नाम जप की महिमा: रैदास जी (रविदास जी) की कहानी

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
रैदास जी की कहानी

रैदास जी के सामने एक कठौता (लकड़ी का एक बरतन) रखा रहता था। वे अपना सारा कार्य उसी से करते थे। और उसी से बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्रकट होती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि हर कार्य करते हुए उनका नाम जप चलता था। बड़े-बड़े योगियों को आश्चर्यचकित कर देने वाली सिद्धियाँ उसी कठौते के जल से प्रकट होती थी। उनका मन निरंतर भगवदाकार रहता था।

रैदास जी की विनम्रता

Raidas Ji challenged by a pandit

एक पंडित जी ने रैदास जी से कहा, अरे आप बड़े भक्त बनते हैं, कभी-कभी तो गंगा नहाने चला करो। रैदास जी ने कहा, आपके पास तो समय है, आप रोज़ गंगा जी जाते हैं। मेरी तो इतनी सेवाएँ हैं कि मुझे जाने को नहीं मिलता। क्या आप गंगा जी को यह दो केले देकर मेरा प्रणाम कह सकते हैं? पंडित जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे कहने पर भी गंगा जी के दर्शन करने नहीं चलते और केले दे रहे हैं, न जाने कैसे भक्त हैं। पंडित जी केले लेकर गंगा जी गए। वहाँ स्नान करने के बाद उन्होंने कहा, गंगा जी, रैदास जी ने यह दो केले आपके लिये भेजे हैं। यह सुनते ही केले लेने के लिए गंगा जी के हाथ प्रकट हो गये और उन्होंने वो केले अपने हाथों से स्वीकार किए। गंगा जी ने एक स्वर्ण का चूड़ा पंडित जी को दिया और उसे रैदास जी को देने के लिए कहा। पंडित जी के मन में लालच आ गया और उन्होंने वो चूड़ा अपने पास रख लिया। अब वो जिस भी गली से जाते, अंत में रैदास जी के दरवाज़े पर आकर ही रुकते। यह चमत्कार निरंतर नाम जप का था।

कठौते के जल का प्रभाव: रैदास जी और गुरु गोरखनाथ जी के बीच का क़िस्सा

रैदास कबीरदास कमाली जी

एक बार गुरु गोरखनाथ जी कबीरदास जी के कहने पर रैदास जी से मिलने आये। रैदास जी ने उन्हें अपने कठौते से उनके खप्पर में पीने के लिए पानी दिया। गोरखनाथ जी ने देखा कि वो उसी कठौते से चमड़े को धो रहे थे। उन्होंने वो जल नहीं पिया और अपना खप्पर लेकर वापस कबीरदास जी के यहाँ गए। उन्होंने अपना खप्पर कबीर दास जी की पुत्री, कमाली जी, को दिया और वह जल फेंकने को कहा। कमाली जी को रैदास जी की स्थिति ज्ञात थी तो उन्होंने उस खप्पर का सारा जल पी लिया।

कुछ समय बाद कमाली जी की शादी हो गयी। काफी समय बाद एक दिन गोरखनाथ जी घूमते-घूमते उनके शहर में पहुँचे। गुरु गोरखनाथ जी ने कहा क्या कोई ऐसा है, जो मेरे इस खप्पर को भर पाए? जो इसे भर देगा, मैं उसी के घर पर भोजन ग्रहण करूंगा। जैसे ही कोई उसमें राशन डालता था, तो वह खप्पर सारा राशन खा जाता। लोगों ने खप्पर में बहुत राशन डालने की कोशिश की, लेकिन सारा राशन तुरंत खाली हो जाता। जब कमाली जी ने यह सुना तो उन्होंने गोरखनाथ जी को अपने यहाँ आमंत्रित किया। गोरखनाथ जी ने अपना खप्पर आगे किया और कहा , “इसे भर दो “। कमाली जी ने एक मुट्ठी अन्न लिया और उनके खप्पर में डाल दिया और उनका खप्पर भर गया।

तब गोरखनाथ जी ने उनसे पूछा , तुमने यह चमत्कार कहाँ से सीखा। कमाली जी ने कहा यह सब रैदास जी के उस कठौते के जल का ही कमाल है जिसे आपने चमड़ा भिगोने वाला पानी समझा था। गोरखनाथ जी हैरान हो गए और उन्हें वह पानी न पीने का पछतावा हुआ। उसी समय गोरखनाथ जी रैदास जी के पास गए और उनसे पानी पिलाने का आग्रह किया। रैदास जी ने उन्हें जल दिया और कहा, अब तो यह जल चमड़े का ही रहेगा, उस समय बात अलग थी।

रैदास जी के कठौते का चमत्कार

रैदास जी ने कठौते से पानी दिया और राजा ने इसे अस्वीकार कर दिया

ऐसे ही रैदास जी ने एक राजा को अपने कठौते से जल दिया। उस राजा ने उसे घृणित समझते हुए, उसे पीने का नाटक किया और उसे अपने वस्त्रों में बहा दिया। जब धोबी ने वह कपड़े धोने से पहले अपने दांत से उनमें से कुछ निकालने की कोशिश की तो उस जल के पान से उसे दिव्य प्रकाश और आनंद की अनुभूति हुई। वो विकल हो गया और उसके अश्रु बहने लगे। उस कठौते के जल में ऐसा क्या चमत्कार था? रैदास जी हर समय नाम जप करते हुए अपनी सारी सेवाएँ करते थे, इसलिए वह कठौता दिव्य हो गया था।

राम बिन संशय गाँठि न छूटै
काम क्रोध मद मोह माया, इनि पंचनी मिलि लूटै

रैदास जी
यदि भगवान के नाम का जाप नहीं है, तो चाहे कुछ भी साधन कर लो, पर संशय की गाँठ नहीं छूटेगी।

रैदास जी को काशी के विद्वानों की चुनौती

काशी के बड़े-बड़े विद्वानों ने निर्णय किया कि रैदास जी को दंड दिलाया जाए क्योंकि वो चमड़े का अपवित्र कार्य करने के बाद भी ठाकुर जी की सेवा करते हैं। उन्होंने वहाँ के राजा के कान भर दिए कि जिस राज्य में ऐसा अपवित्र कार्य होता है और जहाँ अनधिकारी पुरुष ठाकुर सेवा करता है, वहाँ अकाल पड़ जाता है। इसके बाद रैदास जी को राजा द्वारा बुलाया गया।

रैदास जी को काशी के विद्वानों ने चुनौती दी

राजा ने उनसे कहा, आपको ठाकुर सेवा का अधिकार नहीं, पर फिर भी आप शास्त्रीय पद्धति से उनकी सेवा करते हैं, इससे हमारे राज्य में अकाल पड़ जाएगा। रैदास जी बोले, ठाकुर जी ही मुझसे सेवा चाहते हैं, अब इसमें मैं क्या करूँ? राजा ने कहा, बस बातें बनाने से काम नहीं चलेगा, इसका प्रमाण क्या है? रैदास जी ने कहा मैं अपने ठाकुर जी को विराजमान करता हूँ, आप बुला लो, अगर वो आपकी गोद में आ जाएँ तो मान लेंगे कि आप विद्वान जन जो कह रहे हैं वो ठीक है। और अगर मेरे बुलाने से ठाकुर जी आ जाए, तो मान लेना कि ठाकुर जी मेरी सेवा स्वीकार करते हैं। सभी ब्राह्मणों ने राजा के सामने इसे स्वीकार कर लिया। अब सब ब्राह्मण वेदों के मंत्र पढ़कर ठाकुर जी को बुलाने लगे, लेकिन ठाकुर जी किसी के पास नहीं आए।

ध्रुवदास जी ने लिखा है कि भक्तों की प्रेममय पुकार से जितना प्रभु प्रसन्न होते हैं, उतना वेद मंत्रों से नहीं होते। जब रैदास जी ने अश्रु प्रवाह करते हुए ठाकुर जी को पुकारा, तो ठाकुर जी सिंहासन सहित आकर उनकी छाती से लग गए। यह देखकर सब ब्राह्मण हैरान रह गए और उन्होंने कहा, नहीं-नहीं ऐसा नहीं है। यह इनके ठाकुर जी हैं इसलिए ऐसा हुआ। हम अपने ठाकुर जी लाते हैं, फिर देखते हैं। रैदास जी इसके लिए भी राज़ी हो गए लेकिन दोबारा वैसा ही हुआ, रैदास जी ने पुकारा और ठाकुर जी उनके पास आ गए।

नाम जप का महत्व

जब तक जीवन में भगवान के नाम का जप नहीं है, जब तक प्रभु के प्रति भाव नहीं है, तब तक कोई सिद्धांत ठाकुर जी को अधीन नहीं कर सकता। चाहे आप जितनी बड़ी साधना ही क्यों ना कर लें। आपकी सारी साधना को काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार लूटते रहते हैं। साधक को पता भी नहीं चलता और वो भीतर से ख़ाली बना रहता है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज श्री रैदास जी का चरित्र सुनाते हुए

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