प्रताप राय जी एक बहुत बड़े भक्त थे। उनका कुल परंपरा से क़र्ज़ देने का व्यापार था। लोग उनके वहाँ स्वर्ण आभूषण आदि रख कर पैसे ले जाते और बाद में ब्याज सहित मूल धन देकर अपने आभूषण वापस ले जाते। प्रताप राय जी निरंतर नाम जप और भगवद् आराधना में मग्न रहते थे। धर्म और ईमानदारी से व्यापार करने से उन्हें बहुत धन और संपत्ति प्राप्त हुई। वो उससे संतों की सेवा और भंडारे आदि आयोजित करते थे। उनका बढ़ता यश देखकर लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे और मिलकर उनके विरुद्ध योजना बनाने लगे। भगवान ही लोगों के हृदय में जलन उत्पन्न करके अपने भक्त की परीक्षा लेते हैं। वहाँ के क़ाज़ी और तीन और लोगों ने मिलकर प्रताप राय जी को नष्ट करने का निश्चय किया।
अगले दिन उनमें से एक व्यक्ति उनके वहाँ क़र्ज़ लेने गया। उसने पत्थरों से भरी एक झोली देकर कहा कि उसे उसकी बेटी की शादी के लिए दस हज़ार मुद्राएँ चाहिएँ। प्रताप राय जी ने जब कुछ गिरवी रखने के बारे में पूछा तो उसने वही झोली दिखाते हुए इशारा किया कि इसमें स्वर्ण आभूषण हैं। प्रताप राय उस पर विश्वास करते हुए बोले “सामने पड़े बक्से में ये झोली रखकर धन ले जाओ और ब्याज़ सहित वापिस करके वहीं से झोली ले जाना।” थोड़ी देर बाद दो और लोग आए और ऐसे ही कंकड़ों से भरी झोली के बदले प्रताप राय जी से स्वर्ण मुद्राएँ ले गये।
प्रताप राय जी के विरुद्ध षड्यंत्र
पाँच दिन बाद तीनों एक-एक करके वापिस आये और ब्याज़ सहित धन लौटाने लगे। प्रताप राय जी ने धन लेकर उन्हें वहीं उस बक्से से अपनी-अपनी झोली ले जाने को कहा। झोली में कंकड़ ही भरे थे। पहला आदमी चिल्ला कर प्रताप राय जी पर आरोप लगाने लगा “ अरे देखो! यह माला पकड़े कैसा भक्त बनने का नाटक करता है। मेरी झोली से आभूषण निकाल कर कंकड़ पत्थर भर दिये।”लोग यह सुनकर आश्चर्यचकित होने लगे। इतने में बाक़ी दोनों भी आकर अपनी-अपनी झोली में पड़े कंकड़ पत्थर सबको दिखाने लगे। वहाँ हाहाकार मच गया। तीनों की बातें सुनकर अब सब को पक्का हो गया कि प्रताप राय जी तो सच में पाखंडी हैं और सब का विश्वास उन पर से उठ गया।
तभी वहाँ का क़ाज़ी जिसने मिलकर ये योजना बनायी थी, बादशाह के पास गया और प्रताप राय को दंड दिलाने की बात रखने लगा। हुक्म हुआ कि प्रताप राय जी को बंदी बना लिया जाये और उनकी सारी संपत्ति ज़ब्त कर ली जाए। प्रताप राय जी संपत्ति ज़ब्त होने की बात जानते ही अपनी पत्नी से बोले “ठाकुर जी को लेकर अपने मायके भाग जाओ। उनका भोग पूजा आदि नहीं रुकना चाहिए, उनको बचाओ। हम तो जेल में जैसा कष्ट आया भोग लेंगे।” प्रताप राय जी की पत्नी ने ऐसा ही किया।
बादशाह के सैनिकों ने प्रताप राय जी की सारी संपत्ति ज़ब्त कर ली और उन्हें बंदी बनाकर जेल में डाल दिया। कुछ लोगों ने बादशाह को बताया कि इन्होंने अपनी पत्नी और ठाकुर जी को मायके भिजवा दिया है। उनके ठाकुर जी की मूर्ति अष्ट धातु की है और बड़ी महँगी है, इसलिए प्रताप राय ने पत्नी को उसे ले जाने को कह दिया। बादशाह ने उनकी पत्नी को मायके से ठाकुर जी सहित बंदी बना लाने का भी आदेश दे दिया।
प्रताप राय जी को जेल में हुआ प्रभु का साक्षात्कार
सैनिकों ने उनकी पत्नी को भी जेल में डाल दिया और ठाकुर जी को (संपत्ति मानकर) बाक़ी सामान के साथ गोदाम में बंद कर दिया। प्रताप राय जी अपनी पत्नी को हथकड़ियों में देख सब समझ गये। वह एकांत होकर भगवान से प्रार्थना करने लगे “प्रभु आज तक ना आप से कुछ माँगा और ना ही कोई शिकायत की। पर आज आपको गोदाम में बंद कर दिया गया है जहाँ हम आपको ना तो भोग लगा सकते हैं और ना ही आपकी कोई सेवा कर सकते हैं। हम आपको अपने प्राणों से अधिक प्यार करते हैं और आपको हो रहा ये कष्ट सह नहीं पा रहे। कुछ उपाय कीजिए जिससे आपको भोग लगना ना रुके, अन्यथा मैं जीवित नहीं रह पाऊँगा। अगर आपके भोग की व्यवस्था यहीं हो जाये तो चाहे हमें आजीवन जेल में रखिए, हमें कोई कष्ट नहीं।”
भगवान प्रताप राय जी का भाव देख बहुत प्रसन्न हुए कि इस स्थिति में भी इसे मेरी चिंता है। पत्नी सहित बंदी बना लिए गये, इतना अपमान हुआ और सारी संपत्ति ज़ब्त हो गई, फिर भी मेरे भोग की चिंता है। तत्काल भगवान ने उन का समर्पण देखते हुए अपना साक्षात्कार उन्हें कराया (प्रभु ने उन्हें जेल में दर्शन दिए)।
बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
रामचरितमानस
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ॥
तब महादेव जी ने हँसकर कहा – न कोई ज्ञानी है न मूर्ख। रघुनाथ जब जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है॥
वहाँ का एक ज़मींदार प्रताप राय जी के समर्थन में बादशाह के सामने आया और बोला “प्रताप राय जी के प्रति कोई पाखंड रचा गया है। वो ऐसा कभी कर ही नहीं सकते। उन तीनों की सही से दोबारा जाँच होनी चाहिए।” बादशाह ने तीनों को धमकी देते हुए कहा कि अगर सत्य नहीं बोलोगे तो फाँसी पर चढ़ा देंगे। तीनों ने बताया कि झोली में कंकड़ उन्होंने स्वयं रखे थे और ये सब क़ाज़ी की ही योजना थी। बादशाह ने तत्काल क़ाज़ी को दंड दिया और उन तीनों को बंदी बनाने का आदेश किया। साथ ही प्रताप राय जी को पूरे नुक़सान सहित सब अर्थ और संपत्ति वापिस लौटायी गई और बड़े सम्मान सहित उन्हें रिहा किया गया।
निष्कर्ष
भक्त के जीवन में भगवान ऐसी विपत्ति की लीला अपना साक्षात्कार कराने के लिए ही रचते हैं। प्रताप राय जी और उनकी पत्नी दोनों को जेल में ही भगवद् साक्षात्कार हुआ। इसलिए साधक को कितनी भी कष्ट भरी परिस्थिति आए, वो अंत में आनंद का ही कारण बनेगी।
इसलिए जैसे प्रताप राय जी ने अपनी बात केवल प्रभु के सामने ही रखी, वैसे ही हमें भी सब कुछ सहते हुए भगवान के सिवा किसी और से सहयोग नहीं माँगना चाहिए। हमें कष्ट की स्थिति में मन को केवल भगवान की तरफ़ मोड़ना चाहिए न कि संसार की तरफ़। जब आर्त होकर अनाथ भाव से प्रभु को पुकारा जाये तो वो भक्त को अपना साक्षात्कार कराने स्वयं आते हैं।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज