सब छोड़कर कहीं और भाग जाने की बात इसलिए आती है क्योंकि बात कह देना सरल होता है और उसका निर्वाह करना बहुत कठिन होता है। परिवार की बहुत तरह की आवश्यकताएँ होती हैं, बहुत मांगे होती हैं। अगर आप भागकर कहीं और जाएँगे तो क्या वहाँ आप समस्या रहित हो जाएँगे? वहाँ भी समस्याएँ होंगी, कितना भागेंगे? माया द्वारा रचित जितने भी स्थान हैं, उसमे कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ समस्या ना हों।
जहाँ हैं वहीं माया का सामना करिए
आप कहीं भी भाग कर जायें, पूरा संसार माया के गुणों से भरा हुआ है, समस्या तो यह है कि कोई भी स्थान समस्या रहित नहीं है। अगर आप जहाँ हैं वहीं समस्या रहित हो गए तो आपके लिए कहीं भी समस्या नहीं है। आप जहाँ हैं वही रहकर आपको लड़ना चाहिए और माया पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। भगवान ने जिसके लिए जो कर्म विधान किया है वो उसे भोगना ही पड़ेगा। आप किसी का सहयोग कर सकते हैं, सेवा कर सकते हैं, लेकिन उसके बाद अंदर से निरपेक्ष होना सीख लें। आपके पास जितना बल है आप उतना कर दीजिए, और उसके आगे भगवान पर छोड़ दीजिए।
नरसी मेहता जी की कहानी
नरसी मेहता जी के बेटे की शादी की बात हुई। उन्होंने कहा कि मेरे पास गिरिधर जी (ठाकुर जी) के सिवा कुछ नहीं है। लड़की वालों ने कहा कि हम इसलिए आपके यहाँ शादी कर रहे हैं क्योंकि आपको ठाकुर जी बहुत प्यार करते हैं और आप ठाकुर जी को बहुत प्यार करते हैं। नरसी मेहता जी ने कहा कि हम तो गरीब हैं। आप तो बहुत बड़े घर के हैं, अपनी बेटी की शादी किसी बड़े घर में कर दीजिये। लड़की वाले बोले की आपसे बड़ा कोई नहीं है, जो ठाकुर जी का जन हो वही हमारे लिए बड़ा है। उन्होंने पीछे पड़कर शादी तय कर दी। नरसी मेहता जी ने कहा कि मैं शादी में नहीं जाऊँगा, मैं अपने ठाकुर जी की सेवा नहीं छोड़ सकता। इस पर ठाकुर जी ने प्रकट होकर नरसी मेहता जी से कहा कि मैं शादी में होने वाले सब कार्य करूँगा, आप केवल साफा बाँधकर, समधी बनकर चलें। नरसी मेहता जी ने उसके लिए भी मना कर दिया और कहा, मुझसे यह भी नहीं होगा। ठाकुर जी ने इसके बाद खुद से पूरी शादी करवाई। जब हम भार अपने ऊपर ले लेते हैं, तब ठाकुर जी निश्चिंत हो जाते हैं और जब हम ठाकुर जी के ऊपर भार दे देते हैं तो वो सब देख लेते हैं। आप ज्यादा चिंता मत कीजिये, आपके चिंता करने से कुछ नहीं होगा। आपके चिंतन करने से होगा। राधा नाम के धनी बनें, खूब नाम जप करें। जो प्रभु कर रहे हो उसे देखते रहें, जो करवा रहे हैं उसे देखते रहें। यह माया का खेल है, इसको इसी तरह से जीता जा सकता है।
राम जी को भी मिला था वनवास – जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकारें
दशरथ जी ने तड़प के प्राण त्याग दिये क्योंकि सुबह राम जी का राज्याभिषेक होना था लेकिन उन्हें तो चौदह वर्ष का वनवास मिल गया। दशरथ जी की कामना यह नहीं थी कि राम जी वनवास जाएँ। वह तो ऐसा सोच रहे थे कि राम जी राजगद्दी पर बैठें और वो उन्हें देख कर प्रसन्न हों। पूरी अयोध्या में धूम मची हुई थी कि कल राम जी राजा बनेंगे। परन्तु जो सुबह आई, वह घोर समाचार लाई। सबके यह सोचकर प्राण निकल रहे थे कि भगवान श्री राम चौदह वर्ष के लिए वनवास में कैसे रहेंगे। जो राजकुमार आज तक चार कदम भी पालकी में चलते थे, वो नंगे पैर वनवास जा रहे हैं। सृष्टि का क्रम ऐसा ही है। आप नाम जप करते रहें। जैसा हो रहा है उसे देखते रहें, जितना प्रभु आपसे करवा रहे हैं, करते रहें, बाकी उनपर छोड़ दें।
गोपियों का उदाहरण – गृहस्थ जीवन में भी कृष्ण प्रेम
प्रभु के भरोसे रहेंगे तो आप माया से निकल सकते हैं, नहीं तो माया ने बड़े-बड़ों को फँसाकर भगवद् विस्मरण करा दिया है। इसलिए गोपियों की महिमा है कि उन्होंने परिवार में रहते हुए भी एक क्षण के लिए भी श्रीकृष्ण का चिंतन नहीं छोड़ा। वो अपने घर की सारी सेवाएँ करती थीं। तभी परमहंस शुकदेव जी, उद्धव जी आदि जैसे ज्ञानी भी उनकी चरण धूल अपने माथे पर रखते हैं। गृहस्थी में रहकर, परिवार की सेवा करते हुए श्री कृष्ण प्रेम में मतवाला हो जाना, यह बड़ी दुर्लभ बात है।
भगवान की इच्छा के प्रति समर्पण – सच्चे भक्त का लक्षण
भागने की ज़रूरत नहीं है, जहाँ हैं वही हर समय भगवान का नाम जपिए और यह विचार रखिए कि होगा वही जो प्रभु चाहते हैं। आप प्रयास कर रहे हैं, ठीक है। अगर वो आपको भूखा रखना चाहते हैं तो आप उसमे भी राज़ी रहें। जैसा आप चाहते हैं वैसे हो जाए, ऐसा तो इस सृष्टि में किसी के साथ नहीं हुआ।
श्री कृष्ण प्रकट होते ही देवकी मैया को छोड़कर गये। यशोदा मैया को भी फिर वह छोड़कर मथुरा आ गए। और फिर वो मथुरा से द्वारका गये। भगवान यह दिखा रहे है की सृष्टि का ऐसा ही क्रम है। कभी विजय है तो कभी हार है, कभी सुख है तो कभी दुःख है और कभी लाभ है तो कभी हानि है। यह चलता ही रहेगा, आप धैर्य पूर्वक भजन करें।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज