काम तभी आपको परास्त करता है जब आप किसी क्रिया या किसी व्यक्ति का आश्रय लेते हैं। अगर हम किसी का आश्रय ना लें तो काम का वेग उठेगा और अपने आप शांत हो जाएगा। यदि आपके मन में काम आता है और आपने किसी से भी ग़लत संबंध रखा है, जैसे किसी क्रिया से या किसी व्यक्ति से, तो आपका मन आपको वहीं ले जाकर खड़ा कर देगा। अगर आप अपने मन को सहारा ना दें, तो वो उड़ेगा और उड़कर फिर आपके अधीन हो जाएगा। जैसे जल जहाज़ का कौआ उड़कर विश्राम वापस जल जहाज़ में ही पाता है। अगर उसे कहीं और सहारा मिल गया, या तो किसी टापू पर या किसी और जहाज़ पर, तो वह वहाँ बैठ जाएगा। ऐसे ही आपका मन विषयों में जाएगा, पर आपका ऐसा कोई स्थान ना हो, कोई व्यक्ति ऐसा ना हो, कोई क्रिया ऐसी ना हो, जिसका आपने अपने मन को आश्रय दिया हो, नहीं तो मन आपको वहीं ले जाकर खड़ा कर देगा, आपसे वही क्रिया करा देगा।
हम किसी ना किसी क्रिया, दृश्य, व्यक्ति या किसी के शरीर का आश्रय ले लेते हैं जिससे मन हमें विवश कर देता है और हमसे वह क्रिया करवा देता है या हमें उस व्यक्ति के पास पहुँचा देता है। फिर हमें मन के अधीन होना पड़ता है। मन अपने आप शांत और निर्मल हो जाएगा, आप केवल उसे किसी क्रिया या व्यक्ति का आश्रय ना दें। यहीं हमसे गलती हो जाती है, सावधान हो जाइए। ये छोटी मोटी क्रियाएँ करके हम जो अपने मन को विश्राम देने की कोशिश कर रहे हैं, यह कदापि नहीं हो सकता। जब मन में वेग आता है तो ऐसा लगता है कि अभी फ़िलहाल हम यह क्रिया कर लेते हैं, इससे मन शांत हो जाएगा, यही सबसे बड़ी चूक है। यही चीज़ आपको नष्ट कर रही है, आप बस जान नहीं पा रहे हैं।
मन के दो कार्य
मन के दो कार्य हैं: विषयों का चिंतन और विषयों का अवलंबन। मन हमेशा किसी ने किसी विषय का सहारा ढूँढता है। हमारे भ्रष्ट होने का कारण हमारा कोई ना कोई सहारा है। आप जान बूझकर अपना नाश कर रहे हैं। यदि आप व्यक्ति या क्रिया पर से अपना आश्रय हटा लें, तो कुछ ही दिन में आप निर्विकार हो जाएँगे, और आपका मन शांत हो जाएगा अन्यथा आप नष्ट हो जाएँगे।
मन पहले विषयों का सहारा लेता है। जब भूख लगती है तो हम सोचते हैं कि हम किस घर में जाएँ जहाँ हमें अपनी पसंद का भोजन मिले। सहारा कोई व्यक्ति या कोई क्रिया हो सकता है। फिर मन उसका चिंतन करता है। यह दोनों बातें हमें काटनी हैं, तभी आप काम वेदना पर विजय प्राप्त कर पाएँगे। जहाँ आपको समझ आए कि काम आप पर हावी हो रहा है, आप देख लीजिएगा कि आपके सामने कोई ना कोई आश्रय आएगा, उस व्यक्ति से मिला जाए या वो क्रिया की जाए। आपको उस आश्रय को तत्काल त्यागना है।
आप कोई और आश्रय लीजिए, जैसे कि प्रभु के चरणों का आश्रय या गुरु के चरणों का आश्रय। फिर वह आपको चिंतन करवाएगा, कि कैसे आपको उस क्रिया या व्यक्ति से सुख मिल सकता है। आपको अपना चिंतन भी बदलना है। जब भी ग़लत चिंतन हो तब नाम जप करिए और नाम कीर्तन करिए। जैसे ही आप आश्रय और चिंतन बदल देंगे, यह मन आपके अधीन हो जाएगा, आपका मन शांत हो जाएगा। हमसे गलती बस यहीं हो जाती है कि हम मन के बहकावे में आकर इस नौ द्वारों वाले नगर (शरीर) की गलियों में भटकते रहते हैं। बस इन दो बातों को पकड़ लें, आप फिर कभी परास्त नहीं होंगे।
निष्कर्ष
काम पर विजय प्राप्त करने का बहुत ही आसान सूत्र है – पहले भोगे हुए विषय, या ऐसे विषय जिनके बारे में आपने कहीं सुना हो, या ऐसे संबंध जो आपने भोग भोगने के लिए बना रखे हैं, आपको उन सबका त्याग करना होगा। उस व्यक्ति से संबंध तोड़ लें, उस क्रिया को कभी ना करें, ऐसा मान लें कि आपके हाथ टूट गये हैं। इन दोनों चीज़ों पर विजय प्राप्त करने से आपके हृदय में इतनी शीतलता आ जाएगी, इतना आनंद आ जाएगा कि आप एकांत में नाचने लगेंगे। एक बार बस इस मन पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा कीजिए। श्री हरिप्रिया का चिंतन करिए, प्रभु का नाम जपिये, कीर्तन करिए। अगर यह सब आपसे स्वयं नहीं हो पा रहा तो उस परिस्थिति या जगह से हट जाइए। बस जाकर ऐसे लोगों का संग कर लीजिए जो कीर्तन, भगवद् चर्चा या नाम जप कर रहे हों। इससे आपका चिंतन बदल जाएगा।
नोट: यदि आप स्वप्नदोष या अत्यधिक हस्तमैथुन की आदत से जूझ रहे हैं या ब्रह्मचर्य बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, तो ये लेख आपके लिए मददगार होंगे:
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मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज