शिव रूद्राष्टकम – नमामि शमीशान – शिव जी को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
शिव रूद्राष्टकम - नमामि शमीशान

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् ॥

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं, गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं, गुणागारसंसारपारं नतोहम् ॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं, मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं, भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

व्याख्या:

यह रुद्राष्टक एक ब्राह्मण (महर्षि तुलसीदास) द्वारा भगवान हर (शिव जी) को प्रसन्न करने के लिए कहा गया है। जो मनुष्य इसे भक्ति भाव से पढ़ते हैं, उन पर भगवान शंभु (शिव जी) प्रसन्न होते हैं।

रुद्राष्टकम् की रचना गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने की थी। यह स्तुति भगवान शिव जी को समर्पित है और यह तुलसीदास जी कृत “रामचरितमानस” के उत्तरकाण्ड में आती है।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

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