हमें ख़ुद को असमर्थ नहीं समझना। क्योंकि काम हमें बहुत समय से परास्त करते चला आ रहा है, तो हारना हमारा स्वभाव बन गया है। हम प्रभु के जन हैं, हमारे पास प्रभु का नाम है। काम का निवास अहंकार में है। अंतःकरण में चार करण हैं – मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। मैं पुरुष हूँ, मैं स्त्री हूँ, मैं भोक्ता हूँ या मैं कर्ता हूँ, यह अहंकार की भूमि है, यह इसी पर टिकता है। अहंकार निरंतर कहीं वास नहीं कर सकता। भगवान के वचन हैं:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यस्तस्तितिक्षस्व भारत ॥
सुख और दुःख का अस्थायी रूप से प्रकट होना तथा समय के साथ उनका लुप्त हो जाना, शीत और ग्रीष्म ऋतुओं के प्रकट होने और लुप्त होने के समान है। वे इन्द्रिय बोध से उत्पन्न होते हैं, और मनुष्य को उन्हें बिना विचलित हुए सहन करना सीखना चाहिए।
भगवद् गीता, 2.14
काम आता-जाता रहता है। अहंकार इसका निवास स्थान है। हमें इसके घर का दरवाज़ा बंद करना पड़ेगा। जब तक आप अपने में कुछ भी बल मानते हैं (अहंकार), तब तक यह आपको परास्त करता रहेगा। जिस दिन आप निर्बल होकर प्रभु की शरण में अपने अहंकार को समर्पित कर देंगे, फिर किसी की ताकत नहीं कि आपको परास्त कर सके। यह निर्बलता तभी आएगी जब आप नाम जप करेंगे।
काम वासना को परास्त नहीं, बल्कि सहना सीखें
हम अभी कमज़ोर हैं। जब काम आता है तब हम उसे हराने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं और फिर कहते हैं कि काम आया और हमसे ग़लत क्रिया करा गया, अब क्या करें? पहले काम को रोकना सीखें। हमें पहले उसे सहना सीखना है, परास्त करना नहीं।
यं हि न व्यथयन्तयेते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरें सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥
जो मनुष्य सुख-दुःख से विचलित नहीं होता तथा दोनों में स्थिर रहता है, वह अवश्य ही मोक्ष का अधिकारी है।
भगवद् गीता, 2.15
जब भी काम वासना आपको परेशान करे, राधा-राधा जपें, यह आपको काम को सहना सिखाएगा। काम आपसे कहेगा यहाँ चलते हैं, ये देखते हैं, इससे मिलते हैं, ये खाते हैं, आपको बस उसकी हर बात अनसुनी करनी है। वह आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। परेशानी बस यही है कि हम काम को अपना दुश्मन नहीं मानते और उससे प्यार करते हैं। वो जो कहता है, हम कर देते हैं। ऐसे हम कैसे उसपर विजय प्राप्त कर पाएँगे? इसपर विजय प्राप्त करने के लिए पहले आप यह मानिए कि यह हमारा दुश्मन है। यह जन्मों से हमें भगवान से दूर करने के लिये ज़ोर लगा रहा है। अब हमें इससे लड़ना है, अब हमारे पास भगवान के नाम का बल है।
काम वासना से बचने का अचूक उपाय – नाम जप
भगवान के नाम रूपी जहाज़ पर जो चढ़ गया, वो भवसागर से पार हो गया। काम रूपी मगरमच्छ तैरने वाले को परास्त कर सकते हैं, जहाज़ में बैठे व्यक्ति को नहीं। नानक नाम जहाज है, चढ़ै सो उतरे पार। अजामिल ने जीवन भर गंदे आचरण किए, लेकिन अपने जीवन के अंतिम समय में उसने अपने बालक का नाम, नारायण, बोला तो उसे लेने भगवद् पार्षद आ गए और उसका मंगल कर दिया। नाम जप करें। काम के साथ की लड़ाई कोई छोटी-मोटी लड़ाई नहीं है, यह बड़ी ऊंचाई तक अपना अधिकार रखता है। ये भगवान की शक्ति से ही शक्तिमान है। जब तक थोड़ा भी अहंकार रहेगा, तब तक आपको गिरना पड़ेगा। काम तभी बनेगा जब हम मान लें कि हम हार गये। लेकिन यह जीव बहुत ही कपटी है, ये कहता है कि मैं हार गया लेकिन अंदर से नहीं हारता। भगवान तो हमारे अंदर की ही बात देखते हैं। जब हम अंदर से हार जाते हैं तब हरि और गुरु हमारी बाँह पकड़ लेते हैं और उसके बाद कोई हमें परास्त ही नहीं कर सकता।
हार ना मानें – हर कोई लंबे समय से काम वासना से पीड़ित है!
ऐसा नहीं है कि यह केवल आपको ही सता रहा है। बड़े-बड़े संतों को भी इससे राहत के लिए रोना पड़ा है। सबको भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी है – नाथ! मुझे बचा लो। प्रभु का नाम लेने से प्रभु का बल मिलता है और धीरे-धीरे ऐसी ऊँचाई आती है कि फिर काम आपको छू ही नहीं पाता। आप घबराएँ नहीं। हम जो यह रोना-धोना शुरू कर देते हैं, यह सबसे बड़ी हानि है। हम ख़ुद को शत्रु से इतना कमज़ोर ना मानें, हम भगवान के बच्चे हैं। काम भगवान की शक्ति से शक्तिमान होकर त्रिभुवन में झंडा फहरा रहा है और हम भगवान के बच्चे होकर रो रहे हैं। हमने भगवान को अपना नहीं माना इसीलिए ऐसा हो रहा है। जिस दिन आप अपने गुरु और भगवान के हो जाएँगे तो आपके अंदर सबसे लड़ने की सामर्थ्य आ जाएगी। सौ बार गिरेंगे, फिर भी हम इसपर चढ़ाई करेंगे। काम का अभ्यास है हमें नष्ट करने का, तो आज से हम प्रण लेते हैं कि हम अविनाशी के बच्चे हैं, हम स्वयं अविनाशी हैं, हम इसे देख लेंगे। एक दिन आप जीत जाएँगे।
बस होता यह है कि विषयों को भोगते-भोगते हमारा आत्मबल क्षीण हो गया है। हमें लगता है कि हम काम को कैसे हरा सकते हैं, यह तो हमारे बस की बात नहीं, यह तो साधु महात्मा ही कर सकते हैं। साधु महात्मा क्या आकाश से उतरते हैं? उन्होंने बस गुरु कृपा से बात समझी और जीवन भर काम को सहा। फिर हम ऐसे लोगों को संत नहीं कहते, वो साक्षात भगवान का ही रूप हो जाते हैं। यह घबराने वाला, डरने वाला या उदास होने वाला मार्ग नहीं है। सौ बार गिरो, फिर भी पीछे मत देखो, अगला कदम आगे ही रखो। नाम जप करें, मन आपके वश में हो जाएगा। जब आप भजन के लिए कदम उठाओगे, तो बिना मांगे संतों का आशीर्वाद आपको मिलेगा। ये कृपा ना करें तो हम स्वयं माया मुक्त नहीं हो सकते।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज