कैसे एक हाथी बना भक्त – गजराज गोपाल दास जी की कहानी

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
गजराज गोपालदास रसिक मुरारी जी के साथ

रसिक मुरारी जी एक बहुत बड़े महाभागवत थे। वे अपने गुरु श्री श्यामानन्द महाप्रभु जी की आज्ञा से संत सेवा में रत रहते थे। वह कभी किसी संत को कटु वचन नहीं कहते थे और किसी पर दोष दर्शन नहीं करते थे। एक भक्त ने संत सेवा के लिए रसिक मुरारी जी के गुरुदेव के नाम बहुत सी ज़मीन कर दी। उस खेती से बहुत अन्न पैदा होता था जिससे रोज़ साधु सेवा होती थी। वहाँ का नवाब बड़े दुष्ट स्वभाव का था। नवाब ने जब इतनी खेती एक संत के पास देखी तो उसने श्यामानन्द जी की सारी संपत्ति अपहरण का लेने का आदेश दे दिया। खेती कब्जे में कर ली गई और आश्रम में जो कीमती सामान था वो सब कब्जे में ले कर संतों को अपमानित किया गया। श्यामानंद जी ने उस ज़मीन को छुड़वाने का विचार किया क्योंकि उससे बहुत से संतों का रोज़ का भंडारा होता था। उन्होंने अपने शिष्य रसिक मुरारी जी को पत्र लिख अपने पास बुलाया। उन्होंने रसिक मुरारी जी को उस दुष्ट नवाब के पास जाने और उसे भक्ति का उपदेश करने की आज्ञा दी और सब वापस लाने को कहा।

रसिक मुरारी जी को नवाब को उपदेश देने की गुरु आज्ञा

रसिक मुरारी जी के कुछ शिष्य नवाब की सेवा में मुंशी, मुनीम आदि पदों पर थे। उनको बड़ा भय हुआ कि नवाब उनके गुरु का भारी अपमान करेगा और हो सकता है उनकी जान पर भी बात आ जाए। रसिक मुरारी जी ने कहा कि “तुम भयभीत मत हो। तुम चिंता मत करो”। नवाब ने रसिक मुरारी जी के लिए पालकी भेजी ताकि मुंशी जन यह समझें कि बड़े सम्मान से बुलाया है। पर सब घबरा रहे थे कि कुछ बड़ा षड्यंत्र है अन्यथा इतना दुष्ट ऐसी श्रद्धा कैसे कर सकता है। रसिक मुरारी जी अपने गुरुदेव के चरणों का ध्यान करके पालकी में बैठ गए। पहले से ऐसी तैयारी की गई थी कि एक हाथी को मदिरा पिलाकर गुस्सा दिलवा दिया गया था। पालकी को उसी हाथी के सामने छोड़ दिया गया।

रसिक मुरारी जी ने हाथी को बनाया अपना चेला

गोपालदास हाथी बने रसिक मुरारी जी के शिष्य

रसिक मुरारी जी नज़दीक गये और हाथी पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहने लगे “कृष्ण! कृष्ण! बोलो। कृष्ण! कृष्ण! बोलो। देखो तुम भगवान के अंश हो। तमोगुण स्वभाव धारण करके तुम हाथी के शरीर में हो। तुम हाथी नहीं हो, तुम तो भगवद् अंश हो। ये क्रोध करना उचित नहीं है, इसलिए तामसिक स्वभाव छोड़ो और कृष्ण बोलो! कृष्ण बोलो! ”। हाथी ने घुटने टेक दिए और रसिक मुरारी जी के सामने मस्तक झुका लिया। राजा अपने महल के छज्जे से देखने आया था कि कैसे ये मतवाला हाथी इस गुरु को मारता है। लेकिन जब रसिक मुरारी जी ने उपदेश दिया तो हाथी ने घुटने टेक दिये और उनके चरणों में मस्तक रखकर अश्रु प्रवाह करने लगा। रसिक मुरारी जी ने अत्यंत प्रेम से उसे दुलार किया और उसके हृदय में भक्ति प्रदान की। उन्होंने तत्काल एक बड़ी तुलसी की माला उसके गले में बांधते हुए उसके कान में कृष्ण नाम सुनाया, मानो उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया हो। और कहा “सुनो! तुम्हारा नाम आज से गोपाल दास है।”

ये सारा का सारा दृश्य राजा देख रहा था। वो समझा कि यह तो कोई चमत्कारी महात्मा है। नवाब से अब रहा नहीं गया। वो दौड़ता हुआ आया, और उनके चरणों में गिरकर कहने लगा “मुझे क्षमा कीजिए, मैं संतों का प्रभाव नहीं जानता था। मेरे बड़े भाग्य उदय हुए क्योंकि आप जैसे महान संत के दर्शन हुए। जितनी जमीन ज़ब्त की थी वह तो वापस कर ही रहा हूँ। कई गावों की और भी ज़मीनें दे रहा हूँ”। यह कहते हुए वह उनके चरणों में लिपट गया। संतों का संग मोक्ष प्रदान करने वाला होता है, तभी उस दुष्ट राजा का ऐसा परिवर्तन हो गया।

गजराज गोपाल दास का सौभाग्य

संतो की सेवा में लगे गोपालदास

रसिक मुरारी जी ने कृपा करके गजराज का नाम गोपाल दास रखा – भक्त गोपाल दास। अब वह गजराज जैसे गाय के पीछे बछड़ा चलता है ऐसे रसिक मुरारी जी के पीछे-पीछे चल पड़ा। अब तो आनंद ऐसा कि संत सेवा होती तो गजराज गोपाल दास जी को प्रसाद जूठन मिलती। जब भी वो संतों को देखते तो आगे के पैर मोड़, घुटनों के बल होकर माथा टेक देते और प्रणाम करते। अब जो भी चावल, दाल आदि के बोरे संतों की सेवा के लिए लाने होते तो वो सेवा गोपाल दास को मिलती। सब कुछ गोपाल दास पे लाद करके लाया जाता।

एक बार सभी व्यापारी मिलकर गोपाल दास जी के गुरुदेव श्री रसिक मुरारी जी के पास आये और कहा “ये गोपाल दास जी हमारा माल खा जाते हैं। जब एक बोरा लाना है तो ये एक बोरा खा लेते हैं और एक बोरा लाद कर ले जाते हैं। हमारा तो घाटा हो जाता है”। गोपाल दास जी का ये नियम भी था कि किसी स्थान में यदि विशेष महोत्सव, भोज भंडारा हो और संतों की पंक्ति हो तो जब सब संत भोजन पाकर उठ जाते थे, तब ये वहाँ जाते और संतों की जूठन चाटते।

गोपालदास व्यापारियों का अनाज खाता है

रसिक मुरारी जी ने गजराज से कहा कि “देखो! तुम अब वैष्णव हो। तुम्हारे सब आचरण ठीक हैं लेकिन एक आचरण गलत है। तुम जो वहाँ लेने जाते हो उतना ही लिया करो। तुम दूसरे बोरे का अन्न क्यों खा जाते हो? एक तो वैष्णव को बिना भोग लगाये नहीं खाना चाहिए इसलिए तुमको आज से बिना भोग लगा हुआ भोजन या अन्न नहीं खाना और जब तक प्रसाद न मिले, तब तक कुछ मत खाना”। गोपाल दास जी की समझ में आ गया। श्री रसिक मुरारी जी ने कहा “बेटा, ज़बरदस्ती कुछ भी खाना पाप है। एक वैष्णव का ऐसा संस्कार नहीं होता है कि किसी के खेत में गए या किसी की दुकान से सामान खा लिया”। गोपाल दास जी ने घुटने टेक कर ऐसे गलती मानी कि मानो वो कह रहे हों, “क्षमा कीजिए गुरुदेव! आगे से कभी ऐसी गलती नहीं होगी”। अब तो संत सेवा में और भगवान की जूठन में गोपाल दास जी की बड़ी रति हो गई। सब संत इनको खूब दुलार करते और इनको कहीं ना कहीं अपने साथ चलने को कहते। गजराज गोपाल दास उन्हें सूंड पर चढ़ा पीठ पे बैठा लेते और इधर-उधर घुमा-घुमा के संत सेवा का आनंद लेते। गोपाल दास जी को संत सेवा का बड़ा चाव था। जैसा संत आदेश करते, वो वैसा ही करते। कोई संत यदि कहते कि आज यह सब्ज़ी पाने का मन है तो गोपाल दास जी तिलक लगा, कंठी पहने बाज़ार जाते तो सब उन्हें, जिधर सूंड से इशारा करते, वो सब्ज़ी पकड़ा देते । गोपाल दास जी उसे सूंड में रख के ले आते, खाते नहीं। यदि कोई जरा सा आनाकानी करता तो हुंकार मार के ऐसा डराते कि वो हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता और सामान ला के दे देता।

गोपालदास बाजार से किराना सामान लाते हुए

कभी गोपाल दास जी से संत कहते “मेरे कपड़े फट गये हैं”, तो गोपाल दास जी कपड़े की दुकान से वो भी ले आते। रसिक मुरारी जी पैसे पहुँचा देते और गोपाल दास जी माल लाते। सर्दी के समय में गोपाल दास जी अपने आप किसी कंबल की दुकान में जाकर बंडल का बंडल उठा कर पीठ में रख, संतों के पास ले आते। जब रसिक मुरारी जी को पता चलता तो वो पैसे पहुँचा देते। संत भी खूब प्रसाद ले लेते और थोड़ा खाकर बचा हुआ सब गोपाल दास जी को खिलाते और उन्हें दुलार करते।

गोपाल दास को पकड़ने के लिए बंगाल के सूबेदार ने रखा इनाम

गोपाल दास जी के साथ बहुत से संतो की टोली थी। जिधर जाते उधर लोग दौड़ उठते यह चमत्कार देखने के लिए कि एक हाथी संत सेवा में रहता है। दर्शन के लिए भीड़ लग जाती। चारों दिशाओं में आश्चर्यजनक चर्चा चली कि एक गजराज वैष्णव है जो संत सेवा में रहते हैं। बंगाल के सूबेदार को जब पता चला कि ऐसा कोई चमत्कारिक और आज्ञाकारी हाथी है, तो उन्होंने उन्हें पकड़वाने के लिए आदमी नियुक्त किए। पर जब भी कोई उनके नज़दीक आता तो गोपाल दास जी उसे अपनी सूंड में फँसाकर दूर पटक देते और उसे दंड देते। वो किसी को जान से तो नहीं मारते पर किसी काम का भी नहीं छोड़ते।

जो भी सैनिक आए, उन्होंने वापस आकर बताया कि, “महाराज वह हाथी पकड़ में आने वाला नहीं है। वह भगवद् शक्ति से संपन्न है”। सूबेदार ने बहुत स्वर्ण मुद्राएँ पुरस्कार में रखकर घोषणा कर दी कि उस हाथी को बंदी बनाकर हमारे पास लाया जाए। किसी के दिमाग में आया कि गजराज साधुओं को नहीं मारता है तो एक दुष्ट साधु भेष बनाकर गोपाल दास जी के सामने आया। गोपाल दास जी ने साधु वेष धारी के सामने घुटने टेक दिए। उसने तत्काल गोपाल दास को बंदी बनवा लिया और उन्हें साथ ले गया। जब उन्हें सूबेदार के पास ले जाया गया तो गोपाल दास जी को जल और भोजन आदि अर्पित किया गया। पर उन्होंने कुछ भी नहीं खाया क्योंकि उनके गुरु जी ने उन्हें बस संतों की जूठन या भगवान का प्रसाद पाने का नियम दिया था।

गोपालदास ने गंगा में अपना शरीर त्याग दिया

कई दिन हो गए। गोपाल दास जी ने ना अन्न लिया ना जल। सूबेदार के कहने पर सब ने सलाह की तो सोचा यह वैष्णव है। इसको गंगा जी में ले जाया जाए तो शायद गंगाजल पी ले क्योंकि वो तो भगवान का चरणामृत है, अन्यथा ऐसे तो इसके प्राण निकल जाएंगे। ज्यों ही वो लोग उन्हें गंगा जी में ले गए तो गोपाल दास जी जलधारा में खड़े हो गये, उन्होंने अपने गुरुदेव का ध्यान किया और जोर से पुकारा “कृष्ण!” और अपने शरीर का त्याग कर दिया। एक भगवद् प्राप्त महात्मा की जो गति होती है, वही सद्गति गोपाल दास जी की हुई।

सार बात

गजराज गोपाल दास जी एक हाथी के शरीर में थे पर उनकी निष्ठा इतनी बड़ी थी कि उनके गुरुदेव ने कहा कि प्रसाद के अलावा कुछ नहीं पाना तो उन्होंने जीवन त्याग दिया पर कुछ खाया नहीं। रसिक मुरारी जी के ऐसे बहुत से पावन चरित्र हैं जिनमें भक्ति के प्रभाव से उन्होंने बड़े-बड़े दुष्टों की बुद्धि बदली। भगवान अपने भक्तों की महिमा प्रकाशित करने के लिए ऐसी लीलाएँ करते रहते हैं। इसलिए उपासक को चाहिए कि गुरु चरण आसक्त होकर, गुरु प्रदत्त मंत्र, नाम और सेवा में चित्तवृत्ति लगाकर इसी जन्म में भगवद् प्राप्ति कर ले। यही जीवन का परम लाभ है।

मार्गदर्शक: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज गोपाल दास जी का चरित्र सुनाते हुए

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