सखुबाई जी की कहानी: भगवान इनके लिए रस्सी से बंधे रहे!

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
सखुबाई - इस भक्त के लिए भगवान विट्ठल को रस्सियों से बांध दिया जाता है

महाराष्ट्र के एक गाँव में एक ब्राह्मण रहते थे। उनके घर में केवल चार लोग थे – वो ब्राह्मण, उनकी पत्नी ब्राह्मणी, उनका पुत्र और उनकी पुत्रवधू। उनकी पुत्रवधू बड़ी ही साध्वी और भक्ता थीं जिनका नाम सखुबाई था। वह बचपन से ही संत महात्माओं का संग करके निरंतर श्री कृष्ण के चिंतन में तन्मय रहती थीं। जैसे गाय कसाई के चक्कर में फँस जाए, वैसे ही साध्वी सखुबाई की शादी ऐसे परिवार में हुई जहाँ उनकी सास, ससुर और पति तीनों उनके विरुद्ध थे। उनकी सास उन्हें थप्पड़ मारती थीं और गालियाँ भी दिया करती थीं। उनके परिवार में सब उनके भजन के विरुद्ध थे, लेकिन सखुबाई ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा। उनके पति भी उनके अनुकूल नहीं थे। सखुबाई को बहुत कष्ट दिया जाता था, लेकिन वह एक पल के लिये भी भगवत् विस्मरण नहीं होने देती थीं। उन्होंने इतनी प्रतिकूलता के बाद भी उन तीनों से द्वेष नहीं किया। उनका जीवन क्लेशमय था पर उन्होंने कभी किसी से कठोर वचन नहीं बोले। जो मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय, सुख-दुख को समान भाव से सहते हुए भगवत् स्मरण करता है, भगवान उसके अधीन हो जाते हैं।

सखुबाई को उसके ससुराल वालों द्वारा डांटा जा रहा था

सखुबाई को उनके परिवार वाले बहुत सताते थे!

सखुबाई को पीटा जाता था, गालियाँ दीं जाती थी, क्लेशात्मक व्यवहार किया जाता था, लेकिन सखुबाई के ह्रदय में विट्ठल ऐसे बसे हुए थे कि इसका उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सखु बाई को फटे पुराने कपड़े पहनने को मिलते थे, रुखा सूखा खाने को मिलता था, प्रति क्षण डाँट-पिटाई होती थी; लेकिन वह हर समय श्री कृष्ण के चिंतन में लीन रहती थीं। सखू की दशा पर गाँव के स्त्री-पुरुषों को बहुत तरस आता था पर, किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि कोई उनके परिवार को समझा सके। सखुबाई मन ही मन भगवत् कृपा का अनुभव करते हुए सोचतीं कि कितने कृपालु हैं श्री कृष्ण! यदि मेरे पति, सास या ससुर मुझसे प्यार करते तो श्री कृष्ण के प्यार में बाधा पड़ जाती। एक दिन किसी पड़ोसन ने सखुबाई से पूछा, तू इतना दुःख भोगती है, तेरे मायके में कोई नहीं है क्या? न कोई खबर लेने आता है, न कोई तुम्हारा सहयोग करता है। सखू ने मुस्कुराते हुए कहा, जानती हो मेरा मायका कहाँ है? पंढरपुर में। और मेरे मायके वाले कौन हैं जानती हो? विट्ठल और रुक्मिणी जी। और सखी उनका बहुत बड़ा परिवार है, असंख्य संतानें हैं। मुझे लगता है कि वो असंख्य संतानों की व्यवस्था में मुझे भूले गये हैं। इसलिए मुझ गरीब की खोज खबर लेने वो नहीं आ पा रहे। पर उनकी मुझ पर बहुत कृपा है।

सखुबाई भगवान विट्ठल के बारे में सोच रही हैं

भक्तों की मंडली के साथ भाग पड़ी सखुबाई

पंढरपुर महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध धाम है। यहाँ एकादशी को बड़ा मेला लगता है जिसमें भगवान श्री विट्ठल जी के दर्शनार्थ लाखों नर-नारी दूर-दूर से नाम कीर्तन करते हुए, नृत्य करते हुए उत्साहपूर्वक पंढरपुर की यात्रा करते हैं। जब यात्रा का दिन आया तो भक्तों की मंडलियाँ कीर्तन करते हुए, नाचते हुए पंढरपुर के लिए चारों ओर दल बना-बना कर जाने लगे। भक्तों को पंढरपुर जाता देख सखुबाई के हृदय का बाँध टूट गया। विचार किया क्या करूँ? मेरे प्रीतम का ऐसा बड़ा उत्सव हो रहा है, यदि मैं सास से पूछूँगी तो पिटाई ही होगी, उन्होंने सोचा। सास-ससुर, पति कोई जाने तो देगा नहीं। सखुबाई को पानी भरने के लिए रोज़ कृष्णा नदी में जाना होता था। उन्होंने घड़ा लिया और कृष्णा नदी में जल भरने के बहाने घर से निकलीं। प्रेमी भक्तों के संकीर्तन दल को देखकर सखू के हृदय में प्रेम उमड़ा। पंढरपुर जाने की प्रबल इच्छा कर के उन्होंने घड़ा वहीँ रख दिया और वह भक्तों की मंडली में चली गईं।

उन्हें जाते हुए एक पड़ोसन ने देख लिया, और दौड़ कर उसने उनकी सास को बताया कि उसकी बहू संतों की मंडली के साथ भाग गई है। अब सास और पति ने बड़े-बड़े डंडे निकाले और उन्होंने सखू को रोकने के लिए दौड़ लगाई। उन्होंने देखा तो सखुबाई अपने प्रीतम के दर्शन के लिए विशेष इच्छुक थीं और भक्तों के बीच में भगवत् प्रेम में उन्मत्त हो रहीं थीं। उनकी सास ने उनके बाल पकड़े, घसीट के उन्हें बाहर लाई, और वहीं उन्हें डंडे से मारना शुरु कर दिया। घर ले जा कर तीनों ने मिलकर उनकी पिटाई की। सखुबाई सिर्फ हा विठ्ठल, हा कृष्ण, हा गोविन्द कहती रहीं! उनकी सास ने कहा यह तो मामूली मार है, इससे ये मानने वाली नहीं है। ऐसा पीटो कि ये चलने के लायक ना रहे, वरना ये फिर भाग जाएगी और पंढरपुर की यात्रा करेगी। और अभी दो सप्ताह है पंढरपुर के यात्रा में; इसको जकड़ कर के खम्बे में बाँध दो और दो सप्ताह तक न रोटी न पानी और रोज़ इसकी पिटाई करो, तब ये मानेगी। सास की आज्ञा पर सखुबाई को उनके पति और ससुर ने बाँध दिया, उनकी पिटाई की, और उन्हें भोजन देना बंद कर दिया।

सखुबाई अपने परिवार से बंध जाती है

दुख मिलने पर कैसी होनी चाहिए एक भक्त की स्थिति?

उनके हृदय में यह दुःख नहीं था कि मुझे बाँध दिया गया, मुझे मारा गया, मुझे गाली दी गई। उनके हृदय में बस एक पीड़ा थी कि हे श्री कृष्ण, आपके भक्तों के बीच में मुझे कितना सुख मिला। पहली बार जीवन में भक्त मंडली में मुझे नाचने को मिला। मैं आपके दर्शन के लिए जा रही थी। मेरी सामर्थ्य नहीं कि मैं इस जन्म में इस नरक से निकल सकूँ। हे करुणानिधान, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं इस जन्म में आपके दर्शन कर पाऊँ? क्या मैं आपके मंदिर में आकर आपके भक्तों के बीच में नहीं नाच सकती? सखुबाई आँसू बहाते हुए कह रहीं थीं कि हे कृष्ण, ऐसा कुछ उपाय करो कि मैं आपके दर्शन कर सकूँ। मैं बहुत पतित हूँ, दीन हूँ, अधम हूँ, मेरी सामर्थ्य नहीं है कि मैं आप तक आ सकूँ। हे प्रभु, आप कृपा करो, बहुत सुन्दर अवसर मिला है, भक्तों की मंडलियाँ जा रही हैं। आपके दर्शन करने के लिए बार-बार अवसर नहीं आएगा। हे नाथ, आप कृपा करोगे तभी दर्शन हो सकते हैं। मेरी सामर्थ्य नहीं है कि मैं इस चंगुल से छूट सकूँ।

सखुबाई के रूप में बंधे ठाकुरजी

सखुबाई श्री हरि का आंतरिक चिंतन कर रहीं थीं। जब भक्त तकलीफ़ में हो तो हरि को चैन कैसे पड़ सकता है? रुक्मिणी जी ने देखा तो प्रभु के चेहरे पे उदासी और बड़ी चिंता थी। उन्होंने ठाकुर जी को पूछा कि नाथ आप चिंता में कैसे? लगता है कोई भक्त कष्ट में है। भगवान ने कहा हाँ! एक ऐसी भक्त है, जिसको बहुत पीटा जा रहा है, क्लेश दिया जा रहा है, वो मुझसे मिलना चाह रही है और उसको बाँध दिया गया है। आपको थोड़े दिन के लिए हमसे विरह सहना पड़ेगा क्योंकि हमें कुछ दिन वहाँ रहना पड़ेगा, तब ही बात बनेगी। रुक्मिणी जी से ऐसा कहा और प्रभु तत्काल सखुबाई के समीप गए। उन्हें न भोजन दिया जा रहा है, ऊपर से गालियाँ दी जा रही है और पिटाई की जा रही है। सखुबाई की आँखों से अश्रु बह रहे थे और वो प्रभु के ध्यान में निमग्न थीं। प्रभु ने एक बहुत सुन्दर नवयुवती का रूप धारण किया और बोले सखुबाई मैंने सुना है तुम पंढरपुर जाना चाहती हो। चलोगी मेरे साथ पंढरपुर? सखुबाई ने आँख खोली और कहा सखी मुझ पापिनी के भाग्य में ऐसा कहाँ कि मैं भक्तमंडली के साथ पंढरपुर जाऊँ। तुम देख तो रही हो मेरी दशा। स्त्री रूपी ठाकुरजी ने कहा बाई तुम जानती नहीं हो, मैं तुम्हे बहुत समय से जानती हूँ। तुम मेरी बहुत प्रिय सखी हो। उदास मत हो, मैं जिसकी सखी होती हूँ, उसको मैं कभी उदास नहीं देख सकती। मैं तुम्हारी रस्सी खोल देती हूँ और तुम भागो और जाओ मंडली के साथ। सखू बाई ने कहा मेरी सास फिर पकड़ लेगी। प्रभु बोले बिलकुल नहीं, इसकी तो तुम चिंता ही मत करो। ठाकुरजी ने सखुबाई को निकाला और स्वयं सखुबाई का रूप धारण करके रस्सी में बँध गए।

भगवान विट्ठल सखूबाई के लिए बंध जाते हैं

ठाकुर जी की सेवा से आया सखुबाई जी के परिवार के स्वभाव में परिवर्तन

जिनका नाम स्मरण करने से माया का बंधन टूट जाता है, जिनको पाना बड़े-बड़े योगियों के लिए भी दुर्लभ है, वही भगवान अपनी भक्त सखुबाई के लिए एक साधारण स्त्री की तरह बंध गए। ठाकुरजी चुप चाप चाँटे खा रहे हैं। ठाकुर जी को कई दिन हो गए, भोजन नहीं मिला, पानी नहीं मिला और रोज़ उनकी पिटाई भी हुई। चौदह दिन बीत गए, प्रभु बंधे रहे, रोज़ डंडे और गालियाँ खा रहे हैं। उनके पति को उन पर दया आई तो उन्होंने सख़ूबाई के रूप में जो ठाकुर जी बंधे थे, उनको खोल दिया। पति की आज्ञा के अनुसार सखू भाई रूपी श्री भगवान ने स्नान किया, सुन्दर रसोई बनाई और सबको खिलाया। भोजन पाने के बाद तीनों के हृदय में बहुत प्यार उदय हुआ। सखू रूपी भगवान ने अपनी सेवा और सुन्दर व्यवहार से पति,सास और ससुर, तीनों के स्वभाव को बदल दिया। अब तीनों सखुबाई स्वरूप श्री भगवान से बहुत प्यार करने लगे।

पंढरपुर पहुँची सखुबाई

उधर सखुबाई पंढरपुर पहुँच के नाम संकीर्तन करते हुए नाच रहीं हैं। प्रभु के प्रेम में वो इस बात को भूल गईं कि मेरी जगह कोई और सखी बंधी हुई है। आनंद में विभोर हुई सखुबाई ने चंद्रभागा नदी में स्नान कर के मंदिर के अंदर प्रवेश किया। वो मंदिर में जाकर श्री हरि के दर्शन करके आनंद सिंधु में डूब गईं। सखुबाई का प्रभु में ऐसा मन लगा कि उन्होंने प्रभु के सामने प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक शरीर में प्राण रहेंगे, मैं पंढरपुर की सीमा के बाहर नहीं जाऊँगी। उन्हें क्या पता था कि उनके बदले पंढरीनाथ जी वहाँ बंधे हुए हैं। सखुबाई पांडुरंग के ध्यान में संलग्न हो गईं। सखुबाई के सामने वो स्वरूप प्रकट हुआ कि सखुबाई विह्वल हो गईं और भगवान के सौंदर्य के दर्शन में इतना मुग्ध हो गईं कि उनके प्राण छूट गए।

सखुबाई पंढरपुर में कीर्तन में नृत्य करती हुई

सखुबाई का अंतिम संस्कार और पुनर्जन्म

एक ब्राह्मण उस मंडली में आया था और उसने सखुबाई की लाश को देखा। उसने साथियों को बुलाया और सबने मिलकर सखुबाई के शरीर का अन्त्येष्टि संस्कार किया। इधर रुक्मिणी जी ने विचार किया कि ठाकुर जी कह के गए थे कि कुछ ही दिनों में वापस आ जाऊँगा, आज तक वापस नहीं आए। फिर ध्यान देके देखा कि जिसके लिए गए थे उसने तो शरीर छोड़ दिया और उसके शरीर का अंतिम संस्कार भी हो गया। अब मेरे प्रभु को तो बहु बनकर वहाँ रहना ही पड़ेगा। अब रुक्मिणी जी को बड़ी चिंता हुई। रुक्मिणी जी श्मशान पहुँची, और उन्होंने सखुबाई की राख, हड्डी वगैरह को एकत्रित किया और प्रेम दृष्टि से देखा तो सखुबाई जीवित हो गईं। सखुबाई को ऐसा लगा जैसे वह गाढ़ निद्रा से जगी हों। रात को स्वप्न में रुक्मिणी जी ने सखुबाई से कहा, देखो पुत्री, तुम्हारा प्रण पूरा हुआ। तुमने कहा था कि जब तक इस शरीर में प्राण रहेंगे, मैं पंढरपुर की सीमा के बहार नहीं जाऊँगी। तुम्हारा वह शरीर तो जल गया। अब तुम लौट जाओ, मेरे प्रीतम तुम्हारे रूप में तुम्हारे घर पर हैं। आदेश पाकर सखुबाई आनंदमगन होकर दो दिन बाद यात्रियों के साथ वापस लौट आईं।

सखुबाई की वापसी

सखुबाई भगवान विट्ठल से मिलती हैं

सखू को आता देख, सखू वेश धारी भगवान पंढ़रीनाथ, जो वहाँ बहु रूप में थे, उन्होंने सोचा कि अगर वो यहाँ आ गईं और मैं भी यहाँ रहा तो गड़बड़ हो जाएगी। ठाकुरजी ने तत्काल सास से कहा कि मैं पानी लेने जा रही हूँ। उन्होंने घड़ा लिया, घाट पर आईं और पूर्व परिचित सखी का वेश धारण कर सखुबाई से मिलीं। उन्हें देखते ही सखुबाई को सारी बातें याद आ गई। सखुबाई ने दौड़ कर के उन्हें हृदय से लगाया और कहा सखी आपकी कृपा से मुझे पंढरपुर जाने को मिला; मुझे मेरे ठाकुर जी के दर्शन हुए। उनके चरणों को पकड़ लिया। बहन तुम्हें बहुत कष्ट भोगना पड़ा होगा मेरी वजह से। ठाकुर जी ने कहा कि तुम चिंता मत करो, तुम सुखी हो गयी ना? सखूबाई ने कहा, हाँ। ठाकुर जी ने कहा मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ, यदि तुम्हें सुख मिला तो हर कष्ट मेरे लिए सुखमय है। तुम ये घड़ा लो, इसमें जल भरो और घर जाओ। सखुबाई घड़ा भरकर अपने घर को गईं और ठाकुर जी अंतर्ध्यान हो गए।

सखुबाई की भागवतिक स्थिति हुई उजागर

सखुबाई घड़ा उठा कर घर पहुंची और स्वाभाविक अपने काम में लग गईं। सखुबाई को सास, ससुर और पति के बदले हुए स्वभाव को देख कर बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि इतना प्यार मिल रहा है। दूसरे दिन वो ब्राह्मण (जिसने सखुबाई के शरीर का अंतिम संस्कार किया था) वापस आया और उसने सखुबाई के घर पहुंच कर कहा कि मैं एक खबर देने आया हूँ। तुम्हारी बहु पंढरपुर गई थी, जहाँ ठाकुर जी के दर्शन करके उसके प्राण निकल गए, और हम सबने उसके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया। परिवार वालों ने कहा कि हमारी बहु तो घर के अंदर है। आवाज़ लगाई, सखुबाई सामने आ गईं। उस ब्राह्मण के होश उड़ गए। आखिर ब्राह्मण के बहुत कहने पर उन्होंने सखू को अपने पास बुलाकर पूछा कि हमने तुम्हें यहाँ बाँध रखा था, लेकिन ये कहते हैं कि तुम पंढरपुर में गई और वहाँ मर गई। कैसी बात है ये?

सखुबाई ने कहा ये जो कह रहे हैं बिल्कुल सत्य है। जिस समय आपने मुझे बाँध रखा था उसी समय कोई नवयुवती स्त्री आई थी और उसने मेरी सहायता की। मुझे खोल दिया। मैं भक्तों के साथ पंढरपुर गई और वो यहाँ बँधी रही। मुझे तो वहाँ भेज दिया और स्वयं आपका प्रतिकूल व्यवहार सहती रही। मैं पंढरपुर ज़रूर गई थी। वहाँ एक दिन मुझे बेहोशी भी हुई। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मैं मर गई थी, और मेरे शरीर को जलाया गया था। पर रुक्मिणी जी ने मुझे पुनः ज़िंदा कर दिया और वापस भेज दिया। मैं जब नदी के पास आई तो वह युवती जिसने मुझे खोला था, वो मुझे घड़ा दे कर चली गई। आप लोग जानते हैं वो युवती कौन थी? सास,ससुर, और पति ने कहा, हमें तो पता नहीं। सखुबाई ने कहा जब वो चली गई तो मुझे पता चला कि वो मेरे पांडुरंग विट्ठल ही थे। आप लोगों का बड़ा सौभाग्य है कि आपको मेरे इष्ट के दर्शन हो गए। यह सुनते ही सखुबाई के सास,ससुर और पति उनके चरणों में गिर पड़े, और कहा कि हमने तुम्हें पहचाना नहीं। हमारे घर में ऐसी परम भक्त, परम साध्वी रहती है, जिसके अधीन श्री भगवान हैं , हमने तुम्हें बहुत सताया, हम पर कृपा करो। संत सखुबाई ने सास, ससुर और पति को भक्ति का उपदेश दिया। तीनों भजन परायण होकर सखुबाई की कृपा से भगवत् धाम को प्राप्त हुए।

सखुबाई के परिवार को उसकी भक्ति के बारे में पता चलता है

निष्कर्ष 

यदि उपासक भक्ति मार्ग में आगे बढ़ रहा हो और उसके जीवन में प्रतिकूलता आए, तो उसे आनंदित होना चाहिए कि अब हरि जल्दी ही आने वाले हैं। जब-जब प्रतिकूलता किसी भक्त के जीवन में आई, तो भगवान का ऐसा अवतार हुआ, जो न तो पुराणों में लिखा है और न ही शास्त्रों में। हरि हमें हर क्षण देख रहे हैं। कभी निराश मत होना। चाहे जितना दुख-क्लेश आए, आपको दुःख-क्लेश देने वाले व्यक्ति को कभी क्लेश देने का विचार मत करना। आनंदित होकर सहना, तो हरि आप पर कृपा करके आएँगे और आपको हृदय से लगा लेंगे। इससे हमारा जन्म-जन्म का दुख दूर हो जाएगा।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज सखुबाई जी की कथा सुनाते हुए

Related Posts

1 comment

black hat seo paid links जून 17, 2024 - 8:14 अपराह्न

black hat seo paid links

vutumvubq gyxnf toqyhxe prey kcvuduitebrnqmu

Comments are closed.

Follow Us on Facebook

Follow Us on twitter

Download Our App

google play icon

Copyright @2024 | All Right Reserved – Shri Hit Radha Keli Kunj Trust | Privacy Policy

error: Copyrighted Content, Do Not Copy !!
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00