चतुरदास जी नाम के एक महापुरुष थे, जो अपने गुरुदेव की सेवा में रहते थे। इनका नाम बाद में खोजी जी पड़ा। जब उनके गुरुदेव लघुशंका (पेशाब) करने जाते थे, तो वे बाहर पानी लिए खड़े रहते। एक दिन वे जल लिए खड़े थे। पास ही एक पीपल का पेड़ था, और वायु के कारण उसके पत्ते और बीज नीचे ज़मीन पर गिर गए थे। उनके गुरुदेव लघुशंका करके वापस आए और हँसने लगे। उन्होंने अपने गुरुदेव के हाथ धुलाते हुए उनकी हँसी का कारण पूछा।

चतुरदास जी के गुरुदेव की हँसी का रहस्य
उनके गुरुदेव ने कहा, “तुम कैसे शिष्य हो, मेरी सेवा में रहते हो और मेरी हँसी का कारण नहीं जान पाए। जो गुरु के मन की बात ना जान पाए, वह शिष्य ही क्या? सेवा छोड़ो और मैं क्यों हँसा, इसकी खोज करके आओ।” गुरुजनों की सेवा करना बहुत कठिन है। खोजी जी (चतुरदास जी) के गुरुदेव ने उनसे कहा, “तुम्हारी बुद्धि अब मेरी सेवा की अधिकारी नहीं है। जब तक तुम मेरे हँसने का कारण पता नहीं कर लेते, तुम्हें मेरे पास वापस आने की ज़रूरत नहीं।”
खोजी जी की कठिनाई

उन्होंने अपने गुरुदेव को साष्टांग दंडवत किया और उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए चल दिए। अब उन्हें जहाँ भी संत-महात्मा मिलते, वे विनम्रतापूर्वक उन्हें दंडवत करते और पूछते, “मेरे गुरु जी ने लघुशंका करते समय हँस दिया, इसका क्या कारण था?” सब संत उनसे कहते, “हमसे गीता की बात पूछो, भागवत की बात पूछो, वेदों के बारे में पूछो, लेकिन तुम्हारे गुरुजी क्यों हँस दिए, यह हमें क्या पता।” उनका उपहास होने लगा।
अब वे अंदर से जलते रहते कि वे गुरु सेवा से वंचित हो गए। वह रात-दिन जलते रहते और इसी प्रकार और भी संतों से जाकर पूछते रहते, पर उन्हें कोई समाधान नहीं मिला।
कबीरदास जी का खोजी जी के समक्ष प्रकट होना
अब उन्होंने विचार किया कि वे गुरु जी के सामने जा नहीं सकते, सेवा कर नहीं सकते, तो अब इस शरीर का क्या काम? उन्होंने आत्महत्या करने का निर्णय लिया। वह एकांत में जाकर एक वन में बैठ गए और नाम जप करने लगे। उन्होंने सोचा कि अब वह कुछ खाएँगे-पिएँगे नहीं और अपना शरीर त्याग देंगे। कुछ दिन तक उन्होंने कुछ नहीं खाया-पीया। इसके बाद उनके सामने कबीरदास जी प्रकट हुए।

जब कोई सच्ची भावना से भगवान का भजन करता है, तो भगवान अपने दिव्य पार्षदों को उसके पास भेज देते हैं। कबीरदास जी ने उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “जब तुम्हारे गुरु जी लघुशंका कर रहे थे, तो उनकी लघुशंका में पीपल का एक बीज बह रहा था। बीज को लघुशंका में बहते हुए देखकर गुरु जी विचार करने लगे कि इस बीज में पीपल का पूरा वृक्ष छुपा हुआ है। जब यह बीज पीपल में था, तो कितना वंदनीय और सुव्यवस्थित था। लेकिन जब यह पीपल से अलग हुआ, तो लघुशंका में बह गया।”
कबीरदास जी ने उन्हें समझाया, “इसका मतलब है कि पीपल का वृक्ष साक्षात ब्रह्म है और उसका अंश जीव है। जीव जब अविद्या के कारण ब्रह्म से अलग हो जाता है, तो आसक्त होकर मल-मूत्र के द्वारों में बह जाता है। अगर वह ब्रह्म से जुड़ा रहे, तो वह ब्रह्ममय और पूजनीय हो जाता है। जब जीव ब्रह्म से अलग हो जाता है, तो मल-मूत्र के शरीर में आसक्त होकर मल-मूत्र के द्वारों को भोगने में पूरा जीवन नष्ट कर देता है। जीव जब प्रभु से विमुख हो जाता है, तो उसकी यही दुर्गति होती है। जैसे पीपल के वृक्ष से वह बीज जब अलग हो गया, तो लघुशंका के प्रवाह में बह गया, वरना उसमें एक महान वृक्ष छुपा हुआ था। ऐसे ही जीव जब भगवान से विमुख हो जाता है, तो वह मल-मूत्र के द्वारों के सुखों में बहने लगता है।”
खोजी जी की गुरुदेव के पास वापसी

खोजी जी ने कहा, “अरे! मेरे गुरुजी के हँसने का इतना गूढ़ रहस्य था।” अब खोजी जी का संशय मिट गया। वे अपने गुरुदेव के पास आए और उन्हें साष्टांग दंडवत किया। उन्होंने बताया कि कबीरदास जी ने उन्हें उनके प्रश्न का उत्तर दे दिया है। उनके गुरुदेव मुस्कुराए और उन्होंने कहा, “एक प्रश्न ने तुम्हें सिद्ध बना दिया। अब आज से तुम हमारे समान सिद्ध हो गए हो। आज से तुम मेरे मन की सब बातें जान लोगे।”
खोजी जी के गुरुदेव के मोक्ष का रहस्य
खोजी जी के गुरुदेव भगवद् चिंतन परायण रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया, उन्होंने एक घंटा बाँध दिया और अपने शिष्यों से कहा कि जब उनका मोक्ष हो जाएगा, तो घंटा अपने आप बज जाएगा। जब उनकी मृत्यु हुई, तो घंटा नहीं बजा। इसपर सभी शिष्यों को आश्चर्य हुआ। सब शिष्यों को यह चिंता होने लगी कि क्या उनके गुरुदेव की सद्गति नहीं हुई। खोजी जी उस समय भ्रमण पर गए थे। जब वे वापस आए, तो उन्होंने सब शिष्यों को उदास देखा। उन्होंने खोजी जी को सब कुछ बताया। खोजी जी ने उनसे पूछा, “गुरुदेव का शरीर कहाँ छूटा?” सबने उन्हें बताया कि उनके गुरुदेव का शरीर आम के पेड़ के नीचे छूटा था।

खोजी जी वहाँ गए और ठीक उसी स्थान पर लेट गए। उन्होंने ऊपर देखा, तो वहाँ एक पका हुआ आम था। उन्होंने उस आम को तोड़ा और जैसे ही उस आम को चीरा, तो उसमें से एक कीड़ा निकला और उसकी तुरंत मृत्यु हो गई, तब घंटा बज गया। उन्होंने सबको बताया कि गुरुदेव ने अपने अंतिम समय में पका हुआ आम देखा और मृत्यु के समय उनका मन पके हुए आम में फँस गया, और उन्हें एक कीड़े का जन्म लेना पड़ा। उन्होंने इसका एक और अर्थ बताया कि उनका मन आम में ज़रूर गया, लेकिन उन्होंने उस आम को भगवान को भोग लगाने का सोचा और यही सोचते-सोचते उनके प्राण निकल गए। अब उनकी इच्छा पूरी करने के लिए भगवान उस कीट के अंदर परमात्मा के रूप में वह आम खाने आ गए। जब उस कीड़े की मृत्यु हुई, तब परमात्मा रूपी प्रभु उसके शरीर से निकले और खोजी जी के गुरु से मिले और घंटा बज गया।
सीख
1. मन बड़ा चंचल है। जिसका लक्ष्य भगवद् प्राप्ति है, उसे ध्यान रखना होगा कि अंतिम समय तक मन कहीं फँस न जाए।
2. जिसका स्वभाव बन गया है कि वह हर व्यक्ति, वस्तु, और स्थान में अपने प्रभु को ही देखता है, उसकी दुर्गति नहीं हो सकती।
3. जो अपने गुरुदेव की शरण में रहकर उनकी आज्ञा के अनुसार चलता है, गुरु उसे अपने से भी ज़्यादा महिमावान बना देते हैं। अगर खोजी जी को उनके गुरुदेव ने खुद से दूर रहने की आज्ञा दी, तो उन्हें सिद्धों का सिद्ध भी बना दिया। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने गुरुदेव की आज्ञा में अपने जीवन को समर्पित करते हुए प्रियालाल के नाम, रूप, लीला और धाम में अपने मन को लगाएँ।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज