क्या गुरु दीक्षा लेने से सारे पापों का नाश हो जाता है?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
क्या गुरु दीक्षा लेने से पाप नष्ट हो जाते हैं?

चतुर्भुज दास जी भगवद् चर्चा कर रहे थे। कथा में उन्होंने कहा कि जब कोई दीक्षा लेता है, तो उसका एक नया जन्म हो जाता है और उसके पुराने पाप उस पर लागू नहीं होते। इसी बीच, एक चोर जो एक साहूकार से चोरी करके भागा था, वहां आ पहुँचा। उसके पीछे सैनिक लगे हुए थे। वह चोर उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ सत्संग चल रहा था और हजारों लोग बैठे थे। वह उन्हीं के बीच जाकर चुपचाप बैठ गया।

राजा के सैनिक जब वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि सत्संग चल रहा है। उन्होंने सोचा, “यहाँ तो भक्ति की चर्चा हो रही है, चोर यहाँ क्यों रुकेगा?” और वे लौट गए। इस तरह चोर बच गया। उसी समय सत्संग में यही चर्चा हो रही थी कि दीक्षा लेने से नया जन्म होता है और पूर्व के पाप नष्ट हो जाते हैं।

चोर ने ली गुरु दीक्षा

क्या है गुरु दीक्षा

जब सत्संग समाप्त हुआ, तो चोर चतुर्भुज दास जी के पास गया और बोला, “महाराज, क्या यह सच है कि दीक्षा लेने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं? मैं घोर पापी हूँ — चोर हूँ, हिंसक हूँ। ऐसा कोई पाप नहीं जो मुझसे न हुआ हो। क्या यदि मैं दीक्षा लूँ, तो निष्पाप हो जाऊँगा?”

चतुर्भुज दास जी बोले, “हाँ, दीक्षा लेने के बाद तुम निष्पाप हो जाओगे।” चोर ने विनती की, “तो कृपया मुझे दीक्षा दें।” चतुर्भुज दास जी ने मन ही मन सोचा, “यह तो दीक्षा का सच्चा अधिकारी है, क्योंकि यह अत्यंत पापी और हिंसक स्वभाव का है — और अब परिवर्तन की इच्छा रखता है।” उन्होंने तुरंत उसे दीक्षा दी — उसका सिर मुंडवाया, कंठी पहनाई, तिलक और द्वादश तिलक लगाए।

चोर का पकड़ा जाना

गुरु दीक्षा के बाद क्या होता है

दीक्षा लेने के बाद अगले दिन वह निर्भय होकर घूम रहा था। साहूकार सेठ अपने सैनिकों के साथ था और उस चोर को खोज रहा था। अचानक उसकी नजर उसी चोर पर पड़ी। उसने अपने सैनिकों से कहा, “अरे! यही है वो चोर।” चोर को बंदी बना लिया गया और राजदरबार में ले जाया गया।

राजा ने पूछा, “तुमने चोरी की है?” चोर ने उत्तर दिया, “इस जन्म में नहीं की।” सेठ जी बोले, “महाराज! यह जन्म की नहीं, कल की बात है। कल इसने मेरे घर चोरी की है।” चोर ने कहा, “मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।” सेठ ने कहा, “मैं भी कसम खाकर कहता हूँ कि इसने ही कल चोरी की है। इसने केवल साधु का वेश धारण कर लिया है — सिर मुंडवा लिया, तिलक लगा लिया — लेकिन है वही चोर।” अब दोनों अपनी-अपनी कसम पर अड़े रहे।

सत्य की परीक्षा

गुरु दीक्षा का महत्व

उस समय सत्य की पुष्टि के लिए जो परंपरागत पद्धति प्रचलित थी, उसके अनुसार एक लोहे का टुकड़ा गर्म किया जाता था। फिर आरोपी के हाथ पर पीपल का एक पत्ता रखा जाता और उसके ऊपर सूत का एक पतला धागा बांध दिया जाता। इसके बाद आरोपी को वह गर्म लोहा हाथ में पकड़ने को कहा जाता। यदि सूत का धागा न जले और आरोपी सात कदम चलकर उस गर्म लोहे को फेंक दे, तो उसे सत्यवादी माना जाता था।

यही प्रक्रिया उस चोर के साथ भी अपनाई गई। उसने मन ही मन कहा, “गुरुदेव ने कहा था कि दीक्षा लेने से नया जन्म होता है।” फिर उसने जोर से कहा, “मैंने इस जन्म में कोई पाप नहीं किया।” और वह सात कदम चलकर वह गर्म लोहा फेंक आया। आश्चर्य की बात यह थी कि सूत का धागा बिल्कुल वैसा ही बना रहा, न जला, न टूटा।

सत्य का खुलासा – चोर की सत्य निष्ठा

गुरु मंत्र और दीक्षा

अब तो राजा ने सेठ से कहा, “इसे तुमने चोर कहा? इतने बड़े संत को चोर कहने का अपराध किया है! इसे फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए।” जैसे ही सेठ की फांसी की बात सामने आई, चोर बोल पड़ा, “सरकार! नहीं, वो भी सही हैं। कृपया उन्हें फांसी न दें, क्योंकि वे अपराधी नहीं हैं। असली अपराधी तो मैं हूँ।” राजा ने आश्चर्य से पूछा, “अब तुम कैसे अपराधी हो सकते हो? तुम्हारा तो प्रमाण हो चुका है कि तुमने इस जन्म में कोई चोरी नहीं की।”

चोर बोला, “आप सही कह रहे हैं, मैंने इस जन्म में कोई चोरी नहीं की। लेकिन कहानी यह है कि चोरी मैंने सचमुच कल ही की थी। सेठ जी ठीक कह रहे हैं। परंतु उसके बाद मैंने दीक्षा ले ली। और दीक्षा लेने के बाद नया जन्म हो जाता है। इसलिए मैं सच्चे मन से कह सकता हूँ कि इस जन्म में मैंने कोई पाप नहीं किया।” इस बात को सुनकर राजा अत्यंत प्रभावित हुए और बोले, “मैं उन संत से अवश्य मिलना चाहता हूँ, जिन्होंने तुम्हारे जैसे चोर का भी जीवन परिवर्तन कर दिया।”

निष्कर्ष: गुरु दीक्षा का असली प्रभाव

गुरु दीक्षा से जीवन परिवर्तन

दीक्षा के बाद पूर्व के पाप नष्ट हो जाते हैं—यदि उसके पश्चात कोई नया पाप न किया जाए। इस दृष्टांत से यह स्पष्ट होता है कि दीक्षा के साथ एक नया जन्म होता है। लेकिन यह केवल तभी फलदायक होती है जब व्यक्ति सच्चे मन से संकल्प करे कि अब वह कोई पाप नहीं करेगा। उक्त चोर ने दीक्षा के बाद न कभी झूठ बोला, न ही कभी चोरी की। उसने कहा, “अब तक जो किया, वह किया — अब नहीं करूंगा।” इसी सच्चे परिवर्तन के कारण उसके सारे पूर्व पाप नष्ट हो गए।

परंतु यदि कोई दीक्षा लेकर भी पाप करता रहे, तो उसके पाप और भी दृढ़ हो जाते हैं। ऐसे पापों को भोगना ही पड़ता है, और उस पाप का प्रभाव उसके गुरु पर भी पड़ता है। यदि शिष्य पाप करे और गुरु उसे दंड न दे या उस शिष्य का त्याग न करे, तो गुरु पर भी दोष आता है—कि उन्होंने ऐसे अयोग्य व्यक्ति को दीक्षा क्यों दी?

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज गुरु दीक्षा पर मार्गदर्शन करते हुए

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