हमारी जन्मों की प्यास ओस चाटने से नहीं बुझेगी। हमें छककर पानी पीना पड़ेगा। इसलिए उठते-बैठते, चलते-फिरते नाम का जप करते रहो। जैसे एक डॉक्टर जब हरी, नीली, पीली दवाइयाँ देता है, तो हम यह नहीं कहते कि “हरी क्यों? नीली क्यों? पीली क्यों?” हम डॉक्टर पर विश्वास कर लेते हैं और दवा ग्रहण कर लेते हैं। ठीक वैसे ही संत, सद्गुरु और शास्त्रों पर विश्वास करो—नाम के समान कोई साधन नहीं है।
आपको जो प्रिय हो—राम, कृष्ण, हरि, शिव—आप उसी नाम का निरंतर जप करें। यदि तुरंत फल न भी मिले, तो धैर्य रखें। जैसे किसान बीज बोकर प्रतीक्षा करता है, फिर जब फसल पकती है, तब उसका आनंद लेता है। वैसे ही नाम पहले हमारे पापों का नाश करेगा, अनर्थों को दूर करेगा, और फिर आनंद उत्पन्न होगा।
तो संशय किस बात का? यह मत सोचो कि फल मिलेगा या नहीं। यह मात्र मोह है, जो हमें भ्रमित करता है। संत और सद्गुरु का आश्रय इसलिए लिया जाता है कि उनकी वाणी पर विश्वास किया जाए। जैसे यदि आप वृंदावन आए हों और कोई आपको सेवा कुंज, निधिवन, रंगनाथ जी के दर्शन कराने ले जाए, तो क्या हर गली के मोड़ पर संदेह करोगे कि “पता नहीं, कहाँ ले जा रहे हैं?” नहीं, आप मार्गदर्शक पर भरोसा करते हैं।
उसी प्रकार जब संत कहते हैं कि “नाम जप करो, मंगल हो जाएगा,” तो उन पर विश्वास रखो। अन्यथा, भटकना पड़ेगा। श्री तुकाराम जी कहते हैं कि “गुरुदेव ने मुझे नाम दिया—राम, कृष्ण, हरि—और इसी से सब कुछ प्राप्त हो गया।” पहले जब गुरुदेव नहीं मिले थे, तब साधना कठिन थी, जैसे गाँवों में चमड़े के बड़े थैले से कुएँ से पानी खींचकर खेतों में सिंचाई करनी पड़ती थी। लेकिन गुरु-कृपा और नाम जप वैसा है जैसे गंगा की धारा से जुड़ जाना—क्षणभर में पूरा खेत जलमय हो जाता है।
फिर भी लोग संदेह करते हैं—”पता नहीं, इससे लाभ होगा कि नहीं?” अरे भाई, यह कोई साधारण बात नहीं, यह तो एक महान, गुप्त रस है! राधा नाम का जप करके देखो। इसमें एक अनुपम स्वाद है, जिसे आपने अभी तक अनुभव नहीं किया।
सद्गुरु वैद्य के वचन रूपी औषधि पर विश्वास करो। यदि विश्वास नहीं करोगे, तो भटकते रहोगे। “जो श्रद्धा रखता है, वह सुधर जाता है। जो संदेह करता है, वह संसार के मार्ग में भटकता रहता है।”
राधा नाम के बल पर सब कुछ संभव है—सुख भी, आनंद भी, आत्मा का परम कल्याण भी। कुछ दिन इसे जपो और फिर देखो! वृंदावन का कण-कण राधा-राधा जप रहा है। यही ब्रज की महिमा है। राधा नाम का जप सबसे बड़ा उपाय है।
जो एक बार सच्चे हृदय से “राधा-राधा” जपता है, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप प्रभु श्री कृष्ण स्वयं मिटा देते हैं। फिर वे सोचते हैं—”इसने मेरी प्रिया का नाम लिया है, इसे मैं क्या दूँ?” वे माया नहीं देते, बल्कि अपना प्रेम, अपनी कृपा, अपनी अधीनता दे देते हैं। यह दुर्लभ रस है! यह समय है इसे अपनाने का। आज राधा नाम का प्रचार पूरे देश-विदेश में हो रहा है। पर यह वृंदावन का ही विशेष रस है। महापुरुष भी इसकी महिमा को पूर्ण रूप से नहीं जान सकते।
जो रस तीनों लोकों में और वेदों में भी दुर्लभ है, वह केवल वृंदावन में उपलब्ध है। इसी कारण यहाँ की रज, यहाँ के संत, यहाँ के बृजवासी, यह सब हमारे लिए अनमोल हैं। जो इस रस में डूब जाता है, वह सच्चा आनंद प्राप्त करता है। यही श्री राधा नाम की महिमा है। इसे जपो, इसे अपनाओ, और देखो कि आपका जीवन कैसे बदल जाता है!
राधे-राधे!
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज