क्या मुझे भजन करने के लिए अपने परिवार और कर्तव्यों का त्याग कर देना चाहिए?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
क्या मुझे भजन करने के लिए अपने परिवार और कर्तव्यों को त्याग देना चाहिए?

हम सबके पास हमें सौंपे गए रिश्ते और कर्तव्य हैं। आप किसी के पति, किसी के बेटे या किसी के भाई हो सकते हैं। हम किसी के मित्र हो सकते हैं या व्यावहारिक मामलों में हमारी कोई भूमिका हो सकती है। इन सबके से अगर मोह निकाल दें तो ईश्वर ही सभी रूपों में विद्यमान है। भगवद् गीता में, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं हर किसी के हृदय में मौजूद हूं, मुझे ध्यान में रखते हुए, मुझे ही सबमें देखकर व्यवहार और कार्य करें। यदि हम इसे ध्यान में रखकर अपने कर्तव्यों का पालन करें तो हम ईश्वर के सेवक माने जायेंगे।

त्याग का सही मतलब क्या है?

अपने परिवार के प्रति हमारा कर्तव्य क्या है? हम भगवान के सेवक हैं। भगवान आपकी पत्नी या पुत्र के रूप में आये हैं। भगवान ने आपको समाज की सेवा करने के लिए कोई पद दिया हो सकता है। हमें सब में ऐसी भावना करनी चाहिए कि भगवान ही आपके पिता, माता, परिवार या समाज के रूप में हैं। अपना धर्म समझने के लिए हमें पहले अधर्म आचरणों का त्याग करना होगा। भगवान भगवद् गीता में निर्देश देते हैं कि इस भावना को त्याग दो कि तुम कर्म के कर्ता हो और मेरी शरण में आओ। तुम मेरे भक्त की तरह व्यवहार करो। इससे तुम अपने सभी पापों से मुक्त हो जाओगे और मुझे प्राप्त करोगे। “वासुदेव सर्वम्”, हर जगह भगवान ही हैं।संसार में ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं है। नीचे दिए गए श्लोक में, भगवान कृष्ण कहते हैं, हे धनंजय, कोई भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान मुझसे खाली नहीं है; मैं ही सब जगह व्याप्त हूँ।

मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥

भगवद् गीता 7.7

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श‍ुच: ॥

भगवद् गीता 18.66
त्याग पर सुविचार

भगवान ही मेरे पिता, पत्नी और पुत्र के रूप में आये हैं। मैं अपना कर्तव्य निभाते हुए इसी रूप में भगवान की पूजा करूंगा। यदि आप ऐसा आचरण करेंगे तो भगवान आपके सारे पूर्व संचित कर्म नष्ट कर देंगे; उन्होंने भगवद् गीता में इसका वादा किया है। इन सभी कर्तव्यों और अपने कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित कर दें। ऊपर दिये गये श्लोक में परित्यज का अर्थ त्याग करना नहीं है, बल्कि इन कर्मों को भगवान को समर्पित करना है। भगवान ने यह आश्वासन भी दिया है कि यदि कर्म करने में हमसे कोई गलती हो जाती है तो वो उस गलती को नष्ट कर देंगे और हमें प्रारब्ध सहने की शक्ति देंगे और अंत में हम उन्हें प्राप्त कर लेंगे। सब कुछ त्याग करके भाग जाने की ज़रूरत नहीं है। भगवान के चरणों में शरण का अर्थ है हर चीज में भगवान को देखना, भगवान के लिए सभी कार्य करना और हमेशा भगवान को याद करना।

विपरीत परिस्थितियाँ आपको सहनशील बनाने के लिए दी जाती हैं

यदि कोई अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं कर रहा है तो वह इस धर्म को नहीं समझ सकता। फिर सर्वोच्च धर्म और भगवान के प्रेम के बारे में तो कैसे ही बात करें? यदि पत्नी थोड़ी सी भी प्रतिकूल हो जाती है, तो पति दुर्व्यवहार करता है। यदि माता-पिता प्रतिकूल हों तो क्या हमें उनके साथ दुर्व्यवहार करना चाहिए? अनुकूलता धर्म नहीं है। जो अनुकूलता-प्रतिकूलता की परवाह नहीं करता और भक्तिपूर्वक अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करता है, वह धर्मात्मा कहलाता है।

क्या मुझे भजन करने के लिए अपने कर्तव्यों को छोड़ देना चाहिए?

उच्चतम भक्ति में संलग्न हो जाइए। ईश्वर सभी रूपों में मौजूद है: माता-पिता, भाई, पत्नी, बेटा, परिवार, रिश्तेदार और समाज। किसी के भी प्रति दुर्व्यवहार, दुराचार, अधर्म आचरण, हिंसा और घृणा नहीं करनी चाहिए। अगर कोई आपके साथ ऐसा करे तो उसे सह लेना चाहिए। प्रतिशोध ना लें। यदि आप ऐसा करेंगे तो आप भगवान के भक्त बन जायेंगे। आपको ईश्वर की प्राप्ति होगी। नियमित रूप से सत्संग सुनें; आपको ये ज्ञान ख़ुद ही आसानी से प्राप्त हो जाएगा।

“धर्मं भजस्व सततं त्यज भूतहिंसां सेवास्व साधुपुरुषंजहि कामशत्रु”

पद्म पुराण – श्रीमद्भागवत महात्म्य

यदि कोई संतों की संगति में रहता है और सत्संग सुनता है तो इच्छाएं और तृष्णाएं का त्याग स्वयं हो जाता है। सांसारिक धर्म का त्याग करने से मनुष्य को भागवत धर्म की प्राप्ति होती है।

अन्यस्य दोषगुणकीर्तनमशु हित्वा सत्यं वदारचय हरिं व्रज देवलोकम्

पद्म पुराण – श्रीमद्भागवत महात्म्य

सम्पूर्ण समाज को ईश्वर का रूप मानें और सबके साथ यथाविधि आचरण करें। भगवान का नाम जपें; फिर, किसी संत की संगति में, आपको ईश्वर के प्रति प्रेम, सच्चा ज्ञान और सर्वोच्च धर्म प्राप्त होगा।

प्रश्न – भगवद् गीता में, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, सभी धर्मों को त्याग दो और मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिलाऊंगा। सभी धर्मों को त्यागने का क्या अर्थ है?

मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज कर्तव्य और समर्पण पर मार्गदर्शन करते हुए

Related Posts

Follow Us on Facebook

Follow Us on twitter

Download Our App

google play icon

Copyright @2024 | All Right Reserved – Shri Hit Radha Keli Kunj Trust | Privacy Policy

error: Copyrighted Content, Do Not Copy !!
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00