अगर गुरु के वचनों में विश्वास हो तो जीव का कल्याण हो जाता है। एक सीधा-साधा गाँव का भक्त था। वह कभी कथा नहीं सुनता था। वह एक चरवाहा था और गाय चराता था। एक दिन उसके मित्रों ने कहा कि तुम कभी तो कथा सुन लो, रात दिन पशुओं के पीछे घूमते रहते हो, पशु बुद्धि हो गई है तुम्हारी। कभी तो भगवान की कथा सुन लो।
इसके बाद एक दिन उसने कथा सुनने के लिए जाने का निर्णय लिया। सत्संग में चर्चा चल रही थी कि जिसने मनुष्य जन्म लेकर गुरु मंत्र नहीं लिया और नाम जप नहीं किया, उसका जीवन व्यर्थ है, ऐसा मनुष्य मुर्दे के समान है। वह यह बात सुनकर चला गया। अब यह बात बार-बार उसके दिमाग में आ रही थी कि पंडित जी कह रहे थे कि जिसने गुरु मंत्र नहीं लिया और नाम जप नहीं किया उसका जीवन मुर्दे के समान है।
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी॥
जो नहिं करइ राम गुन गाना। जीह सो दादुर जीह समाना॥
जिन्होंने भगवान की भक्ति को अपने हृदय में स्थान नहीं दिया, वे प्राणी जीते हुए ही मुर्दे के समान हैं। जो जीभ राम के गुणों का गान नहीं करती, वह मेढ़क की जीभ के समान है।
रामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास जी
गुरु मंत्र लेने की चाह
वह दूसरे दिन फिर कथा सुनने गया और पंडित जी से मिलकर उसने कहा आपने कल कथा में कहा था कि गुरु मंत्र लिए बिना जीवन मुर्दे के समान है। आप ही मुझे गुरु मंत्र दे दीजिए। उन्होंने उसे टालते हुए कहा कि कथा के आख़िरी दिन मिलना तो मैं तुम्हें गुरु मंत्र दे दूँगा। कथा के आखिरी दिन पंडित जी कथा करने के बाद शौच के लिए लोटा लेकर जा रहे थे। अब वह तो गुरुमंत्र लेने के लिए आतुर था, तो वह भी उनके पीछे चल दिया। उसने कहा पंडित जी इतने दिन से घुमा रहे हो, अब तो गुरु मंत्र दे दो। पंडित जी को तो शौच के लिए जाना था, तो उन्होंने उसे फटकारते हुए कहा, “धत् गपोचन”।
विश्वास से गुरु मंत्र जपने का फल
उसे लगा वही मंत्र है, उसने कहा “जय गुरुदेव” और पंडित जी को प्रणाम करके वह अपने घर चला गया। घर आकर उसने अपने परिवार वालों से कहा, “आज से गाय चराना बंद, अब मुझे गुरु मंत्र मिल गया है। अब मैं भजन करूँगा। अब मेरा जीवन मुर्दे के समान नहीं रहेगा।” वो बैठ गया और “धत् गपोचन” जपने लगा। अब इसमें ना कोई भगवान का नाम है और ना कोई मंत्र है। उसकी ऐसी लगन लगी कि वो हर समय बस यही जपता रहता। श्री कृष्ण जो बड़े-बड़े मुनियों के ध्यान में नहीं आते वह सरल और भोले भक्तों को आसानी से मिल जाते हैं। हरिवंश महाप्रभु ने भी श्रीहित चौरासी जी में कहा है:
मुनि मन ध्यान धरत नहिं पावत, करत विनोद संग बालक भट ।
दास अनन्य भजन रस कारण, (जै श्री) हित हरिवंश प्रगट लीला नट ॥
श्रीहित चौरासी जी, पद 64
भगवान श्रीकृष्ण का भक्त पर स्नेह
भगवान यह सब देख रहे थे और उन्होंने रुक्मिणी जी से कहा चलो आज एक भक्त के दर्शन करने चलते हैं। रुक्मिणी जी ने कहा बहुत दिनों बाद आज आपको किसी भक्त की याद आई है, ज़रूर कोई बड़ा भक्त होगा। रुक्मणी जी साधारण वेश में भगवान के साथ गईं। जब वे दोनों गाँव में गए तो भगवान ने रुक्मिणी जी से कहा कि पहले आप जाकर उनसे मिलें। वो भक्त तो बैठकर “धत् गपोचन, धत् गपोचन” जप रहा था। रुक्मणी जी सोचने लगीं कि ये भगवान का कौन सा नाम है जो ना तो विष्णु सहस्रनाम में है ना गोपाल सहस्रनाम में। उन्होंने आवाज़ लगाकर पूछा। ये कौन सा भजन कर रहे हो और किसका भजन कर रहे हो? वो तो अपना जप करता रहा और चुप रहा। उन्होंने फिर पूछा, किसका भजन कर रहे हो ? दो तीन-बार पूछने के बाद उसे गुस्सा आ गया और उसने ग़ुस्से से जवाब दिया कि “तुम्हारे पति का”। रुक्मिणी जी वापस आईं और प्रभु से कहने लगीं कि “बहुत जानकार भक्त है, मैं तो इतना छुप कर गई थी फिर भी वो मुझे पहचान गया”। भगवान ने कहा, हाँ, तभी तो हम इसके दर्शन करने आए हैं।
भगवान के बचपन का नाम
रुक्मिणी जी ने भगवान से कहा आप उस भक्त के दर्शन बाद में करना, पहले मुझे ये बताओ कि वह आपका कौनसा नाम जप रहा है जो मुझे नहीं पता। भगवान ने कहा यह नाम तो मुझे बहुत प्यारा है। यह मेरा ब्रज का रखा हुआ नाम हैं। मेरा यह नाम मैया ने रखा था। एक दिन मैं अपने सखाओं के साथ मिलकर चोरी-चोरी माखन खा रहा था और उन्हें भी खिला रहा था। इतने में मैया और गोपी जन आ गईं और उन्होंने कहा, “कन्हैया, यह क्या कर रहा है?”
अब मैंने देखा कि हम तो फँस गए। मैंने कहा, मैया मैंने देखा कि माखन में चींटियाँ चढ़ी हुई हैं। तो मैं चींटी निकाल रहा था। मैया ने पूछा, तुम्हारा पूरा हाथ माखन से क्यों सना हुआ है। इसपर मैंने कहा चींटी अंदर चली गई तो मुझे भी मटकी में हाथ डालना पड़ा। फिर मैया ने पूछा कि तुम्हारे मुँह पर माखन कैसे लगा। मैंने कहा एक मक्खी बार-बार उड़कर मुझे परेशान कर रही थी तो मैंने अपने हाथ से उसे मारने की कोशिश की तो मक्खन वाला हाथ मेरे मुँह पर लग गया। मैया समझ गई कि मैं अपनी चोरी छुपा रहा हूँ और उन्होंने कहा, “धत् गपोचन”। प्रभु ने रुक्मिणी जी से कहा यह मेरा उस समय का रखा हुआ नाम है।
निष्कर्ष: गुरु वचनों पर विश्वास रखें और उनकी आज्ञा का पालन करें
एक अनपढ़ आदमी ने गुरु वचनों पर विश्वास रखकर जब एक साधारण शब्द बोला तो उसे भगवान का साक्षात्कार हो गया। भगवान तो सर्व लोक महेश्वर और सर्वज्ञ हैं, वे हर अक्षर में विराजमान हैं। फिर राधा नाम तो स्वयं हरि जपते हैं। राधा नाम तो परम प्रेममय है। जब उस व्यक्ति ने विश्वास करके “धत् गपोचन” जपा तो उसे रुक्मिणी जी और द्वारिकाधीश भगवान दर्शन देने आ गए। आप विश्वास करके राधा-राधा जपेंगे तो क्या आपको प्रभु प्राप्त नहीं होंगे? इसलिए गुरु द्वारा प्रदत्त उपासना में संदेह ना करें और राधा-राधा जपें।
मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज