जब हमारे कर्म बिगड़ते हैं, तो कोई जादू टोना करे या न करे, हम वैसे ही परेशान रहते हैं। बुरी दशा आने से पहले ही बुद्धि बदल दी जाती है।
जाको प्रभु दारुण दुख देही,
ताकी मति पहले हर लेही ।
रामचरितमानस
जब हमें दुख भोगना होता है, तो हमारी बुद्धि हमें धोखा देने लगती है। हमें ऐसा लगता है कि किसी ने कुछ कर दिया है। ऐसे में आपके आस-पास भी कुछ लोग मिल जाएंगे, जो इस बात से सहमत होंगे कि आप पर जादू टोना किया गया है, और आप इस विचार में फंसकर और अधिक परेशान हो जाएंगे।
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता ।।
रामचरितमानस
कर्मों का प्रभाव
जब हमारे पाप कर्म होते हैं, और कोई जीवात्मा हमें दंड देना चाहता है और वह भूत योनि में चला गया है और फिर संयोग से वह हमें हमारे कर्मों के कारण दंड देता है। अगर बिना झाड़-फूँक किए हमारा कर्म समाप्त हो जाता है, तो बिना किसी भोग के ही वह परेशानी दूर हो जाएगी। इसी प्रकार रोग आ सकते हैं या किसी व्यक्ति से कोई अप्रिय घटना घट सकती है। जैसे हम बिना किसी दुश्मनी के कहीं जा रहे हों, और अचानक किसी छोटी सी घटना से मार-पिटाई हो जाए, जिससे नई दुश्मनी पैदा हो जाती है।
भूत-प्रेत का सवार हो जाना, शरीर में रोग आ जाना, एक्सीडेंट हो जाना या किसी व्यक्ति से अचानक द्वेष पैदा हो जाना—यह सब हमारे कर्मों का ही परिणाम होता है। अगर हम अपने कर्म सुधार लें, तो सब ठीक हो जाता है। अगर हमारे कर्म खराब हैं, तो हर कदम पर परेशानी ही आएगी, और अगर हमारे कर्म अच्छे हैं, तो श्मशान में भी भूत-प्रेत से कोई डर नहीं रहेगा।
नाम जप और भगवान का स्मरण
नाम जप करें, भगवान के स्मरण से सब ठीक हो जाता है। हनुमान चालीसा में भी लिखा है: “भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे।” निर्भय रहो, नाम जपते रहो, और जो भी मानसिक या शारीरिक दुख हो, वह हमारे कर्मों का ही परिणाम होता है। अगर हमें भगवान पर भरोसा है और हमारा ध्यान भगवान में लगा हुआ है तो कोई भी दुख हमें परास्त नहीं कर सकता।
अगर भगवान का चिंतन नहीं हो रहा और शरीर स्वस्थ है, साथ ही सभी व्यवस्थाएं भी हैं, फिर भी अंदर से आपको बेचैनी महसूस होगी। आपकी इच्छाएँ आपको जलाएँगी, और आपका गलत चिंतन आपको और दुखी करेगा। दूसरी ओर, अगर भारी कष्ट के बावजूद भगवान का चिंतन हो रहा है, तो आपके जीवन में एक अलौकिक शांति बनी रहेगी।
जिस घर में नाम जप होता है, ठाकुर जी का चरणामृत उतरता है, उनका स्नान होता है, और उनको भोग लगता है, वहाँ विघ्न डालने वाले विनायक प्रवेश नहीं कर सकते। उस घर की रक्षा स्वयं दिव्य शक्तियाँ करती हैं। अपने घर में नाम कीर्तन कीजिए और यदि कभी किसी संत का चरणामृत मिल जाए, तो उसे अपने घर में छिड़क दीजिए। भूत-प्रेत केवल उन्हीं पर प्रभाव डालते हैं, जिनका स्वभाव भूत-प्रेतों जैसा होता है। मांस खाने वाले, शराब पीने वाले और व्यभिचार करने वाले, भूत-प्रेतों जैसे ही होते हैं। यह गलत कार्य करने से हमारे कर्म बिगड़ जाते हैं, और भूत-प्रेत हमारी ओर आकर्षित होते हैं। लेकिन भूत संतों और भक्तों को परेशान नहीं करते। यदि कभी भूत भक्तों से मिलते भी हैं, तो उनका कल्याण ही होता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी और प्रेत की कथा
गोस्वामी तुलसीदास जी काशी में शौच-स्नान करने के लिए गंगा के पार जाते थे। उनके कमंडल में जो भी पानी बचता था, वो एक पेड़ के नीचे डाल देते थे। उस पेड़ में एक प्रेत रहता था, जो वह पानी पी लेता था। यह कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन प्रेत हाथ जोड़कर तुलसीदास जी के सामने खड़ा हो गया और बोला, “आप जो मांगेंगे, मैं आपको दूंगा।” तुलसीदास जी ने कहा, “मैंने तो आपको पुकारा नहीं, ना ही आपकी सेवा की है, तो मैं आपसे कुछ कैसे ले सकता हूँ?” प्रेत ने उत्तर दिया, “आपकी सेवा तो हो चुकी है। आपके बचे पानी से मुझे बहुत राहत मिली है। मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ।” तुलसीदास जी ने उत्तर दिया, “मुझे तो बस सियाराम जी के दर्शन चाहिए।” प्रेत ने कहा, “इतनी सामर्थ्य मुझ में नहीं है, लेकिन मैं आपको एक उपाय बता सकता हूँ।”
प्रेत ने तुलसीदास जी से कहा, “जब आप राम कथा सुनाते हैं, उस समय हनुमान जी भी कथा सुनने आते हैं। उनके चरण पकड़ लेना, वो आपको सियाराम जी के दर्शन करा देंगे।” तुलसीदास जी ने पूछा, “मैं हनुमान जी को कैसे पहचानूँगा?” प्रेत ने बताया, “हनुमान जी सबसे पहले कथा में आते हैं और मलिन वेश धारण करके बूढ़े के स्वरूप में रहते हैं। सबसे अंत में वे सभी को प्रणाम करके जाते हैं।”
हनुमान जी का प्रकट होना
अगले दिन तुलसीदास जी ने भगवान की चर्चा शुरू की और देखा कि एक वयोवृद्ध विशालकाय पुरुष सबसे पहले आकर चुपचाप बैठ गए।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम्
वाष्पवारिपरिपूर्णालोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥
हनुमान जी ने अश्रु बहाते हुए भगवान की चर्चा सुनी और जब कथा समाप्त हो गई और सभी चले गए, तो उन्होंने भक्तों की रज लेकर अपने माथे पर लगाई। तुलसीदास जी हनुमान जी के पीछे दौड़े, लेकिन हनुमान जी भी भागे। अंततः हनुमान जी तुलसीदास जी से मिले और बोले, “तुम क्या चाहते हो?” तुलसीदास जी ने उत्तर दिया, “सियाराम जी के दर्शन।” हनुमान जी ने कहा, “यहाँ नहीं, चित्रकूट चलो।” वहाँ राम-लक्ष्मण जी के राजकुमार रूप में तुलसीदास जी को दर्शन हुए।
एक प्रेत ने तुलसीदास जी को भगवद् साक्षात्कार का विधान बना दिया। इसी प्रकार महाराष्ट्र के महान भक्त नामदेव जी को भी एक बार भगवान विट्ठल जी के दर्शन एक प्रेत में हुए थे। जो भगवान का नाम जपते हैं, उनका कभी कोई अमंगल नहीं हो सकता।
कलियुग और नाम जप
राधाबल्लभ भजत भजि, भली-भली सब होइ ।
जिते विनायक शुभ-अशुभ, विघ्न करें नहिं कोई॥
विघ्न करें नहिं कोई डरें कलि-काल कष्ट भय ।
हरैं सकल संताप हरषि हरि नाम जपत जय ॥
श्री हित सेवक वाणी, 10.5 (श्रीहित भक्त – भजन प्रकरण)
कलियुग भगवान का नाम जपने वाले से डरता है। जितनी भी आसुरी शक्तियाँ और राक्षसी स्वभाव वाली शक्तियाँ हैं, वे भगवान के भजन करने वाले से डरती हैं। इसलिए नाम जप करें ताकि जादू-टोना या काला जादू आप पर असर न करे। अगर आप भगवान का भजन नहीं करेंगे, तो चाहे कोई जादू टोना करे या न करे, आपके जीवन में विघ्न आते रहेंगे।
आजकल मानसिक रोग बढ़ गए हैं, और लोग स्वयं अपने मन और दिमाग़ के कारण परेशान हो रहे हैं। नकारात्मक सोच और ज़्यादा सोचने के कारण लोग खुद ही पीड़ित हो जाते हैं। व्यर्थ का चिंतन न करके, हम राम-कृष्ण-हरि या राधा-राधा का जप करें, ताकि सर्व मंगल हो। कोई तंत्र-मंत्र, जादू-टोना हमें परेशान नहीं कर सकता। हमें हमारे अपने कर्म ही परेशान कर रहे हैं।
मार्गदर्शक: पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज