1. एक करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

संत पलटूदास जी कहते हैं कि एक करोड़ नाम जपने के बाद, नाम रूपी दीपक से शरीर रूपी महल प्रकाशित हो जाता है। इससे शरीर परम पवित्र और निष्पाप बन जाता है। एक करोड़ नाम जपने के पश्चात रजोगुण और तमोगुण का नाश हो जाता है, और हर समय शुद्ध सतोगुण की स्थिति बनी रहती है। शुद्ध सतोगुण की अवस्था में हर समय भगवान का भजन होता रहता है।
इसके आगे, रोग उत्पन्न करने वाले जितने भी पापों के बीज होते हैं, वे सभी नष्ट हो जाते हैं। यदि कोई रोग पहले से हो, तो उसे सहने की सामर्थ्य प्राप्त हो जाती है। तब तत्काल उसके भीतर भावनाओं का प्रवाह फूट पड़ता है, और वह उन भावनाओं में डूबा रहता है। स्वप्न में उसे बड़े-बड़े देवता, ऋषि-मुनि, संत और भक्त मिलते हैं, और उनसे वार्तालाप भी होता है।
2. दो करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जैसे ही दो करोड़ नाम जप की संख्या पूरी होती है, धन का जो अभाव था, वह समाप्त हो जाता है। मनुष्य के भीतर जो यह भाव रहता है कि “मैं ऐश्वर्यवान बनूं, धनवान बनूं” — वह भाव भी समाप्त हो जाता है। यदि किसी को धन की आवश्यकता हो, तो कहा गया है कि निर्धनता की जो पीड़ा उसे भीतर से सता रही थी, वह समाप्त हो जाती है। उसकी आवश्यकताओं से अधिक धन भगवान देने लगते हैं, जब दो करोड़ नाम जप पूरा हो जाता है।
दो करोड़ नाम जप करने वाले साधक के भीतर से धन की चाह समाप्त हो जाती है। भगवान दो प्रकार से चाह की पूर्ति करते हैं — एक तो चाह को समाप्त करके अचाह (इच्छा रहित) कर देते हैं, और दूसरा, इतना धन दे देते हैं कि उस चाह से अचाह की अवस्था आ जाती है। दैन्यता, दुःख और भटकाव — यह सब समाप्त हो जाता है। दरिद्रता के जितने भी उपद्रव होते हैं, वे सभी समाप्त हो जाते हैं। उसके जीवन में केवल सुख ही सुख छा जाता है। सारी अनुकूलताएँ उसे घेर लेती हैं। सारे वैभव उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। यह स्थिति ऐसी होती है जैसे समुद्र कभी नदियों को बुलाता नहीं, फिर भी नदियाँ दौड़ती हुई समुद्र में समा जाती हैं। उसी प्रकार, दो करोड़ नाम जप करने वाले साधक के पास सुख और समृद्धि स्वयं चली आती है।
3. तीन करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

तीन करोड़ नाम जप करने वाले का हृदय अत्यंत पवित्र हो जाता है। जो पहले असाध्य लगता था — जैसे काम वासना को छोड़ना, क्रोध पर नियंत्रण पाना — वह सब साध्य होने लगता है। जो वह चाहता है, वह होने लगता है। यह तीन करोड़ नाम जप करने वाले साधक की विशेष स्थिति होती है।
ऐसे साधक को संसार प्रेम करने लगता है। जब उसका तीन करोड़ नाम जप पूर्ण हो जाता है, तो संसार उसे उसी प्रकार स्नेह करता है जैसे एक सगा भाई अपने सगे भाई से करता है — बल्कि उससे भी अधिक घनिष्ठता से। पूरा संसार उसे प्रेमपूर्वक देखने लगता है, जिसके पास तीन करोड़ नाम रूपी धन संचित हो जाता है।
4. चार करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

चार करोड़ नाम जप से भीतर भगवदानंद स्फुरित होने लगता है। अब मान-अपमान, लाभ-हानि, सुख-दुख, और अन्य सभी द्वंद्वों का उसके हृदय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जब चार करोड़ नाम जप पूर्ण होता है, तब साधक का हृदय परम पवित्र हो जाता है — ऐसी स्थिति में कोई भी बाधा, चाहे लौकिक हो या पारलौकिक, बाहरी हो या भीतरी, उसे स्पर्श नहीं कर सकती।
उसे अपने नित्य स्वरूप का बोध हो जाता है — कि “मैं नित्य हूँ, यह शरीर और संसार अनित्य हैं।” इसके लिए उसे वेदांत पढ़ने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। केवल चार करोड़ नाम जप से ही यह ज्ञान जागृत हो जाता है। ऐसे प्राणी को नित्यत्व के बोध का अपूर्व सुख मिलता है। कायिक (शारीरिक), वाचिक (वाणी से), और मानसिक — सभी प्रकार के दुःख समाप्त हो जाते हैं। उसका शरीर निर्विकार, मन निर्विकार और वाणी विकार रहित हो जाती है। उसका जीवन आनंदमय बन जाता है। चार करोड़ नाम जप के परिणामस्वरूप उसे अपने स्वरूप का बोध और निर्विकार स्थिति प्राप्त होती है।
5. पाँच करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब कोई साधक पाँच करोड़ नाम जप कर लेता है, तो उसके भीतर विद्या का प्रादुर्भाव हो जाता है। जो ज्ञान शास्त्रों में लिखा है, वह उसकी वाणी से स्वयं प्रकट होने लगता है। यदि वह संसार की कामनाएँ करता है, तो जो भी चाहे — वह उसे प्राप्त हो जाता है। पाँच करोड़ नाम जप करने वाला पुत्रहीन भी पुत्रवान हो जाता है, और अल्पायु व्यक्ति आयुष्मान हो जाता है। यदि कोई मूर्ख होता है, तो वह भी महान विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता बन जाता है। यदि कोई उससे द्वेष करता है, तो वह व्यक्ति उसके सामने झुकने को विवश हो जाता है। जो कुछ वह चाहता है, वह उसे सहज ही प्राप्त होने लगता है।
6. छह करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जैसे ही कोई साधक छह करोड़ नाम जप करता है, वह छह शत्रुओं — काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर — पर विजय प्राप्त कर लेता है। उसे अपने स्वरूप का बोध हो जाता है, और उसके जीवन में अपार धन-संपत्ति तथा स्वप्न में देव, देवता और महापुरुषों के दर्शन होने लगते हैं। यह सब अपार आनंदमय अनुभव होता है। छह करोड़ नाम जप करने पर असाध्य से असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है। यदि कोई ऐसा रोग हो जो कभी ठीक नहीं होता, और साधक संकल्पपूर्वक छह करोड़ नाम जप करे, तो वह तत्काल ठीक हो सकता है।
अब प्रश्न यह उठता है — जो भजनानंदी महात्मा हैं, उनके जीवन में फिर भयानक रोग क्यों देखे जाते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे छह करोड़ नाम इस नाशवान शरीर की रक्षा के लिए व्यर्थ नहीं करते। यह तो ऐसा हुआ जैसे कोई ब्रह्मास्त्र का प्रयोग मच्छर मारने के लिए करे। वे सोचते हैं कि जब तक जीना है, तब तक यह शरीर जी ले — लेकिन छह करोड़ नाम जप का उद्देश्य तो भगवान की प्राप्ति होना चाहिए, न कि केवल शरीर की रक्षा।
7. सात करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब कोई साधक सात करोड़ नाम जप कर लेता है, तब त्रिभुवन की कोई भी कामिनी उसे आकर्षित नहीं कर सकती — चाहे वह इस लोक की हो, स्वर्गलोक की अप्सरा हो या ब्रह्मलोक की कोई देवी। उसके भीतर परम पवित्र भाव जागृत हो जाता है, जिसमें कामिनी के प्रवेश की कोई संभावना ही नहीं रह जाती।
ऐसी स्थिति में न भारी से भारी प्रतिकूलता, न अत्यंत अनुकूलता — कुछ भी उसे भगवान के नाम से विचलित नहीं कर सकती। सात करोड़ नाम जपने वाला साधक उस गाढ़ और घनीभूत नाम रस में डूबा होता है, जहाँ समस्त विश्व की अप्सराएँ भी एकसाथ प्रयास करें, तो भी उसे मोहित नहीं कर सकतीं।
8. आठ करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब कोई साधक आठ करोड़ नाम जप कर लेता है, तो मृत्यु का भय पूर्णतः समाप्त हो जाता है। यद्यपि वह दीर्घायु होता है, क्योंकि भगवान के नाम जप से अकाल मृत्यु का नाश हो जाता है, लेकिन उसका शरीर से कोई संबंध नहीं रह जाता। वह आत्म-स्वरूप में स्थित हो जाता है, और आत्म-सिंहासन पर हर समय विराजमान रहता है।
जिसका आठ करोड़ नाम जप पूर्ण हो जाता है, वह पूर्ण आत्मज्ञानी महापुरुष बन जाता है। वह शरीर, संसार, लोभ, व्यवहार, काम, क्रोध, मोह, मद और मत्सर — इन सब से परे होकर निर्विकार परमात्म स्वरूप हो जाता है।
9. नौ करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब साधक का नौ करोड़ नाम जप पूर्ण हो जाता है, तब उस नाम का अधिष्ठात्र देवता साक्षात उसके सम्मुख प्रकट हो जाता है। यदि कोई “राम राम” जपता है, तो स्वयं श्रीराम प्रकट हो जाते हैं। “राधा राधा” का जप करने पर श्री राधा सामने आ जाती हैं। गिनती करके जपना एक उपाय है और दूसरा उपाय है कि आप निरंतर नाम जपते रहें, जब संख्या पूरी होगी तब भगवान का साक्षात्कार अपने आप हो जाएगा।
अब गिनती कौन करे? जिन्हें गिनती आती है, वे गिन सकते हैं। लेकिन हम तो प्रभु से कहते हैं — जप हम करें, गिनो तुम, हे प्रभु! हमें विश्वास है कि तुम संख्या में बेईमानी नहीं करोगे, और हम जपने में कभी बेईमानी नहीं करेंगे।
रात-दिन निरंतर नाम जपो। आज देखो — हर ओर हाय-हाय, पीड़ा, समस्या है। इन सबसे मुक्ति चाहिए तो बस भगवान के नाम को पकड़ो और जपते जाओ। देखो, क्या-क्या नहीं मिलेगा! नाम रूपी अमूल्य धन को भूलकर लोग थोड़े से पैसे, थोड़े से सुख के पीछे छल-कपट से भटक रहे हैं — क्या इनमें कभी विश्राम मिल सकता है?
नौ करोड़ नाम जप करने वाले साधक को भगवान का सगुण साक्षात्कार होता है। जब कोई पूछे — “भगवान कितने में मिलते हैं?” तो उत्तर दो — “नौ करोड़ नाम जप में।” उस साधक के सामने साक्षात श्री राम, श्री राधा, शिव-पार्वती, जिसे वह चाहता है, प्रकट हो जाते हैं। नौ करोड़ नाम जपने वाला साधक अपनी वाणी से सत्यवक्ता बन जाता है। वह जो भी कहता है, वह घटित होता है। यदि वह कहे, “जाओ, तुम्हारा मंगल हो,” तो सचमुच मंगल होता है। यदि कहे, “जाओ, तुम्हें भगवान का साक्षात्कार हो,” तो भगवद् साक्षात्कार हो जाता है।
10. दस करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब साधक का दस करोड़ नाम-जप पूर्ण होता है, तो उसका संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण — तीनों प्रकार के कर्म भस्म हो जाते हैं। अब उसे प्रारब्ध भोगने की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त हो जाती है, बिना दुख की छाया के। इस अवस्था तक पहुँचने से पहले ही उसे भगवत-साक्षात्कार हो चुका होता है, पर अब उसके आगे जो जप होता है, वह कर्मों को जला डालता है। अब कर्मों की कोई पकड़ नहीं, कोई संस्कार शेष नहीं। उसके हृदय में अब भगवान का साक्षात् स्वरूप स्थिर हो गया है — वह आत्मस्वरूप में स्थित, आनंदमय और मुक्त है।
अब प्रश्न उठता है — “क्या भगवान के दर्शन के बाद भी जन्म होता है?” हाँ, कई उदाहरण हैं: मुचुकुंद जी को भी दर्शन के बाद अगले जन्म का निर्देश मिला। दुर्योधन ने भी श्रीकृष्ण के दर्शन किए थे। कई जनों को दर्शन हुए, पर जब दर्शन के बाद भजन नहीं हुआ, तो जन्म का चक्र चलता रहा। इसीलिए भजन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। दस करोड़ नाम जपने के बाद, साधक के कायिक, मानसिक और वाचिक सभी प्रकार के कर्म समाप्त हो जाते हैं। अब न कोई संस्कार शेष है, न पुनर्जन्म की कोई आवश्यकता। वह अब भावस्वरूप में स्थित है — आत्मसाक्षात्कार के साथ। इस अवस्था के बाद प्रकट होता है — भाव देह का प्रादुर्भाव।
11. ग्यारह करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?

जब साधक ग्यारह करोड़ नाम का जप पूर्ण कर लेता है, तब ‘लाभ’ का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। जो कुछ भी संसार, वेदांत, योग, भक्ति, ज्ञान, तप में लाभप्रद माना जाता है — वह सब उसके सम्मुख पहले से ही सुलभ होता है। भक्ति की नवधा अवस्थाएँ, ज्ञान की अष्ट भूमिकाएँ, योग की आठों सिद्धियाँ, लौकिक और पारलौकिक सुख और सभी प्रकार की ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ, सभी उसे सहज में प्राप्त हो जाती हैं।
अब वह साधक केवल प्राप्ति की दिशा में नहीं चलता, बल्कि वह स्वयं प्रदान करने वाला, लीलाओं में रमण करने वाला बन जाता है। वह चाहे तो गोकुल की लीला देखे, चाहे तो अयोध्या की राम-कथा में प्रवेश करे या फिर काशी में शिवतत्त्व की लीला का अनुभव करे। सभी दिव्य लीलाएं, समय-काल से परे होकर, उसके भीतर ही प्रकट होने लगती हैं।
12. बारह करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?
जब कोई साधक बारह करोड़ बार भगवान का नाम जप चुका होता है, तब भगवान स्वयं उस नाम-जापक के अधीन हो जाते हैं और उसके पीछे-पीछे डोलते हैं।
13. तेरह करोड़ नाम जपने पर क्या होगा?
तेरह करोड़ नाम-जप करने वाला साधक न केवल स्वयं मुक्त हो जाता है, बल्कि दूसरों को भी मोक्ष प्रदान कर सकता है। वह किसी भी पापी जीव को भी मोक्ष दे सकता है।
निष्कर्ष
नाम-जप बहुत महान साधना है। अब एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए — क्योंकि जो भी चाहिए, वह नाम-जप से ही प्राप्त हो सकता है। नाम में ही सब कुछ समाया हुआ है — चाहे धन चाहिए, जीवनसाथी चाहिए, संतान चाहिए — जो भी चाहिए, वह सब नाम-जप से मिल सकता है। लेकिन यह ऐसा नहीं है कि बस दो-चार माला फेर ली और सब कुछ मिल गया। कर्दम ऋषि ने दस हजार वर्षों तक भगवान का नाम जपा, तब जाकर उन्हें देवहूति जैसी पुण्यवती पत्नी मिली, जो स्वयं स्वायंभुव मनु और शतरूपा की पुत्री थीं। और उनके पुत्र रूप में स्वयं भगवान कपिलदेव जी प्रकट हुए। अब हमारे पास तो दस हजार वर्षों की आयु नहीं है — परन्तु जो सत्तर-अस्सी वर्ष का जीवन है, उसमें यदि हम पूरी लगन, श्रद्धा और सतत प्रयास से नाम-जप करें, तो नाम-जप के माध्यम से जो चाहेंगे, वह अवश्य प्राप्त हो सकता है।
मन ने हर किसी पर अधिकार कर रखा है, और जो व्यक्ति अपने मन पर अधिकार कर लेता है, वही सच्चे सम्मान का अधिकारी बनता है। जो व्यक्ति नाम-जप करता है, वह अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण पा लेता है और उसका मन उसके अधीन हो जाता है। जो बुद्धि पहले प्रकृति के अधीन थी, वह अब परमात्मा के अधीन हो जाती है। जो कुमति (दुष्ट बुद्धि) के कारण जड़ और चैतन्य के बीच की गांठ पड़ी थी, वह अब खुल जाती है और सुमति प्रकट होती है। नाम-जप करने वाले को किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं पड़ती; स्वयं ही वह दिव्य बोध प्राप्त कर लेता है।
यदि भगवान में आसक्त होना है तो एक सरल नियम अपनाइए। जैसे एक गरीब आदमी धन कमाने का विचार करके निरंतर मेहनत करता है, वैसे ही आप भगवान का नाम-जप करके, नाम रूपी धन इकट्ठा करें। जो चाहेंगे, वह प्राप्त होगा। इसलिए एक नियम बना लें: आपकी जिह्वा से भगवान का नाम कभी न छूटे। अधिक से अधिक नाम-संख्या इकट्ठा करें और उसे भगवान के चरणों में अर्पित करें। आप जो चाहेंगे, वह प्राप्त होगा। और यदि सच पूछा जाए, तो नाम-जप का फल यही है कि आपकी कोई इच्छा नहीं रह जाएगी, कोई चाहत नहीं रहेगी।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज