मन, वीर्य और प्राण—तीनों का आपस में गहरा संबंध है। यदि हमारा ब्रह्मचर्य ठीक है, तो मन शांत और एकाग्र रहेगा तथा प्राण बलवान और सूक्ष्म होंगे। लेकिन यदि वीर्य कमजोर हो जाए, तो मन चंचल और अशांत हो जाएगा, और प्राण स्थूल व निर्बल हो जाएंगे। चाहे गृहस्थ हो या विरक्त, सभी के लिए संयम आवश्यक है। जब तक विवाह न हो, तब तक पूर्ण संयम का पालन करना चाहिए।
वीर्य और ब्रह्मचर्य का महत्व

यदि हम वीर्य और ब्रह्मचर्य के महत्व को समझ लें, तो हमारा जीवन कई संकटों से मुक्त हो सकता है। अध्यात्मिक शक्ति वीर्य से ही प्रकट होती है। जब हम ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और भजन में लीन रहते हैं, तब दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है। भगवान कश्यप जी ने गृहस्थ होते हुए भी 10,000 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन किया, जिसके फलस्वरूप माता विनता के गर्भ से गरुड़ जी प्रकट हुए—जो इतने शक्तिशाली थे कि अपने एक पंख में संपूर्ण ब्रह्मांड को उठा सकते थे।
गृहस्थ जीवन में भी संयमपूर्वक भजन करके बुद्धिमान, ज्ञानवान और बलशाली संतान प्राप्त की जा सकती है। लेकिन आज के समाज में ब्रह्मचर्य के प्रति लोगों की रुचि घटती जा रही है। लोग मनोरंजन और भोग-विलास में लिप्त हो गए हैं, जिससे मानसिक शांति भी नष्ट हो रही है।
युवाओं में उत्साह की कमी का कारण

आजकल युवाओं में उत्साह की कमी देखी जाती है। वे डिप्रेशन में रहते हैं, परेशान और चिंता से घिरे हुए लगते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उनकी आंतरिक शक्ति क्षीण हो चुकी है। मन बेवजह भय, शोक और चिंता में उलझा रहता है, जिससे नकारात्मकता बढ़ जाती है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से यह शक्ति पुनः प्राप्त की जा सकती है।
ब्रह्मचर्य का पालन कठिन अवश्य है, लेकिन असंभव नहीं। यह केवल शारीरिक बल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बल भी प्रदान करता है। यदि कोई बार-बार असफल भी होता है, तो भी उसे पुनः प्रयास करना चाहिए और इस पर विजय प्राप्त करने का संकल्प लेना चाहिए। संत-महात्मा भी इसी मनोबल के कारण कठिन तप कर पाते हैं।
ब्रह्मचर्य के लिए सुबह जल्दी उठना और व्यायाम आवश्यक

आज हमारा संग, भोजन, दृश्य और श्रवण सभी दूषित हो चुके हैं। यदि हम गंदे विचार देखेंगे, सुनेंगे और उन पर अमल करेंगे, तो ब्रह्मचर्य कैसे टिक पाएगा? लेकिन अभी भी समय है—इसका सुधार किया जा सकता है। हम सबसे कहते हैं कि नियमित व्यायाम करें, क्योंकि बिना शरीर को थकाए ब्रह्मचर्य को स्थिर नहीं रखा जा सकता। जैसे दंड-बैठक, दौड़-भाग, और अन्य शारीरिक व्यायाम करें, जिससे शरीर स्वस्थ और मन नियंत्रित रहेगा।
यदि सुबह देर तक सोते रहेंगे, तो ब्रह्मचर्य का पालन कैसे होगा? सुबह 4 बजे उठकर स्नान करें और आधे से एक घंटे तक व्यायाम करें। इससे आपका जीवन प्रकाशित होगा। गृहस्थ जीवन साधारण नहीं है—यह एक बड़ी जिम्मेदारी है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा और विचार शुद्ध नहीं होंगे, तो यह और भारी हो जाएगा। कुछ समय तक अनुशासन में ढील देने से शरीर अत्यंत दुर्बल हो सकता है, और लोग कहने लगेंगे कि यह आलसी और प्रमादी हो गया है।
ब्रह्मचर्य से एकाग्रता की प्राप्ति

ब्रह्मचर्य ही परम तप है, ब्रह्मचर्य ही परम धन है, ब्रह्मचर्य ही परम एकाग्रता है। एकाग्रता ब्रह्मचर्य से आती है। यदि ब्रह्मचर्य ठीक होगा, तो आंखें खुली हों या बंद, मन स्थिर रहेगा और जहां भी ध्यान केंद्रित करेंगे, वहीं पूरी ऊर्जा लग जाएगी—चाहे भजन हो या संसारिक कार्य।
आजकल लोग शारीरिक श्रम से दूर हो गए हैं। पहले किसान हल चलाते थे, तब वे अत्यंत बलशाली होते थे। वे भारी भोजन करते थे और फिर भी परिश्रम कर पाते थे। लेकिन आज मशीनों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे शरीर कमजोर होता जा रहा है। हमें इस बहुमूल्य शरीर की रक्षा करनी चाहिए। संसार में रहते हुए भी हमें ईश्वर की ओर बढ़ना चाहिए। कम से कम जिस ऊंचाई तक पहुंचे हैं, वहां से गिरें नहीं। मनुष्य योनि प्राप्त हुई है, तो इसे सार्थक बनाएं।
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए बुरी आदतों से बचें

आज लोग मांसाहार, शराब, जुआ और अन्य विकारों में लिप्त हो गए हैं। ये बुरी आदतें जीवन को नष्ट कर देती हैं। इसलिए, युवा अवस्था में विशेष सतर्कता आवश्यक है। खानपान शुद्ध रखें, नियमित रूप से सत्संग सुनें और आत्मसंयम का पालन करें। यही सच्चा उत्थान है। सावधान रहें, संयमित जीवन अपनाएं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज