एक बूढ़े ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करना चाहते थे। उनके ख़ुद के बच्चे थे पर वो उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते थे। उन्होंने सोचा कि बूढ़ा अकेले तीर्थ यात्रा कैसे कर पाऊंगा? एक गरीब ब्राह्मण का लड़का था, उन्होंने उससे कहा कि तुम इधर-उधर नौकरी के लिए भटक रहे हो, अगर तुम मेरे साथ तीर्थ यात्रा पर चल लो तो मैं तुम्हारे खानपान की व्यवस्था कर दूँगा और धनराशि भी दे दूंगा। ब्राह्मण ने कहा अच्छा है, आपके साथ तीर्थों का भी दर्शन हो जाएगा। वह जहां-जहां जाना चाहते थे वह जवान ब्राह्मण उन्हें ले गया। जब ब्रज धाम आया तो उन्हें बहुत बुखार आ गया। उस ब्राह्मण ने बूढ़े ब्राह्मण की बहुत सेवा की।
बूढ़े ब्राह्मण का वादा
बूढ़े ब्राह्मण उसकी सेवा से बहुत द्रवित हुए। वह धनी तो थे ही। जब बूढ़े ब्राह्मण गोपाल जी के दर्शन करने गये तो उन्होंने कहा बेटा तुमने मेरी बहुत सेवा की है, मैं तुम्हें क्या दे सकता हूं? मेरी एक बेटी है, बहुत सुंदर है। बेटी और बहुत धन-संपत्ति मैं तुम्हें दूंगा। उस जवान ब्राह्मण ने बूढ़े ब्राह्मण से कहा, देखो बाबा, आप यहाँ तो बोल रहे हैं, लेकिन घर पर आपके जवान लड़के हैं, वो मेरी पिटाई करेंगे। उन बूढ़े ब्राह्मण ने कहा कि मैं गोपाल जी को साक्षी करके कहता हूँ कि अपनी बेटी की शादी तुम्हारे साथ करवा दूंगा और तुम्हें संपत्ति भी दूंगा। बात तय हो गई।
तीर्थ यात्रा ख़त्म कर जब घर पहुँचे तो बूढ़े ब्राह्मण की हिम्मत नहीं हुई कि वो अपने लड़कों के सामने बात कर सकें। उस नौजवान ब्राह्मण ने महीना भर कोई सूचना मिलने का इंतज़ार किया, लेकिन कोई सूचना नहीं मिली। वह उन बूढ़े ब्राह्मण के घर गया और बोला देखो बाबा आपने कहा था की मेरी शादी आपकी बेटी के साथ होगी। उनके लड़कों ने उसे धक्का दिया और दो-चार थप्पड़ लगाए कि तेरी सामर्थ क्या है कि तू हमारी बहन से शादी करने की बात सोच सके। उसने बोला कि आपके पिताजी ने ही कहा था। अब लड़कों का वह स्वरूप देख कर बाबा बदल गए। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा कुछ याद नहीं। उस नौजवान ब्राह्मण ने कहा, अरे! आपने गोपाल जी के सामने ये कहा था। उन्होंने पीट के उससे वहाँ से भगा दिया।
उस लड़के को इस बात का बहुत बुरा लगा की उसने अपनी तरफ से तो कहा नहीं था शादी के लिए, उन्होंने उसका अपमान भी किया, अब तो शादी करके ही रहेगा, ऐसा उसने प्रण लिया। उसने पंचायत बुलाई और कहा कि इन्होंने हमें तीर्थ यात्रा के लिए प्रेरित किया, तीर्थयात्रा पर ले गए, मैंने इनकी सेवा की और इन्होंने ठाकुर जी के सामने मेरी शादी की बात कही। पंचायत ने बोला कि कोई और गवाही दे तब बात बनेगी। उसने बोला कि वहाँ तो केवल मैं, यह बूढ़े ब्राह्मण और ठाकुर जी ही थे। पंचायत ने बोला कि अगर ठाकुर जी गवाही दे दें तो तुम्हारी शादी हो सकती है। इस बात पर बूढ़े ब्राह्मण भी राजी हो गये क्योंकि उन्होंने सोचा कि गोपाल जी थोड़ी ना आयेंगे गवाही देने। उन्होंने सोचा कि मूर्ति थोड़ी चलकर आएगी गवाही देने। लेकिन उस जवान ब्राह्मण ने गोपाल जी को मूर्ति नहीं माना था।
भक्त ने की गोपाल जी से साक्षी देने की ज़िद
वह वृंदावन आया। उस दिन के लिए ठाकुर जी का शयन हो चुका था। वो बहुत परेशान हुआ, मंदिर का दरवाजा बंद था, उसने खटखटाया और कहा, “सुनो गोपाल जी, मैं आपसे ये पूछने आया हूँ कि उन वृद्ध ब्राह्मण ने आपके सामने शादी की बात बोली थी ना”। दो-चार बार आवाज लगाई, कोई उत्तर नहीं आया। फिर वो बहुत जोर से बोला, “देखो मैं आपको चैन से सोने नहीं दूँगा, मैं पैदल चलकर आया हूँ, भूखा भी हूँ, मेरी शादी की बात है, छोटी मोटी बात नहीं, आपको बोलना ही पड़ेगा”।
ठाकुर जी ने अंदर से कहा, मूर्ति कहीं चलती है क्या। उसने कहा जब मूर्ति बोल रही है तो चलेगी क्यों नहीं। ठाकुर जी फँस गये। ठाकुर जी बाहर निकल कर आए। उसने देखा बहुत सुंदर नवकिशोर गोपाल जी, साक्षात ठुमक ठुमक कर चल के आए। ठाकुर जी बोले देखो तुम्हारे भाव के कारण हम चलने के लिए राजी तो हैं लेकिन हमारे भोग की व्यवस्था तुम्हें करनी पड़ेगी, क्योंकि हम वृंदावन के ठाकुर हैं, हमें तो व्यंजन चाहिए, हम तो रबड़ी गुलाब जामुन वग़ैरह ही पाते हैं।
उसने कहा शादी का चक्कर है तो हम आपकी व्यवस्था तो करेंगे ही। उसने गोपाल जी से पूछा कि आप उड़ीसा कैसे चलेंगे। गोपाल जी ने कहा, चलेंगे तो हम पैदल ही। आगे आगे तुम चलना, पीछे पीछे हम चलेंगे। थोड़ी-थोड़ी देर में हमें भोग लगाते रहना। हमारे नूपुरों की ध्वनि तुम्हें सुनाई देती रहेगी, अगर पीछे मुड़ के देख लिया तो हम वहीं खड़े हो जाएँगे, वहाँ से आगे नहीं बढ़ेंगे।
ठाकुर जी चले भक्त के पीछे
बात तय हो गई, चल दिये ठाकुर जी भक्त के पीछे। वो बीच-बीच में गोपाल जी को भोग लगाता रहा। जब अपने गांव के नजदीक पहुंचा तो सोचा केवल नूपुर ही बज रहें हैं या गोपाल जी पीछे आ भी रहे हैं। मुड़कर देखा तो ठाकुर जी खड़े थे। ठाकुर जी ने कहा अब यहाँ से आगे मैं नहीं चलूँगा, तुम सबको बुलाकर यहीं लाओ।
वो दौड़कर गाँव में गया और हल्ला मचा दिया कि वृंदावन के ठाकुर आये हैं साक्षी देने। भीड़ इकट्ठा हो गई साक्षात गोपाल जी को देखने के लिए। सब पंच भी वहाँ आ गये, अब ठाकुर जी को देखकर उन वृद्ध ब्राह्मण की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई। ठाकुर जी उस भक्त के वचन की रक्षा के लिए सबके सामने बोले और गवाही दी और उसके बाद उस नौजवान की शादी हो गई।
निष्कर्ष
यह कहानी कलियुग की ही है, बात है हमारी श्रद्धा और हमारे विश्वास की। अगर हमने ठाकुर जी को मान लिया कि मूर्ति हैं, तो मूर्ति ही रहेंगे। और अगर मान लिया कि हम भले नहीं समझ पा रहे लेकिन ये हमारे ठाकुर हैं, तो एक दिन वो आपको समझा देंगे की वो ठाकुर हैं। भगवान को कभी फोटो और मूर्ति ना मानें, वो साक्षात प्रभु ही हैं, ऐसी भावना करें, तो वो अनुभव में आने लगेगा कि ठाकुर जी साक्षात आपके सामने विराजमान हैं।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज