गुरु महिमा: क्या गुरु बनाना जरूरी है? गुरु कैसे चुनें?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
अपने गुरु को कैसे खोजें

अगर आप जीवन में अपना कल्याण चाहते हैं तो पहले आपको गुरु की खोज करनी चाहिए। सबसे पहले सबको श्री कृष्ण को अपना गुरु बनाना चाहिए। फिर उनसे प्रार्थना कीजिए कि हे जगद्गुरु श्री कृष्ण, आप मुझे मेरे गुरुदेव से मिला दीजिए। मैं स्वयं किसी भी तरह उन्हें पहचान नहीं सकता। तो भगवान ही गुरुदेव के रूप में आएँगे। साक्षात् हरि ही कृपा अवतार धारण करके आपके गुरु के रूप में आएगी।

गुरुदेव कैसे होने चाहिए?

गुरु को शास्त्र का ज्ञान होना चाहिए और आत्म साक्षात्कार होना चाहिए

गुरु वेदों के विद्वान होने चाहिए और उन्हें परब्रह्म की अनुभूति होनी चाहिए। अगर किसी को वेद पुराण कंठस्थ है लेकिन उन्हें परब्रह्म की अनुभूति नहीं हुई है, तो बात नहीं बनेगी। और अगर उन्हें परब्रह्म का अनुभव है लेकिन वो वेद पुराणों की बात नहीं कह सकते, तो हमें समझने में देर लगेगी, लेकिन बात फिर भी बन जाएगी। उनके संकल्प से आपका कल्याण हो जाएगा। वैसे गुरुदेव में दोनों ही बातें होनी चाहिए, जिससे वो अपने अनुभव को शब्दों के द्वारा आपको बता सकें। लेकिन ऐसे महापुरुष कहाँ मिलेंगे? ऐसे महापुरुषों का मिलना तो बड़ा दुर्लभ है। तो क्या करें? शुरुआत में, जो ऐसे महापुरुष को जानते हैं उन्हीं की शरण लें। उनको कौन जानता है? प्रभु सबको जानते हैं, तो आपके गुरुदेव का भी उनको पता है। प्रभु की शरण लें, फिर प्रभु आपको आपके गुरुदेव से मिला देंगे।

क्या आप शिष्य बनने के लायक़ हैं?

गुरु एक भक्त को शुद्ध कर रहे हैं

गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी का घड़ा है। जैसे कुम्हार मिट्टी के घड़े में अंदर से हाथ लगा कर बहार से पीटता है (ताकि उसका टेढ़ा-मेढ़ापन ठीक हो जाए),वैसे ही गुरुदेव शिष्य को सँभालते हुए बाहर से प्रतिकूल व्यवहार (अपमान, निंदा, दंड) देते हैं। अगर गुरु अपने शिष्य के दोष न देखे, और उससे केवल विषय सामग्री, भेंट और दक्षिणा लेता रहे, तो वह गुरु और उसका शिष्य, दोनों नर्क जाएँगे। शिष्य नर्क इसलिए जाएगा क्योंकि वह अपने गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता। और गुरु इसलिए नर्क जाएगा क्योंकि वो अपने गुरु भाव का पूर्ण रूप से निर्वाह नहीं कर पा रहा। गुरु का काम होता है शिष्य को भगवत्प्राप्ति कराना। जिसको अपने में ऐसी योग्यता ना दिखाई दे, उसे कभी शिष्य नहीं बनाने चाहिए।

गुरु के साथ हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए?

गुरु आपको कठिन परिस्थितियाँ दे सकते हैं, शिष्य उन्हें सहन करें

जब गुरु के द्वारा प्रतिकूलता मिले तो शिष्य को नाचना चाहिए। जब गुरु आपसे कड़वे वचन बोलें तो आपको खुश होना चाहिए कि गुरुदेव की दृष्टि मेरे ऊपर है। और जब शिष्य को गुरु से सम्मान मिले तो उसे संकुचित हो जाना चाहिए कि कहीं कोई अपराध तो नहीं बन गया? जब गुरु आपके ऊपर वक्र दृष्टि रखें तो आपको निर्भय हो जाना चाहिए। क्योंकि गुरु की टेढ़ी दृष्टि के आगे आपके जीवन में माया का प्रवेश नहीं होगा। जिससे गुरु बहुत प्यार करते हैं, उसके ऊपर वक्र दृष्टि रखतें हैं ताकि कोई भी दोष उसे छू ना सके। गुरु के प्यार को अज्ञानी जीव समझ नहीं पाता! उसे लगता है, मैं रात-दिन सेवा करता हूँ, फिर भी गुरुदेव मेरे ऊपर कठोर दृष्टि रखते हैं, मुझे डाँटते रहते हैं, अपमानित करते रहते हैं, पता नहीं क्या हो रहा है? वही हो रहा है जिससे आपका मंगल होना है। शिष्य को कभी विचलित नहीं होना चाहिए।

गुरु आज्ञा का महत्व

यदि आपको अपने गुरु से दूर रहने का संयोग मिला है (जैसे अगर आप गृहस्थ हैं और गुरु से दूर रहते हैं), तो गुरु आज्ञा का पालन करते हुए गुरु का चिंतन करते रहें। इससे गुरु के हृदय की सारी साधनात्मक वस्तुएँ आपके अंदर आ जाएँगी। गुरु आज्ञा का तत्काल पालन करना चाहिये। कबीरदास जी कहते हैं, गुरु की आज्ञा का पालन करने वाला शिष्य तीनों लोकों में निर्भय हो जाता है।

गुरु वह प्रकाश स्तंभ है जो शिष्य को जीवन के संघर्षों में मार्गदर्शन करता है

एक शिष्य को अपने मन और इन्द्रियों को गुरु की आज्ञा के अनुसार नाच नचाना चाहिए। ऐसे आचरण करते रहें जिससे आपका अपने गुरु के प्रति प्रेम बढ़ता रहे। गुरु के प्रेम के बिना कभी किसी का कल्याण नहीं हुआ। जो गुरु चरणों में प्रेम नहीं करता, उसका कल्याण संभव नहीं क्योंकि गुरु की कृपा से ही कल्याण होता है।कभी भी गुरु की मर्यादा का उल्लंघन ना करें। यदि कोई गुरु मर्यादा का उल्लंघन करता है या गुरु चरणों का अनादर करता है तो उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता।

गुरु की ज़िम्मेदारी

अपने गुरु के निर्देशों का पालन करें

जो शिष्य तो बना लेता है लेकिन उसके कल्याण की चिंता नहीं करता, उसे अपने शिष्य के सारे पाप भोगने पड़ते हैं। इसलिए अगर कोई शिष्य गुरु आज्ञा में ना चले, तो गुरु को उसका त्याग कर देना चाहिए। ये ज़िम्मेदारी गुरु की है कि वो अपने तप से, भजन के भाव से शिष्य के दोषों का नाश करके उसे भगवत् प्राप्ति करवाए।

शिष्य का समर्पण

अपने गुरु के प्रति समर्पण करो

गुरु अपनी ज़िम्मेदारी निभा सके इसके लिए आवश्यक है कि शिष्य अपने गुरु के चरणों में समर्पित हो जाए। गुरू के चरणों की पूजा करना ही मूल पूजा है। जैसे मूल में जल डालने से पूरे वृक्ष, तना, पत्ते आदि को जल प्राप्त हो जाता है , ऐसे ही गुरु उपासना से सृष्टि में सबकी उपासना हो जाती है।

आपके गुरुदेव ने जो मंत्र आपको दिया है, वही गुरु का स्वरुप है। अगर आप आठों पहर गुरू प्रदत्त नाम या मंत्र को देखते (जपते) रहेंगे, तो आप अपने गुरू को ही देख रहे हैं। जो शिष्य अपने गुरुदेव भगवान को साक्षात् परब्रह्म मानकर अपने हृदय को समर्पित कर देता है, उसके हृदय में गुरुदेव तब तक बैठे रहते हैं जब तक उसको परम पद का अनुभव नहीं करा देते।

गुरु के प्रति अपराध और द्रोह करने से बचें

अपने गुरु को नाराज मत करो

जब आप कोई अपराध करेंगे तो आपको अपने गुरु के प्रति द्वेष हो जाएगा। आप उनकी अवहेलना करने लगेंगे। अगर कोई अपराध बन रहा है तो तत्काल गुरु के चरणों में जाकर निवेदन करें। अगर आप अपराध करेंगे तो आपकी गुरु में अश्रद्धा हो जाएगी, उनमें दोष दिखाई देने लगेंगे, गुरु आपको सामान्य मनुष्य जैसे दिखाई देने लगेंगे। जो गुरु का अपराध करके, किसी और का सहारा लेके बचना चाहता है, उसको पिटना पड़ेगा, माया उसे पीट देगी। अगर आप गुरुदेव का अपराध करके किसी देवी-देवता या साक्षात भगवान की शरण भी ले लें तो वह भी आपको नहीं बचाएँगे। ठाकुर जी स्वयं कहते हैं, “मैं भक्तों के पराधीन हूँ”।

कभी गुरु की अवहेलना ना करें। गुरु मिल गए तो सब कुछ मिल गया, अब कुछ मिलना बाकी नहीं रह गया। जो गुरु की अवहेलना करता है, उसे उल्टे विचार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि आएँगे।

स्वयं भगवान ने भी गुरु की शरण ली

भगवान कृष्ण अपने गुरु के साथ

भगवान राम विश्वामित्र जी के चरणों की वंदना करते थे और वशिष्ठ जी के चरणों में बैठ कर उपदेश सुनते थे। भगवान श्री कृष्ण सांदीपनि ऋषि के चरणों में बैठ कर श्रवण करते थे। भगवान ने स्वयं प्रकट होकर दिखाया कि बिना गुरु के बात नहीं बनेगी। गुरु चरणों का आश्रय लें। भगवान के चरणों में बैठे उद्धव जी के पास बिलकुल बूँद भर प्रेम नहीं था। लेकिन जब उन्होंने गुरु स्वरूपा गोपी चरणों का आश्रय लिया तो वे प्रेम से भर गए। बिना गुरु के भगवत् प्रेम की प्राप्ति नहीं हो सकती।

गुरु और संत दर्शन की महिमा

अगर आप हर दिन कई बार अपने गुरु के दर्शन न कर सकें तो कम से कम दो बार तो दर्शन करें ही। जो दिन में दो बार संतों का दर्शन करते हैं, उन्हें काल कभी धोखा नहीं देता अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। उनके जीवन में कोई भारी विपत्ति नहीं आती। उनके लिए सूली की सज़ा भी काँटे सी बन कर रह जाती है। जो अपने परिवार के रोकने से नहीं रुकता और गुरु के सानिध्य में जाता है, उसे निश्चित मोक्ष प्राप्त होता है। वो भगवत् प्रेम का अधिकारी हो जाता है।

जो लोग संतों को देख कर गुस्सा होते हैं, वो अगले जन्म में चांडाल बनते हैं। महात्माओं और संतों को देखकर हमारा हृदय नाच उठना चाहिए कि आज तो हमें संत सेवा करने का अवसर मिला। जो संतों को दंडवत करते रहते हैं, उनके अशुभ ग्रह अपने आप उतर जाते हैं। कोई भी वैष्णव दिखाई दे तो बस सिर झुका दें, इससे आपको कोई भी ग्रह परेशान नहीं करेगा। गुरुदेव और संतों के दर्शन करते हुए, उनकी आज्ञा का पालन करते हुए, एक-एक श्वास से निरंतर नाम जप करते हुए जीवन बिताएँ। यही गुरुदेव की पूजा है और यही जीवन का परम लाभ है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज गुरु चुनने पर मार्गदर्शन करते हुए

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