कैसे पाएँ इंद्रियों पर विजय?- जैमिनि ऋषि और वेद व्यास की कहानी

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
जैमिनी जी की कथा

भगवान व्यासदेव जी ने लिखा है कि इंद्रियाँ बहुत बलवान हैं। एक विद्वान पुरुष को भी अपनी माता, बहन, या बेटी के साथ अकेले नहीं रहना चाहिए, अन्यथा वह उनके प्रति आकर्षित (काम दोष के कारण) हो सकता है।

मात्रा स्वस्र दुहित्रा वा नविविक्तासनो भवेत्।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वानसमपि कर्षति ॥
श्रीमद् भागवतम् 9.19.17

इस पर उनके शिष्य जैमिनि जी खड़े हुए और उन्होंने कहा, “प्रभु, यह बात तो समझ में नहीं आई कि शास्त्रों के ज्ञाता विद्वान को भी इंद्रियाँ कैसे खींच सकती हैं।” जैमिनि जी वेदों के बहुत बड़े विद्वान थे। उनके प्रश्न का उत्तर दिए बिना व्यास देव जी ने कहा, “मुझे कुछ दिनों के लिए बद्रीनाथ जाना है। आप तब तक इस आश्रम को संभालिए, मैं वापस आकर आपके प्रश्न का उत्तर दूंगा।” जैमिनि जी अपने गुरु की लीला को समझ नहीं पाए।

जैमिनि जी की परीक्षा

एक शाम जैमिनि जी गंगा स्नान करके वापस लौट रहे थे। उस समय हल्की सी रिमझिम बारिश हो रही थी। तभी उनके गुरु एक नवकिशोरी के रूप में उनके सामने आ गए। उसके पैरों में नूपुर बंधे हुए थे। जब जैमिनि जी ने उस सुंदरी के श्याम वर्ण के चरणों को देखा, तो वे मोहित हो गए। उस युवती ने उनसे कहा, “मेरी रक्षा कीजिए। मैं जंगल में अकेली फँस गई हूँ। यदि आज रात मैं आपके यहाँ रुक जाऊँ, तो सुबह अपने स्थान पर पहुँच जाऊँगी। मैं एक स्त्री हूँ और रात में जंगल में अकेले रहना ठीक नहीं है।”

जैमिनी जी की परीक्षा

जैमिनि जी ने जवाब दिया, “हमारे आश्रम में केवल ब्रह्मचारी रहते हैं और अभी हमारे गुरुदेव भी नहीं हैं, इसलिए यह संभव नहीं है।” युवती ने कहा, “मैं इस समय आपकी शरणागत हूँ, और शरणागत की रक्षा करना धर्म है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष।” जैमिनि जी ने कहा, “मैं इस आश्रम का प्रभारी हूँ और आज रात के लिए आपको एक कुटिया देता हूँ। दरवाज़ा अंदर से बंद कर लीजिए और सुबह तक मत खोलिए, चाहे मैं स्वयं कहूँ तो भी नहीं।” युवती इस प्रस्ताव के लिए तैयार हो गई और उसने कुटिया के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया।

जैमिनि जी फँसे इंद्रियों के खेल में

जैमिनि जी जब ध्यान करने बैठे, तो उन्हें वही चरण और नूपुर की ध्वनि याद आने लगी। वे बार-बार ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनका मन विचलित हो गया। उन्होंने सोचा, पहले उस युवती से पूछते हैं कि वह कौन है और इस जंगल में कैसे फँसी। वे कुटिया के दरवाज़े पर गए और आवाज़ लगाई, “दरवाज़ा खोलो।” अंदर से जवाब आया, “जैमिनि ऋषि ने कहा था कि चाहे वे भी कहें तो भी दरवाज़ा मत खोलना।” जैमिनि जी ने कहा, “मैं ही जैमिनि हूँ।” उसने जवाब दिया, “जैमिनि ऋषि ने कहा था कि यदि वे भी कहें, तब भी दरवाज़ा नहीं खोलना।”

जैमिनी जी फँसे इंद्रियों के खेल में

फिर जैमिनि जी ने कुटिया की छत हटाई और अंदर कूद गए। जब उन्होंने उस युवती का श्याम रूप देखा, तो वे पूरी तरह से आसक्त हो गए। युवती ने मधुर आवाज़ में पूछा, “प्रभु, कैसे आगमन हुआ?” उनकी इंद्रियाँ, मन, और बुद्धि पूरी तरह से उस रूप पर केंद्रित हो गईं। जैमिनि जी ने उससे कहा, “क्या तुम मुझे अपने पति के रूप में स्वीकार करोगी?” युवती ने उत्तर दिया, “आप जैसे ऋषि के लिए मेरे प्राण हाज़िर हैं, लेकिन एक प्रथा है जिसे आपको निभाना होगा। आपको मंदिर तक मुँह काला करके और मुझे पीठ पर बिठाकर ले जाना होगा।”

जैमिनि जी के गुरुदेव आए सामने

जैमिनी जी के गुरुदेव आये सामने

जैमिनि जी ने सोचा, “रात्रि का समय है, कोई नहीं देखेगा।” उन्होंने मुँह काला किया और युवती को पीठ पर बिठाकर मंदिर की ओर चल दिए। युवती बीच-बीच में उन्हें थप्पड़ मार रही थी। उन्होंने सोचा, “विवाह की बात है, सहन कर लेते हैं।” जब मंदिर के पास पहुँचे, तो उसने उन्हें ज़ोर से थप्पड़ मारा। जैमिनि जी ने पीछे मुड़कर देखा, तो सामने उनके गुरुदेव व्यास देव जी खड़े थे। व्यास देव जी ने कहा, “अब समझ में आया कि इंद्रियाँ एक विद्वान को भी कैसे गिरा सकती हैं?” जैमिनि जी ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “हाँ, गुरुदेव।”

नारि नयन सर जाहि न लागा।
घोर क्रोध तम निसि जो जागा।।
लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया।
सो नर तुम्ह समान रघुराया।।
यह गुन साधन तें नहिं होई।
तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई।।
श्री रामचरितमानस

कौन ऐसा है जो नारी के नयनों के बाणों से बच सकता है? केवल वही, जो हर किसी में प्रभु को देखता है।”

देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन

जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन से अमृत निकाला, तो असुर अमृत लेकर भाग गए। देवताओं ने विष्णु जी से कहा, “प्रभु, अब यह अमृत हमें नहीं मिलेगा।” तब विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया। जब असुरों ने मोहिनी का रूप देखा, तो वे मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने अमृत का कलश मोहिनी को सौंप दिया। विष्णु जी ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, और असुरों को एक बूँद भी नहीं मिली। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि कोई भी देवता उस रूप से मोहित नहीं हुआ। क्योंकि उन्हें पता था कि वे स्वयं हरि ही हैं।

जो हर स्त्री में पवित्र और भगवद् भाव करता है, उसके हृदय को किसी की भी सुंदरता और काम नहीं बेध सकते।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज जैमिनि जी का चरित्र सुनाते हुए

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