क्या गुरु के बिना भगवान की प्राप्ति संभव है?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
क्या बिना गुरु के भगवान मिल सकते हैं?

जब हम किसी नई जगह घूमने जाते हैं, तो हमें एक गाइड की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार, इस माया भरे संसार में भी भगवद् प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु के बिना इस भवसागर से पार होना मुमकिन नहीं है। बिना गुरु की कृपा के परमार्थ का मार्ग प्रकाशित नहीं हो सकता। अगर आप किसी संत की बात मानकर उस पर चलना शुरू कर दें, तो आपका कल्याण हो जाएगा। आप नाम जपें और सत्संग सुनें, तो आपका मार्ग प्रकाशित हो जाएगा। इस मार्ग में बिना संतों और गुरु के एक कदम भी चलना संभव नहीं है। भगवान तो हमारे हृदय में ही विराजमान हैं, लेकिन वे हमें हमारी गलतियों के लिए नहीं डाँटते। इसलिए हमें प्रकट रूप में हमारा मार्गदर्शन करने और हमारी गलतियों के लिए हमें डाँटने वाले गुरुदेव की आवश्यकता होती है। भगवान सबके हृदय में हैं, फिर भी दुर्गति नहीं रुकती। जब हम गुरु को प्रकट रूप में भगवान मान लेते हैं, तब उनके वचन हमारे हृदय के अंधकार को दूर करते हैं।

गुरु के शब्दों को मानना ही गुरु मानना है। अगर हम उनकी बातों को मानकर उनके दिखाए मार्ग पर चलें, तो कल्याण निश्चित है। उदाहरण के तौर पर, द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिष्य नहीं माना, लेकिन एकलव्य ने उन्हें गुरु मान लिया, और वह अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर बन गया।

मेरे घर वाले मुझे गुरु नहीं बनाने देते, क्या मुझे भगवद् प्राप्ति होगी?

घर वाले गुरु नहीं बनाने देते

आपको किसी से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। बस अंदर ही अंदर “राधा राधा” या जो भी भगवान का नाम आपको प्रिय हो, उसका जप करते रहें। आपके अंदर क्या चल रहा है, यह कोई नहीं जान सकता। सभी साधनों का यही उद्देश्य है कि हमारे अंदर भगवान की मधुर स्मृति बनी रहे। बाहरी क्रियाओं से आपके परिवार वाले आपको रोक सकते हैं, लेकिन आपके अंदर चल रहे चिंतन को कोई नहीं रोक सकता। भगवान का आंतरिक चिंतन ही भगवद् प्राप्ति का मार्ग है। भगवान श्री कृष्ण सभी के गुरु हैं। आप अंदर ही अंदर भजन करें और बाहरी वैष्णव चिह्न न धारण करें, तब भी आपका कल्याण हो जाएगा। भले ही आप तिलक न लगाएं या कंठी माला न पहनें, पर अगर आप भीतर नाम जप रहे हैं, तो भगवान देख रहे हैं कि आप उनका भजन कर रहे हैं। भगवान को आर्त भाव से पुकारें, आपका कल्याण होगा।

सब साधन कर यह फल सुंदर ।
तब पद पंकज प्रीति निरंतर ।।

सभी साधनों का अंतिम लक्ष्य प्रभु के चरण कमलों में अटूट प्रेम और भक्ति प्राप्त करना है।
रामचरितमानस

क्या मैं बिना गुरु बनाए पूजा-पाठ कर सकता हूँ?

क्या मैं बिना गुरु बनाए पूजा-पाठ कर सकता हूँ?

जब हम बिना गुरु के भजन-साधना करते हैं, तो हमारे भीतर यह इच्छा उत्पन्न होती है कि हमें कोई राह दिखाने वाला मिले। हमारे मन में प्रश्न आता है कि हम यहाँ से आगे कैसे बढ़ें। तब स्वयं हरि गुरु के रूप में आते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भगवान के नाम का जप, पाठ, या सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती; बिना गुरु के भजन करने का फल गुरु की प्राप्ति होती है। इसके बाद जब आप गुरु प्रदत्त मार्ग पर चलेंगे, तो आपको परम लाभ प्राप्त होगा। भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपको आपके गुरुदेव से मिला दें। भगवान की कृपा से आपको आपके गुरु से मिलने का अवसर मिल जाएगा, या वे स्वयं आपके पास आ जाएंगे। आप भगवान श्री कृष्ण को गुरु मानकर भजन-साधना (नाम जप, शास्त्र स्वाध्याय, और सेवा) करते रहें, आपको बिना प्रयास के गुरु की प्राप्ति होगी। भगवान का जो भी नाम आपको प्रिय हो, उसका जप करें, और आपको परम शांति प्राप्त होगी।

क्या बिना गुरु दीक्षा के नाम सिद्ध नहीं होता?

गुरु शिष्य को आशीर्वाद देते हुए

गुरु के मुख से मिले मंत्र या नाम का विशेष प्रभाव होता है। अगर आपके गुरु नहीं हैं और आप “राम-राम” का जप कर रहे हैं, तो इसके परिणामस्वरूप आपको गुरु की प्राप्ति होगी। लेकिन जब आपके गुरु आपको राम-राम जपने की आज्ञा देंगे, तब उससे आपको श्रीराम की प्राप्ति होगी। यही शास्त्रीय सिद्धांत है। फिर भी, अगर आप बिना गुरु के भी नाम जपते हैं, तो वह आपका कल्याण ही करेगा। जैसे अजामिल ने मरते समय अपने पुत्र को बुलाने के लिए नारायण नाम लिया (जो उसे गुरु द्वारा नहीं दिया गया था), फिर भी उसे भगवान की प्राप्ति हो गई। नाम जप से कल्याण निश्चित है।

भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

रामचरितमानस
अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।

गुरु बिना नाम जाप पर सुविचार

गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई,
जौ बिरंचि संकर सम होई
रामचरितमानस
भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता

सांदीपनि ऋषि के साथ भगवान कृष्ण

भगवान श्री कृष्ण जब अवतरित हुए, तो उन्होंने सांदीपनि ऋषि को अपना गुरु बनाया। जब भगवान राम के रूप में अवतरित हुए, तब उन्होंने वशिष्ठ और विश्वामित्र जी को गुरु बनाया। गुरु बनाना परमार्थ मार्ग की एक परंपरा है। फिर भी, यदि आप किसी संत की बात मानकर और उनके निर्देशानुसार नाम जपते हैं, तो आपका कल्याण होगा। गुरु मानना और गुरु की बात मानना, दोनों में अंतर है। सच्चा शिष्य वही है जो गुरु की बात माने।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी गुरु के महत्व पर मार्गदर्शन करते हुए

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