पाप कर्म करने से आत्मविश्वास और आत्मबल इतना नष्ट हो जाता है कि व्यक्ति को मरने जैसे ख्याल आने लगते हैं। लेकिन इस स्थिति में रुककर खुद से यह प्रश्न करें: मरने के बाद क्या होगा? क्या आप इसका उत्तर जानते हैं? आत्महत्या एक घोर पाप है, और इसके परिणामस्वरूप जीव को प्रेत योनि में जाना पड़ता है।
प्रेत आत्मा भटकती रहती है—न तो वह जल पी सकती है, न भोजन प्राप्त कर सकती है। वह केवल तड़पती रहती है और युगों-युगों तक इस पीड़ा को सहन करती है। इस मूर्खता को कभी न करें।
मरना कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। यह संसार बहुत विशाल और संभावनाओं से भरा हुआ है। वीरता और साहस के साथ आगे बढ़ें, क्योंकि जब दुनिया आपके सामने घुटने टेक देगी, तभी आपका मनुष्य जीवन वास्तव में सार्थक होगा।
निराशा को अपने मन में स्थान न दें। जीवन को आशा और विश्वास से भरपूर जीने का प्रयास करें। आज यदि अव्यवस्था है, तो कल वह अवश्य ही व्यवस्थित हो जाएगी। हम सत्य और धर्म से चलेंगे, नाम जप करेंगे और जो चाहेंगे पा लेंगे।
ब्रह्मचर्य और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध
वीर्यपात करने से मन अशुद्ध और अशांत हो जाता है, जिससे व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान होने लगता है। ब्रह्मचर्य का पालन करें। हस्तमैथुन, गंदी फ़िल्मों, या गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाने से बचें। ब्रह्मचर्य का पालन करने से हर परिस्थिति से लड़ने की शक्ति मिलती है। लोग आजकल खिलवाड़ में अपना ब्रह्मचर्य नष्ट कर रहे हैं। ब्रह्मचर्य मनुष्य जीवन की उन्नति की बहुत बड़ी नींव है। नाम जप करें, नियमित रूप से व्यायाम करें, और ग़लत आचरण जैसे कि हस्तमैथुन या व्यभिचार करने से बचें।
असफलता के कारण आत्मविश्वास और आत्मबल खत्म हो गया है!
जीवन में न तो हर जगह असफलता मिलती है और न ही हर जगह सफलता। सफलता और असफलता का संबंध ठीक वैसे ही है जैसे दिन और रात का। यदि आपको सफलता मिली है तो अति उत्साहित न हों, क्योंकि असफलता भी आ सकती है। और यदि आपको असफलता मिली है तो निराश न हों, क्योंकि सफलता भी निश्चित रूप से आपके रास्ते में है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। जो भी दुख-सुख आएं, उन्हें भगवान का नाम जपते हुए धैर्य और सहनशीलता के साथ स्वीकार करें।
जीवन में केवल असफलता नहीं, किसी न किसी दिन सफलता भी अवश्य मिलेगी। निराशा से बचने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है भगवान के नाम का जप करना। यही एक ऐसी औषधि है जो मन को शांत रखती है और नकारात्मकता से दूर करती है। सत्संग सुनें, नाम जप करें, और अपने कार्यों में मन लगाएं।
कोई न कोई काम, नौकरी, या व्यापार जरूर करें। मनुष्य जीवन अत्यंत मूल्यवान है, और इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। समय का सदुपयोग करें, क्योंकि खाली बैठे रहने से मानसिक परेशानियां बढ़ सकती हैं। मन एक शैतान है जो ख़ाली रहने पर आपको नेगेटिव चीज़ों के बारे में सोचने या ज़्यादा सोचने पर मजबूर कर देता है।
जीवन में हमेशा भय बना रहता है!
हमारे द्वारा कई बार ऐसे पाप हो जाते हैं जिन्हें हम प्रकट नहीं करते, और जिनका हमें प्रत्यक्ष रूप से कोई दंड नहीं मिलता। लेकिन ऐसे पाप हमें हमारी ही बुद्धि के माध्यम से दंडित करते हैं। यह दंड भीतर ही भीतर बेमतलब के चिंतन और बिना कारण के भय के रूप में प्रकट होता है। धीरे-धीरे यह काल्पनिक भय हमारे जीवन पर हावी हो जाता है और हमारी मानसिकता को बिगाड़ देता है। इस स्थिति में यदि कोई हमें प्यार से समझाने का प्रयास करे, तो भी अक्सर हमारी अवस्था ऐसी होती है कि हम उसे समझ नहीं पाते। ऐसी परिस्थितियों में केवल एक ही उपाय है—भगवान का नाम जप।
कई लोग कहते हैं कि वे कोई पाप नहीं करते, लेकिन अगर आपने वीर्यपात किया है, तो वह भी पाप की श्रेणी में आता है। वीर्य में एक बच्चे को जन्म देने की सामर्थ्य होती है, और यदि वह गर्भाशय में पहुंचता, तो एक नए जीवन का सृजन हो सकता था। इसी प्रकार, हमसे अनजाने में या जानबूझकर कई अन्य पाप और अपराध होते रहते हैं। ये पाप हमारी बुद्धि को भ्रष्ट कर देते हैं और मानसिक परेशानियों का कारण बनते हैं।
लोग इस दुर्लभ और अनमोल मानव जीवन को नष्ट कर रहे हैं, जिसका मुख्य कारण उनके द्वारा किए गए गुप्त पाप हैं। ये पाप हमारी बुद्धि को अशुद्ध कर देते हैं। यदि हमारी बुद्धि शुद्ध हो, तो असफलता या निराशा का सामना करने पर भी हम स्वयं को असमर्थ, असहाय या असफल महसूस नहीं करेंगे और आत्महत्या जैसा गंभीर कदम नहीं उठाएँगे।
दिन में केवल 24 मिनट भगवान का नाम जप करें। इसके साथ ही, मांसाहार का त्याग करें, शराब न पियें, और पराई माता-बहनों की ओर बुरी दृष्टि से न देखें। इन आदतों को अपनाने से जीवन उज्ज्वल, सुखद और आनंदमय हो जाएगा। नाम जप में एक अद्भुत अमृत शक्ति है। हमारे मन को हमेशा किसी न किसी ठिकाने की आवश्यकता होती है, और सबसे उत्तम ठिकाना भगवान का नाम है। मन को भगवान के नाम में लगा दें, यह परम औषधि है।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज