कर्मचन्द और धर्मचन्द नाम के दो भाई थे। धर्मचन्द भगवत् भक्त थे और कर्मचन्द विषयी पुरुष था और शराब आदि का सेवन करता था। बड़े भई धर्मचन्द संतों से निवेदन करके उनको घर लाते, उनकी आरती करते और प्रसाद खिलाते। यह सब देखकर कर्मचन्द संतों को गाली देता। वो दुष्ट स्वभाव का था। बड़े भाई ने विचार किया कि इस दुष्ट का कैसे कल्याण होगा क्योंकि संतों को गालियाँ देने से तो दुर्गति पक्की है।
संत बड़े कृपालु होते हैं!
एक बार अयोध्या के संतों की मंडली उनके वहाँ से निकली, धर्मचन्द जी ने उनको अपने यहाँ बुलाया और उनकी आरती उतारी और प्रसाद खिलाया। इतने में शराब पीकर कर्मचन्द वहाँ आया और उन सबको गाली देने लगा। उसका कमरा ऊपर था, वो सबको गालियाँ देते हुए अपने कमरे में चला गया। संतों ने धर्मचन्द जी से कहा आप तो हमें आदरपूर्वक लाए थे, लेकिन यह कौन है? धर्मचन्द जी ने कहा महाराज जी क्षमा करें, यह मेरा छोटा भाई है, ग़लत संग से इसकी दुर्दशा हो गई है। उन्होंने पूछा, महाराज क्या इसका कल्याण हो सकता है? संतों ने कहा पक्का हो जाएगा, आप चिंता मत करो।
उनमें से एक संत हष्ट-पुष्ट थे, वो ऊपर गए, दरवाज़ा खटखटाया। कर्मचन्द ने दरवाज़ा खोला, संत भगवान समझ गये की यहाँ विनय से बात नहीं बनेगी। उन्होंने कर्मचन्द को नीचे गिराया और उसकी छाती पर चढ़ कर बैठ गए। संत ने कहा, “राम बोल”, कर्मचन्द ने कहा, “नहीं बोलूँगा”। संत ने कहा अगर राम नहीं बोला तो मैं तुम्हारा गाला दबा दूँगा, यहाँ कोई तुम्हें बचाने वाला नहीं है, राम बोल! काफ़ी देर विचार करके कर्मचन्द ने सोचा कि अब बचने का कोई और उपाय नहीं है। तो बचने के लिए उसने कहा, “राम राम”। संत उसके ऊपर से हट गए और बोले बेटा इस नाम की क़ीमत कभी मत लेना, इसे बेचना मत। कुछ दिन सारे पापों का फल कर्मचन्द को मिला, उसे जानलेवा रोग हुआ और उसकी मृत्यु हो गई।
पापी पहुँचा यमलोक, यमराज हुए हैरान!
कर्मचन्द यमराज के दरबार में पहुँचा। यमराज ने जब उसका लेखा-जोखा देखा तो केवल पाप ही पाप था, बस दो बार उसने किसी संत की कृपा से राम बोला था। यमराज ने बोला कि यह राम नाम जपना ही एक मात्र पुण्य है तुम्हारा, क्या लोगे इस राम नाम के बदले में? कर्मचन्द को उन संत की बात याद रही कि बेटा इस राम नाम के फल को बेचना नहीं। कर्मचन्द ने पूछा कि पहले तो हमें क़ीमत बताइए इस दो बार राम नाम जपने की। यमराज जी फँस गए। यमराज जी ने सोचा कि भगवान के नाम की क़ीमत लगाने से तो बहुत बड़ा अपराध बन जाएगा। उन्होंने थोड़ी देर विचार किया और सोचा देवराज इंद्र से सलाह लेते हैं।
यमराज जी ने ली देवराज इंद्र और ब्रह्मा जी से सलाह
यमराज ने देवराज इंद्र को बुलाया और उन्हें सब कुछ बताया। देवराज इंद्र ने कहा इसका निर्णय तो मैं भी नहीं कर सकता। इसका निर्णय तो भगवान ब्रह्मा जी कर सकते हैं। कर्मचन्द बहुत चतुर था, उसको भी नाम की महिमा समझ आने लगी। उसने कहा ये भयंकर रूप वाले यमदूत मेरे सामने से हटा दिये जाए। और जहाँ भी तुम्हें मुझे ले जाना हो, मैं पैदल नहीं चलूँगा, मेरे लिए पालकी बुलाई जाए। देवराज इंद्र और यमराज जी ने कर्मचन्द को पालकी में बैठाया और ब्रह्म लोक ले गए।
ब्रह्मा जी ने पूछा कि क्या पुण्य है इस जीवात्मा का कि आप दोनों स्वयं इसे पालकी में बिठाकर लाए हैं। यमराज जी ने बोला कि यह तो महान पापी है, पर इसने दो बार राम-राम बोला है और अब बोल रहा है कि उसकी क़ीमत बताओ। ब्रह्मा जी भी सर खुजलाने लगे क्योंकि राम नाम की क़ीमत वो भी कैसे ही बता दें। ब्रह्मा जी ने कहा राम नाम की महिमा को भगवान शिव जानते हैं। हम सब कैलाश चलते हैं और शिव जी से नाम की महिमा सुनते हैं। वो पापी जीवात्मा ब्रह्म लोक में सुख प्राप्त करके बहुत ही प्रसन्न था।
यमराज, देवराज इंद्र और ब्रह्मा जी गए भगवान शिव के पास
अब सब लोग भगवान महादेव जी के पास कैलाश पहुँचे। भगवान शंकर के दर्शन करते ही जीवात्मा को परम आनंद महसूस हुआ, उसके सारे पाप नष्ट हो गए। शिव जी ने पूछा आप सब का कैसे आगमन हुआ? यमराज ने बोला कि इस जीवात्मा ने दो बार राम-राम जपा है और उसकी क़ीमत पूँछ रहा है। हम आपसे राम नाम की क़ीमत पूछने आए हैं। शिव जी ने कहा रा कह कर मैं हलाहल विष को पी गया और म कह कर उसको अपने कंठ में रोक लिया। मैं भी रात दिन राम नाम ही जपता हूँ और इसी राम नाम से काशी में मरे हुए जीवों को मोक्ष प्रदान करता हूँ। पर राम नाम की क़ीमत बताने की तो मेरी सामर्थ्य भी नहीं है। उन्होंने बोला सीधे साकेत धाम चला जाए और सीधे श्री राम जी से ही इसकी क़ीमत पूँछी जाए। जीवात्मा को बहुत आनंद प्राप्त हुआ।
यमराज, देवराज इंद्र, ब्रह्मा और शिव जी पहुँचे श्री राम के पास
सब लोग जीवात्मा को दूल्हे की तरह लेकर साकेत धाम पहुँचे। भगवान श्री राम ने पूछा कैसे आगमन हुआ। यमराज जी ने बताया कि प्रभु ये जीवात्मा बहुत पापी है, लेकिन इसने आपके एक प्रेमी महात्मा के कहने पर दो बार राम-राम जपा है और अब ये उसकी क़ीमत पूँछ रहा है। भगवान श्री राम ने कहा इसको मेरी गोद में बिठाओ। भगवान श्री राम ने उस जीवात्मा को अपनी गोद में बिठाया और उसको दुलार करते हुए कहा कि क़ीमत तो मैं भी नहीं बता सकता, पर महिमा आप देख लो, ये पापी होते हुए भी मेरी गोद में बैठा है।
निष्कर्ष
राम नाम की महिमा देखो कि शराब पीने वाला, कुमार्गगामी जीव, जो संत द्रोह करता था, एक संत की अहैतुकी कृपा से उसने केवल दो बार राम नाम जपा, तो ख़ुद श्री राम ने उसे अपनी गोद में बिठाया और दुलार कर रहे हैं। यह अविश्वास ना करें कि क्या दो-चार बार नाम जपने से भगवत्प्राप्ति हो जाएगी या नहीं। एक ही नाम काफ़ी है भगवत्प्राप्ति करवाने के लिए। अगर नाम जप के साथ कोई अपराध ना बने तो प्रभु के नाम में रस आ जाएगा, उसका स्वाद लेकर आप प्रभु को अपने अधीन कर सकते हैं। नाम जप से आपको प्रभु की लीलाओं में प्रवेश करने का और उनके श्री अंग की सेवा करने का भी सौभाग्य प्राप्त हो सकता है।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज