क्रोध ही मनुष्य को नष्ट करता है। पूज्य श्री उड़िया बाबा ने कहा है कि कोई एक महीने के लिए भजन करे और किसी पर एक बार क्रोध कर ले, तो एक महीने का भजन नष्ट हो जाता है। बारह महीने में अगर बारह बार क्रोध कर लिया तो एक साल का भजन चौपट हो जाता है। यहाँ कुछ लोग दिन में बारह बार क्रोध करते हैं! थोड़ी-थोड़ी देर में किसी ना किसी पर नाराज़गी हो जाती है। क्रोध भगवद्प्राप्ति के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। क्रोधी मनुष्य भयंकर से भयंकर पाप कर सकता है। क्रोध के वशीभूत होकर लोग दूसरों की हत्या भी कर देते हैं। क्रोध से भरा हुआ पुरुष कठोर वाणी के द्वारा अपने गुरु की वाणी की अवहेलना भी कर सकता है। क्रोध बड़े से बड़े सम्माननीय पुरुष का भी अपमान करा देता है।
जब आपके हृदय में क्रोध प्रकट हो, तो तत्काल मौन हो जाए। आप कोशिश करें कि उस जगह से हट जाएँ जिस जगह पर क्रोध प्रकट हो रहा है। क्रोध सहने में ही कल्याण है। अगर आप क्रोध की जलन को सह गये तो आपका हृदय पवित्र हो जाएगा। इससे आप भगवान के प्यारे और दूसरों का परम कल्याण करने वाले बन जाएँगे। अगर आप क्रोध करेंगे तो आपका भजन नष्ट होगा। क्रोध की सबसे बड़ी औषधि है मौन। यदि कोई आपको गाली दे रहा है तो उस समय आपको निश्चित मौन हो जाना चाहिए। यदि खड़े रहकर अपनी निंदा सुनने की सामर्थ्य नहीं हैं तो आपको वहाँ से बिना कुछ कहे चल देना चाहिए। आप उन्हें क्षमा कर दीजिए। क्षमाशील पुरुष संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है।
सहनशीलता की पराकाष्ठा – एकनाथ जी की कहानी
एक दिन एकनाथ जी जब गंगा स्नान करके लौट रहे थे तो एक व्यक्ति ने उन पर थूक दिया। वो फिर से गंगा स्नान करने चले गए। उसने उन पर एक-एक करके सौ बार थूका, एकनाथ जी सौ बार गंगा स्नान करने गये। अब तो उस व्यक्ति से रहा नहीं गया। वो ऊपर से उतर के आये और उसने उन्हें साष्टांग दंडवत किया। एकनाथ जी ने पूछा क्या बात हो गयी? वह बोला मुझ अपराधी को क्षमा करें, मैंने सौ बार आपके साथ ग़लत व्यवहार किया। एकनाथ जी बोले आप जैसा उपकारी तो कोई नहीं होगा। मैं दिन में ज़्यादा से ज़्यादा दो बार, प्रातः और सायं कल में, गंगा स्नान करता हूँ। आपकी कृपा से आज सौ बार गंगा स्नान हुआ। आपके चरणों में प्रणाम है, आप ऐसी कृपा रोज़ किया करना।
एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठकर एकनाथ जी को किसी भी तरह गुस्सा दिलाने का उपाय सोचते रहते थे। एक ब्राह्मण आए और उनसे बोले कि मुझे कुछ पैसों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा दो सौ रुपये देंगे, केवल एकनाथ जी को गुस्सा दिला दो। ब्राह्मण ने सोचा वो तो आसानी से हो जाएगा। वो ब्राह्मण जूता पहनकर उनके पूजा घर में चले गए। एकनाथ जी ने उन्हें आसन दिया और बैठाया, और बड़े प्यार से उन्हें भगवान का चरणामृत और प्रसाद भी दिया। उस ब्राह्मण को लगा कि ये बड़े ही विचित्र आदमी हैं कि इन्हें कोई नाराज़गी नहीं हुई। एकनाथ जी सब में ठाकुर जी को देखते थे तो गुस्सा कैसे होते!
उनकी पत्नी ने उस ब्राह्मण के लिये भोजन परोसा तो वो जाकर उनकी पत्नी की पीठ पर चढ़ गया। उस ब्राह्मण ने सोचा कि अब एकनाथ जी पक्का नाराज़ होंगे। एकनाथ जी ने अपनी पत्नी से कहा, जरा संभलकर! उनकी पत्नी ने कहा कि मुझे अपने बेटे को सम्भालने का अभ्यास है, आप चिंता ना करें। एकनाथ जी की पत्नी की यह बात सुनकर वो ब्राह्मण रो पड़ा। एकनाथ जी ने उनसे पूछा कि आप रो क्यों रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा मेरे दो सौ रुपये मारे गए। उन्होंने बताया कि चबूतरे पर बैठे लोगों ने मुझे आपको नाराज़ करने के बदले दो सौ रुपये देने का वादा किया था। आप नाराज़ ही नहीं हो रहे तो मैं क्या करूँ! एकनाथ जी बोले आप बता देते तो में पहली बार में ही नाराज़ हो जाता!
ऐसे बहुत से महात्माओं के उदाहरण हैं जिनको लोगों ने बहुत क्लेश दिया लेकिन वो कभी नाराज़ नहीं हुए।
करत जे अनसहन निंदक तिनहुँ पे अनुग्रह कियो।
श्री हित मंगल गान
जो उत्पन्न हुए क्रोध को अपने विवेक बुद्धि से दबा देते हैं, वो निश्चित श्री भगवान के समीप पहुंच जाते हैं।
क्रोधी व्यक्ति की दशा!
क्रोधी मनुष्य किसी भी कार्य को ठीक से नहीं समझ पाता। वो ये नहीं जान पाता कि क्या मर्यादा है। क्या करना चाहिए। क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए क्रोधी मनुष्य अपने गुरुजनों को भी कटु वचन बोल देता है। उपासक को सदैव इस क्रोध रूपी दुश्मन से क्षमा रूपी अस्त्र से निपटना चाहिए । क्रोध का त्याग करने से अद्भुत तेज प्रकट होता है। क्रोधी पुरुष कभी भी अपने भजन का संचय नहीं कर सकता। उसका तेज नष्ट हो जाता है। वो महान क्लेश से युक्त हो जाता है। मूर्ख लोग ही क्रोध किया करते हैं। वो क्रोध को अपना बड़ा गर्व मानते हैं।
यदि कभी क्रोध आ जाए तो हमें प्रायश्चित करना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि आज मुझे गुस्सा आ गया, अब मैं दो दिन भोजन नहीं करूँगा और निरंतर जप करूँगा। और फिर ऐसा नियम लें कि आगे से कभी क्रोध नहीं करूँगा। जो मारने वाले के प्रति भी क्षमा रखता है और स्वयं उसको नहीं मारता, वो श्री कृष्ण को अपने अधीन कर लेता है। ये क्रोध महा पापी है। इसके वश में आकर एक पिता अपने पुत्र को मार सकता है। पुत्र क्रोधित होकर पिता की हत्या कर सकता है। एक पति अपनी पत्नी की हत्या कर सकता है और एक पत्नी अपने पति की हत्या कर सकती है।
क्षमावान व्यक्ति क्या प्राप्त कर सकता है?
हमें सभी परिस्तिथियों में क्षमा भाव रखना चाहिए। जो अपने क्रोध को काबू कर लेता है वो पूरे विश्व को अपने अधीन कर लेता है। जो क्षमाशील है वो सबसे बड़ा तपस्वी है और वही भगवान का परम भक्त है।
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।
तुलसीदास जी
श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें संत सुभाव गहौंगो।।
जथालाभ संतोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।।
परहित-निरत निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहौंगो।।
परुषबचन अतिदुसह स्रवन सुनि तेहि पावक न दहौंगो।
तुलसीदास जी कहते है कि क्या मैं कभी अपने गुरुजनों की तरह हो पाऊगाँ? क्या रघुनाथ जी की कृपा से मैं संतो के स्वभाव का बनूगाँ? हमेशा लोगों की सेवा के लिए तैयार रहूँगा और कानों से कठोर वचन सुनने पर क्रोध नही करुगाँ, अपने मन को शांत और शीतल रखूँगा।
चाहे कोई कितना भी कड़वा बोले लेकिन हम बुरा नहीं मानेंगे। जो अपमान और निंदा को सह जाता है और सबको क्षमा कर देता है, वो ब्रह्म भाव को प्राप्त कर लेता है। क्षमावान को सदैव इस लोक में सब सुख पहुंचाते हैं। क्षमावान का परलोक में सब आदर करते हैं। इसलिए हमें कभी क्रोध नहीं करना चाहिए और सदा क्षमा भाव से क्रोध को नष्ट करते हुए श्री भगवान का भजन करना चाहिए।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज