। यही उसके लुटने का कारण बन सकता है। तुम्हारे भयावह स्वरूप और बल से तो वह लुटने वाला नहीं है।” डाकू ने कुछ माखन और मिश्री ले ली और यह निश्चय किया कि वह श्री कृष्ण को लूटकर ही रहेगा।
श्री कृष्ण से मिलन की आकांक्षा: चोर की यात्रा और कठिनाइयाँ
वह डाकू पूरे रास्ते पैदल चलता हुआ श्री कृष्ण के पते की ओर बढ़ा। डाकू अपने नियमों का बहुत पक्का था। उसने पूरे रास्ते पानी तक नहीं पिया। आखिरकार वह वृंदावन के पास पहुँचा। वहाँ उसने कुछ चरवाहों को देखा, जो अपनी गायें चरा रहे थे। उसने उनसे श्री कृष्ण के बारे में पूछा। उसने कहा, “श्याम सुंदर नाम का वह बालक कहाँ है, जो सोने की छड़ी लेकर, सोने का मुकुट पहनकर, और सोने की करधनी बाँधकर गाय चराने आता है?”
चरवाहों ने उत्तर दिया, “वह तो पहले के युग की बात है, जब भगवान ने गोपाल रूप में अवतार लिया था।” यह सुनकर डाकू ने कहा, “नहीं-नहीं, यह तो एकदम ताज़ा ख़बर है। मैंने कुछ दिन पहले ही इसके बारे में सुना और तभी यहाँ आया हूँ। तुम मुझे भटकाओ मत। मैं स्वयं ही श्याम सुंदर को ढूँढ लूँगा।”
वह बेचारा भूखा-प्यासा कई दिनों से पैदल चलकर आया था। जिस किसी से भी पूछता, वे कहते कि यह तो बहुत पुराने समय की कहानियाँ मात्र हैं। उन सबकी बातें सुनकर वह निराश होने लगा और अपने भीतर ही भीतर श्याम सुंदर को पुकारने लगा।
श्री कृष्ण आए चोर से मिलने
अब वृंदावन में कोई श्री श्याम सुंदर को पुकारे और वे प्रकट न हों, ऐसा भला कैसे हो सकता है? अचानक उसके सामने का दृश्य बदल गया। उसने देखा कि बहुत सी सुंदर गायें और ग्वाल बालक उसके सामने आ गए। उन सबके बीच वही श्याम सलोना बालक था, जिसके बारे में सोचते-सोचते वह वहाँ तक पहुँचा था।
प्रभु ने वे सभी आभूषण धारण किए हुए थे, जिनका उसने कथा में वर्णन सुना था। प्रभु ने देखा कि एक अलबेला भक्त उनकी ओर आ रहा है, तो उन्होंने सभी सखाओं को कहीं और जाने के लिए कह दिया। जब वह डाकू नज़दीक पहुँचा, तो उसने प्रभु से कहा, “अपने सारे आभूषण उतारकर मुझे दे दो।”
ठाकुर जी मुस्कुराकर बोले, “ये आभूषण मेरे हैं। मैं तुम्हें क्यों दूँ?” डाकू ने गर्व से कहा, “मेरा नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे लोग काँपने लगते हैं। जानता है तू, मैं कौन हूँ?” प्रभु ने भोलेपन से उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता तुझे। तेरा नाम क्या है?” डाकू ने गर्व से कहा, “मेरा नाम गोवर्धन डाकू है।” प्रभु मुस्कुराए और बोले, “तेरा तो बस नाम गोवर्धन है, पर मैं तो गोवर्धनधारी हूँ।” यह सुनकर डाकू को उस कथा वाचक की बात याद आ गई कि यह बालक डरने वाला नहीं है।
श्री कृष्ण की कृपा और डाकू का हृदय परिवर्तन
डाकू ने बहुत प्रयास किया, लेकिन प्रभु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः उसने हार मानकर कहा, “सुनो, मैं तुम्हारे लिए माखन-मिश्री लाया हूँ।” यह सुनकर ठाकुर जी प्रसन्न हो गए। उन्होंने सोचा, दुष्ट होने के बावजूद इसने भगवद् कथा पर इतना विश्वास किया और मुझे ढूँढते हुए यहाँ तक आ गया। ठाकुर जी ने माखन चखा और मुस्कुराते हुए कहा, “तू भी इतने दिन से भूखा है, ये बचा हुआ माखन खा ले।”
इसके बाद प्रभु ने कहा, “यह सब आभूषण ले जा। मेरी मैया के पास बहुत आभूषण हैं, वो मुझे नए आभूषण पहना देंगी।” जब उसने प्रभु का दिया हुआ प्रसाद खाया, तो उसके सारे विकार नष्ट हो गए। उसके भीतर की दुष्टता समाप्त हो गई, और वह प्रभु की कृपा से बदल गया।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह प्रभु के चरणों में गिरकर रोने लगा। ठाकुर जी ने फिर कहा, “ले जा ये सारे आभूषण।” लेकिन उसने हाथ जोड़कर कहा, “प्रभु, मैं आपको छोड़कर यह आभूषण कैसे ले सकता हूँ?” ठीक उसी क्षण, उसकी मृत्यु हो गई, और वह प्रभु का नित्य सखा बनकर उनकी सेवा में पहुँच गया।
निष्कर्ष
उस चोर ने सिर्फ़ एक संत की बात सुनी कि एक कन्हैया नाम का बालक है जो गाय चरा रहा है, और वह उसे ढूँढने चल पड़ा। उसने प्रण लिया कि जब तक भगवान नहीं मिलेंगे, वह पानी तक नहीं पियेगा। और दूसरी तरफ़ हम हैं। हमारा जीवन धीरे-धीरे व्यतीत हो रहा है, लेकिन हम अपने समय और ऊर्जा को भोग-विलास में व्यर्थ कर रहे हैं। जब हम केवल प्रभु को पाने की सच्ची इच्छा रखेंगे, तब भगवान हमें तुरंत मिल जाएँगे।
हम लोग ज्ञान सुनते बहुत हैं, समझदार बहुत हैं, हमें पता है कि क्या नहीं करना चाहिए, लेकिन भजन ना होने के कारण हम उसको अपने जीवन में उतार नहीं पाते। नाम जप शुरू करो, अभी बात बन जाएगी। आज एक निश्चय करो कि मुझे इस मार्ग में चलना है, पाप नहीं करने, किसी को दुख नहीं देना, किसी का अहित नहीं करना तो आपका मंगल शुरू हो जाएगा।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज