परिवार में नकारात्मकता और घर में कलह जैसी चीज़ें हर घर में होती हैं। यह केवल आपके साथ ही नहीं हो रहा है। यह एक सामान्य समस्या है। जब तक शास्त्रों का स्वाध्याय, अच्छा आचरण, भगवान के नाम का जप और दूसरों के प्रति सम्मान नहीं होगा, तब तक हर घर में कलह बनी रहेगी। माता-पिता का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन उनका अनादर किया जा रहा है। कुछ माता-पिता भी बच्चों की भावनाओं का आदर नहीं करते। कुछ पिता तो ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों के पालन-पोषण के बजाय उनका शोषण करते हैं। आज हर घर धर्म-विरोधी आचरण के कारण बर्बाद हो रहा है। ऐसा घर मिलना दुर्लभ है जिसमें पति-पत्नी के बीच प्रेम हो, पिता-पुत्र के बीच प्रेम हो, भाई-भाई के बीच प्रेम हो। सब जगह केवल अशांति ही अशांति है।
परिवार में कलह क्यों होती है?
जहाँ हमारे सुख में बाधा आती है, वहीं कलह होती है। हमें स्वयं को शांत करना सीखना चाहिए। यदि हम दूसरों को शांत करने का प्रयास करेंगे तो इससे क्रोध बढ़ेगा और कलह और भी बढ़ेगी। यदि हम स्वयं को शांत करना सीख लें तो कलह से बच सकते हैं। हम कलह को दूर नहीं कर पाते क्योंकि हमारी बुद्धि अशुद्ध होती जा रही है। हमारे युवा जिन ग़लत आचरणों में उलझ रहे हैं, उनके कारण वे आदर्श गृहस्थ नहीं बन पाएँगे। हमारी वृत्ति हमें अनजाने में गलत आचरणों की आदत डाल रही है। आज एक प्रेमी बनाया, फिर कुछ दिन बाद ब्रेकअप किया और फिर किसी और के साथ चल दिये। जब हम इन प्रबल प्रवृत्तियों के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं, तो यह हमें शांति से नहीं रहने देतीं। क्या ऐसा घर कलह से भरा होगा या शांतिपूर्ण होगा? वह घर केवल असंतोष से भरा होगा।
मन में कलह
हमारी मांगें और इच्छाएँ बढ़ गई हैं, और हमारा प्रेम एक जगह केंद्रित नहीं है; इसलिए, अशांति होना निश्चित है। इन सब से केवल वही लोग बच पाते हैं जो धर्म का पालन करते हैं। ऐसे लोग रोज़ नाम जपते हैं, संतों का सत्संग सुनते हैं, और शास्त्रों का स्वाध्याय करते हैं। हमारे बाहर ही नहीं, बल्कि हमारे मन में भी कलह मची हुई है। हमारा मन हमें सुखों की ओर खींच रहा है। आप स्वयं जाँच करें कि क्या आपका मन शांत है?
कलह से मुक्त होने का अर्थ है की विचारों में टकराव ना होना, कोई इच्छा ना होना, संतुष्ट और आनंदित महसूस करना। लेकिन यह न तो हमारे शरीर के भीतर है और न ही बाहर। यह तभी हो सकता है जब हम धर्म का पालन करें, भगवान की शरण लें, नाम जप करें और सही आचरणों से चलें। यदि हमारा शरीर अशुद्ध रहेगा, तो हमारी इन्द्रियाँ और मन अशुद्ध रहेंगे। यदि हमारी इन्द्रियाँ और मन अशुद्ध रहेंगे, तो हमारे विचार अपवित्र रहेंगे। अब जब विचार गंदे होंगे, मन गंदा होगा, इन्द्रियाँ गंदी होंगी और शरीर अशुद्ध होगा, तो हमें शांति और सुख कैसे मिलेगा? तब हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा और कटु हो जाएगा।
अपना जीवन सुधारें और बच्चों को सही शिक्षा दें
हमारे हृदय जल रहे हैं। राधा राधा जपें और अपने बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें अच्छे आचरण करने की शिक्षा भी दें। इससे वे भविष्य में अच्छे गृहस्थ बनेंगे। अन्यथा, सही शिक्षा से वंचित बच्चे अहंकार में फँस जाते हैं। जब माता-पिता अपने बच्चों को भजन करना नहीं सिखाते, तो वे शास्त्रों के नियमों का पालन नहीं करते, जिससे उनमें ईर्ष्या और बेचैनी जैसे अवगुण आ जाते हैं। उनके जीवन में अव्यवस्था पैदा हो जाती है। जीवन को व्यवस्थित रूप से जीने के लिए नाम जप, शास्त्रों का स्वाध्याय और सत्संग जरूरी है।
सभी के हृदय में प्रभु विराजमान है। उनकी पूजा करना भी उतना ही आवश्यक है। सबमें अपने प्रभु को देखते हुए सबकी सेवा करें। लेकिन यह मुश्किल है क्योंकि आजकल गंदे आचरण बढ़ गये हैं। छोटे बच्चे नशे में धुत्त रहते हैं, उनका मन आगे चलकर उन्हें सही निर्णय कैसे लेने देगा? त्यौहारों के समय, बच्चे सड़क पर शराब के नशे में घूमते रहते हैं। क्या यह त्यौहार मनाने की सही विधि है? त्यौहार का मतलब होता है कि लोग एक साथ बैठकर नाम जप करें और भगवान को अर्पित प्रसाद खाएं। इससे बुद्धि और जीवन शुद्ध होता है। आजकल राक्षसी व्यवहार बढ़ता जा रहा है। शराब पीना, सड़कों पर आतंक मचाना और बदतमीजी करना अब आम बात है। यह सब हमारे समाज को गलत दिशा में ले जा रहा है।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज