निरंतर नाम जप कैसे करें?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
निरंतर नाम जप कैसे करें?

निरंतर साधना अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह नाम जप हो, चाहे आंतरिक रूप से श्री चतुरासी जी का गायन हो, या फिर कोई भगवद् विचार मन में आ रहा हो। किंतु जैसे ही इस निरंतरता में बाधा आती है, माया की धूल अंतःकरण पर ऐसी जम जाती है कि उसे हटाने में बहुत समय लगता है, जबकि मन को मलिन करने में कोई समय नहीं लगता।

इसलिए उपासक को निरंतरता बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। भले ही कभी-कभी कुछ क्षणों का अंतराल आ जाए—चाहे वह दस सेकंड हो या बीस सेकंड—परंतु यदि एक बार “राधा राधा” जप लिया जाए, तो यह एक श्रेष्ठ साधन बन जाता है। हमने तो यह भी कहा है कि यदि पूरे 24 घंटे नहीं जप सकते, तो कम से कम 24 मिनट तो जप लें। फिर धीरे-धीरे यह बढ़ाकर दो घंटे कर सकते हैं। यह केवल प्रेरणा देने के लिए कहा गया है, परंतु वास्तव में लाभ निरंतर जप में ही है।

जब अंत में हमारे हृदय में नाम प्रकाशित हो जाता है और उसके दर्शन एवं श्रवण का आनंद मिलने लगता है, तब यह शरीर कब छूट गया, इसका भी पता नहीं चलता। नाम-जप में इतनी गहराई होती है कि मनुष्य उसमें पूरी तरह डूब जाता है। यह स्थिति स्वाभाविक रूप से तब आती है जब साधक को कृपा से अनुभव होने लगता है कि अब वह केवल नाम ही सुन रहा है, नाम ही देख रहा है, और उसका स्वयं का अस्तित्व विलीन हो गया है।

निरंतर नाम जप और आश्रय

निरंतर नाम जप और आश्रय

निरंतरता अत्यंत लाभदायक है, क्योंकि यह आपको अंतर्मुखी बना देती है और भगवद् भाव में डुबो देती है। जब साधक अपने पुरुषार्थ से निरंतर भजन करने का प्रयास करता है और साथ ही भगवद्-आश्रय लेता है, तब यह अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है। अन्यथा, बिना आश्रय के साधन में प्रपंच बढ़ता जाता है, और ज्यादा साधन करने से भी अधिक लाभ नहीं होता।

“राधा राधा”, “राम”, “हरि”, “कृष्ण”—भगवान के जो भी नाम हैं, उनकी निरंतरता बनाए रखें। कुछ समय के लिए मन को यह कठिन लगेगा, क्योंकि चंचल मन और मलिन प्रवृत्ति को भगवद-चिंतन में लगाना सहज नहीं होता। लेकिन अभ्यास में अपार शक्ति होती है।

यदि आप वाचिक जप का अभ्यास करें, तो धीरे-धीरे उपांशु जप (वह जप जिसमें जिह्वा, होंठ, तालु, कंठ का प्रयोग तो हो किंतु ध्वनि जापक को स्वयं को भी न सुनाई दे) में प्रवृत्त हो जाएंगे। जब उपांशु में एकाग्रता बढ़ेगी, तो मानसिक जप (वह जप जिसमें नाम या मंत्र का उच्चारण बोलकर करने की जगह मन में ही किया जाता है) स्वाभाविक रूप से प्रारंभ हो जाएगा। लेकिन जब तक मानसिक जप सिद्ध न हो जाए, तब तक उस पर पूर्ण विश्वास न करें, क्योंकि मन अभी भी स्थिर नहीं है। भगवद्-भजन में मन लगता है, फिर हट जाता है। यदि माया की हल्की-सी भी हवा आ गई, तो हमारी स्थिति बिगड़ सकती है। इसलिए शुरुआत में मानसिक जप पर पूर्ण विश्वास न करें।

भगवद्-आश्रय और साधना

भगवद्-आश्रय और नाम जप की साधना

भगवद-आश्रय हमारी स्थिति को बिगड़ने नहीं देता, और पुरुषार्थ हमें असाधन की ओर जाने से रोकता है। लौकिक सामग्री और क्रियाएं केवल जीवन जीने के लिए हैं, लेकिन सत्संग और नाम जप जीवन का परम लाभ है। मनुष्य-जीवन में भजन किया जाए, तो इसी जन्म में मुक्ति संभव है।

भगवान अत्यंत करुणामय हैं। उनकी करुणा हर समय बरस रही है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। हमें केवल नाम जप नहीं छोड़ना चाहिए। हमारी यही प्रार्थना है कि “राधा राधा” निरंतर आपके कानों तक पहुँचे, और जितने लोग इस नाम-कीर्तन को सुनेंगे, उन्हें भी परम लाभ होगा। साथ ही, आप पर भी श्री जी की विशेष कृपा होगी।

इंद्रियों का सार्थक उपयोग

राधा नाम जप

भगवान ने हमें आँखें दी हैं—सोचिए यदि वे न होतीं, तो कैसा लगता? भगवान ने हमें कान दिए हैं—यदि वे न होते, तो हम भगवद् चर्चा कैसे सुनते? यदि जिह्वा न होती, तो नाम जप कैसे कर सकते? यह सब ईश्वर की देन है, और हमें इनका सार्थक उपयोग करना चाहिए।

इसलिए, निरंतरता बनाए रखें, चाहे जैसे भी संभव हो। कभी राधा-नाम चल रहा हो, कभी शरणागत मंत्र, कभी निज मंत्र, कभी चतुरासी जी का पद गायन—लेकिन निरंतरता बनी रहनी चाहिए। जैसे-जैसे साधन में निरंतरता बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे साधक दिव्यता को प्राप्त करता जाएगा।

निरंतर नाम जप के लिए मन को कैसे नियंत्रित करें?

निरंतर नाम जप के लिए मन को कैसे नियंत्रित करें?

निरंतरता बनाए रखना थोड़ा कठिन है, क्योंकि मन विषयों की ओर भागता है और उनमें सुख का अनुभव करता आया है। लेकिन इसे नियंत्रित करने के दो उपाय हैं—

  1. जहाँ-जहाँ मन जाए, वहाँ-वहाँ प्रभु को देखने का अभ्यास करें।
  2. जहाँ-जहाँ मन भागे, वहाँ से हटाकर उसे अपने लक्ष्य पर केंद्रित करें।
नाम जप ही इंद्रियों का सार्थक उपयोग

सत्संग मन को नियंत्रित करने में सहायता करता है। यह विषय-भोगों से वैराग्य उत्पन्न करता है और भगवद्-तत्व की जिज्ञासा बढ़ाता है। जिसके जीवन में भगवद-मार्ग की निरंतरता आ गई, उसका काम बन गया। आपको कुछ समय के लिए कठिनाइयाँ सहनी पड़ सकती हैं, लेकिन वे क्षणिक हैं। आगे केवल आनंद की धारा प्रवाहित होती है। दूसरी ओर, जगत का क्षणिक सुख अंततः क्लेश और अशांति ही उत्पन्न करता है।

इसलिए, यदि हम इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहते हैं, तो निरंतर भगवद्-भजन और सत्संग को अपनाएँ। यही वास्तविक आनंद और मुक्ति का मार्ग है।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज निरंतर नाम जप पर मार्गदर्शन करते हुए

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