मैं पुरुष हूँ, और मेरा आकर्षण पुरुषों की तरफ है: समलैंगिकता (गे और लेस्बियन) पर मार्गदर्शन

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
समलैंगिकता पर मार्गदर्शन - गे और लेस्बियन

काम भावना ने संपूर्ण सृष्टि में तांडव मचाया हुआ है। यह केवल उसी को छोड़ता है जो भगवान की शरण में जाकर भजन कर रहा है। देह और काम क्रिया में सुख की बुद्धि होने के कारण ही हम काम भावना की ओर आकर्षित हो गए हैं। हम इसमें सुख ढूँढ रहे हैं, लेकिन इससे आज तक कोई तृप्त नहीं हुआ। चाहे आप कितना भी भोग करें, आपकी चाहत और इच्छाएँ शांत नहीं होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहाँ वास्तविकता में कोई सुख नहीं है। हम केवल मल और मूत्र के द्वारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

शास्त्रों में इनके सेवन के लिए केवल संतान उत्पत्ति का ही मार्ग बताया गया है। धर्मपूर्वक, काम का सेवन केवल संतान उत्पत्ति के उद्देश्य से अपने पति या पत्नी के साथ करने की शास्त्रों में अनुमति है। ऐसा करने से आपको स्वाभाविक रूप से इस संसार से वैराग्य हो जाएगा, और आप सच्चे मार्ग के पथिक बन जाएँगे। गलत आचरण करके व्यर्थ में अपने वीर्य का नाश करने की अनुमति नहीं है।

सुख, शांति और आनंद की खोज

खुशी, शांति और आनंद की खोज

यदि आपको सुख और शांति की इच्छा है, तो वह केवल भगवान की शरण और उनके नाम के जप से ही प्राप्त हो सकती है। हमारा मन हमें बार-बार कहता है कि इस शरीर के भोगों में सुख ढूँढ़ा जा सकता है। परंतु, भोग का बार-बार अनुभव करने के बाद भी आपकी इच्छाएँ शांत नहीं होंगी, बल्कि आपका मन आपको और गलत कार्यों की ओर धकेलता रहेगा। इस छलकारी मन पर काबू पाना सीखिए, और आप एक महात्मा बन जाएँगे। हमारे प्रभु अत्यंत कृपालु हैं, जैसे वे भगवद् गीता में कह रहे हैं:

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यासितो हि स:॥

भगवद् गीता 9.30
यदि कोई व्यक्ति अत्यन्त घृणित कार्य भी करता है, लेकिन वह अनन्य भाव से मेरी भक्ति करता है, तो उसे साधु ही मानना चाहिए, क्योंकि वह अपने निश्चय पर दृढ़ है।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि जब कोई व्यक्ति यह निश्चय कर लेता है कि संसार के भोगों में कोई स्थायी सुख नहीं है और वह स्वयं को भगवान की भक्ति में लगा देता है, तो उसे साधु का दर्जा दिया जाता है, चाहे उसने पहले कितने भी बुरे कर्म किए हों।

आज के युवाओं का संकट

आज युवाओं में समलैंगिकता का संकट

आजकल के युवा ग़लत आदतों में फँसकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। कुछ नौजवान पुरुष शादी करने के लिए तैयार नहीं होते क्योंकि उनकी रुचि स्त्री के बजाय पुरुष शरीर में होती है। शास्त्र यह स्पष्ट रूप से निर्देश देते हैं कि काम का उपयोग केवल संतान उत्पत्ति के लिए होना चाहिए। क्या आप, एक पुरुष होकर, किसी दूसरे पुरुष के साथ संतान उत्पन्न कर सकते हैं? नहीं! तो जो आप अपनी जीवनी शक्ति (वीर्य) नष्ट कर रहे हैं, वह एक अपराध है और आपके दुख का कारण बनेगा।

यह शरीर केवल मनोरंजन के लिए नहीं मिला है। हमारा शरीर सत्कर्म करने के लिए है। यदि आप अपने शरीर का त्याग करने का (आत्महत्या) विचार करें और यदि सरकार को इसका पता चल जाए, तो आपको सज़ा दी जाएगी। इस संसार में भी आपके शरीर पर आपका पूर्ण अधिकार नहीं है, तो इसे व्यर्थ नष्ट करना या ग़लत उपयोग करना आत्मघात है।

यदि आपको स्त्री शरीर में राग नहीं है, तो ब्रह्मचर्य धारण कर तेजस्वी बनें और देश की सेवा करें, यही आपका सच्चा उद्धार होगा। गंदी आदतों में फँसकर आप स्वयं को नर्क में धकेल रहे हैं। जिस जगह आप सुख की तलाश कर रहे हैं, वहाँ वास्तव में थोड़ा भी सुख नहीं है। यह केवल क्षणिक भ्रम है, जो आपको और अधिक दुख में डालता रहेगा।

शादी के लिए परिवार का दबाव

समलैंगिकता - विवाह के लिए परिवार का दबाव

यदि आपको स्त्री शरीर से प्रेम नहीं है, तो किसी और को धोखे में क्यों रखना चाहते हैं? उन्हें वह व्यक्ति मिल सकता है जो सच में उनका सम्मान और प्रेम करे। अगर आप उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और फिर अपने स्नेह को किसी और के साथ बाँटते हैं, तो यह उनके साथ विश्वासघात होगा। इससे उनका जीवन दुखों से भर जाएगा, और आपको इसका अपराध लगेगा। अभी भी समय है, आप इस स्थिति से बाहर आ सकते हैं। अपने परिवार से खुलकर बात करें और किसी और के जीवन के साथ खिलवाड़ न करें।

अगर आपकी रुचि स्त्री शरीर में नहीं है, तो इसे ईश्वर की कृपा मानें और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने जीवन को सेवा और सत् कर्मों में समर्पित करें। आपका जीवन सार्थक हो जाएगा। हमारा जीवन केवल काम वासना की संतुष्टि के लिए नहीं है; यह काम पर विजय प्राप्त कर ईश्वर की भक्ति के लिए है। पशु-पक्षी भी अपनी वासनाओं को शांत करने में लगे रहते हैं, तो फिर हमें उनसे अलग क्या बनाता है? यह हमारी उच्चतर आध्यात्मिक यात्रा है, जो हमें विशिष्ट बनाती है।

दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुर: ।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुंठप्रियदर्शनम् ॥

श्रीमद् भागवतम् 11.2.29
मानव शरीर प्राप्त करना सबसे कठिन है, तथा यह किसी भी क्षण नष्ट हो सकता है।

सुधार का अवसर

समलैंगिकता - बदलाव का अवसर

अगर आपने अपना आचरण अभी नहीं सुधारा, तो भविष्य में बहुत पछताना पड़ेगा। अभी भी समय है, अपनी दिशा बदल लें। “राधा राधा” जपें और संकल्प लें कि अब कभी गलत काम नहीं करेंगे। कोई भी गलती सुधारी जा सकती है, पर इसके लिए सही समय पर सही कदम उठाने होंगे। अगर आपने गुप्त रूप से किए गए इन पापों को इस जन्म में नहीं मिटाया, तो आपको इस जीवन और मृत्यु के बाद नर्क में भी भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ेगा।

वीर्य केवल संतान उत्पत्ति के लिए है, और अगर आप उसका नाश किसी भी अनुचित तरीके से करते हैं, तो आप उस संभावित संतान के हत्यारे कहलाएँगे। सोचिए, अगर वही वीर्य सही स्थान पर जाता, तो एक संतान जन्म ले सकती थी। इसकी बर्बादी एक गंभीर पाप है। वीर्य में जीवन की संभावना है, और आप इस संभावित जीवन को नष्ट कर महापाप की ओर बढ़ रहे हैं।

मैं कई सालों से इस ग़लत क्रिया में लिप्त हूँ, क्या मेरा स्वभाव बदला जा सकता है?

परमार्थ मार्ग पर चलने से स्वभाव और भाग्य, दोनों में परिवर्तन किया जा सकता है।

जौं नर होइ चराचर द्रोही।
आवै सभय सरन तकि मोही॥
तजि मद मोह कपट छल नाना।
करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥

श्रीरामचरितमानस
(श्री रामजी ने कहा-) मैं तुम्हें अपना स्वभाव बताता हूँ। कोई मनुष्य यदि संपूर्ण जगत का द्रोही भी हो और यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण में आ जाए, और मद, मोह तथा नाना प्रकार के छल-कपट त्याग दे, तो मैं उसे बहुत शीघ्र साधु के समान कर देता हूँ।

गे लेस्बियन पर सुविचार

राधा राधा’ जपें और फिर कभी इन ग़लत आदतों में ना पड़ें, तो इस जन्म में किए गए पापों से आपको मुक्ति मिल सकती है। अभी भी प्रायश्चित किया जा सकता है और सब कुछ संभाला जा सकता है।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श‍ुच: ॥

भगवद् गीता 18.66
सभी प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पाप कर्मों से मुक्त कर दूंगा, डरो मत।

गलती बच्चों से ही होती है, और प्रभु की नज़रों में हम सब बच्चे हैं। किसी से आशीर्वाद माँगने की जरूरत नहीं है; आप केवल सही मार्ग पर चलें। अतीत में हुए पापों की चिंता न करें, अब से सुधार करें। प्रभु की शरण लें; भगवान ने बड़े गंदे आचरण करने वालों को भी महात्मा बना दिया है। इसके कई प्रमाण भक्तों के चरित्रों में हमें देखने को मिलते हैं।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज समलैंगिकता पर मार्गदर्शन करते हुए

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