हस्तमैथुन: जीवन को कर देगा खोखला – Masturbation Side Effects

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
masturbation side effects

हस्तमैथुन को अंग्रेज़ी में Masturbation (मास्टरबेशन) कहते हैं। इसे कुछ लोग हस्त-क्रिया भी कहते हैं। यदि इसकी आदत अधिक बन जाए, तो यह शरीर की कुछ नाज़ुक नसों को कमज़ोर कर देती है। थोड़ा सा कामुक विचार आने पर या कोई ग़लत दृश्य या गाना देखने-सुनने पर ही उस व्यक्ति का वीर्य नष्ट होने लगता है। शरीर में वीर्य को रोकने की ताक़त नहीं रह जाती। ऐसा व्यक्ति पूरी तरह से स्त्री-संग (दांपत्य जीवन) के अयोग्य हो जाता है।

शरीर के अंदर एक ‘मनोवाह’ नाम की नाड़ी होती है। इस नाड़ी का संबंध शरीर की सभी नाड़ियों से होता है। जब काम-वासना जागती हैं, तो यह नाड़ी सक्रिय हो जाती है और उसके साथ बाकी सारी नाड़ियों में भी कंपन होने लगती है। इससे पूरा शरीर — पैरों से लेकर सिर तक — अंदर से कंपन करने लगता है।

इस अवस्था में शरीर के अंदर रक्त और अन्य अंगों में तेज़ हलचल होती है, जिससे वीर्य अलग होकर नष्ट होने लगता है। इसके कारण शरीर में कमजोरी आ जाती है, और कई तरह की बीमारियाँ जैसे धातु-दौर्बल्य (वीर्य की कमजोरी), प्रमेह (पेशाब से जुड़ी बीमारियाँ), स्वप्नदोष, और मधुमेह (डायबिटीज़) जैसे रोग शरीर में जड़ पकड़ लेते हैं।

रोग प्रतिरोधक क्षमता और वीर्य का संबंध

शरीर के खून में दो तरह के कण (कोशिकाएँ) होते हैं — सफेद (White Corpuscles) और लाल (Red Corpuscles)। शरीर में मौजूद सफेद रक्तकण (White Corpuscles) रोगों के कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति रखते हैं। वीर्य जितना अधिक और शक्तिशाली होता है, ये सफेद रक्तकण भी उतने ही मजबूत और ताकतवर होते हैं, जिससे शरीर में ज़हर जैसी चीज़ों को भी पचाने की ताक़त बनी रहती है। लेकिन जैसे ही वीर्य की कमी होती है, वैसे ही ये कण भी कमज़ोर पड़ जाते हैं और फिर कई रोगों के कीटाणुओं से हारने लगते हैं।यह वीर्यनाश (वीर्य की हानि) के ही खतरनाक परिणाम हैं।

मस्तिष्क पर हस्तमैथुन का प्रभाव

हस्तमैथुन से जो वीर्यनाश होता है, वह शरीर और दिमाग की सारी नसों पर ज़ोरदार झटका देता है। इससे कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। हस्तमैथुन मस्तिष्क पर बिजली की तरह झटका मारता है। इसके तुरंत बाद सिर हल्का और खाली-खाली लगने लगता है। याददाश्त (स्मृति), समझदारी (सुबुद्धि) और बुद्धिमत्ता (प्रतिभा) सब नष्ट हो जाती हैं। आख़िर में ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर हो जाता है।

हस्तमैथुन: मानसिक रोगों और शारीरिक दुर्बलता की असली जड़

व्यभिचार और हस्तमैथुन के कारण मानसिक रोग बढ़ रहे हैं। माता-पिता इस भीतर छिपे कारण को नहीं जानते। वे समझते हैं कि बच्चों की कमजोरी मेहनत या थकान की वजह से है, पर असली वजह यह भीतर की शारीरिक बर्बादी होती है। जब मस्तिष्क (दिमाग) कमजोर होता है, तो आँखों की रोशनी, कान और दाँतों की ताक़त भी घटने लगती है। जब वीर्य पर आघात पहुँचता है, तो शरीर की सारी इन्द्रियाँ एक साथ कमज़ोर और अस्वस्थ हो जाती हैं। हस्तमैथुन करने से पूरा शरीर पीला, ढीला, सूखा, कमज़ोर और रोगों से भर जाता है। चेहरे की चमक चली जाती है और वह पीला पड़ जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवित होते हुए भी मरे हुए जैसा होता है।

गृहस्थ जीवन और संतान सुख से वंचित

वीर्य की कमजोरी और बाकी रोगों के कारण वह न तो गृहस्थ जीवन का सुख भोग पाता है, न ही संतानोत्पत्ति की शक्ति उसके भीतर रह जाती है। ऐसे लोग संतान प्राप्त नहीं कर पाते। ऐसे लोग काम के पीछे भागते हैं, लेकिन अंत में खुद बेकाम और निर्बल हो जाते हैं। वे संतान सुख से भी वंचित रह जाते हैं।

आदत का जाल: क्यों हस्तमैथुन रोकना कठिन हो जाता है?

जिस दुर्भाग्यशाली व्यक्ति ने एक बार भी इस पाप को किया, उसके पीछे यह बुरी आदत हाथ धोकर लग जाति है। यहाँ तक कि उसका जीवन बचाना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे व्यक्ति धीरे-धीरे इस बुरी आदत के पूरी तरह गुलाम बन जाते हैं। कमज़ोर मन के कारण वे चाहकर भी खुद को रोक नहीं पाते। हज़ारों बार संकल्प लेते हैं, पर एक भी पूरी नहीं कर पाते। जैसे ही कोई विषय (काम-विकार या उत्तेजना) सामने आता है, सारी प्रतिज्ञाएँ बेकार हो जाती हैं।

इस तरह वीर्य की लगातार हानि से व्यक्ति का ‘मनुष्यत्व’ समाप्त होने लगता है। फिर उसका जीवन बोझ बन जाता है — न उसे मौसम की ज़रा सी ठंडक-गर्मी सहन होती है, न हवा-पानी के बदलाव। हर वक्त जुकाम, सिरदर्द, छाती की तकलीफ, थकावट और बेचैनी बनी रहती है। मौसम बदलते ही उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और कई तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं।

निष्कर्ष: आत्म-विनाश से बचें, ब्रह्मचर्य अपनाएँ

ऋषि-मुनियों की संतानें, जिनमें कभी तेज और आत्मज्ञान झलकता था, आज उस दिव्यता से कोसों दूर हो गई हैं। इस ग़लत आदत की वजह से उनकी दृष्टि तक कमजोर हो गई है। इसलिए समय रहते चेतना ज़रूरी है — ताकि जीवन को खोखला होने से बचाया जा सके।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

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