अवैध संबंध: पाप, सजा, प्रायश्चित और कैसे बचें?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अवैध संबंध: पाप, सजा, प्रायश्चित और कैसे बचें?

पराई स्त्री या पुरुष से अवैध संबंध – शास्त्रों में महापाप और उसकी सजा

श्रीमद्भागवत में स्पष्ट रूप से लिखा है कि परस्त्री गमन महापाप है। जो पुरुष पराई स्त्री से या स्त्री पराए पुरुष से संबंध बनाते हैं, उन्हें कल्पों तक गर्म लोहे की मूर्ति को आलिंगन करना पड़ता है।
1 कल्प = 4.32 अरब वर्ष

यातना देह ( नर्क में मिलने वाला शरीर) में कभी नष्ट नहीं होता। उसे मृत्यु नहीं आती परंतु पीड़ा मानव शरीर जैसी होती है और यह कल्पों तक चलती रहती है। ये मज़ाक नहीं, शास्त्रों का वचन है।

पति बंचक परपति रति करई। रौरव नरक कल्प सत परई॥

उपर्युक्त दोहा रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है, जिसका अर्थ है कि जो स्त्री अपने पति को धोखा देती है, वह सौ कल्प तक रौरव नरक में गिरती है।

पराई स्त्री या पुरुष से अवैध संबंध से कैसे बचें?

यदि किसी को ऐसा पति या पत्नी मिले जो अपंग है, अंधा है या सुंदर नहीं है — तो उसे अपने प्रारब्ध का फल मानना चाहिए। पति-पत्नी को एक-दूसरे को भगवान मानकर आराधना-पद्धति से गृहस्थ संबंध निभाना चाहिए; यही धर्म है।

अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से व्यभिचार करे – तो उसे नरक की प्राप्ति निश्चित है। उसकी ऐसी दुर्गति होती है कि कल्पों तक वह छूट नहीं पाता।

पराई स्त्री या पुरुष से अवैध संबंध का प्रायश्चित क्या है?

यदि अवैध संबंध बनने की गलती हो गई है, तो उसके प्रायश्चित के लिए आपको —

  • उसे स्वीकार करना चाहिए
  • नाम-जप और गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए
  • दृढ़ नियम लेना चाहिए कि वही गलती दोबारा न हो

यदि पुनः वही कर्म किया गया, तो पिछली सज़ा ब्याज सहित जुड़ जाएगी। फिर कोई भी आपको बचा नहीं सकता।

निष्कर्ष

यह किसी पर आरोप नहीं, बल्कि आत्ममंथन का दर्पण है। पाप से बचो, धर्म के पथ पर चलो, शास्त्र का आदर करो, और जीवन को प्रभु की ओर मोड़ दो।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज अवैध संबंध बनाने के पाप की सजा पर मार्गदर्शन करते हुए

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