सबसे अमीर लोग भी आज जीवन में खुश नहीं हैं। क्यों?
मन की स्वाभाविक मांग है — ‘कुछ नया’, और इसीलिए यह सोच गलत है कि अगर आपको कुछ मिल जाए तो आप सुखी हो जाएँगे। कुछ भी मिल जाए, मन किसी नई चीज़ के पीछे दौड़ता ही रहेगा।
संसार के भोगों में तृप्ति नहीं है। आज जो आपको चाहता है, वह कल किसी और को चाहेगा। आज तक कभी किसी ने भोगों से सच्ची तृप्ति नहीं पाई है। जो चाहा, अगर वह मिल भी जाए — तो चार नई इच्छाएँ खड़ी हो जाती हैं। घर, गाड़ी, संबंध — ये सब हैं, पर आनंद इनमें नहीं है।
जीवन में कैसे खुश रहें?
अब कछु नाथ न चाहि मोरे।
उपर्युक्त पंक्ति केवट ने श्री राम के चरण पखारते हुए कहा क्योंकि उसे परमानंद मिल गया।
अगर सब कुछ होते हुए भी एक खाली स्थान भीतर महसूस हो रहा है, तो यह समझना चाहिए कि वो खाली स्थान प्रभु का है। अगर भगवान से जुड़ गए — तो अभी, इसी क्षण आनंद है। नहीं जुड़े — तो सुख के पीछे दौड़ते रहे, फिर भी सुखी नहीं हो पाएंगे।
हम सच्चिदानंद के अंश हैं। हमारी मांग भी वही है — सच्चिदानंद, जो सिर्फ भगवान में है।
निष्कर्ष: इनके पालन से जीवन में सुख पाया जा सकता है।
हर दिन केवल कुछ मिनट निकालें। अपने अंदर के उस खाली स्थान को भरने के लिए नाम जप करें। चाहे वो केवल 20 मिनट के लिए ही क्यों ना हो।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज