कूबा जी (केवलराम जी) की कहानी – नाम जप की महिमा

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
कूबा जी (केवलराम) जी की कहानी

यह कहानी कूबा जी महाराज की है जिनका नाम उनके गुरुदेव द्वारा केवलराम जी रखा गया था। वे एक कुम्हार थे। उन्होंने श्री कृष्णदास पयहारी जी के सत्संग में जाना शुरू किया और उन्हें सद्गुरु रूप में वरण किया। जाति से वे कुंभकार (कुम्हार) थे, लेकिन उनकी स्थिति महान संतों के समान हो गई थी।

कूबा जी का संत सेवा में समर्पण

कूबा जी (केवलराम जी) की संत सेवा के प्रति निष्ठा

वे संतों की सेवा में लीन रहते थे। उन्होंने समझ लिया कि संत सेवा ही भगवद् कृपा का मुख्य साधन है। यदि संतों की आराधना की जाए तो भगवान को प्राप्त करना सहज हो जाता है। कोई भी वैष्णव या संत उनके घर आता तो वे उनका आदरपूर्वक सत्कार करते। उनके घर में साधु-संतों का आना-जाना लगा रहता था। वे महीने में केवल तीस बर्तन बनाते थे और उनमें से रोज़ केवल एक ही बेचते थे। इस सीमित कमाई से ही वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते और शेष धन से संत सेवा करते थे। वे अधिक बर्तन इसलिए नहीं बनाते थे क्योंकि उनका मत था कि यदि हम अधिक व्यापार और सांसारिक गतिविधियों में उलझ जाएंगे, तो हमारा मन आंतरिक भजन में नहीं लगेगा।

कूबा जी का संत सेवा के लिए ऋण लेने का संकल्प

कूबा जी (केवलराम जी) का संकल्प – संत सेवा के लिए ऋण लेने का दृढ़ निश्चय

एक दिन उनके घर में बहुत से संतो की मंडली आई। किंतु उनके घर में संत सेवा के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने पत्नी से कहा, “अब हमें किसी से उधार लेना पड़ेगा। संत आए हैं, और वे भूखे नहीं रह सकते।” वे यह भी कर सकते थे कि संतों से हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कह देते कि उनके पास भोजन की व्यवस्था नहीं है, लेकिन उनके प्रेमी हृदय ने यह स्वीकार नहीं किया। उन्होंने सोचा, “संताें की सेवा के लिए ऋण भी लेना पड़े तो कोई दोष नहीं।”

कूबा जी का संत सेवा के लिए उधार लेने का प्रयास

कूबा जी (केवलराम जी) का संत सेवा के लिए ऋण लेने का प्रयास

वे एक महाजन के पास गए और कहा, “हमारे घर बीस पच्चीस संत आए हैं। हमें उनके लिए भोजन सामग्री चाहिए। कृपया हमें उधार दे दें, हम धीरे-धीरे इसे चुका देंगे।” अधिकांश महाजनों ने यह कहकर मना कर दिया कि यह गरीब आदमी है, इसे उधार देने का कोई लाभ नहीं। लेकिन एक चतुर महाजन ने कहा, “यदि तुम मेरा एक काम कर दो, तो जितनी भी सामग्री चाहिए, मैं दे सकता हूँ।”

कूबा जी महाराज ने पूछा, “आपका क्या काम है?” महाजन ने कहा, “हमारे कुएं की खुदाई का काम रुका हुआ है। यदि तुम उसे पूरा कर सको, तो मैं तुम्हें संत सेवा के लिए सामग्री दे दूंगा।” यह सुनकर कूबा जी महाराज ने खुश होते हुए सहमति दे दी।

कूबा जी की निःस्वार्थ सेवा भावना

कूबा जी (केवलराम जी) का निःस्वार्थ सेवा भाव

कूबा जी ने संतो की सेवा के लिए उधार लेना भी स्वीकार कर लिया। वे भक्तों की सेवा में इतने तन्मय थे कि उन्होंने सेवा की सामग्री ली और संतों की सेवा की। उनकी पत्नी भी इस सेवा में सहभागी बनीं। फिर वे दोनों तय किया हुआ कार्य करने के लिए वापस आए। वे खुदाई करते हुए हर फावड़े के साथ राम-नाम का उच्चारण करते। पत्नी मिट्टी बाहर फेंकती, और वे आपस में भी ईश्वर के नाम लेकर ही संवाद करते।

उन्हें मेहनत करता देखकर महाजन को तो आनंद हो गया। वह सोचने लगा कि थोड़ी सामग्री देकर उसने बहुत बड़ा कार्य करवा लिया। जैसे-जैसे फावड़ा चलता, केवलराम जी “सियाराम, सियाराम” कहते, मिट्टी निकालकर तसले में रखते और संकेत में अपनी पत्नी से कहते —”सियाराम” अर्थात “उठाओ”। फिर वे कहते “सियाराम” और वह मिट्टी उठाती। इस प्रकार, वे दोनों एक-एक कदम आगे बढ़ते।

असंभावित हादसा

केवलराम जी (कूबा जी) के साथ अनहोनी घटना

अब वे कुआं खोदने में तल्लीन हो गए। खुदाई के दौरान मिट्टी खिसकने लगी, क्योंकि चारों ओर रेतीली मिट्टी थी। कुछ ही समय में हज़ारों मन मिट्टी खिसक गई। कुआं गहरा हो चुका था और अब बस पानी निकालने की देर थी कि अचानक ऊपर की पहाड़ी धंस गई और केवलराम जी मिट्टी के नीचे दब गए। मिट्टी इतनी तेजी से गिरी कि चारों ओर बस धूल ही धूल थी। अब किसी को भी यह संभव नहीं लग रहा था कि वे जीवित बचेंगे। उनकी पत्नी को समझाया गया कि अब कुछ भी संभव नहीं, लेकिन वे धैर्यवान थीं। उन्होंने इसे प्रभु की इच्छा और अपने प्रारब्ध का फल माना।

एक महीने बाद का चमत्कार

राजा ने कूबा जी (केवलराम जी) के बचाव के लिए तुरंत खुदाई का आदेश दिया।

एक महीने तक कोई भी उस स्थान के पास नहीं गया, क्योंकि यह एक बहुत ही दुखद घटना थी। एक महीना बीत गया, और तभी उधर से गुजरने वाले कुछ लोगों ने अचानक नाम ध्वनि सुनी—”सियाराम, सियाराम, सियाराम”। यह ध्वनि अत्यंत आनंददायक थी।

जो भी उस स्थान के पास गया, वह इस नाम ध्वनि को सुनकर रोमांचित हो उठा। यह कोई साधारण ध्वनि नहीं थी, यह गहन आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी हुई थी। यात्रियों ने यह भी सुना कि सिर्फ नाम ही नहीं, बल्कि मृदंग और करताल की ध्वनि भी आ रही थी। उसी समय उधर से एक राजा गुजरा, जिसने भीड़ देखकर पूछा कि यहाँ क्या हो रहा है। लोगों ने बताया कि यह स्थान वह है, जहाँ केवलराम जी कुआं खोद रहे थे और मिट्टी के नीचे दब गए थे। राजा ने यह सुनते ही आदेश दिया कि तत्काल खुदाई करवाई जाए।

लोगों ने कहा कि इतनी गहरी मिट्टी के नीचे कोई जीवित कैसे रह सकता है? लेकिन नाम ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी। जब मिट्टी हटानी शुरू की गई, तो एक गुफा जैसी संरचना दिखाई दी। प्रभु की कृपा देखिए—जहाँ केवलराम जी बैठे थे, वहाँ मिट्टी नीचे तक नहीं गिरी थी, बल्कि ऊपर ही रुक गई थी। यह एक चमत्कार था!

अटूट भक्ति और नाम-जप का प्रभाव

केवलराम जी (कूबा जी) चमत्कारिक रूप से सुरक्षित रहे

जब सभी ने देखा, तो पाया कि केवलराम जी आरामदायक मुद्रा में बैठे हुए थे और जोर-जोर से “सियाराम, सियाराम” का जप कर रहे थे। उनके पास सुंदर पात्र में भोजन रखा था और जल भी रखा था। प्रश्न यह था कि यह भोजन और जल वहाँ कैसे पहुंचा?

सोचिए, यदि किसी लिफ्ट में बिजली चली जाए, तो कितनी घबराहट होती है! लेकिन यह भक्त तो एक गहरे कुएँ में बैठे थे, और न केवल जीवित थे, बल्कि पूर्णतः आनंदमग्न भी थे। यह उनकी अटूट भक्ति और प्रभु के नाम पर दृढ़ विश्वास का परिणाम था। यह नाम-जप का प्रभाव था कि उन्होंने किसी भी प्रकार की घबराहट महसूस नहीं की।

जो भक्त सच्चे मन से नाम-जप करता है, उसका पालन-पोषण स्वयं प्रभु करते हैं। जब खुदाई पूरी हुई, तो सभी ने देखा कि केवलराम जी सुरक्षित थे। बस, उनकी पीठ पर हल्की चोट आई थी, लेकिन वे पूर्णतः स्वस्थ थे। वे पूरे एक महीने से उस स्थान पर थे, और फिर भी उनके पास जल और भोजन उपलब्ध था।

अब नगर के लोग दौड़-दौड़कर आ रहे थे। अलग-अलग गाँवों से लोग भेंट लेकर आ रहे थे। यह आश्चर्य की बात थी कि एक महीना बीत जाने के बावजूद वे जीवित थे और भजन कर रहे थे। लोग श्रद्धा से उनके चरणों में झुक गए। यह ईश्वर की कृपा थी, यह नाम-जप की महिमा थी।

कूबा जी के जीवन से नाम-जप की महिमा

नाम-जप में अद्भुत शक्ति है। यह केवलराम जी का दृढ़ विश्वास और भजन ही था, जिसने उन्हें मृत्यु के मुख से बाहर निकाला। यह भगवान के नाम की अपार महिमा को दर्शाता है।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

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