नाम जप करते समय गलत विचार और पूर्व की गलतियाँ इसलिए सामने आती हैं क्योंकि वे डिलीट हो रही हैं, यानी नष्ट हो रही हैं। इन पर आसक्त न हों और दोबारा उन गलत कार्यों को करना शुरू न करें। ये सभी गलत चीज़ें आपके अंदर से निकल रही हैं। जैसे आपको अपने आस-पास गंदगी नज़र नहीं आती, लेकिन जब आप झाड़ू या पोछा लगाते हैं, तो वह गंदगी साफ़ होते हुए दिखाई देती है। ठीक इसी प्रकार, अभी हमारे अंदर बहुत सारा कचरा (काम, क्रोध आदि) जमा हुआ है, क्योंकि हम भजन नहीं कर रहे हैं।
यह कचरा हर समय गंदी बातों का चिंतन, पैसे का लालच, पद की इच्छा, और राग-द्वेष के रूप में हमारे भीतर जमा होता जाता है। जब हम नाम जप करते हैं, तो यह गंदगी बाहर निकलने लगती है। इसका कारण यह है कि मन के निर्मल हुए बिना प्रभु की प्राप्ति संभव नहीं है। नाम जप करते समय ग़लत विचार और पूर्व की गलतियाँ इसलिए सामने आती हैं क्योंकि वे आपके मन से समाप्त हो रही हैं। जैसे सफाई के दौरान घर की छुपी हुई गंदगी बाहर दिखाई देने लगती है, वैसे ही नाम जप करते समय मन का जमा हुआ कचरा प्रकट होता है। इन पर ध्यान न दें और न ही इन विचारों में उलझें। इन्हें केवल आने और जाने दें। आप बस राधा-राधा का जप करते रहें।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
श्री रामचरितमानस
जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल नहीं सुहाते।
मन निर्मल कैसे होगा?
नाम जप मन को साफ करने का साधन है। जब आप भजन करना शुरू करेंगे, तो मन में छिपी हुई जितनी भी बातें हैं—अच्छी और बुरी—सब बाहर आने लगेंगी। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि केवल गंदी बातें ही आएं। यदि मन में कोई अच्छी बातें भरी हैं, तो वे भी प्रकट होंगी। अच्छी बातों को स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन जो बुरी बातें या धर्म-विरुद्ध विचार हों, उनसे न तो राग (आसक्ति) करें, न द्वेष (घृणा)। न उन्हें बुरा मानें, न अच्छा। ऐसा करने पर वे स्वतः ही मन से निकल जाएंगी।
यदि आप बुरे विचारों पर प्रतिक्रिया देंगे या उन्हें बुरा मानेंगे, तो वे विचार मन में अटक जाएंगे। इसे ऐसे समझें: जैसे कोई जा रहा हो और आप उसे द्वेषपूर्वक छेड़ दें, तो वह रुककर झगड़ा शुरू कर देगा। लेकिन यदि प्रेमपूर्वक छेड़ें, तो भी वह रुक सकता है। इसी प्रकार, जो वृत्ति या विचार आएं, उनसे न राग करें, न द्वेष। उन्हें आने और जाने दें। आप बस राधा-राधा का जप करते रहें। ये विचार धीरे-धीरे निकल जाएंगे, और आपका मन शुद्ध होता जाएगा।
विचार क्यों मन में रुक जाते हैं?
विचार मन में इसलिए रुक जाते हैं क्योंकि हम उन्हें अपने मन पर शासन करने की अनुमति दे देते हैं। वास्तव में, उनकी कोई सत्ता नहीं होती, लेकिन जब हम राग (आसक्ति) या द्वेष (घृणा) के साथ उनका चिंतन करते हैं, तो हम स्वयं उन्हें यह सत्ता प्रदान कर देते हैं। राग का अर्थ है किसी सुखद अनुभव में डूब जाना और उसे बार-बार भोगने की इच्छा करना। मन बहुत चतुर है और यह किसी को आसानी से मुक्त नहीं होने देता। जब आप भजन या नाम जप में बैठते हैं, तो यह आपको भूतकाल की सुखद या दु:खद घटनाएँ याद दिलाता है। यह आपको उन क्षणों में वापस खींचकर सुख भोगने या उसी अनुभव को दोहराने के लिए प्रेरित करता है।
यदि कोई व्यक्ति विषयासक्त (विषयी पुरुष) है, तो वह इन विचारों में फिसलकर फिर से वही गलतियाँ करने लगता है। दूसरी ओर, कोई साधक इन बुरे विचारों को देखकर चिंतित हो सकता है और सोच सकता है कि ऐसा क्यों हो रहा है। लेकिन ये दोनों ही प्रतिक्रियाएँ गलत हैं।
इस स्थिति में सही तरीका यह है:
- अपने मन में उत्पन्न विचारों का केवल “दर्शक” बने रहें।
- न तो इन विचारों में आसक्त हों (राग), और न ही उनसे घृणा करें (द्वेष)।
- विचारों को आने और जाने दें।
बस राधा-राधा का जप करते रहें। धीरे-धीरे ये विचार स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। आपका मन शुद्ध और शांत होता जाएगा।
मन को नियंत्रित करने की कला
अगर आप सत्संग नहीं सुनते, तो हो सकता है कि आप भजन या नाम जप करना छोड़ दें। आपको यह लगने लगेगा कि भजन न करने पर मन शांत रहता है, लेकिन जैसे ही आप भजन शुरू करते हैं, गंदे और विचलित करने वाले विचार मन में आने लगते हैं। यह भ्रम है। मन आपको गुमराह करने के नए-नए प्रयास करेगा। वह आपको भगवान और महापुरुषों के बारे में गंदे विचार देगा या उनके प्रति अविश्वास पैदा करने की कोशिश करेगा।
ऐसे समय में क्या करें?
- इन विचारों को गंभीरता से न लें।
- इन्हें पागल मन का प्रपंच समझें, जो आपकी प्रगति रोकने के लिए व्याकुल हो रहा है।
- मान लें कि जैसे एक पागल व्यक्ति को बंधन में डाला जाए, तो वह उग्र हो जाता है, वैसे ही आपका मन, जिसे अब तक स्वतंत्रता का आभास था, नियंत्रण में आने से बचने के लिए यह उथल-पुथल मचाएगा।
आपका काम है शांत रहना और सतर्क बने रहना।
- मन की हर बात को तुरंत न मानें।
- विचार करें कि जो सलाह या प्रेरणा मिल रही है, वह शास्त्र और गुरु की दृष्टि से सही है या नहीं।
- यदि कोई विचार गलत दिशा में ले जाने वाला है, तो उसे अस्वीकार करें। बार-बार इनकार करने से मन की पकड़ ढीली हो जाएगी।
मन की शुद्धि – स्थायी शांति की ओर
यह जो विचार आपके मन में आ रहे हैं, उन्हें लेकर परेशान न हों। यह केवल निकल रहे हैं, जैसे कांटा निकलने में भी कष्ट होता है। जब कांटा चुभा था, तब उसने कष्ट दिया, और जब उसे निकाला जा रहा है, तब भी वह कष्ट दे रहा है। इसी प्रकार, जब आपने विषयों का सेवन किया, तो आपको भ्रम हुआ कि इससे सुख मिलेगा। लेकिन इस संसार में वास्तविक सुख कैसे मिल सकता है? भगवान ने इस संसार को “दुखालयम अशाश्वतम” (दुखों का घर और अस्थायी) कहा है। यहाँ हर वस्तु का परिणाम अंततः दुखद होगा।
ईमानदारी से देखें तो हर भोग के बाद फिर उसे भोगने की इच्छा जागृत होती है, और फिर वही चाहत। भोग भोगने की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती। समस्या का समाधान तब होगा जब हमारी चाहत पूर्ण होगी। और यह पूर्णता केवल भगवान से संभव है, प्रकृति से नहीं। क्योंकि हम भगवान के अंश हैं, और परमात्मा के अंश की तृप्ति केवल परमात्मा से ही हो सकती है, प्रकृति से नहीं।
निष्कर्ष
आपके अंदर जो बुरे विचार या आकर्षण उत्पन्न करने वाले भाव आ रहे हैं, उनका त्याग करना ही भगवद् मार्ग में आगे बढ़ने का उपाय है। “त्याग शांति अनंतरम”—त्याग से शांति मिलती है, जो स्थायी और अनंत होती है। जैसे-जैसे त्याग बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे शांति भी बढ़ती जाएगी। नाम जप करते रहें। ये विचार और प्रेरणाएँ, जो आपको परेशान कर रही हैं, दरअसल आपके भीतर से डिलीट हो रही हैं। आनंदित रहें, और दुखी न हों कि गंदी बातें क्यों आ रही हैं। यह शुद्धिकरण की प्रक्रिया है।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज