रणछोड़ जी को एक भक्त चुराकर लाया डाकोर: भक्त रामदास जी की कहानी

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
रामदास जी की कहानी - रणछोड़ जी गए द्वारका से डाकोर
इस ब्लॉग को ऑडियो रूप में सुनें

गुजरात में एक गाँव है जिसका नाम डाकोर है। वहाँ श्री रामदास जी नाम के एक भक्त रहते थे। वे हर एकादशी पर द्वारका जाकर श्री रणछोड़ जी के मंदिर में पूरी रात कीर्तन करते थे और अगले दिन वापस लौट आते थे। जब वे वृद्ध हो गए, तो भगवान ने उनसे घर पर ही कीर्तन करने को कहा। परंतु उन्होंने ठाकुर जी की यह बात नहीं मानी। उनकी निष्ठा देखकर प्रभु उनसे प्रसन्न हो गए और बोले, “तुम्हारे यहाँ आने का कष्ट मुझसे सहन नहीं होता। तुम मुझे अपने घर ले चलो।”

ठाकुर रणछोड़ जी की डाकोर जाने की योजना

रणछोड़ जी की डाकोर जाने की योजना

ठाकुर जी ने कहा, “अगली बार गाड़ी लेकर आना, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।” इस पर रामदास जी बोले, “प्रभु, मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ और आप तो नव-किशोर हैं। मैं आपको कैसे उठा पाऊँगा? और फिर हर रात आपके मंदिर के बाहर ताला भी लग जाता है। यह कैसे संभव होगा?” प्रभु मुस्कुराए और बोले, “मैं मंदिर के पीछे की खिड़की खोल दूँगा। तुम मुझे वहाँ से ले जाना। मैं तुम्हारे लिए फूल जैसा हल्का हो जाऊँगा। तुम बस अगली बार गाड़ी ले आना, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”

अगली बार रामदास जी ठाकुर जी को ले जाने के लिए बैलगाड़ी लेकर आए। सब लोग देख रहे थे कि यह तो हर बार पैदल और नंगे पैर आते थे, लेकिन इस बार वे गाड़ी से आए हैं। लोग सोचने लगे कि शायद वे बूढ़े हो गए हैं, इसलिए बैलगाड़ी से आए होंगे। रामदास जी मंदिर के पीछे गए, जहाँ ठाकुर जी ने पहले से ही खिड़की खोल दी थी। ठाकुर जी ने अपना पूरा श्रृंगार और गहने पहन रखे थे। उन्होंने रामदास जी से कहा, “मुझे अपने साथ ले चलो।”

रामदास जी ने निवेदन किया, “प्रभु, आप ये सारे गहने उतार दीजिए। यह सब आपके पुजारियों के काम आ जाएगा। और मुझे तो वैसे भी आपको ले जाने में डर लग रहा है। कृपया अपने आभूषण यहीं छोड़ दीजिए।” भगवान ने सारे आभूषण उतारकर मंदिर में फैला दिए। इसके बाद उन्होंने कहा, “अब मुझे अपनी गोद में ले लो।” ठाकुर जी फूल जैसे हल्के हो गए थे। रामदास जी ने उन्हें गोद में उठाया और बैलगाड़ी में बिठा लिया। फिर वे डाकोर की ओर चल दिए।

ठाकुर रणछोड़ जी हुए गायब – पुजारियों ने किया रामदास जी का पीछा

ठाकुर रणछोड़ जी हुए गायब

जब रणछोड़ जी के पुजारियों ने अगले दिन मंदिर खोला, तो देखा कि मंदिर में हर जगह आभूषण फैले हुए थे और ठाकुर जी वहाँ नहीं थे। उन्होंने खुली हुई खिड़की देखी और समझ गए कि ज़रूर वह बैल गाड़ी वाला भक्त ही ठाकुर जी को ले गया होगा। सभी पुजारी घोड़ों पर सवार होकर और भाला-बरछी लेकर ठाकुर जी को ढूँढने निकल पड़े। उन्होंने रामदास जी को ढूँढ लिया और उनका पीछा करने लगे। रामदास जी ने ठाकुर जी से कहा, “प्रभु, ये तो हमारा पीछा कर रहे हैं, अब हम क्या करें?”

पास ही एक तालाब था। ठाकुर जी ने रामदास जी से कहा, “मुझे इस तालाब में छुपा दो।” रामदास जी ने ठाकुर जी को तालाब में छुपा दिया। ठाकुर जी के पुजारी उन्हें ढूँढते हुए रामदास जी के पास आए और उनसे ठाकुर जी के बारे में पूछने लगे। जब रामदास जी ने कुछ नहीं बताया, तो वे उन्हें भालों से मारने लगे।

ठाकुर रणछोड़ जी ने रामदास जी के घाव ख़ुद पर लिए

रणछोड़ जी ने रामदास जी के घाव ख़ुद पर लिए

जब पुजारियों की नजर तालाब की तरफ पड़ी, तो वहाँ से ख़ून बहता हुआ दिखा। वे सभी दौड़ते हुए तालाब की ओर गए। उन्होंने देखा कि ठाकुर जी जल में खड़े थे और उनके शरीर पर भालों के घाव थे, जिनसे ख़ून निकल रहा था। पुजारियों ने ठाकुर जी से वापस चलने को कहा। ठाकुर जी ने उनसे कहा, “तुम जैसे निर्दयी लोगों के साथ मैं वापस नहीं चलूँगा, मैं तो रामदास जी के साथ जाऊँगा।”

पुजारियों ने ठाकुर जी से कहा, “प्रभु, आपकी वजह से जो धन राशि मिलती है, उसी से हमारा जीवन चलता है।” ठाकुर जी ने उत्तर दिया, “बस धन की ही बात है ना? रामदास जी, तुम सबको मेरे वजन के बराबर सोना दे देंगे।” सारे पुजारी यह सुनकर खुश हो गए और इस प्रस्ताव पर राज़ी हो गए। यह सुनकर रामदास जी बोले, “अरे प्रभु, एक तो आपने वैसे ही मुझे पिटवाया, और अब कह रहे हो कि मैं इन्हें सोना दे दूँ। मेरे पास सोना कहाँ है? मैं तो गरीब हूँ।” प्रभु ने सबको डाकोर चलने को कहा।

रणछोड़ जी की लीला: सोने का तौल

रणछोड़ जी की लीला

रामदास जी आगे-आगे ठाकुर जी को बैल गाड़ी में लेके चले, और ठाकुर जी के पुजारी अपने घोड़ों पर उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। डाकोर पहुँचने के बाद, ठाकुर जी ने रामदास जी से कहा कि एक तराज़ू ले आओ और उसकी एक तरफ सारा सोना रख दो। ठाकुर जी खुद तराज़ू के एक तरफ बैठ गए। रामदास जी ने कहा, “प्रभु, हमारे पास तो सोना है ही नहीं।” ठाकुर जी ने कहा, “तुम्हारी पत्नी की एक छोटी-पतली सी नथ सोने की है, उसे ले आओ, मैं उसी में तुल जाऊँगा।”

जैसे ही रामदास जी ने वह सोने की नथ तराज़ू के दूसरे पलड़े में रखी, तो वह पलड़ा भारी हो गया। ठाकुर जी ने अपने पुजारियों से कहा, “सोना तो मेरे वजन से बहुत ज़्यादा है, लेकिन रामदास जी उदार हैं, तुम यह सारा सोना ले जाओ।” पुजारियों ने उनसे कहा, “प्रभु, हमारे साथ ऐसा न करें।” ठाकुर जी ने उत्तर दिया, “मैं रामदास जी को छोड़कर जाने वाला नहीं हूँ।” तब प्रभु ने अपना दूसरा स्वरूप प्रकट किया और अपने पुजारियों को साथ ले जाने के लिए दिया। श्री रणछोड़ जी रामदास जी के घर में ही विराजे।

इस प्रसंग में भक्ति का प्रताप प्रकट होता है। भक्त के शरीर पर पड़ी चोट को प्रभु ने अपने ऊपर ले लिया। रामदास जी भगवान को एक डाकू की तरह लूट लाए थे, इसलिए उनके गाँव का नाम डाकोर पड़ा। आज भी श्री रणछोड़ भगवान को इस घटना की याद में पट्टी बाँधी जाती है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज रणछोड़ जी और रामदास जी की कहानी सुनाते हुए

Related Posts

Copyright @2024 | All Right Reserved – Shri Hit Radha Keli Kunj Trust | Privacy Policy

error: Copyrighted Content, Do Not Copy !!