आजकल अधिकांश लोग किसी भी चीज़ पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं और उनका मन अधिकतर समय उन्हें परेशान करता है। हर कोई जानना चाहता है कि मन को कैसे नियंत्रित किया जाए। सबसे पहले, मन जो कहता है वह मत करिए। मन एक बिगड़ैल और जिद्दी बच्चे की तरह है। एक बच्चा कभी खेलने में लग जाता है तो कभी सभी खिलौनों को त्याग कर अपनी माँ की गोद में आराम चाहता है। मन एक जिद्दी और गुस्सैल बच्चे की तरह है। मन की बात मानकर, आज तक सत्य के मार्ग पर कोई नहीं चल सका है। ये मन धोखेबाज़ है, बड़ा बेईमान है।
मन की चंचल प्रकृति
कभी यह मन आपको ऐसा महसूस कराएगा कि आप भगवत् प्राप्त महापुरुष है; अन्य समय में, यह आपको सत्य और आध्यात्मिकता से कोसों दूर ले जाएगा। अत: मन के अनुसार नहीं चलना चाहिए। हमें गुरु व संतों की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अगर आप मन को दस साल तक भी नियंत्रित कर लें, तब भी यह मजबूत होकर वापस आ सकता है और दस मिनट के भीतर, आपकी दस साल की साधना को नष्ट कर सकता है। परंतु आप मन का त्याग भी नहीं कर सकते। यह आपके अस्तित्व का अभिन्न अंग है। लेकिन आप इसकी इच्छा के अनुसार कार्य भी नहीं कर सकते, अन्यथा यह आपको नष्ट कर देगा। और यदि आप स्वयं को इससे अलग करने की कोशिश करेंगे तो यह आपको पीड़ा देगा। बड़ी ही विचित्र समस्या है ये।
लोग जानते हैं कि अगर वे गलत काम करेंगे तो उन्हें सज़ा हो सकती है, जेल भी हो सकती है। लेकिन मन की इच्छाओं के कारण, वे उस कार्य को करते हैं और यहां तक कि जीवन भर जेल में कष्ट भी भोगते हैं। मन सचमुच अजीब है।
अपने मन को कैसे नियंत्रित करें?
मन को वश में करने के लिए आपको किसी संत या धर्मग्रंथ की शिक्षाओं का पालन करना होगा। यदि आप ऐसा करेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। भगवान के नाम का जप (राधा राधा जपें) आपको मन को नियंत्रित करने की शक्ति देगा। यह आपको मन के गलत कार्यों को पहचानने और रोकने की शक्ति देगा।
मन को अपना ना समझें; आप मन नहीं है। यह वह शत्रु है जिसके साथ आपको एक ही घर में रहना होगा। इसे बाहर नहीं निकाला जा सकता, और आप इससे मित्रता भी नहीं कर सकते। फिर हमें क्या करना चाहिए? इससे निपटने का उपाय केवल संत और धर्मग्रंथ ही बता सकते हैं।
यदि आप मन के अनुसार चलते हैं, तो आपको परिणाम भुगतना पड़ता है। यदि आप मन के अनुसार नहीं चलते हैं, तो यह आपको पीड़ा देता है और उदास करता है। किसी संत, धर्मग्रंथ या गुरु की कृपा ही आपको बचा सकती है। मन कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। यह कभी भी किसी एक चीज पर टिक कर नहीं रहता। एक बार जब उसे कुछ मिल जाता है तो वह कुछ नया चाहता है। लोग इस रहस्य को समझ नहीं पाते। यह सबकी जिंदगी बर्बाद कर रहा है।
यह अच्छी तरह समझ लीजिए कि आप ख़ुद से मन को नियंत्रित नहीं कर सकते। भगवान चाहें तो मूर्ख से वेद पढ़वा सकते हैं और लंगड़े को पहाड़ पर चढ़ा सकते हैं। अपने आप को समर्पित कर दें और ईश्वर की शरण लें। ईश्वर के अलावा और कोई भी इस मन को नहीं संभाल सकता। भगवान के पवित्र नाम, राधा राधा का जप करें! अपने कर्तव्य अच्छे से निभायें, सत्य के मार्ग पर चलें और ईश्वर की शरण लें। आप जीत जाएँगे।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी