जब संत प्रसिद्ध होने लगते हैं तो माया उनकी परीक्षा लेने के लिए अपने प्रतिनिधि भेजती है। लोग ईर्ष्यावश अकारण ही उनकी प्रसिद्धि नष्ट करने का प्रयास करते हैं। रामचन्द्र खान नाम का एक जमींदार था। उसने सोचा कि मेरे पास इतनी जमीन और पैसा है, परन्तु कोई मेरा आदर नहीं करता। हरिदास ठाकुर नाम का यह संत मांगकर खाता है और पूरा दिन बिना कुछ किए सिर्फ भगवान का नाम जपता है, लेकिन फिर भी हर कोई इसके सामने नतमस्तक होता है। मैं उसकी कीर्ति कैसे नष्ट करूँ?
जब भी किसी संत की परीक्षा होती है तो उसके सामने तीन चीजें परीक्षा के तौर पर भेजी जाती हैं। सबसे पहले काम भावना की परीक्षा होती है। उसके बाद विपत्तियाँ भेजी जाती हैं और अंत में प्रसिद्धि देकर अहंकार की परीक्षा ली जाती है। रामचन्द्र खान ने हरिदास ठाकुर जी को गिराने का निर्णय लिया। उसने इस काम के लिए एक वेश्या को नियुक्त किया। उसने वेश्या को निर्देश दिया कि वह हरिदास ठाकुर के घर जाये और बाद में शोर मचा दे जिससे पड़ोसियों को लगे कि हरिदास ठाकुर जी उसके साथ भोग कर रहे थे। इससे वह सबकी नजरों में गिर जाएँगे। परन्तु उसे यह नहीं पता था कि हरिदास ठाकुर जी भगवान के सेवक थे और भगवान स्वयं उनके रक्षक थे।
हरिदास ठाकुर जी ने वेश्या का उद्धार किया
वेश्या सुंदर, बुद्धिमान, चालबाज और चतुर थी। वह हरिदास ठाकुर जी की कुटिया में गईं, जहां वह भगवान के पवित्र नाम का जाप करने में तल्लीन थे। उन्हें लुभाने के लिए उसने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन वह अपने जप में मग्न रहे। वह सुबह से शाम तक इंतजार करती रही, लेकिन ठाकुर हरिदास जी ने उससे बात करने से पहले अपना जप पूरा करने का आग्रह किया। वह प्रतिदिन भगवान के तीन लाख नामों का जप करते थे; वह दिन भर इंतजार करती रही।वह उनके चेहरे को देखती रही और भगवान के पवित्र नाम को सुनती रही।
वह शाम को चली गई और अगले दिन उन्हें भ्रष्ट करने के लिए सज-धज कर वापस आई। वह अभी भी जप कर रहे थे; वैश्या ने बीच में बात करने की कोशिश की, लेकिन वह अपने जप में लगे रहे। वह उनके जप को सुनती रही। दूसरे दिन की शाम हुई और वह अपने घर चली गई। तीसरे दिन लौटी और गुस्से से बोली, तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते? उन्होंने कहा मैं तुमसे बात करूंगा; पहले मुझे अपना जप पूरा कर लेने दें। हरिदास जी की बातें सुनकर उसका हृदय परिवर्तित हो गया। उसने सोचा कि मैं कितना पापी हूँ। मैं ऐसे महान व्यक्ति को भ्रष्ट करने की कोशिश कर रही हूं।
दिन के अंत तक तीन लाख नाम जपे जाने तो हरिदास जी जप करते रहे। वह रोने लगी और हरे कृष्ण, हरे कृष्ण का जप भी करने लगी। हरिदास जी ने यह देखा और सोचा कि भगवान ने अब उस पर कृपा कर दी है। अब हरिदास ठाकुर जी उस से बात करने के लिए तैयार हो गये। उसे खेद था कि वह उन्हें भ्रष्ट करने आयी थी। वह रो रही थी और उनसे सेवा में स्वीकार किये जाने का अनुरोध करने लगी।
वेश्या बनी हरिदासी
हरिदास जी ने कहा कि अब तुम वेश्या नहीं हो। मेरे प्रभु महान हैं, परन्तु उनका नाम उनसे भी महान है। मेरे भगवान के नाम में कोई भेदभाव नहीं है। कोई भी जप कर परम कल्याण प्राप्त कर सकता है। गलत कार्यों से जमा किया हुआ धन गरीबों को दान करें और आज से ही पवित्र नाम का जप करना शुरू करें। यह नाम आपको पवित्र कर देगा। वेश्या ने कहा कि मैं अपने घर वापस नहीं जाऊंगी। हरिदास जी ने उसे उनकी कुटिया में ही रहकर नाम जपने को कहा और वह ख़ुद वहाँ से चले गये।
वेश्या ने सन्यास ले लिया और उसी कुटिया में नाम जपने लगी। उसका नाम हरिदासी हो गया। हरिदास जी उसी क्षण कुटिया छोड़कर अद्वैत आचार्य जी के घर शांतिपुर के लिए रवाना हुए। वेश्या फटे पुराने कपड़े पहनकर लगातार नाम का जप करने लगी। जिस जमींदार ने उसे भेजा था उसके होश उड़ गए। उसने सोचा, मैंने हरिदास ठाकुर को बदनाम करने के लिए वेश्या को भेजा था, लेकिन वेश्या ख़ुद परिवर्तित हो गई। लोग उस वेश्या का उसी प्रकार आदर करने लगे जैसे हरिदास जी का करते थे। लोग उसके दर्शन करने के लिए आने लगे।
यह भगवान के नाम की महिमा है। रामचन्द्र खान को अपने कुकर्मों का फल मिला। उस पर राजा के विरुद्ध अपराध करने का आरोप लगाया गया। उसकी सारी संपत्ति जब्त कर ली गई और उसे जेल भेज दिया गया। जो लोग भक्तों का अपमान करते हैं और उन्हें गिराने की कोशिश करते हैं, उनकी दुर्गति निश्चित है।
काजी की हरिदास ठाकुर जी को दंड देने की कोशिश
जब भी किसी भक्त की परीक्षा होती है तो सबसे पहले प्रलोभन आते हैं। जब कोई भगवत् मार्ग पर चलता है तो उसे परीक्षाओं के लिए तैयार रहना चाहिए। दूसरी परीक्षा के लिए विपत्तियाँ भेजी जाती हैं । हरिदास ठाकुर जी भगवान के नाम को ही अपना जीवन मानते थे। उन्होंने वेश्या का उद्धार किया और उसे हरिदासी बना दिया। इसके बाद वे शांतिपुर में अद्वैत आचार्य जी के पास आये। उन्होंने शांतिपुर के पास फुलिया नाम के गांव में एक छोटी सी फूस की झोपड़ी में जप करना शुरू कर दिया।
उस समय का राजा मुस्लिम धर्म का अनुयायी था। जो कोई भी उसके धर्म के विरुद्ध बोलता था उसे दंडित किया जाता था। राज्य के काजी को पता चला कि हरिदास जी जन्म से मुसलमान थे लेकिन फिर भी हरे कृष्ण का जप करते थे। हरिदास जी का प्रभाव देखकर वह उनसे ईर्ष्या करने लगा। उसने हरिदास जी को दंड देने का निश्चय किया। उसने सबसे पहले यह बात राजा के सामने रखी। हरिदास जी के विरुद्ध शाही दरबार में मुक़दमा दायर किया गया। हरिदास जी को हथकड़ी और बेड़ियाँ डालकर दरबार में लाया गया।
राजा ने उन्हें बैठाया और पूछा कि क्या उन्होंने अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन किया है। राजा ने कहा कि अपने धर्म का त्याग करने की वजह से तुम्हें नरक भेजा जायेगा; मुझे तुम्हारे लिए बहुत दुख हो रहा है। तुम्हें देखकर सज़ा देना सही नहीं लग रहा, तुम कलमा पढ़ो, मैं तुम्हारी सज़ा कम कर दूँगा, अन्यथा तुम्हें भयंकर दण्ड मिलेगा।
ठाकुर हरिदास जी ने राजा को समझाया कि उन्होंने भगवान के नाम का जप शुरू करके कुछ भी गलत नहीं किया है। लेकिन काजी ने हस्तक्षेप किया और कहा कि वो कुछ भी सुनना नहीं चाहता। उसने राजा से कहा कि हरिदास अधर्म कर रहे हैं; वह काफ़िर हैं और उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए। क़ाज़ी ने कहा कि उन्हें इसलिए सज़ा दी जानी चाहिए ताकि कोई दोबारा उनके ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत न कर सके। सज़ा मौत की होनी चाहिए, लेकिन सीधी मौत नहीं। उन्हें 22 बाजारों में पीटना चाहिए ताकि हर कोई देख सके कि अपने धर्म के खिलाफ जाने का परिणाम क्या होता है। राजा सहमत हो गया। जल्लादों ने तुरंत उनके हाथ बाँध दिये और उन्हें कोड़ों से पीटना शुरू कर दिया।
22 बाजारों में हरिदास ठाकुर जी की कोड़ों से पिटाई
वह भगवान का नाम जपता रहे। कोड़े उन्हें घायल करते रहे और उनकी चमड़ी खींचते रहे। वह “हरि बोल” का जप करते रहे। इतने भयानक दर्द और पीड़ा के बीच भी उन्होंने कभी आह नहीं भरी। उनकी पीठ से खून की धाराएँ बह रही थीं और क्रूर जल्लाद उन्हें पीटते रहे। वह कहते रहे, “हरि बोल”। उनके जैसे लोगों के जप से ही यह संसार धन्य और पवित्र है। इन महापुरुषों की महिमा के कारण ही आज हम भगवान के नाम का जप कर पा रहे हैं। वे ईश्वर के प्रतिनिधि ही हैं जो भक्ति की शक्ति दिखाने के लिए अवतरित होते हैं।
चेहरे पर मुस्कान के साथ, वह लगातार कोड़े खाते हुए भी हरि का नाम जपते रहे। उन्हें देखने वाले दुख से चिल्ला रहे थे और रो रहे थे। वे जल्लादों की क्रूरता देख रहे थे जो एक महान निर्दोष व्यक्ति को यातना दे रहे थे, लेकिन राजा के आदेश के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसकी थी? तो किसी ने कुछ नहीं किया। उन्हें 22 बाज़ारों में पीटा गया; उनका मांस निकलने लगा। जल्लादों को आश्चर्य हुआ कि उन्होंने एक बार भी आह नहीं भरी; वह बस कह रहे थे, “हरि बोल।”
हरिदास जी भगवान से प्रार्थना करते रहे कि वे काजी, राजा या जल्लादों को दंड न दें। हरिदास जी ने आखिरी बार “हरि बोल” कहा और बेहोश हो गये। जल्लादों ने देखा कि हरिदास जी की धड़कन नहीं चल रही थी, और उन्होंने उन्हें मृत घोषित कर दिया। काजी ने देखा कि वह मर गये हैं तो उसने उनके शरीर को गंगा में फेंक दिया। गंगा का स्पर्श उनके लिए अमृत के समान था। गंगा जी ने उन्हें अपनी गोद में ले लिया। वह डूब नहीं रहे थे। वह होश में आये और बोले, “कृष्ण कृष्ण।” गंगा जी ने उनके घावों को अपनी लहरों से धोया। गंगाजल के स्पर्श से उनका सारा कष्ट दूर हो गया। वह किनारे पर पहुंच गये और लोग उन्हें गोद में उठाकर फुलिया गाँव के पास उनकी झोपड़ी में ले गए।
हरिदास ठाकुर जी की चमत्कारी वापसी
उसकी पिटाई की खबर चारों ओर फैल गई। हरिदास जी के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। वह कीर्तन करने लगे। गंगाजल के स्पर्श से उनके सारे घाव ठीक हो गये और उन्हें किसी औषधि की आवश्यकता नहीं पड़ी। जब राजा ने सुना कि वह जीवित हैं, तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उन्हें इतनी बुरी तरह पीटा गया था कि वह जिंदा नहीं बच सकते थे। राजा और काजी उनसे मिलने आये। उन दोनों ने उन्हें स्वस्थ, तेजस्वी और कीर्तन करते हुए देखा। राजा ने काजी की ओर देखा और कहा कि उन दोनों से बहुत बड़ा अपराध हो गया है। ऐसी सज़ा पाकर कोई भी जीवित नहीं रह सकता। राजा ने ठाकुर हरिदास जी को साष्टांग प्रणाम किया और क्षमा मांगी।
हरिदास जी ने कहा इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है; शायद यह मेरा ही कोई बुरा कर्म था। राजा ने हरिदास जी की कोई सेवा करने का अनुरोध किया। हरिदास जी ने राजा से केवल एक ही सेवा माँगी। उन्होंने राजा से फिर कभी किसी वैष्णव को परेशान न करने और भगवान के कीर्तन में विघ्न ना डालने के लिए कहा। हरिदास जी ने राजा और काजी से कहा कि वे इस घटना से दुःखी न हों। उन्होंने कहा कि मानव शरीर में सुख-दुख तो लगे ही रहते हैं। प्रत्येक प्राणी को अपने कर्म भोगने पड़ते हैं। यह शायद मेरा ही कोई कर्म था जिसके कारण यह सब हुआ।
यह सुनकर राजा फिर उनके पैरों पर गिर पड़ा। सभी वैष्णवों ने आकर उन्हें प्रणाम किया। हरिदास जी ने कहा कि मैंने राजा के दरबार में अपने स्वामी और उनके नाम की निन्दा सुनी, जो मेरे इस दंड का कारण बनी। और भगवान ने पूरी पिटाई के दौरान मुझे अपने गले से लगाये रखा; मुझे एक भी कोड़े की मार महसूस नहीं हुई। मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हुआ।
नाम जप की महिमा
उपासक के जीवन का सबसे बड़ा फल भगवान के नाम से प्रेम हो जाना है। प्रलोभन, भय या विपत्ति के कारण नाम जप न छोड़ें। दुःख आये तो उसे हँसकर सहन करें। जपते रहें राधा राधा। ईश्वर पर अपना विश्वास कभी कम ना होने दें। आप हर परिस्थिति को सहन करने में सक्षम हो जाएँगे। आपको अंदर से परमानंद मिलेगा। अब तक आप इस स्थिति में नहीं पहुँचे हैं, इसलिए आपका मन इधर-उधर भागता रहता है।
जिस दिन आपका हृदय परमानंद से भर जाएगा, आप अपना मन भगवान के नाम से नहीं हटा पाएंगे। आपका हृदय अभी शुष्क है, इसलिए वह वासना और इंद्रिय विषयों में लिप्त रहता है। एक बार जब आप पवित्र नाम का स्वाद चख लेंगे, तो आपका बाहरी विषयों का आनंद लेने का मन नहीं होगा। पवित्र नाम को धारण करें। आपको प्रभु का साथ महसूस होने लगेगा। नाम जप का अभ्यास करें। आपको सब कुछ नाम जप से मिल जाएगा: ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, प्रेम, या जो भी आप चाहते हैं। सब कुछ हासिल हो जायेगा।
वर्णन कर्ता: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी