जिससे प्यार करती थी उसकी शादी हो गई, अब Depression में हूँ। क्या करूँ ?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
जिससे प्यार करती थी उसकी शादी हो गई

हमारी इन्द्रियाँ बहिर्मुख होकर बाहर सुख ढूँढ रही हैं, जिससे हमसे पाप हो रहे हैं। डिप्रेशन अधिक पाप कर्मों का ही परिणाम है। हमारे मन को जो आनंद चाहिए, वह बाहर के भोगों में नहीं मिल सकता है। मन बार-बार अलग-अलग भोगों का संकल्प करता है, जिससे हमसे पाप होते हैं और मन मलिन होता जाता है। इस चक्र में फँसने के कारण हमारा मन इतना कमजोर हो जाता है कि केवल कल्पना मात्र से ही वह भयभीत हो जाता है। यही डिप्रेशन है, जिसमें हम सही निर्णय नहीं ले पाते।

मन, इन्द्रियों और बुद्धि का खेल

हमारी बुद्धि भोगों को चुनती है, मन विकल्प देख कर संकल्प करता है, चित्त चिंतन करता है, और हमारा अहंकार (भोक्ता भाव) स्वीकृति देता है। एक स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए हमें पवित्र बुद्धि की जरूरत है। केवल पवित्र बुद्धि ही मन पर शासन कर सकती है। अगर बुद्धि शुद्ध न हो, तो मन इन्द्रियों के सुख भोगने में लग जाता है और हमसे भयंकर पाप करवा लेता है। बुद्धि को पवित्र करने का सरल उपाय है—नाम जप।

व्यभिचार (पराए पुरुष या स्त्री के साथ संबंध), मांसाहार, मदिरा पान, और जुआ जैसे दुष्कर्म हमें चैन नहीं लेने देते। हमारे पूर्व और वर्तमान के पाप मिलकर जीवन को दुखमय बना देते हैं। ग़लत आचरण से बचें और निरंतर “राधा-राधा” का जप करें।

जीवनसाथी न मिले तो क्या करें?

जिससे प्यार करती थी उसकी शादी हो गई

यदि आपको जीवनसाथी नहीं मिल रहा, तो भगवान का वरण करें और भजन करें। क्या केवल इन्द्रिय भोग ही जीवन का उद्देश्य है? यदि विवाह हो जाए और कुछ समय बाद आपका जीवनसाथी बदल जाए, फिर आप क्या करेंगे? प्रारब्ध में यदि जीवनसाथी का आना नहीं लिखा है, तो निराश न हों—प्रभु का आश्रय लें। यदि आपके प्रारब्ध में विवाह है, तो प्रभु स्वयं किसी रूप में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगे और आपको आपके जीवनसाथी से मिला देंगे। केवल भजन और प्रभु का आश्रय ही शोक, भय और चिंता का निवारण कर सकते हैं।

बारि मथें घृत होइ बरु, सिकता ते बरु तेल।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ, यह सिद्धांत अपेल॥

दोहावली, गोस्वामी तुलसीदास जी
जल के मथने से भले ही घी उत्पन्न हो जाए तथा बालु के पेरने से चाहे तेल निकल आवे; परंतु श्री हरि के भजन बिना भवसागर से पार नहीं हुआ जा सकता, यहसिद्धांत अटल है।

दुखों से मुक्ति का मार्ग

राधा नाम जप

यदि आपने स्वयं भजन नहीं किया, तो कोई भी आपके दुखों का नाश नहीं कर सकता। गीता में भगवान अर्जुन से कहते हैं:

मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय |
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय: ||

भगवद् गीता, 12.8
तुम अपने मन और बुद्धि को मुझ में ही स्थिर करो, इसके बाद तुम मुझमें ही निवास करोगे, इसमें कोई संशय नहीं है।

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी माँ नमस्कारु |
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मनं मत्परायण: ||

भगवद् गीता, 9.34
सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो। अपने मन और शरीर को मुझे समर्पित करने से तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करोगे।

“राधा-राधा” का जप समस्त दुखों का नाश करने में सक्षम है। यदि आप भक्ति और नाम जप नहीं करते, तो आपका मन मनमानी करेगा और दुर्गति का कारण बनेगा। आजकल लोग पैसे, पद और अधिकार के मद में ग़लत आचरण जैसे मास-मदिरा सेवन, जुआ, व्यभिचार, चोरी और हिंसा में लिप्त हैं, जो निश्चित रूप से नर्क प्राप्ति का कारण बनते हैं। नरकों में जीवात्मा को भयानक कष्ट दिए जाते हैं। अगर आप बचना चाहते हैं तो भगवान का नाम जपें और बुरे आचरण ना करें। हमें यह मनुष्य शरीर दुर्गति से बचने के लिए मिला है।

बुरे कर्मों का नाश

टूटे रिश्तों पर सुविचार

काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।

रामचरितमानस

कोई किसी को सुख-दुःख देने वाला नहीं है। सब अपने ही किये हुए कर्मों का फल भोगते हैं।

आपके कर्म प्रबल हैं और यदि आप नाम जप नहीं करते, तो वे दुख का कारण बनेंगे। इन अशुभ कर्मों को केवल भगवद स्मरण और नाम जप से नष्ट किया जा सकता है। इसका कोई अन्य उपाय नहीं है।

यदि आप दान-पुण्य करते हैं, तो आपके शुभ कर्म बनेंगे, और यदि आप पाप करेंगे, तो अशुभ कर्म बनेंगे। आपको इन दोनों का फल भोगना होगा; आपके शुभ कर्म अशुभ कर्मों को नष्ट नहीं कर सकते। केवल नाम जप ही आपके शुभ और अशुभ कर्मों को मिटाकर आपको जीवनमुक्त बना सकता है और परम सुख प्रदान कर सकता है। बुरे आचरण न करें, जितना संभव हो, नाम जपें और अच्छे आचरण अपनाएं। अच्छा आहार करें, सकारात्मक विचार रखें, और दूसरों को सुख पहुँचाने का प्रयास करें—इससे आपको शांति प्राप्त होगी।

प्रभु का आश्रय लें

भगवान की शरण में जाएँ

भगवान से विमुखता ही शोक, चिंता, भय और अशांति का कारण है। जो व्यक्ति भगवान के सम्मुख है, वह निर्भय, निश्चिंत और निःशोक होता है।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।
रामचरितमानस
जैसे ही जीव मेरे सम्मुख होता है,वैसे ही उसके करोड़ों जन्मो के पापों का नाश हो जाता है।

भगवान का जो भी नाम आपको प्रिय हो (जैसे राधा, राम, कृष्ण, हरि आदि), उसका नियमित रूप से जप करें। जीवन में यह जरूरी नहीं है कि आप किसी जीवनसाथी का आश्रय लें। यदि आपको आश्रय लेना ही है, तो परमपुरुष (भगवान) का आश्रय लें। संतों का संग करें और सत्संग सुनें, इससे आपकी बुद्धि भगवान के सम्मुख होगी।

नामसङ्कीर्तनं यस्य सर्वपापप्रणाशनम् ।
प्रणामो दु:खशमनस्तं नमामि हरिं परम् ॥
श्रीमद् भागवतम 12.13.23

मैं उन परम प्रभु श्री हरि को सादर प्रणाम करता हूँ, जिनके पवित्र नामों के सामूहिक जप (कीर्तन) से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा जिनको नमस्कार करने से समस्त भौतिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

संतों की कृपा

भगवान की शरणागति बिना संतों की कृपा के नहीं होती; साधु समागम प्राप्त होने का अर्थ है कि भगवान की कृपा आप पर हो गई है। भगवद् कृपा से ही संत मिलते हैं और संतों से ही भगवद् कृपा का अनुभव होता है।

अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।

रामचरितमानस
हे हनुमान! अब मुझे विश्वास हो गया कि श्री राम जी की मुझ पर कृपा है, क्योंकि हरि की कृपा के बिना संत नहीं मिलते।

बड़े भाग पाइब सतसंगा।
बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा।।

रामचरितमानस
बड़े ही भाग्य से सत्संग (संतों का सान्निध्य) की प्राप्ति होती है, जिससे बिना परिश्रम किए जन्म-मृत्यु का चक्र नष्ट हो जाता है।

डिप्रेशन का मूल कारण

आप डिप्रेशन से तब तक बाहर नहीं निकल पाएँगे, जब तक आपके अशुभ कर्म नष्ट नहीं हो जाते। यही इस समस्या का मूल कारण है। अपने अशुभ कर्मों को नष्ट करने के लिए भगवान की शरण लें और उनका नाम जपें। बिना नाम जप किए, किसी का कल्याण संभव नहीं है।

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ॥
भगवद्गीता 18.66
सब धर्मों का त्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।।

निष्कर्ष

नाम जप करें और बुरे आचरणों से बचें। अगर आपको ज्ञात है कि आप ग़लत कार्य कर रहे हैं, तो उनका त्याग करें। यही साधना है। बुरे आचरणों का त्याग करें, नाम जपें और अपने कर्तव्यों (व्यापार, नौकरी आदि) का पालन करें। इससे आपको शांति प्राप्त होगी। भगवान की शरण लिए बिना शोक, चिंता और भय समाप्त नहीं हो सकते। भगवान का नाम जप ही आपको परम शांति और आनंद प्रदान करेगा।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज टूटे रिश्तों और डिप्रेशन से उबरने पर मार्गदर्शन करते हुए

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