हर जीव को जीने का अधिकार है। जहाँ तक हो सके हम उनको जीव रक्षा करते हुए बचाएँ। जैसे वर्तमान में दिखाई दे रहे हैं तो उनको डस्टबिन में भरकर के बाहर फेंक दें। जब नहीं दिखाई दे तो ऐसी औषधियां रख दें कि वो उत्पन्न न हो और वो उस जगह से दूर रहें। यदि हमें कीड़े मकोड़े दिखाई दे रहे हैं, और हम उनके ऊपर ऐसे केमिकल डालें जिससे वो मर जाएँ, तो पाप होगा और आपको उसका फल भोगना पड़ेगा। सब जीव इस भूमि पर जीने का अधिकार रखते हैं। हमने एक घेरे में अपने घर को अपना मान लिया है, लेकिन सब है तो भगवान का ही। उसमें छिपकली का भी अधिकार है, चींटी का भी अधिकार है, बिच्छू का भी अधिकार है। भूमि भगवान की है!
सब जीवों में भगवान ही हैं
सब भगवान के जन हैं। हाँ, कुछ के साथ हमारा विरोधी भाव है। अब साँप जिस कमरे में रहेगा उसमें हम कैसे रह सकते हैं? हम उसे मारे ना, हम उसे बाहर निकाल दें। हम ऐसा उपाय करें जिससे उसको दुख ना पहुँचे और अपना बचाव भी कर लें। जैसे जब आप पोछा लगा रहे हैं और बहुत सी चिटियाँ हैं और आप ध्यान नहीं दे रहे, रगड़ रहे हैं, तो आपसे पाप बन रहा है। पहले ऊपर से झाड़ू लगा दीजिए। पोछा लगते समय अगर फिर कोई कीड़ा मकोड़ा दिखाई दे, तो फिर फूल झाड़ू से हटा दीजिये। सब जीवों में भगवान का बराबर अंश है, जितना एक हाथी में उतना ही एक चींटी में, जितना एक महात्मा में उतना ही एक कॉकरोच में। अगर अनजाने में पाप होते हैं तो भगवान क्षमा कर देते हैं। जैसे चीटियाँ है और आप जानबूझकर उनके ऊपर केमिकल डाल दें, तो आपको दंड भोगना पड़ेगा। आप अपना बचाव कर लें, लेकिन उनको नष्ट नहीं करना चाहिए।

हमने एक परिवार को देखा था कि वह छिपकली निकाल कर रोड पर फेंक रहे थे और उसे ईंट से कुचल रहे थे, उनकी निश्चित दुर्गति होगी। अगर आपको लगता है कि वह आपको कुछ नुक़सान पहुँचा सकते हैं, जैसे भोजन में शौच कर देना, भोजन में गिर जाना आदि तो आप उनको निकाल कर बाहर छोड़ आइये। उनकी हत्या करना जरूरी है क्या? हमें किसी भी जीव की हत्या करने का अधिकार नहीं है। अगर हम अपना बचाव कर रहे हैं और कोई मर जाता है तो वो अलग बात है। अगर आप गंदगी नहीं रखेंगे तो वो उत्पन्न ही नहीं होंगे। आप साफ़ सफ़ाई रखें।
माण्डव्य ऋषि की कहानी: महात्मा को मिली एक तितली को काँटा चुभाने के लिए सजा
एक मांडव्य ऋषि नाम के महात्मा थे। वो दाहिने पैर के अंगूठे के बल पर पूरा शरीर का भार रखकर और हाथ ऊपर उठाकर मंत्र जाप कर रहे थे। उस राज्य में कुछ चोरों ने राजा के यहाँ चोरी की। राज सैनिकों ने उनका पीछा किया। वो चोर ऋषि के आश्रम में जाकर छुप गए। उन्होंने सोचा कि अगर हम महात्मा के आश्रम में जाएँगे तो राज सैनिक यह सोच कर वापस चले जाएंगे कि यहाँ कैसे चोर छुपे हो सकते हैं। पर आश्रम में घुसते समय राज सैनिकों की दृष्टि उन पर पड़ गई। वह सब चोरी किए हुए सामान सहित पकड़े गए। कर्मचारियों ने सोचा कि महात्मा भी इनके साथी हैं। यह अपने आश्रम में चोर रखते हैं और चोरी करवाते हैं। राज सैनिक मांडव्य ऋषि को भी अपने साथ ले गये और उनको राजा के सामने पेश किया। राजा ने उन्हें सूली की सजा दे दी। सूली की सजा बड़ी भयानक होती थी। उसमें अपराधी को सीढ़ियों से ऊपर ले जाकर एक भाले जैसे यंत्र पर छोड़ा जाता था। गुदा से भाला घुस जाता था और अपराधी मृत्यु तक उसी में टंगा रहता था। इससे तड़प-तड़प कर बड़ी भयानक मृत्यु होती थी। जल्लाद महात्मा को भी ऐसे छोड़ कर चले गए। वो तो योगी थे, सूली पर ही पद्मासन लगा के बैठ गए।

अगले दिन जब जल्लाद उनके शव को उतारने गए तो ऋषि पद्मासन में बैठे थे। वह भाग कर गए और राजा को सूचना दी। राजा ने सोचा यह तो बड़ा अपराध बन गया, यह तो कोई ऋषि हैं जिनको हमने ग़लत सजा दे दी। राजा गाय और ब्राह्मण को आगे कर के और हाथ जोड़कर ऋषि के सामने गए। राजा ने कहा महाराज मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि आप यहाँ कैसे लाए गए, मुझे क्षमा कर दीजिए। ऋषि बोले मुझे आपसे कोई मतलब नहीं है, पहले यह सूली निकलवाएं। लाख कोशिश के बावजूद सूली नहीं निकली। ऋषि के कहने पर उन्होंने सूली काट दी।
ऋषि वहाँ से अंतर्ध्यान हो कर सीधे यमराज के पास पहुँचे। धर्मराज से कहा कि मैंने क्या ऐसा पाप किया जो आपने मुझे ऐसा दंड दिया? ऋषि बड़े ग़ुस्से में थे। धर्मराज ने उन्हें बताया कि जब वे आठ वर्ष के थे तो उन्होंने खेल-खेल में एक तितली को पकड़ा और उसकी गुदा में बंबूल का कांटा डाल कर छोड़ दिया। क्योंकि बंबूल का कांटा बड़ा होता है, तो तितली तड़प-तड़प के काफी समय में मृत्यु को प्राप्त हुई। महात्मा होने पर भी उस दुष्कर्म के परिणाम स्वरूप उनकी गुदा में सूली डाली गई। इन ऋषि का नाम बाद में अणिमाण्डव्य हुआ।
निष्कर्ष

एक महात्मा को भी इतना बड़ा दंड दिया गया तो हम और आप कैसे कर्म विधान से बच सकते हैं। अगर आप कॉकरोच या किसी और जीव को जानबूझकर मार रहे हैं, तो आपको हिसाब देना पड़ेगा। ऐसे कर्म ना करें जिनसे पाप हों। नाम जप करें। पवित्रता और स्वच्छता रखें। पहले से ही केमिकल या कोई ऐसी औषधि रख लें जिससे कीड़े मकोड़ों की उत्पत्ति ही न हो। अगर आप उन्हें देख कर उनके ऊपर कीटनाशक डालेंगे तो यह हत्या के बराबर है और आपको इसका दंड मिलेगा।
मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज