मेरी पत्नी मेरा कहना नहीं मानती। क्या करूँ ?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
मेरी पत्नी मेरा कहना नहीं मानती। क्या करूँ ?

हमारा मन ही हमारी बात नहीं मानता तो दूसरे लोग कैसे मानेंगे? अपने मन को संभाल लीजिए, सब ठीक हो जाएगा। अपने मन को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दीजिए तो आपको पत्नी दिखाई ही नहीं देगी, उसमे आपको जगत्पति दिखाई देंगे कि मेरी वासना की पूर्ति के लिए मेरे प्रभु इस रूप में आए हैं। वह आपकी बात क्यों माने? क्या आप अपने गुरु और भगवान की बात मानते हैं? अगर मान लें, तो सब भगवद् स्वरूप हैं, और कोई है ही नहीं। वासुदेवः सर्वमिति – सब कुछ और हर किसी में ईश्वर ही हैं।

संत तुकाराम जी का प्रसंग

तुकाराम जी अपनी पत्नी के साथ

संत तुकाराम जी को किसी ने चार-पाँच गन्ने दिये और वह उन्हें अपने घर ले जा रहे थे। रास्ते में कुछ बच्चों ने उनसे गन्ने माँगे तो उन्होंने उन्हें गन्ने दे दिये। वह केवल एक गन्ना लेकर घर पहुँचे। उनकी पत्नी के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने गन्ने बच्चों में बाँट दिए। इसपर उनकी पत्नी को ग़ुस्सा आया और उन्होंने उस बचे हुए गन्ने से उनकी पिटाई कर दी और वह गन्ना टूट गया। तुकाराम जी ने कहा, चलो अच्छा है, गन्ना तोड़ना था, टूट गया। उन्हें बिल्कुल भी ग़ुस्सा नहीं आया।
भक्त लड़ाई नहीं करता, वह तो केवल कृपा करता है।

पत्नी को अधीन करने की इच्छा

अगर आप यह सोचते हैं कि आपकी पत्नी आपके अधीन चले और आपके अनुकूल चले, तो वह ऐसा क्यों करे? वह आपकी नौकर थोड़ी है। जैसे आप पुरुष शरीर में जीवात्मा हैं, वैसे ही वो भी स्त्री शरीर में एक जीवात्मा है। उसकी भी कुछ मनोवृत्तियाँ हैं, और आपकी भी कुछ मनोवृत्तियाँ हैं। अपनी मनोवृत्तियों को झुकाना सीखें क्योंकि आप सत्संग सुनते हैं। इससे वह आपके प्रेम में अधीन हो जाएँगी, उन पर शासन करने का अधिकार आपको नहीं है।

अपने कर्तव्य का पालन करें

रिश्तों में ज़िम्मेदारियाँ कैसे पूरी करें

आप दोनों मित्र बनकर, एक दूसरे की सलाह लेकर, अपने कर्तव्यों का पालन करें। आपके भाग्य और कर्मों के कारण ही वह आपकी पत्नी बनी हैं। अब इस संबंध का निर्वाह करें। अगर प्रेम से बात नहीं बनती तो इसे वैसे ही सहन करें जैसे हम अपने शरीर के किसी रोग को सहते हैं। आप ऐसा मान लें कि प्रभु ने आपको प्रतिकूलता देने के लिए ही उन्हें भेजा है। इससे आपका भजन बनेगा और प्रभु के प्रति भाव बनेगा। अगर ऐसा नहीं किया तो आप एक ही घर में रहकर एक-दूसरे से द्वेष करेंगे और अंदर-ही-अंदर जलते रहेंगे

गाड़ी दो समान पहियों से चलती है, अगर एक भी पहिया छोटा हो तो गाड़ी पलट जाएगी। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि वो आप से कम हैं या आप पुरुष हैं तो आप कोई बड़ी चीज़ हैं, तो यह ग़लत है। जैसे आपका जीवन है वैसे ही उसका भी जीवन है। यदि आप में से कोई ग़लत मार्ग की तरफ़ चला जाता है तो दूसरा उसे समझा सकता है, उपदेश कर सकता है और थोड़ा शासन दिखा सकता है पर ऐसा नहीं है कि वो हमेशा आपके अनुकूल ही चलें, क्योंकि उनकी भी तो अनुकूलता है, और उसका भी महत्व है।

तुकाराम जी की पत्नी को हुए भगवान के दर्शन

तुकाराम जी की पत्नी उनके साथ प्रतिकूल व्यवहार करती थीं फिर भी उन्हें तुकाराम जी से पहले भगवद् साक्षात्कार हुआ। क्योंकि वो प्रभु के भक्त की पत्नी थीं। वह कभी भी तुकाराम जी को भोजन खिलाए बिना ख़ुद नहीं खाती थीं। तुकाराम जी दूर कहीं बैठकर भजन करते, तो वह उन्हें ढूंढती रहती थीं। एक दिन उन्होंने तुकाराम जी से कहा कि मैं तुम्हें ढूँढते-ढूँढते थक गई हूँ, मैं कैसे जानूँ कि आप कहाँ हो। तुकाराम जी ने कहा, चौराहे में जाकर कान लगाना, जिधर की भूमि से सुनाई दे, “विट्ठल, विट्ठल”, उधर चली आना, मैं तुम्हें वहीं मिलूँगा। ऐसे महापुरुष थे तुकाराम जी, जहाँ उनके चरण पड़ते थे वहाँ की भूमि बोलती थी, “विट्ठल, विट्ठल”। एक दिन तुकाराम जी पहाड़ में बैठे भजन कर रहे थे। उनकी पत्नी उनके लिए भोजन ला रही थीं तो एक बड़ा बबूल का काँटा उनके पैर में लगा। अब उनके लिए चलना मुश्किल हो रहा था और उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था।

तुकाराम जी की पत्नी का काँटा श्री कृष्ण ने निकाला

एक बालक उनके पास आया। उसने पीले वस्त्र पहने हुए थे और उसका श्याम वर्ण था। उसने उनसे कहा, मैं काँटा निकाल देता हूँ। उसने काँटा हाथ से नहीं निकाला, बल्कि अपने दांत से पकड़ कर काँटा निकाला। फिर उसने अपने पीले वस्त्र को फाड़ कर उनके ज़ख़्म पर पट्टी बांधी। जब वह तुकाराम जी के पास पहुँची, तो तुकाराम जी आज अपनी पत्नी का दर्शन नहीं कर रहे थे, बल्कि एक महाभागवत् के दर्शन कर रहे थे जिसे भगवद् साक्षात्कार हुआ था। उन्होंने तुकाराम जी को बताया कि मेरे पैर में काँटा लग गया था जिसे एक साँवले बालक ने निकाला। तुकाराम जी ने उन्हें बताया कि वह स्वयं ठाकुर जी ही थे। यह है हमारे प्रभु का स्वभाव, उनके भक्त से जो थोड़ा भी संबंध स्वीकार करके उसका आदर करता है, तो प्रभु स्वयं उसकी सेवा में लग जाते हैं।

निष्कर्ष

संबंधों पर सुविचार

आप भजन करें, भक्ति करें तो आपके संबंध से आपके जीवनसाथी का स्वभाव और जीवन दोनों परिवर्तित हो जाएँगे। किसी से भी द्वेष ना करें। ऐसा मान लीजिए कि यह आपका ही कोई बुरा कर्म है जिसका फल आपको भोगना पड़ रहा है। अगर प्रभु चाहें तो अभी ही आपका जीवनसाथी आपके अनुकूल हो जाये, फिर आप उसके राग में बंध जाएँगे। ठाकुर जी कृपालु हैं, वो आपको राग में फँसने से बचा रहे हैं, भजन में आगे बढ़ने का मौक़ा दे रहे हैं और आपके बुरे कर्मों का भी नाश कर रहे हैं। लड़ाई-झगड़ा ना करें।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज मार्गदर्शन करते हुए

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