संतों के संकल्प से पापियों का उद्धार: क्रूर जगाई-मधाई के कल्याण की कहानी

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
चैतन्य महाप्रभु ने जगाई और मधाई को माफ कर दिया

श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय में नवद्वीप में जगाई और मधाई नामक दो क्रूर व्यक्ति निवास करते थे। यद्यपि इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था, परन्तु दोनों बहुत ही राक्षसी स्वभाव के थे। जगाई और मधाई दोनों भाई एक-दूसरे के बहुत करीबी थे। शराब पीना, मांस खाना, व्यभिचार करना, और गरीब लोगों को सताना उनके दैनिक कर्म थे। उनके राक्षसी स्वभाव का कोई अंत न था। बादशाह की ओर से इन्हें सेना और सुरक्षा प्राप्त थी, जिसके कारण वे नवद्वीप के कोतवाल बनकर आए थे। बिना किसी नियंत्रण के, वे शहर में अत्याचार करते और लोगों को पीड़ा पहुंचाते। धर्म, साधु-संगति, और नाम जप क्या है, उन्हें कुछ पता नहीं था। वे जहां भी किसी धनी व्यक्ति के बारे में सुनते, अपनी पूरी सेना के साथ वहां जाकर लूटपाट कर लेते थे।

नित्यानंद महाप्रभु की जगाई-मधाई से भेंट

हरिदास ठाकुर के साथ नित्यानंद महाप्रभु

जगाई और मधाई का शिविर महाप्रभु चैतन्य देव के वास स्थान के पास पड़ा। आसपास के मोहल्लों के लोग भयभीत हो गए कि ये राक्षस अपनी सेना के साथ पता नहीं क्या करेंगे। एक दिन ये दोनों मदिरा में उन्मत्त होकर नगर में घूम रहे थे, तभी नित्यानंद महाप्रभु और हरिदास ठाकुर जी से उनकी भेंट हुई। जगाई और मधाई ने उन्हें संत वेश में देखकर गालियां देना शुरू कर दिया। नित्यानंद महाप्रभु ने लोगों से पूछा, “यह कौन लोग हैं जो संत वेश को देखकर गालियां दे रहे हैं?” लोग बोले, “प्रभु, इनसे दूरी बनाए रखिए। यह दोनों बहुत क्रूर और हिंसक हैं।” लोगों ने नित्यानंद महाप्रभु को चेताया कि इनसे दूर रहें, क्योंकि ये किसी को भी सम्मान नहीं देते और किसी पर भी हमला कर सकते हैं।

नित्यानंद महाप्रभु ने कहा, “असली अधिकारी तो यही हैं। हम इन्हें भगवान के नाम जप का उपदेश करेंगे। यदि ऐसे लोगों का भगवद् नाम के द्वारा उद्धार नहीं किया जाए, तो फिर नाम की महिमा ही क्या रही?” भगवद् प्रेमी महात्माओं का संकल्प मात्र बड़े से बड़े पापी को परम पद में पहुंचा सकता है। नित्यानंद महाप्रभु और हरिदास जी ने तय किया कि वे जगाई और मधाई को नाम उपदेश देंगे, चाहे वे कितने भी दुष्ट क्यों न हों।

नाम जप का प्रचार और कठिनाई

चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद महाप्रभु के साथ

नित्यानंद महाप्रभु और हरिदास ठाकुर जी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर सावधानी से चल रहे थे, ताकि यदि कोई अप्रिय घटना हो तो वे तुरंत भाग सकें। जैसे ही वे जगाई और मधाई के शिविर के करीब पहुंचे, उन्हें बादशाह की फौज और कड़ी सुरक्षा दिखाई दी। सैनिकों ने उन्हें रोका और पूछा, “कहाँ जा रहे हो?” दोनों ने उत्तर दिया, “हमें अंदर बुलाया गया है, हमें जगाई और मधाई से बात करनी है।” सैनिकों ने उन्हें अंदर जाने दिया। अंदर पहुँचने पर उन्होंने देखा कि जगाई और मधाई शराब पी रहे थे और उनकी आँखें लाल हो चुकी थीं।

जब नित्यानंद महाप्रभु और हरिदास ठाकुर जी उनके पास पहुँचे, तो जगाई और मधाई ने पूछा, “क्या चाहते हो?” नित्यानंद महाप्रभु ने कहा, “कृष्ण कहो, कृष्ण भजो, लेहु कृष्ण नाम! कृष्ण माता, कृष्ण पिता, कृष्ण धन प्राण! हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।” यह कहकर वे हरिनाम संकीर्तन करने लगे। यह देखकर जगाई और मधाई क्रोधित हो गए और चिल्लाने लगे, “अरे! इन्हें यहाँ से भगाओ! किसने इन्हें अंदर आने दिया?” इतना कहकर उन्होंने नित्यानंद महाप्रभु और हरिदास ठाकुर जी को मारने के लिए उनके पीछे दौड़ना शुरू कर दिया।

नित्यानंद महाप्रभु ने ठाकुर हरिदास जी की ओर देखा और कहा, “भाग लो!” दोनों तेजी से वहाँ से भाग निकले। जब वे थोड़ा सुरक्षित स्थान पर पहुंचे, तो हांफते हुए हरिदास जी बोले, “देखा प्रभु! क्या प्रचार हुआ? क्या कोई फर्क पड़ा उन पर? मैं कहता हूँ कि ऐसे लोगों का संग नहीं करना चाहिए, यही हमारे लिए अच्छा रहेगा। ये लोग कभी नहीं सुधरेंगे।” नित्यानंद महाप्रभु हंसकर बोले, “हमने नाम का बीज बो दिया है, एक दिन उनका कल्याण जरूर होगा।”

चैतन्य महाप्रभु को सुनाया गया जगाई-मधाई का वृतांत

नित्यानंद महाप्रभु के साथ चैतन्य महाप्रभु

ज्यों ही नित्यानंद महाप्रभु और ठाकुर हरिदास जी चैतन्य महाप्रभु के समीप गए तो महाप्रभु ने कहा “देखो प्रचार मंडल के मुखिया आ गए। आज के नगर प्रचार का क्या वृतांत है?” हरिदास जी ने कहा “प्रभु नित्यानंद महाप्रभु बहुत चंचल हैं। आज हम पिटते-पिटते बचे हैं।” यह कहते हुए हरिदास जी ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया।जब चैतन्य महाप्रभु ने सुना तो हंसते हुए कहा कि “नित्यानंद जी की कृपा होने पर ऐसा कोई पापी नहीं है जिसका उद्धार न हो सके।” यह कहकर महाप्रभु श्री कृष्ण चैतन्य देव ने मानो निश्चित कर दिया कि जगाई-मधाई का उद्धार ज़रूर होगा।

नित्यानंद महाप्रभु और ठाकुर हरिदास जी को गांव वालों ने आकर बताया कि कीर्तन वालों के ऊपर विपत्ति आने वाली है। अब तो कीर्तन करने वालों का नगर में रहना ठीक नहीं है। नित्यानंद महाप्रभु ने कहा किसी को डरने की जरूरत नहीं है। श्री कृष्ण कृपा से कीर्तनकार सुरक्षित हैं।

मधाई ने किया नित्यानंद महाप्रभु पर प्रहार

नित्यानंद महाप्रभु पर जगाई मधाई ने हमला किया

एक रात नित्यानंद महाप्रभु घर लौट रहे थे जब उन्होंने देखा कि जगाई और मधाई शराब के नशे में, उन्मत्त होकर नगर की ओर जा रहे हैं। महाप्रभु ने जोर से पुकारा, “कृष्ण कृष्ण!” मानो उन्हें चिढ़ा रहे हों। मधाई ने गुस्से में पूछा, “कौन गा रहा है? कौन मुझसे नहीं डरता?” नित्यानंद महाप्रभु ने उत्तर दिया, “तुझसे क्यों डरें? क्या है तुझमें जो मैं डरूँ?” मधाई ने कहा, “तू कौन है? मेरा नाम नहीं सुना? कहाँ जा रहा है इतनी रात में?” नित्यानंद महाप्रभु बोले, “संकीर्तन में जा रहे हैं, जो तुम्हारे भाग्य में नहीं है।” मधाई ने पूछा, “क्या नाम है तेरा”। नित्यानंद महाप्रभु ने कहा, “अवधूत!”। मधाई ने उन्हें चिढ़ते हुए कहा, “अवधूत? ये कैसा नाम है? तुझे मेरी ताकत का पता नहीं!”

गुस्से में मधाई ने पास पड़ी सुराही उठाई और नित्यानंद महाप्रभु के सिर पर जोर से मारी, जिससे उनके मस्तक से खून बहने लगा। उनके कपड़े लाल हो गए, पर महाप्रभु ने कोई क्रोध नहीं किया, बल्कि भगवान से प्रार्थना की, “प्रभु, अब इनका उद्धार कर दो। इनकी दुर्दशा मुझसे देखी नहीं जाती!” मधाई और क्रोधित हो गया और फिर से प्रहार करने को तैयार हुआ, लेकिन जगाई ने उसका हाथ पकड़ लिया। जगाई, जो मधाई से कोमल स्वभाव का था, बोला, “तुम्हें पता है वो तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रहे हैं! शराब के नशे में तुम्हें समझ नहीं आ रहा है, वो तुम्हारे भले के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं। दोबारा हमला मत करना।”

जगाई ने मधाई को शांत किया और उसे घसीट कर दूर ले गया। मधाई ने नाराज होकर कहा, “तूने मुझे रोका क्यों? मैं उसे मार डालूंगा।” जगाई ने समझाते हुए कहा, “वो सन्यासी हैं, उनका मार्ग सही है। अवधूत का क्या गांव, क्या नाम? शांत हो जाओ।” इस बीच, नित्यानंद महाप्रभु खून से लथपथ थे, लेकिन उन्हें कोई परवाह नहीं थी। वे आनंद में हरिनाम कीर्तन करते रहे, जबकि उनकी देह से रक्त बहता रहा।

चैतन्य महाप्रभु ने क्रोध में आकर किया सुदर्शन चक्र का आवाहन

चैतन्य महाप्रभु ने जगाई मधाई को सुदर्शन चक्र से दंडित किया

जब महाप्रभु चैतन्य देव कीर्तन शुरू करने ही वाले थे, एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और बोला, “महाप्रभु! नित्यानंद महाप्रभु पर मधाई ने हमला किया है।” यह सुनकर चैतन्य महाप्रभु स्तब्ध रह गए और बोले, “नित्यानंद को मारा! जो मेरे प्राण से भी प्यारे हैं, उन नित्यानंद को मारा!” महाप्रभु चैतन्य देव तुरंत दौड़ पड़े, उनके पीछे भक्तों की मंडली भी ढोल-मंजीरा और मृदंग लेकर भागने लगी। जब वे पहुंचे, नित्यानंद महाप्रभु आनंद में नृत्य कर रहे थे, जबकि उनके कपड़े और भूमि रक्त से सने हुए थे।

नित्यानंद जी को इस दशा में देखकर चैतन्य महाप्रभु ने गुस्से में हुंकार भरी, जैसे सुदर्शन चक्र का आवाहन करने वाले हों। लेकिन नित्यानंद महाप्रभु ने उनके चरण पकड़ लिए और कहा, “प्रभु, नहीं! आपका अवतार पापियों के संहार के लिए नहीं, बल्कि उनके उद्धार के लिए हुआ है। इन पर दया करें और इनका उद्धार करें।नित्यानंद महाप्रभु ने चैतन्य जी से प्रार्थना की, “मैं चाहता हूँ कि ये पापी भी भगवान के प्रेमी बनें।” चैतन्य महाप्रभु शांत हो गए, और बाक़ी भक्तों ने भी उनसे प्रार्थना की कि नित्यानंद जी का संकल्प पूरा हो। सभी ने महसूस किया कि सुदर्शन चक्र आकाश से आने वाला था, लेकिन नित्यानंद महाप्रभु की प्रार्थना से वह अंतर्ध्यान हो गया।

जगाई-मधाई का हृदय परिवर्तन और उद्धार

नित्यानंद महाप्रभु जगाई और मधाई के साथ

ठाकुर हरिदास जी ने महाप्रभु से कहा, “प्रभु, अब देर नहीं। इनका उद्धार होना चाहिए। मधाई ने नित्यानंद जी को मारा, लेकिन जगाई ने उन्हें बचाया।” यह सुनकर चैतन्य महाप्रभु का शरीर पुलकित हो गया। उन्होंने कहा, “जगाई ने मेरे नित्यानंद की रक्षा की? वह कहाँ है?” चैतन्य महाप्रभु ए दौड़कर जगाई को गले से लगा लिया और बोले, “तुमने मेरे प्रिय नित्यानंद की रक्षा की। तुम रक्षक हो, तुमसे प्यारा मुझे और कौन हो सकता है?” महाप्रभु के आलिंगन से जगाई मूर्छित हो गया। जब उसे चेतना आई, तो वह उनके चरणों में लोटने लगा। “प्रभु, मेरा उद्धार कर दो।” महाप्रभु के आलिंगन से उसके पाप नष्ट हो गए, और वह रोने लगा। “प्रभु, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरे भाई मधाई पर भी कृपा करें। उसके अपराध को क्षमा करें।”

मधाई कांपने लगा, उसे ग्लानि हुई कि उसने महापुरुषों पर प्रहार किया। सोचते-सोचते वह गिर पड़ा और चैतन्य महाप्रभु के चरण पकड़कर बोला, “प्रभु, मैं भी पापी हूँ। मुझ पर भी कृपा करो।” दोनों भाई बार-बार उनके चरणों में लोटने लगे। पूरा नगर उन राक्षसों को इस दशा में देखकर अचंभित था। यह सब महाप्रभु चैतन्य देव की कृपा का स्वरूप था। महाप्रभु ने रोते हुए कहा, “मधाई, मैं तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता, क्योंकि तुमने नित्यानंद महाप्रभु पर प्रहार किया है। यदि वे तुम्हें क्षमा कर दें, तो मैं भी तुम्हें क्षमा कर दूँगा।”

मधाई भागकर नित्यानंद महाप्रभु के चरणों में गिर पड़ा और रोने लगा। नित्यानंद महाप्रभु ने कहा, “भैया, मैंने तो तुम्हारे अपराध को माना ही नहीं।” जब मधाई जोर से रोने लगा, तो नित्यानंद महाप्रभु ने उसे गले से लगा लिया। फिर, नित्यानंद महाप्रभु ने इशारा किया, और मधाई चैतन्य महाप्रभु के चरणों में गिर पड़ा। चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद जी का इशारा समझकर मधाई को गले लगाया और कहा, “नित्यानंद, तुमने जगाई और मधाई का उद्धार कर दिया। मैं आज इन्हें अभय प्रदान करता हूँ। अब कोई पाप इन्हें स्पर्श नहीं करेगा।” नित्यानंद महाप्रभु ने कहा, “प्रभु, यह आपका प्रताप है। यह आपकी कृपा है कि आप सदैव अपने जनों को श्रेय देते हैं।” चैतन्य महाप्रभु ने दोनों भाइयों को गले लगाया और कहा, “आज मैं तुम्हें समस्त पुण्य प्रदान करता हूँ और महा भागवत की पदवी देता हूँ। अब तुम पूर्ण पाप रहित हो गए।” जगाई और मधाई फिर उनके चरणों में गिरते रहे, और उनका हृदय निर्मल होता चला गया। महाप्रभु का प्रभाव और ऐसे राक्षसों का उद्धार देखकर पूरा नगर आनंदित हो गया। बड़े जोर से मृदंग और ढोल बजते हुए भगवान के नाम का कीर्तन हुआ।

जगाई-मधाई के पापों से चैतन्य महाप्रभु का गौर रंग हुआ साँवला

चैतन्य महाप्रभु ने जगाई-मधाई से कहा, “तुम दोनों गंगा की धारा में खड़े हो जाओ। गंगाजल उठाकर कहो, आज तक जीवन में जो पाप किए हैं, मैं उन्हें आपको प्रदान करता हूँ।” दोनों ने गंगाजल फेंक दिया और बोले, “नहीं, मुझे दंड मिले। मैं पापी हूँ, मुझे दंड मिले। बस इतनी कृपा बहुत है कि आप शांत हैं। मैं जीवन भर नाम जप करूंगा और आपकी शरण में रहूंगा, लेकिन मैं अपने पाप आपको नहीं दे सकता।” महाप्रभु ने कहा, “हमारे आदेश का पालन करो।” सभी भक्तों ने भी कहा कि उन्हें चैतन्य महाप्रभु के आदेश का पालन करना चाहिए। चैतन्य महाप्रभु ने गंगाजल लेकर संकल्प किया कि इन्होंने जो आज तक पाप किए हैं, सब मुझे प्रदान करो। चैतन्य महाप्रभु का गौर रंग कुछ क्षण के लिए साँवला हो गया, क्योंकि उनके पाप बहुत थे। महाप्रभु ने गंगा में खड़े होकर जगाई और मधाई के सभी पाप ले लिए और उन्हें महा भागवत बना दिया। उनका शेष जीवन अश्रु प्रवाहित करते हुए भगवद् नाम जप करते हुए बीता।

मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज जगाई-मधाई के उद्धार की कहानी सुनाते हुए



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