क्या आपको मृत्यु से डर लगता है? क्या मृत्यु को टाला जा सकता है?

by Shri Hit Premanand Ji Maharaj
क्या मृत्यु को टाला जा सकता है

मृत्यु को क्यों टालना चाहते हैं आप? दस दिन बाद जाएँ या आज, क्या फ़र्क़ पड़ता है? जैसी हमारे प्रभु की इच्छा होगी हम उसी में खुश होंगे। नीचे दी गई एक कहानी से आपको समझ आएगा कि हम अपने सही और ग़लत के बारे में कुछ भी नहीं जानते:

एक पत्नी की अपने पति की मृत्यु टालने की कोशिश

एक प्रतापराय नाम के महाभागवत थे। उनके माता-पिता भक्त थे तो वो बचपन से ही ठाकुर जी की सेवा किया करते थे। वो सत्य के मार्ग पर चलते थे और भगवान से कोई इच्छा नहीं करते थे। उनकी एक बहन थीं, उनका नाम मालती था। वह यह जानती थीं कि उनके भाई रात-दिन भगवान का भजन करते हैं। उनकी शादी हुई और बड़े सुख से जीवन चला। कुछ समय के बाद उनके पति को बीमारी हुई और वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गए। अब उन्हें लगा कि अगर उनके भैया भगवान से कहेंगे तो निश्चित उनका सुहाग बच जाएगा, उन्हें भजन की ताक़त का अंदाज़ा था।

एक पत्नी अपने पति की जान के लिए भगवान से लड़ रही है

वह उनके पास आईं और कहा, भैया मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं माँगा, आप भगवान से कह कर हमारे पति को बचा लीजिए, अभी हमारी नवयौवन अवस्था है। अपनी बहन के कहने पर प्रतापराय जी ने उनके पति का सर अपनी गोद में रखा और जो मंत्र वो जपते थे उसे जपना शुरू किया और भगवान से उनके जीवन दान की प्रार्थना की। वो और मालती जी एकदम से समाधि में पहुँच गए। उन दोनों ने देखा कि भगवद् पार्षद जो उनके पति को लेने आए थे, रुक गए। उनके पति का सौभाग्य उदय हुआ था और वो भगवत् प्राप्ति के अधिकारी थे, लेकिन क्योंकि प्रतापराय जी ने संकल्प कर लिया था तो पार्षदों ने उन्हें मना कर दिया और जीवन दान दे दिया। उनके पति ने कहा कि आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते, मैं कई जन्मों से प्रभु के लिए तड़प रहा था, आज मिलने का सहयोग बन रहा है और आप एक भक्त होकर मुझे मेरे प्रभु से मिलने से क्यों रोक रहे हैं?

उन दोनों की अचानक आँख खुली, प्रतापराय जी ने पूछा, बहन आपने भी वही देखा जो मैंने देखा? उन्होंने कहा भैया रहने दीजिए, उनको जाने दीजिए। इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि भगवान अगर हमें दस दिन पहले बुलाना चाह रहे हैं तो हम दस दिन बाद क्यों जाना चाहेंगे?

जीव की दशा को दर्शाने वाली एक कहानी

एक गरीब आदमी एक सिद्ध संत की सेवा करता था। उसके मन में धन की कामना थी। एक दिन उन्होंने संत जी से कहा कि महाराज जी मेरी इच्छा है कि मैं धनी हो जाऊ। संत जी ने कहा कि बेटा धनी होने से शांति तो मिलनी नहीं है, लेकिन अगर आप चाहते ही हैं तो यह रही पारसमणि, इससे जीतने लोहे को छुएँगे, वो सब सोना बन जाएगा। ये मणि आप सात दिन के लिए रख सकते हैं, उसके बाद मैं आपसे इसको वापस ले लूँगा। उन्होंने सोचा कि सात दिन तो बहुत होते हैं तो पहले लोहा इकट्ठा कर लेता हूँ। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति बेच कर लोहा ख़रीद लिया। यह करते-करते सात दिन बीत गए और शाम हो गई। संत जी आए और बोले पारसमणि वापस दीजिए। संत जी ने पारसमणि वापस ले ली, उनके पास केवल लोहा रह गया, सारी संपत्ति भी चली गई।

लोहा इकट्ठा करता हुआ एक आदमी

हम लोगों की हालत भी ऐसी ही हो गई है। यह जीवन हमें मिला था अपनी स्वास से सोना बनाने के लिए, हर स्वास में राधा-राधा जपने के लिए। लेकिन हम व्यस्त हो गए लोहा इकट्ठा करने में, भोग भोगने में, सुखद जीवन के लिए सारी व्यवस्था बनाने में, विषय और भोग सामग्री इकट्ठा करने में। जब मृत्यु का समय आया तो अब कह रहे हैं, कि कुछ और समय मिल जाता तो अच्छा होता। जब पचास वर्ष में हम कुछ नहीं कर पाए तो थोड़ा और समय लेकर क्या कर लेंगे? एक ही रास्ता बचा है, वर्तमान में हमारे पास जो भी समय है, चाहे वो एक स्वास हो या एक मिनट, हम उस समय को प्रभु के स्मरण में लगाएँ, इससे सब मंगल हो जाएगा। हमारे प्रभु बड़े कृपालु हैं, उन्होंने एक सिद्धांत रखा है, अंतः गति सो मति। अगर हमारा सारा जीवन बिगड़ भी गया लेकिन अगर हमने अंत समय में राधा-राधा जप लिया तो वो सब बिगड़ी बना देंगे। जीवन रहे या ना रहे, इसके परवाह ना करें, निरंतर प्रभु का नाम जपें।

परीक्षित महाराज को मिला सात दिन में मरने का श्राप

परीक्षित महाराज को ब्रह्मर्षि बालक शृंगी ऋषि ने श्राप दिया कि उनकी मृत्यु सात दिन में तक्षक साँप के डसने से हो जाएगी। इसके बाद बड़े-बड़े महात्मा गंगा के किनारे पर परीक्षित जी के साथ सात दिन तक आमरण अनसन पर बैठे, लेकिन किसी ने भी उस श्राप को मिटाने की बात नहीं की। वहाँ बात यह हुई की सात दिन में परीक्षित महाराज का कल्याण कैसे हो। इसी का उपदेश करने के लिए शुकदेव गोस्वामी उनके पास आए, सात दिन तक उनको भागवत का उपदेश किया, लेकिन उन्होंने भी उन्हें बचाया नहीं। उन्होंने बस ये पूछा कि आपको मृत्यु का भय है क्या? परीक्षित जी ने कहा कि आपके उपदेश के बाद अब कोई भय बाक़ी नहीं रहा, उसके बाद शुकदेव जी वहाँ से चले गये।

परीक्षित महाराज ऋषियों के साथ

हमें चाहिए की हम निश्चिंत हो जाएँ, हम ये स्वीकार कर लें कि एक दिन हमारी मृत्यु अवश्य होगी।यह सोच कर क्या आपको डर लग रहा है कि सब कुछ यहीं छूट जाएगा? एक चीज़ आपको इस डर से बचा सकती है, वो है भगवान का नाम।

आप मृत्यु को क्यों टालना चाहते हैं?

अगर मृत्यु टालने का विचार भी हमारे मन में आ रहा है तो इसका मतलब यह है कि अभी हम में राग बाक़ी है। राग हो सकता है हमारे ख़ुद के शरीर का, भोगों का या हमारे परिवार का। यही राग भगवत् मिलन में बाधा पहुँचा रहा है। ये बात अच्छे से समझ लीजिए कि सबको एक दिन इस दुनिया से जाना है। इस दुनिया का नाम मृत्युलोक है, सिर्फ़ एक ही चीज़ यहाँ पर निश्चित है, वो है मृत्यु, सबके जाने का समय पहले से निश्चित है।

मृत्यु पर सुविचार

बस हमारा एक ही कर्तव्य है, उस निश्चित समय को हम सार्थक कर लें और प्रभु के पास जाएँ। आप अपने भजन का प्रयोग मृत्यु टालने में क्यों करना चाहते हैं? राधा-राधा जपें और जाने की तैयारी करें, यही समझदारी है। जैसा प्रभु चाहें वैसा हमें रखें, वो जितने दिन चाहें उतने दिन हमें जीवित रखें। भजन का प्रयोग प्रभु की प्रसन्नता के लिए करें। अगर भजन का बल आपने अपनी कामनाएँ पूरी करने के लिए किया तो ऐसा होगा कि जैसे आपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग मच्छर मारने के लिए कर दिया। दुख-सुख बिना माँगे ही जीवन में आता रहते हैं, यह तो क्रम है आपके पुराने कर्मों का। दुख-सुख से ऊपर उठें, भगवान के चरणों में मन लगाएँ, इससे आपको अखंडानंद प्राप्त होगा। भगवान के चरणों को प्राप्त करने के दो ही तरीक़े है, शरणागति और नाम जप। संसार का चिंतन छोड़कर प्रभु का चिंतन करें, नाम जप करें, भगवत् आश्रित रहें, अपने कर्तव्य का पालन करें। कोई नशा ना करें, मांस आदि गंदे पदार्थों का सेवन ना करें, पराई माता बहनों की तरफ़ गंदी भावना ना करें, आप पशु नहीं हैं। आपको जीवन मुक्त होने के लिए यह मानव जीवन मिला है, इसे नाम जप से सार्थक करें।

मार्गदर्शक – पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज

श्री हित प्रेमानंद जी महाराज मृत्यु से ना डरने पर मार्गदर्शन करते हुए

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