हम सभी को एक दिन मरना है, उसका समय और घटना निश्चित है, बस हमें उसके बारे में पता नहीं है। हमें अपनी मृत्यु के बारे में कुछ पता नहीं है। जीवन में जो भी हमने संग्रह किया है, जिसे भी हमने अपना माना है, वह सब यहीं छूट जाएगा। ऐसे में, हमारे जीवन में कोई तो होना चाहिए जो हमारा सच्चा साथी हो, हमारे मन की बात जानता हो, और सब कुछ करने में समर्थ हो। यह सब गुण केवल हमारे प्रभु में ही हैं। मृत्यु के बाद हम कहाँ जाएँगे, यह हमें पता नहीं। इस जन्म से पहले हम कहाँ थे, यह भी अज्ञात है। माया का काम हमें सब कुछ भुला देना है और भक्ति का काम स्मृति को जागृत करना है।
भगवद् प्राप्ति की आवश्यकता
क्या किसी भी भोग को भोगने के बाद आपको तृप्ति मिलती है? क्या ऐसा लगता है कि हृदय शांत हो गया है और अब जीवन में कुछ नहीं चाहिए? कुछ लोग शादी के बाद भी दूसरी स्त्रियों को देखते रहते हैं। किसी के पास धन होते हुए भी, वह दूसरों का वैभव देखकर जलता रहता है। कुछ लोग बहुत प्रयास करने के बाद भी निष्फल हो जाते हैं। हम शुद्ध भाव से दूसरों से व्यवहार करते हैं, फिर भी लोग हमारे साथ कड़वा व्यवहार करते हैं। जीवन में ऐसी बहुत सी समस्याएँ हैं। मृत्यु के बाद यह सब यहीं छूट जाएगा। हमारा शरीर भी छूट जाएगा और यहाँ से कुछ भी हमारे साथ नहीं जाएगा। एक तरह से यह जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हो रहा है।
यह वैसी ही बात हो गई जैसे आपको किसी सरकारी काम से अमेरिका भेजा जाए और आपके साथ आपका परिवार भी जाए, और आपकी रहने-खाने की व्यवस्था भी की जाए। आप वहाँ गए और सारी व्यवस्था का उपयोग करके वापस आ गए। वापस आकर आप कहें कि जिस काम के लिए भेजा गया था, वह तो हुआ नहीं, तो क्या आपको माफ़ कर दिया जाएगा?
कबहुँक करि करुना नर देही।
देत ईस बिनु हेतु सनेही॥
रामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास जी
बिना कारण के करुणा करके भगवान जीव को मानव देह दे देते हैं ताकि वह भक्ति करके उन्हें प्राप्त कर लें और समस्त दुःखों से मुक्त हो जाए।
गर्भ का अनुभव और भक्ति का महत्व
जब हम माँ के गर्भ में होते हैं तो आठवें महीने में चेतना जागृत होती है और शिशु को अनुभव होता है कि वह कितनी गंदी जगह पर है। उस भयंकर पीड़ा की स्थिति में उसे भगवान की याद आती है। फिर कई जन्मों के कर्म याद आते हैं और वह भगवान से प्रार्थना करता है कि एक बार उसे माँ के गर्भ से निकाल दें। वह कहता है, “मैं ऐसा कर्म करूँगा, ऐसी भक्ति करूँगा कि दोबारा माँ के गर्भ में ना आना पड़े।” भगवान की कृपा से उसका जन्म होता है और जन्म होते ही वह ज्ञान और भगवान की छवि नष्ट हो जाती है। फिर संसार के मोह और आसक्ति में फँसकर वह पाप कर्म करता है और दुर्गति को प्राप्त होता है। इसलिए हमें भगवद् प्राप्ति करनी ही चाहिए। बिना भगवद् प्राप्ति के ना सुख मिलेगा, ना शांति।
भक्ति के लाभ
यदि भक्ति नहीं है, तो यह चीज़ें आपके अंदर जरूर होंगी: दुख का डर, अशांति, धन की चाह, भोगों की चाह, भय और विषाद। यदि आप भगवान के सन्मुख हो जाएँ, तो पहला लक्षण प्रकट होगा – निर्भय होना। आपका भय खत्म हो जाएगा। फिर आप नि:शोक हो जाएँगे, कोई शोक आपके हृदय में नहीं रहेगा। फिर इसके बाद आप निश्चिन्त हो जाएँगे। एक बेपरवाही आ जाएगी कि “मैं भक्ति कर लेता हूँ, बाक़ी सब भगवान संभाल लेंगे।” फिर इसके बाद आपसे पाप कर्म नहीं होते।
मनुष्य जीवन का अवसर
हम जब से प्रभु से बिछड़े हैं, आज तक नहीं मिले। अब इस मनुष्य जीवन में हमें अवसर मिला है कि हम प्रभु से मिल सकें ताकि हमारी सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएँ और हम जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएँ।
संसार की कठिनाइयाँ और भक्ति की आवश्यकता
इस दुनिया में कितना दुख है। लोगों के शरीर दुर्घटनाओं में चकनाचूर हो जाते हैं। हाथ-पैर सब बिगड़ जाते हैं और उन्हें घसीट-घसीट कर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। लोगों को ऐसे रोग हो जाते हैं कि घर वाले मनाते हैं कि भगवान इन्हें जल्दी उठा ले। क्या यह प्यार है? क्या यह अपनापन है? मनुष्य की दशा बहुत बुरी है। अगर आपके जीवन में भक्ति नहीं है, तो यहाँ आपको सच्चा प्यार करने वाला कौन है? भगवान ही सब दुखों से बचाने वाले हैं। इसलिए भगवद् प्राप्ति ज़रूरी है। हर परिस्थिति में कोई एक है जो हमें बहुत प्यार करता है, वह हैं हमारे प्रभु।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज