क्या दान दिये बिना भगवान मिल सकते हैं?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
क्या बिना दान दिए ईश्वर प्राप्ति संभव है?

धन दान करना अनिवार्य नहीं है; आप केवल भगवान के नाम का जप करके भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान का नाम जपने से बड़ा कोई दान नहीं है। अगर हमारे परिवार का गुजारा चलता है और हम किसी को एक निवाला भी नहीं देते तो कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि परिवार भी भगवान का ही रूप होता है। हम परिवार की देखभाल के लिए कड़ी मेहनत करें और राधा-राधा जपें। आप दूसरों को दुःख ना पहुँचाएँ और अधर्म आचरण ना करें। आपको ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी – इसके लिए आपको एक रुपया भी दान करने की आवश्यकता नहीं है।

कुछ माँगने वाले दान देने पर ज़ोर क्यों देते हैं?

यदि हर व्यक्ति स्वयं को सुधार ले तो हमारा पूरा समाज सुधर जाएगा। हम एक-दूसरे पर चीज़ें थोपते हैं; यही दिक्कत है। भगवद् गीता में, भगवान हमसे अपना मन उनको समर्पित करने के लिए कह रहे हैं। वह कह रहे हैं, मेरे नाम का जप करो और अपनी बुद्धि मुझे समर्पित कर दो। परम धन तो राधा-राधा है। जो दान देने के लिए आपको मजबूर करे उससे दूरी बनाए रखें।

मन्मना भव मद्भ‍क्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥


अपने मन को मेरे नित्य चिन्तन में लगाओ और मेरे भक्त बनो । इस प्रकार मुझमें पूर्णतया तल्लीन होने पर तुम निश्चित रूप से मुझको प्राप्त होगे ।

भगवद् गीता 9.34

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय ।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय: ॥


मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो और अपनी सारी बुद्धि मुझमें लगाओ । इस प्रकार तुम निस्सन्देह मुझमें सदैव वास करोगे

भगवद् गीता 12.8

कोई भी आपके घर आकर आपको दान देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। या दान न देने पर कोई आपको श्राप नहीं दे सकता। यदि किसी में आपको श्राप देने की क्षमता होती तो वो ऐसा कभी नहीं करता। जिसके पास सामर्थ्य होगी, वो ऐसा कभी नहीं करेगा। सच तो यह है कि ईश्वर को आपसे कुछ भी नहीं चाहिए।

भगवान को समर्पण का एक किस्सा

भगवान को कैसे खुश किया जाए? एक पिता के चार बेटे हैं, और वह घर सेब और केले लाता है। वह प्रत्येक बच्चे को एक सेब और एक केला देता है। उनमें से तीन ने सेब और केला खाना शुरू कर दिया। आखिरी वाला दौड़कर आता है और पिता से खाने का आग्रह करता है। अब पिता के दिल पर क्या गुजरेगी? पिता उसे अपने पास बुलाएगा और अपने हाथों से बच्चे को खाना खिलाएगा। बाकी तीन को वह स्नेह नहीं मिलेगा जो उसे मिलेगा। इसी को भगवान की पूजा कहा जाता है।

दान पर सुविचार

भगवान ने हमें जो भी थोड़ा सा भोजन (भले ही वह नमक और रोटी ही क्यों न हो) दिया है, हम उसे घर पर अपने भगवान को अर्पित करें और फिर खाएँ। हमारे पास जो भी मेहनत की कमाई हो उसे हम अपने माता, पिता, बहन, परिवार आदि की सेवा में खर्च करें। अगर आपको लगता है कि आपके पास अतिरिक्त पैसा बचा है, तो आप उसे गलत कामों में नहीं बल्कि बीमारों या किसी जानवर या पक्षी की सेवा में, या किसी ऐसे व्यक्ति की सेवा में खर्च करें जो आपके लिये बदले में कुछ नहीं कर सकता या आपको धन्यवाद नहीं करता। यदि वह धन्यवाद कहता है तो आपकी सेवा सही नहीं है। सेवा ऐसी करें कि उसे धन्यवाद भी न कहना पड़े। नेकी कर दरिया में डाल।

दान माँगे जाने पर मना कैसे करें?

हमें कहीं भी किसी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए। अगर कोई आपके घर पर दान माँगने आता है तो आपकी पहली प्रतिक्रिया दयालु शब्दों के साथ उनका स्वागत करना होना चाहिए। आप कह सकते हैं कि हमारे पास क्षमता या श्रद्धा नहीं है; यह खुली बात है, इसमें छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। हम आपको पीने के लिए पानी या खाने के लिए भोजन दे सकते हैं। यदि वे पैसे माँगना जारी रखते हैं, तो आप अनुरोध कर सकते हैं कि वे चले जाएँ। इसमें कोई अपराध नहीं है। हमें धीरे से बोलना चाहिए; किसी के साथ अभद्र व्यवहार करने की जरूरत नहीं है। अगर वे कहें कि यदि हम खाली हाथ गए तो तुम नष्ट हो जाओगे, कृपया कुछ न कहें, अपने दरवाजे के अंदर आ जाएँ, वे स्वयं नष्ट हो रहे हैं। वे इस स्वभाव से जलते हैं और उनसे ईर्ष्या की दुर्गंध आती है। ऐसे लोगों से कभी नहीं डरना चाहिए। 

निष्कर्ष

जो लोग ईश्वर से प्रेम करते हैं और उन पर निर्भर रहते हैं वे किसी को सिर्फ इसलिए नुकसान नहीं पहुँचाएंगे क्योंकि उन्हें कुछ नहीं मिला। आचार्यों ने घर-घर मधुकरी से रोटी मांगने का आदेश दिया है। परन्तु कोई भी धर्मग्रन्थ धन मांगने का निर्देश नहीं देता। प्रभु सभी को जीविका प्रदान करते हैं। पैसा देकर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। अन्यथा, अमीर लोगों ने इसे एक बार नहीं, बल्कि शायद कई बार खरीद लिया होता। भगवान, जिनकी लक्ष्मी हर समय सेवा करती हैं, केवल उनके भक्तों द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं। प्रेम खरीदा नहीं जाता है। प्रेम पैसे से नहीं बल्कि भजन और भक्तों के आशीर्वाद से प्राप्त होता है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज दान देने या ना देने पर मार्गदर्शन करते हुए

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